में और मेरे अहसास - 89 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 89

नील गगन ने बहुत कुछ सिखा दिया l

उदास मुखड़े को हसना सिखा दिया ll

 

पूनम की मिलन की रात में सखी ने l

मुहब्बत का शीतल जाम पिला दिया ll

 

जिंदगी तो मुसलसल एक सफ़र है l 

हमराही बनाकर साथ निभा दिया ll

 

दिलों जान से चाहत लुटाते आ रहे हैं l

खामोशी से पलकों को बिछा दिया ll

 

जानते हैं वज़ह तड़प ओ तरस की तो l

जुदाई के पलों का हिसाब गिना दिया ll

१६-१०-२०२३ 

 

 

महफिल में खुशियों के बादल छाने लगे हैं l

इश्क़ ने कहा कि वो नज़्म गाने लगे हैं ll

 

बात वफाओ की होती तो कभी ना हारते l

तकदीर में था आज उसे ही पाने लगे हैं ll

 

जब कहने लगे दर्द की कहानी को सरेआम l

देख खुदगर्ज लोग खुदबखुद जाने लगे हैं ll

 

रुक रुक के सामने खोल रहे हैं दिल को l

ज़बान पर शहद सी मिठास लाने लगे हैं ll

 

खामोशी का तलफ़्फुज समझो तो ज़रा l

प्यार ने दिये हुए जख्म आज भाने लगे हैं ll 

१७-१०-२०२३ 

 

 

सूरज की तरह चमक रहीं हैं तक़दीर l

वक़्त के साथ बदल रहीं हैं तक़दीर ll

 

जिसे भी हाथ लगाया हीरा बन गया l

मुद्दतों के बाद मचल रहीं हैं तक़दीर ll

 

नायाब मुहब्बत मिल गई है आखिर l

खूबसूरती पर बहक रहीं हैं तक़दीर ll

 

दिल के बहुत ही पास ओ ख़ास है कि l

आवाज़ सुनके चहक रहीं हैं तक़दीर ll

 

खुद को खुद से ही मिला दिया तबसे l

उसूलों पे चलने गरज़ रहीं हैं तक़दीर ll

१८-१०-२०२३ 

 

 

प्रीत की रीत जान गये हैं l

रस्मों रिवाज मान गये हैं ll

 

बात तो मुहब्बत की है कि l

लहजे को पहचान गये हैं ll

 

गुम है मंज़िल के जुनून में l

जबसे रास्ता बदल गये हैं ll

 

समंदर के बीचोबीच लाकर l

मशवरा देके मुकर गये हैं ll

 

दुनिया से उलझते हुए ही l

इस मुकाम से गुज़र गये हैं ll

१९-१०-२०२३ 

 

 

हवा का झोंका मनचाहा पैग़ाम लाया है l

सजनसे मुलाकात का सन्देशा आया है ll

 

रूह से रूह का नाता जुड़ गया है कि l

हर लम्हा मुस्कराते ही रहो फ़रमाया है ll

 

बारहा बातेँ करते वक्त जज़्बाती होते हैं l

धीरे से दिल का अफ़साना सुनाया है ll

 

अधूरी कहानी को पूरा करने के लिए l

इशारों इशारों में छत पर बुलाया है ll

 

दुआओ की छांव बनाये रखने को सखी l

आज बज़्म मे भी पलकों पे बिठाया है ll

 

सुख दायित्री दुःख हरिणी 

तेरे चरणों में माता वंदे ll

 

सब का भला करने वाली 

सब को खुशियां देने वाली 

तेरे चरणों में माता वंदे ll

 

कात्यायनी माता मम प्रणाम 

तेरे साथ बना रहे सदा प्रणाम 

तेरे चरणों में माता वंदे ll

२०-१०-२०२३ 

 

 

भीगने भिगोने का मौसम आया है l

प्यार की रिमझिम बारिस लाया है ll

 

एक लम्हें में सो सदियाँ जी लिया l

बूँदों का छूकर गुजरना भाया है ll

 

युगों बाद खालिक की रहमतों से l

बौछार को तकदीर से पाया है ll

 

आजमाओगे तब पता चलेगा कि l

साथ रहने वाला रूहानी साया है ll

 

जिंदगी में जो सबसे खास होता l

सखी वज़ूद फिज़ाओं में छाया है ll

२१-१०-२०२३ 

 

जिंदगी मुसलसल सफ़र है l

मनचाहा मिले तो सफल है ll

 

एब तो उजागर है साहिब l

दिल से मानो तो सरल है ll

 

सब छोड़ा बेवफा के भरोसे l

इस लिए आँखें सजल है ll

 

बात का तरीका बादलों l

उखड़े उखड़े से सनम है ll

 

दर्द की दौलत दे गया है l

बड़ा पत्थर दिल सजन है ll

२२-१०-२०२३ 

 

 

प्रतिशोध जिंदगी को मलबा बना देता है l

दिनरात के चैनो सुकूं को छीन लेता है ll

 

देखो दुनिया की कभी ना सुने वहीं तो l

खुद की बर्बादी का खुद ही जनेता है ll

 

चारोओर महसुस कर रहे हैं हर लम्हा l

सखी कायनात में हो रहा फजेता है ll

 

दिल पर इस तरह वार कर गया कि l

कातिल निगाहों का खंजर प्रणेता है ll

 

दुआ करो, सब्र करो, नजरंदाज करो l

जो करना करो यहां तो इश्क़ नेता है ll

२३-१०-२०२३ 

 

झील सी आँखों से छलक रहा है पैमाना l

बैरी दुनिया ने बना दिया है अफ़साना ll

 

कभी आ रूबरू के पास पा के छू सकूँ l

मुहब्बत में डूब कर अच्छी तरह जाना ll

 

चंद लम्हे एक साथ मिलकर बिताये है l

उम्र गुज़र गई तब जाके अब पहचाना ll

 

बेइंतहा बेपनाह चाहत को समेटने को l

मुशिकल हो जाता दिल को समझाना ll

 

शायरी लिखने का बहाना ही हो तो l

बात बात पर बंध कर दो इतराना ll

 

अल्फ़ाज़ बेजुबान हो गये हैं तब से तो l

मुस्किल हो गया है दिल को बहलाना ll

२४-१०-२०२३ 

 

 

जहां देखो वहां दिखता है तबाही का मंजर l

महाभारत सा लगता है तबाही का मंजर ll

 

ज़मीं से लेकर आसमाँ तक बवंडर रचा l

ऊपर नीचे धूम मचा है तबाही का मंजर ll

 

ग्रहो की दशा कुछ एसी चल रही है देखो l

दिलों दिमाग तक फ़ैला है तबाही का मंजर ll

 

इंसान ही इंसान का दुश्मन बना फिरता है l

विनाश का कारण बना है तबाही का मंजर ll

 

समझाने रोकने से भी कोई रुका है यहाँ l

भला कौन बदल सकता है तबाही का मंजर ll

२५-१०-२०२३ 

 

ये दबदबा, ये रूतबा, ये नशा, ये दौलत 

खूबसूरत चहरे बदलते रहते हैं l

 

 

आज खूबसूरत चहरे से नजरे नहीं हटती l

हररोज रात आँखों ही आँखों में है कटती ll

 

पीते रहते हैं नशा जो छलक रहा है सखी l

दिल की प्यास बुझाने से नहीं मिटती ll

 

हर किसीके हिस्से में नीद कहाँ होती है l

रफ्ता रफ्ता रात भी साथ मिरे बितती ll

 

खफा भी रहते हैं और वफ़ा भी करते हैं l

महफिल में नजरे चारोओर है फिरती ll

 

पढ़ाई की उम्र में इश्क़ कर बैठे नादाँ से l

अनपढ़ होने से आती भी नहीं गिनती ll

२६-१०-२०२३ 

 

 

शरद पूनम की रात में यादें रुला जाती है l

और सपनों में सजना से मिला जाती है ll

 

मौसम की तरह बदलती फ़ितरत को देख l

दिलों दिमाग के तारो को हिला जाती है ll

 

यादें जिंदगी भर के लिए साथ रहती हैं l

जुदाई में अश्कों के जाम पिला जाती है ll

 

अपनों ने दिये दर्द मिटाने को तहखाने की l

पाती दिल को जूठा दिलासा दिला जाती है ll

 

क़िस्मत के कुछ फैसले हमारे हक़ में नहीं तो l

तरस खाकर फटे ख्वाबों को सिला जाती है ll

२७-१०-२०२३ 

 

शरदपूनम की रात है आई चलो खेले रास गौरी l

हर्ष उमंगों की बौछार लाई चलो खेले रास गौरी ll

 

रुमझुम करती आए सखी सहियर संग खेलने l

देख सतरंगी चूनर लहराई चलो खेले रास गौरी ll 

 

आज कृष्ण संग है कृष्णा खुश हैं चाँद चाँदनी l

फिझाओ ने ली है अंगड़ाई चलो खेले रास गौरी ll

 

हरसू मस्त उजाला छाया चलो नाचे कूदे झूमे गाये l

राधा संग झूमे है कान्हाई चलो खेले रास गौरी ll      

 

याद रहेगी यही घड़ियां जो साथ साथ है बिताई l

अब इंतजार को दो विदाई चलो खेले रास गौरी ll

 

गोपियाँ चली खेलने रास कान्हा संग वृंदावन में l

हर तरफ खुशियां है छाई चलो खेले रास गौरी ll

२८-१०-२०२३ 

 

 

सिद्दत से जलने वालों से दूर रहना l

दिल की गहराई से बाय बाय कहना ll

२९-१०-२०२३ 

 

 

चाँदनी रात की बात ना पूछो l

माधुरी रात की बात ना पूछो ll

 

बाहों में आकर बहक जाने की l

सुहानी रात की बात ना पूछो ll

 

हाथों में हाथ थामे घंटों बैठे वो l

निराली रात की बात ना पूछो ll

 

सप्तरंगी साज सुरों से सजीली l

सितारी रात की बात ना पूछो ll

 

मुश्किल है दिल को समझाना l

शिकारी रात की बात ना पूछो ll

३०-१०-२०२३ 

 

 

धुंधली धुंधली सी यादें रह गई है l

मुस्कुराते रहो कानों में कह गई है ll

 

खुद को ही हमसफ़र बनाया तो जिंदगी l

समय के बहाव के साथ बह गई है ll

 

एक एक करके अपने साथ छोड़ गये l

घाव वक्त की हथोड़ी के सह गई है ll

 

दुनियादारी निभाने में मशगूल रहे और l

मंज़िल राहों में बेख़ौफ़ सी वह गई है ll

 

दूरियां कुछ ज्यादा ही बढ़ती जा रही l

एक दूसरे की जिद पर ही तह गई है ll

३१-१०-२०२३ 

 

 

मुस्कुराती जिंदगी में धुंध क्यूँ छा गया है?

झिलमिलाती जिंदगी में धुंध क्यूँ छा गया है?

 

हर लम्हा चहकती बहकती प्यारभरी सी l

छलकती जिंदगी में धुंध क्यूँ छा गया है?

 

यार दोस्तों से भरी खुश महफ़िल और l

महकती जिंदगी में धुंध क्यूँ छा गया है?

 

फ़ूलों की जाजम पर प्यार मुहब्बत से l

धड़कती जिंदगी में धुंध क्यूँ छा गया है?

 

निगाहों से छलकते नशीले जाम भरी l

बहकती जिंदगी में धुंध क्यूँ छा गया है?

३१-१०-२०२३ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह