Pyar bhara Zehar - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

प्यार भरा ज़हर - 3

एपिसोड 3 ( अनजान खत ! )

उसके बाद , राघव स्टेज पर गया | ओर अपनी स्पीच देने के बाद , उसकी नजर काश्वी पर गई | जो उसे ही देख रही थी | पर जैसे ही काश्वी ने देखा की राघव उसे देख रहा था , उसने अपनी नजरें घुमा लीं थी | पर फिर अचानक से दोनों की नजरें फिर से मिल गईं | दोनों मानो एक दुसरे में खो से गये हो | उनके आसपास क्या हो रहा था , दोनों में से किसी को कोई एहसास नहीं था | फिर काश्वी का ध्यान टूटा , जब तनया ने उससे कहा | 

तनया : "क्या हुआ काश्वी , जल्दी चल क्लास है |"

काश्वी :: "हाँ .. हाँ हाँ .. चल |" फिर दोनों वहां से निकल गये | पर रागाह्व की नजरें अभी तक काश्वी को ही निहार रहीं थी | 

वहीँ शेहर के दूसरी तरफ , एक सुन सान जंगल में , कुछ लोग इक्कठा हुए थे | वहां कम से कम 20 लोग थे | सब ने काले रंग के कपडे पहन रखे थे | ओर ब्लैक हेट के साथ काले रंग का लम्बा कोट पहन रखा था | सब की सिर्फ आँखें ही दिखाई दे रहीं थी | उन में से एक लड़की बोली | 

"काम हो गया है | अब बस हमे एक साप की जरूरत है |"  तो पास ही खड़ा एक आदमी बोलता है | 

"सांप का इंतजाम मैं कर दूंगा | पर उससे पहले हमे किसी को धुन्दना होगा |" सब ने एक साथ उस आदमी की ओर देखा , ओर इशारों इशारों में पोछने लगे | "किसे ढूदना है ?" फिर उस आदमी ने उन सब से कुछ बात की | जिसके बाद , उनकी एक साथी बोली | 

"पर मुझे नहीं लगता की ये सही टाइम है |" तो उसका विरोध करते हुए एक ओर बोला | 

"पहले हमे वो काम करना है |" उन सब की बातों को कोई भी अगर सुनता , तो पता लगते देर न लगती की , वो सब वहां एक तबाही की प्लानिंग कर रहे थे | एक ऐसी तबाही , जिसकी कल्पना किसी ने सपने में भी नहीं की थी | 

कुछ दिन यूँ ही गुजर गये थे | राघव को काश्वी के बारे में अब बहुत कुछ पता चल चूका था | पर काश्वी को अभी तक अपने बारे में बहुत कुछ जानना था | वो अभी तक सिर्फ एक बार ही अपने असली रूप में आई थी | पर उसे पता नहीं था , की अब वो इन शक्तियों के साथ  क्या करे |  इसलिए उसने इस बारे में सोचना छोड़ दिया था | पे काश्वी ने एक बात तो नोटिस की थी , की उसके पास एक शक्ति तो है , की वो सामने वाले की दिल ओर दिमाग में क्या चल रहा था , वो पता लगा सकती थी | 

काश्वी को न चाहते  हुए भी , सब की दिल की बात पता चल जाती थी | पर इसमें उसे कभी कभी मज़ा भी आता था , क्यूंकि उसे तनया के बेकार से ख्यालों का भी पता चल जाता था | जो वो अपने मन में खिचड़ी पकाती थी , उसका पता काश्वी को लग जाता था | एक दिन कॉलेज में पहुंचते ही , काश्वी को एक लड़का दिखाई देता है | वो लड़का सीधा  काश्वी के सामने आता है | अपना सर झुकता है , ओर उसे एक खत पकड़ा कर वहां से चला जाता है | 

काश्वी अपने हाथ में वो खत देख रही थी | आसपास बहुत सारे लोग थे | पर किसी ने भी मानो इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया | तो काश्वी ने धीरे से वो कहता खोला | जिसमे एक नाग चिन्ह बना हुआ था | ओर साथ में उस पर लिखा था | 

"खिलता हुआ कमल , धरती पर फेर बदल |"

काश्वी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था | उसने कम से कम इस लाइन को 10 बार पढ़ा , पर उसे कुछ भी समझ में नहीं आया | फिर उसने वो खत अपने बैग में डाला ओर क्लास के लिए चली गई | आज काश्वी का ध्यान क्लास में भी नहीं था | वो तो बस उस खत के बारे में ही सोच रही थी |  

पर जब काश्वी का ध्यान नहीं था , तनया ने उस खत को निकाल लिया | ओर खोल कर पढने लगी | काश्वी ने हड़बड़ी में बोला | 

काश्वी :: "अरे तनया ..." काश्वी ओर कुछ बोल पाती , उससे पहले ही तनया ने वो खत खोल लिया था | अब काश्वी के दिमाग में बस एक बात चल रही थी |  "हे भोलेनाथ , ऐसा नहीं होना चाहिए था |" काश्वी बस ये दुआ कर रही थी  , की तनया को कुछ भी समझ में ना आए | 

पर तनया के रिएक्शन से काश्वी को समझ आया की , बात तो कुछ ओर ही है | तनया बोली | 

तनया :: "वाह ! काश्वी , क्या पेंटिंग है |" पहले तो काश्वी को समझ में नहीं आया | पर फिर जब उसने देखा तो , उस खत पर कमल बना हुआ था | कीचड़ के खिलता हुआ कमल | तनया बोली | 

इस पेन्टिंग को देखते ही ऐसा लग रहा है , मानो कुछ बुरा होने वाला है , क्यूंकि देखो जरा इस कीचड़ में कुछ चित्र बने हैं | काश्वी ने ध्यान से देखा , तो अब उसे कुछ कुछ समझ में आ रहा था | फिर तनया अचानक से काश्वी की ओर मुड़ी ओर बोली | 

तनया :: "पता है काश्वी , मुझे कमल बहुत पसंद हैं | पर वो यहाँ  मिलते ही नहीं है | वो तो शेहर के बाहर हिं मिलते है  | इतनी दूर कौन जायेगा |" उदास होते  हुए , तनया बस काश्वी को अपने दिल की बात बता रही थी | पर वो नहीं जानती थी , की उसने जाने अनजाने में ही सही , पर काश्वी को एक क्लू दे दिया था | 

काश्वी मन ही मन खुद से बोली | 

काश्वी :: "हाँ शेहर के बाहर | एक बार जाकर देखती हूँ |" उसके बाद , कॉलेज खत्म होने के बाद , काश्वी जल्दी से एक टैक्सी पकड़ कर , उस जगह के लिए निकल गई | 

वहीँ दूसरी तरफ , राघव काश्वी पर नजर रखे हुए था | अब राघव का शक यकीन में बदलता जा रहा था | एक आदमी का काश्वी के पास आना  | उसके सामने सर झुकाना | फिर शेष नागिन  का खत पहले काश्वी के पास जाना | ओर फिर राघव के पास ,  उसी शक्स का आना , वो खत देना | ये सब कोई संन्जोग नहीं हो सकता था | 

तो क्या लगता है आपको , क्या काश्वी कोई आम नागिन है ? राघव के दिमाग में क्या चल रहा था ? ओर आखिर क्या मतलब था उस पहेली का ? 

जानने के लिए बने रहिये मेरे साथ | 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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