प्यार भरा ज़हर - 24 Deeksha Vohra द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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प्यार भरा ज़हर - 24

एपिसोड 24 ( रक्षांश का जिंदा होना  ! )

बचपन से ही , जबा भी काश्वी अपनी माँ से इस कमरे के बारे में पूछती थी , तो काश्वी की माँ , कोई न कोई बहाना देकर , काश्वी को टाल दिया करती थी | ओर काश्वी ये बात अच्छे से जानती थी , की जरूर हो न हो , इस कमरे में कोई तो ऐसा राज़ छिपा है , जिसके बारे , काश्वी की माँ उसे पता नहीं लगने देना चाहती थी | 

कुछ क़दमों के फासलें को पूरा करने के लिए , काश्वी को ऐसा लग रहा था , मानो उसे जन्म ही लग जायेंगे | [पर उसने हिम्मत नहीं जाने दी , ओर आगे बढती रही | ना जाने क्यूँ लेकिन , काश्वी को ऐसा लग रहा था , की आज उसके सारे सवालों के जवाब यहाँ ही मिलेंगे | 

उस ख़ुफ़िया कमरे के बाहर खड़ते हुए , काश्वी को बहुत कुछ फील होने लगा | जैसे ही काश्वी ने उस ताले को हाथ लगाया , उसकी आँखों से आंसू बह गये | काश्वी को समझ नहीं आ रहा था , की उसके साथ ये  क्या हो रहा था | फिर काश्वी उस ताले को अपने दोनों हातों में पकडती है | ओर शिव का ध्यान करने लगती है | 

काश्वी :: (कांपती हुई आवाज़ में ) "ॐ नमः शिवाए | ॐ नमः शिवाए | ॐ नमः शिवाए |" इसी के साथ काश्वी अपनी दिव्य शक्तियों से उस ताले को खोल देती है | ताले की कहुलने की आवाज़ से ही , काश्वी अपनी आँखों को खोलती है | ओर अपने कांपते हुए हातों से कमरे के दरवाज़े को खोलती है | 

जैसे ही उस कमरे का दरवाज़ा खुलता है , काश्वी मानो अंदर तक कांप जाती है | कमरे के अंदर जाते हुए , काशी को अनजाने में ही , ताले से बाजू में लग जाती है | जिससे उसका खून बहने लगता है | पर काश्वी इस वक्त इस हालत में नहीं थी , की वो अपनी चोट को देखती | 

उसकी आँखों के सामने जो नजारा था , उसे देखते ही , काश्वी के पैरों तले जमीन खिसक जाती है | काश्वी को अपनी आँखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था | काश्वी खुद को सम्भालने के लिए , लम्बी लम्बी साँसें लेने लगती है | आँखों में आंसू , कांपता हुआ शरीर , काश्वी को अगर इस वक्त कोई भी देखता , तो उसे काश्वी पर तरह ही आता | 

काश्वी की आँखों के सामें एक  15 साल की बच्ची की , तस्वीर थी |  जो काश्वी की ही लग रही थी | अगर किसी ने भी काश्वी को एक नजर देख होगा , तो वो इस तस्वीर को देख कर यही कहता की , वो तस्वीर काश्वी की ही है | पर अगर कोई ध्यान से तेस्वीर में लड़की की आँखों को देखता , तो उसे पता चलेगा की , वो काश्वी नहीं , बल्कि कोई ओर है | 

वो गहरी हरी आँखें , उन आँखों में मानो कोई जादू था | कोई अलग सा एहसास था , जो काश्वी ने भी फील किया था | काश्वी की खून की बूंदें धीरे धीरे निचे जमीन पर गिरने लगती हैं | टाइल्स की दरारों में जैसे ही वो बूंदें जाती है , काश्वी एक अनजान सी शक्ति का एहसास होता है | 

काश्वी को उस शक्ति से अपने पिता का ख्याल आता है | 

काश्वी :: "मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है , की पापा यहीं हैं ?" 

काश्वी अपने आसपास देखने लगती है | लेकिन कोई भी उसके साथ नहीं | उस पूरे काले अँधेरे कमरे में काश्वी अकेली थी | उस कमरे में जो कुछ भी , काश्वी सब कुछ इक्कठा करती है , ओर वहां से जाने लगती है | तभी जाते हुए , काश्वी की नजर ,कमरे की विंडो पर जाती है | जो खुली हुई थी | 

ओर इससे पहले काश्वी को अच्छे से याद था , की इस कमरे का डोर , विंडो कभी भी खुला नहीं था | 

काश्वी :: "तो इसका मतलब , किसी ने कुछ समय पहले ही ये खिड़की खोली थी | पर कौन , कौन आया होगा यहाँ ? माँ तो यहाँ हैं ही नहीं ?"

इन सभी सवालों के साथ , काश्वी उस कमरे से जाने को होती है | पर फिर से एक तेज़ हवा का झोंका काश्वी की आँखों में लगता है | काश्वी फिर से अपना चेहरा घुमाती है | ओर उसकी नजर एक , किताब पर जाती है | उस किताब को देखने से , ऐसा लग रहा था , मानो बहुत रहस्य मई किताब हो | 

सदियों पुरानी किताब थी वो | ये तो काश्वी उस किताब को देखकर ही बता सकती थी | ना जाने क्यूँ , काश्वी उस किताब को भी अपने साथ ले जाती है | उस घर से जाते हुए , काश्वी को अपने कुछ सालों के जवाब तो मिल गये थे | 

काश्वी :: (मन ही मन ) "तो वो नकाब पोश ओर कोई नहीं मेरी बहन थी | पर , पर माँ ने कभी मुझे कुछ बताया क्यूँ नहीं ? ऐसा क्या हुआ था , की माँ ने मुझसे इतना बड़ा राज़ छिपाया |"

काश्वी सीधा जाकर , गाडी की डिकी में सामान रखती है | जिस पर राघव की नजर नहीं जाती , क्यूंकि राघव अपनी ही किसी सोच में था | ओर फिर , राघव की बगल में काश्वी बैठ जाती है | ओर राघव की ओर देखते हुए , कहती है | 

काश्वी : "तुम ठीक हो न राघव ?" काश्वी का सवाल ,राघव को उसके होश में लेकर आता है | ओर राघव कहता है | 

राघव :: "हा , हाँ हाँ , मैं ठीक हूँ |"

काश्वी :: "चले फिर ... माँ इंतज़ार कर रहीं होंगी |" 

राघव :: "हाँ . चलते हैं |"

ये कह , राघव गाडी स्टार्ट कर देता | लेकिन , इस वक्त राघव के मन में सवालों का तोफान , भवंडर बन चूका था | आज , यहाँ आने से , जहाँ काश्वी को उसके कुछ सवालों के जवाब मिले , वहीँ , राघव , राघव के मन में इतने सवालों ने घर कर लिया , जीना जवाब एक ही इंसान दे सकता था | 

वहां से जाते हुए भी , राघव की नजरें बार बार उसी घर को देख रहीं थीं | ओर ये बात काश्वी ने अच्छे से नोटिस की थी | 

वहीँ , काश्वी के उस कमरे से जाने के बाद , उस कमरे का दरवाज़ा अचानक से तेज़ आवाज़ के साथ खुलता है , तो एक तेज़ लाल रौशनी उस कमरे में घुमने लगती है | ओर फिर वहां जाकर वो रौशनी काश्वी के खून में स्म जाती है | अचानक से उस कमरे में मानो तूफ़ान सा आ जाता है | दीवारों पर लगीं , सारी तस्वीरें निचे गिर जाती हैं | 

ऐसा लग रहा था , मानो कोई तोफान ही आया है | वो लाल रौशनी उस खून को धक्का देते हुए , जमीन के निचे ले जाने लगती है | बहुत निचे | ओर फिर , मानो उस खून को अपनी मंजिल मिल गई हो | कुछ ही पलों में उस कमरे में वो लाल रौशनी उस दराद से फिर बाहर आती है | लेकिन , इस बार वो रौशनी अकेली नहीं थी | उसके साथ एक , एक इंसान था |

नहीं , उसे इंसान नहीं कहा जा सकता है | लाल बड़ी बड़ी आँखें , लम्बे नुकीले काले नाख़ून , बड़े पैने दांत , पूरे शरीर पर भयानक , दिल को देहला देने वाले टैटू , वो कोई इंसान नहीं था | तभी वो बोलता है | 

"वापिस आ गया मैं | मैं वापिस आ गया | हा हा हा हा , मुझे अपना राक्षश शरीर फिर से मिल गया | मैं वापिस आ गया | हा अह आहा हा ....." 

हाँ वो कोई आम इंसान नहीं था | वो एक राक्षश था | एक शक्ति शाली राक्षश | आज कश्वी के खून के एक कतरे ने , उस गड़े हुए राक्षश को फिर से जिंदा कर दिया था | वो राक्षश ओर कोई नहीं , बल्कि काश्वी के पिता , रक्षांश थे | हाँ , काश्वी के पिता एक राक्षश हैं | एक शक्ति शाली , असुरों के असुर , देत्यों के राजा , इंसानों की मौत , देवताओं का खौंफ , नाग नागलोक का दुश्मन , देत्या राज रक्षांश | 

ये वो नाम था , जिससे दुनिया में हर कोई डरता था | एक ऐसी तबाही था रक्षांश , जिसके आने की खबर , कुछ ही  पलों , कुदरत को मिल गई थी | ओर इस बात से कुदरत बिलकुल भी खुश नहीं थी | कुदरत ने अपना कहर शुरू कर दिया | आज की रात , इतनी काली थी , जो पीछे 20 सालों में कभी नहीं हुई | 

पर मानो , राघव को गाडी चलाते हुए  , रक्षांश के आने का एहसास हो गया हो | बादलों ने अपना गुस्सा बरसाना शुरू कर दिया था | हवाओं ने बादलों से अपनी जंग शुरू कर दी थी | राघव अचानक से गाड़ी रोकता है | गाड़ी की ब्रेक की आवाज़ , काश्वी के कानो में आती है , जिससे काश्वी अपनी आँखें बंद कर लेती है | ओर फिर ,कुछ पलों के बाद , जब काश्वी अपनी आँखें  खोलती है | 

तो अपने सामने का नजारा देखने के बाद , काश्वी की आँखें फटी की फटी रह जाती हैं | पूरा शेहर पानी में डूब चूका था | हवाओं ने पेड़ों को एक झटके से जमीन पर लाकर पटक दिया था | पट्ठे तो मानो अपनी दोस्ती तोड़ कर , पानी में बह जाना चाहते हों | अपने सामने का नजारा , राघव ओर काश्वी देख कर , थोडा परेशान हो जाती हैं | राघव कहता है | 

राघव :: "माय गॉड |"

काश्वी : "ये अचानक से मौसम इतना खराब कैसे हो गया |"

राघव :: "लगता है , कुदरत अपना कहर बरसा रही है |" 

राघव की बात सुन , राघव ओर काश्वी , दोनों के मन में एक ही बात चल रही थी | 

(मन में दोनों ) "आखिर कायनात क्या कहना चाहती है ? क्यूँ कुदरत , इतना कहर बरसा रही है ?"

ये वो सवाल थे , जिसका जवाब शायद अभी किसी के पास नहीं था | वहीँ , रक्षांश को मानो कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा हो | उसकी तो ख़ुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था | रक्षांश जोर से अपनी भयानक आवाज़ में एहत है | 

रक्षांश :: "डरो , खौंफ  खाओ . क्यूंकि अब तुम्हारे सुकून के दिन गये | ओर रक्षांश , दैत्य राज रक्षांश के दिन शुरू हो चुके हैं | अब कुदरत तो क्या , ये पूरी कायनात भी पछताएगी , बरसा लो , जितना कहर बरसाना है , पर जो तबाही अब मैं मचाने वाला हूँ , उसके सामने कुदरत का कहर कुछ भी नहीं है | हा हा हा हा |' 

काश्वी को ना जाने एक अलग सा एहसास हो रहा था | काश्वी ने अपने घाव की ओर देखा , ओर उसे याद आने लगा की कैसे उस कमरे में काश्वी के खून के कतरे गिरे थे | रह रह कर , काश्वी को उस कमरे की वो दरारें ही याद आ रहें थीं | वो काला अँधेरे , भयानक , दिल को देहला देने वाला कमरा , उस कमरे में कुछ तो ऐसा था , जो काशी की आँखों के सामने था , लिकं काश्वी उसे देख ना सकी | 

कुछ तो ऐसा था , जिसे काश्वी ने महसूस किया था , लेकिन काश्वी उसे छु न सकी | 

ओर यही सब सोच सोच कर , काश्वी के सर में दर्द शुरू हो गया था | वहीँ दूसरी तरफ , उस हरी आँखों वाली लड़की ने , जब आसमान की ओर देखा , तो वो अपनी सर्द आवाज़ में कायनात ओर कुदरत से कहती है |

"अब रोने से क्या फायदा , जिसे आना था , वो तो आ गया | अब हिम्मत है , तो उससे बच कर बताओ |"

आखिर काश्वी के पिता एक राक्षश कैसे हो सकते हैं ? ओर आखिर काश्वी की ही सगी बहन ने उसे मारने की कोशिश क्यूँ की ? ओर क्या सच में राक्षश होते हैं ? क्या यही सच था , जिसे काश्वी की माँ काश्वी से छिपाना चाहती थी ? 

पर इन सब से राघव का क्या ;लेना देना था ? वो क्यूँ इस तरह अजीब वर्ताव कर रहा था ? क्या चल रहा था राघव के दिल ओर दिमाग में ? 

जानने के लिए बने रहिये मेरे साथ |