वो बिल्ली - 9 Vaidehi Vaishnav द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वो बिल्ली - 9

(भाग-9)

अब तक आपने पढ़ा कि किटी वीरान से पड़े गलियारे में एक चूहे को बुरी तरह से पीटती हुई मिलती है।

अब आगें...

रघुनाथ ने जब शोभना से कहा कि अपने आपकों सम्भालो तब शोभना मन में अथाह पीड़ा लिए हुए कहती है - "संभालना तो हमें अपनी बच्ची को हैं। रघु, हमनें बहुत देर कर दी समझने में...वह औरत मेरी बच्ची को आसानी से नहीं छोड़ेगी।"

किटी अब भी चूहे को पीटे जा रही थीं। दूर खड़ी सिसकती हुई शोभना के विलाप करने से उसका ध्यान टूटा। उसने लट्ठ छोड़ दिया और शोभना की ओर देखा। वह अब भी शोभना को घूर रहीं थीं। शायद ! चॉकलेट छीने जाने की नाराजगी अब तक बरकरार थीं। शोभना को अचानक अपने इष्टदेव याद आ गए। उसने किटी की आँख से आँख मिलाकर देखते हुए उनकी स्तुति गाना शुरू कर दिया।

किटी के गानों तक जब वह स्तुति पहुंची तो उसे सुनकर वह विचलित हो उठीं। उसने अपनी दोनों हथेलियों को कान पर रख लिया और हथेली का दबाव कान पर डालती रही कि जिससे उसे कुछ भी सुनाई न दे सकें। कुछ देर तक वह यूँही छटपटाती रहीं, फिर कटे हुए वृक्ष की तरह धड़ाम से ज़मीन पर गिर पड़ी।

रघुनाथ और शोभना उसकी ओर दौड़ पड़े। रघुनाथ ने किटी को अपनी गोद में उठाया और उसे वहाँ से लाकर अपने कमरे में लेटा दिया। शोभना किटी के सिर के पास बैठकर प्यार से किटी के माथे को चूमती है फिर उसके सिर पर अपना हाथ फेरती है।

रघुनाथ शोभना से कहते हैं - " तुम बिल्कुल परेशान मत होना। मैं मन्दिर से पंडित जी को अपने साथ लेकर आता हूँ। उनसे रक्षासूत्र भी ले लूंगा। इस बीच यदि कुछ होता है तो तुरन्त मुझें कॉल कर देना।"

 

शोभना ने उत्तर में हामी में सिर हिलाया औऱ किटी को ममतामयी नजरों से निहारने लगीं। रघुनाथ भी वहाँ से फ़ौरन निकल गया।

******

पंडितजी को अपने साथ लेकर रघुनाथ घर में प्रवेश करतें है। रघुनाथ तो अंदर प्रवेश कर जाता है लेक़िन पंडित जी मुख्य द्वार पर ठहर जाते हैं।

उन्होंने जब घर में प्रवेश के लिए अपना कदम हवा में ही किया था कि उन्हें एक तेज़ बिजली के करंट जैसा झटका लगा। तेज़ी से अपना पैर पीछे करने के बाद उन्होंने अपने झोले से गंगाजल निकाला और मुख्य द्वार पर छिड़क दिया। इसके बाद उन्होंने घर में प्रवेश किया। जब पंडितजी आँगन में आए तो अचानक ही तेज़ हवाएं चलने लगीं। हवा के साथ धूल का गुबार तथा सूखी पत्तियां उड़कर पंडितजी के इर्दगिर्द घूमने लगते है। पंडित जी ने तुरन्त झोले से मोरपंख निकाला और हवा में लहराया। मोरपंख के प्रभाव से तुरन्त वातावरण शांत हो गया।

रघुनाथ यह सब आश्चर्यचकित हो कर देख रहा था। सबकुछ शांत होने के बाद वह पंडितजी के नजदीक आया और उन्हें शीघ्रातिशीघ्र उस कमरे में ले गया जहाँ किटी सोई हुई थीं।

पंडितजी ने किटी के माथे पर अभिमंत्रित भभूत लगाई। भभूत के लगने से किटी ने आंखे खोली। शोभना सहम कर पीछे को हुई। किटी ने शोभना को देखा और बड़ी मासूमियत से पूछा - "मम्मा, आप क्यों रो रहे हों ..?"

रघुनाथ ने राहतभरी सांस ली। शोभना ने किटी को गले से लगा लिया और उसे दुलारती हुई बोली - "मैं रो थोड़े ही रहीं हूँ। मेरी प्यारी बच्ची भगवान तुम्हें हमेशा बुरी बला से बचाए।"

पंडितजी ने रघुनाथ को बाहर चलने का ईशारा किया। रघुनाथ तुरन्त बाहर निकल गया।

पंडितजी ने गम्भीरता से कहा - " रघुनाथजी, यहाँ किसी ऐसी आत्मा का साया है जिसके साथ कोई अप्रिय घटना घटित हुई है। उसे इंसानों के अस्तित्व से ही नफ़रत हो गई हैं। उसकी शक्ति दिनोदिन बढ़ती जा रही है। आप लोग जितनी जल्दी हो सकें इस घर को खाली कर दीजिए। वह इतनी अधिक शक्तिशाली है कि उससे सामना करने जितनी सिद्धियां मेरे पास नहीं है। उसने मेरा रास्ता रोकने की भी बहुत कोशिश की थीं। ईश्वर की कृपा से ही मैं घर में प्रवेश कर पाया। अन्यथा मैं इस घर के अंदर भी नहीं आ पाता। अब तक उसने आप लोगों के साथ कुछ बुरा नहीं किया है, किंतु अब इस बात की प्रबल संभावना है कि वह आपको नुकसान पहुंचा सकती है। अब तक उसने आप लोगों को सिर्फ़ डराया ही है। अपने इस घर में होने का एहसास दिलाया है ; लेक़िन अब तक अपनी शक्तियों का प्रयोग नहीं किया है।

शेष अगलें भाग में....

क्या वह आत्मा रघुनाथ व उनके परिवार को सहजता से इस घर से जाने देगी ? या कोई अनहोनी घटने वाली हैं। जानने के लिए कहानी के साथ बनें रहिए।