चोपड़ चकल्लस Yashwant Kothari द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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चोपड़ चकल्लस

यशवन्त कोठारी

 जयपुर की कई विशेषताएं हैं, जैसे दर्टीनेस दाऊ नेम इज जयपुर। कई बार जब जयपुर को देखता हूंख् तो यह समझ में नहीं आता कि जयपुर में गंदगी है या गंदगी में कहीं जयपुर छिपा हुआ है। गंदगी के बाद जो चीज जयपुर की कुख्यात है वह है चोपड़, वैसे चोपड़े कुल तीन है, लेकिन जो मजा बड़ी चोपड़ या माणक चौक की चोपड़ का है, वो अन्य चोपड़ो पर शक्कर की तरह दुर्लभ है, इधर मैं भी शगल के लिए सांयकाल चोपड़ चकल्लस में भाग लेने लगा हूं।

 माणक चौक की चोपड़ एक बहु आयामी बहु उपयोगी स्थल है। बीच पार्क में जहां पर फव्वारा लगा हुआ है, वहां मालिश वाले, लौडेबाज और यदाकदा शरीफजादे बैठे रहते है। दक्षिण की ओर मंच बनाकर राजनीतिज्ञ लोग एक दूसरे की टांग खींच कर आनन्दित होते है। कई बार दूसरों के फटे में अपनी टांग अडाने के चक्कर में बेचारों की खुद की टांगें भी टूट जाती है। प्रति वर्ष पन्द्रह अगस्त या 26 जनवरी को आजादी की याद को ताजा तरीन बनाने के लिए पूर्व की ओर मंच बनाकर झण्डा रोहण करके समाजवाद की ओर पांव आगे बढा़ए जाते हैं। उसी दिन कोई न कोई राजनीतिक दल दक्षिण दिशा में मंुह कर के किसी अन्य दल के नेता को नंगा करने का पुनीत कार्य भी इसी मंच पर सम्पन्न करता है। वैसे तो सभी इज्जतदार लोग खादी पहन लेने मात्र से ही शरीफ हो जाते हैं, लेकिन जो चोपड़ के मंच पर भाषण भी दे देता है, वह कन्फर्म नेता माना जाता है। चोपड़ पर ही एक थाना है जिसका रेट एक लाख रूपये के आस पास रहता है, और अक्सर यहां का थानाध्यक्ष बाद में लाइन हाजिर हो जाता है, वैसे पुलिस लाइन भी चोपड़ के पास में ही है। चोपड़ के एक ओर कुछ फूल वाले बैठते है।ं और उनके बिलकुल सामने कुछ पशुओं का चारा रखकर बैठे रहते हैं। एक जमाना था, चोपड़ के पास पानों के दरीबे में तम्बोलनों का पान खाने लोग सौ पचास कोस से चले आते थे, अब वह रीतिकाल कहां रहा ? चोपड़ पर चकल्लस का मजा भरपूर आए, इसके लिए यहां पर भांग की दुकान आवश्यक है। मेरा सरकार से विनम्र अनुरोध है कि वो शीध्र ही इस कमी को पूरा करे।

 अक्सर चोपड पर लाटरी वाले आपकी सेवा करने को तत्पर मिलेंगें।

 “आज ही खरीदिए। आइए, राजस्थान लाटरी का शानदार टिकट, आज जेब में लाटरी का टिकट लेकर जाइए, कल बोरी में भरकर नोट ले जाइए।”

 चोपड पर शतरंज, चोपड, ताश, राजनीति और पान की चकल्लस अक्सर चलती रहती है।

 अक्सर लोग पान का एक टुकड़ा मुंह में दबाए बतियाते ही रहते हैं। चुनावों के दौरान तो एक भावबोध की स्थिति आ जाती है।-

 “अरे सुनो कौन जीतेगा ?”

 “तुम्हें क्या पड़ी है ?”

 “अरे भाई देश का सवाल है!”

 “तो तुम बन जाओ प्रधानमंत्री।”

 “बन तो जाता लेकिन घर पर काम ज्यादा है।”

 तो फिर ऐसा करो, कहीं से शक्कर ही दिलवा दो।”

 “क्यों मजाक करते हो भाई ?”

 चोपड का सबसे ज्यादा लाभ देश की नई पीढी ने भाषण देने के लिए उठाया है। कई बार सोचता हूुं, यदि चोपड नहीं होती तो शायद कई बडे नेता आज कहां से आते। अक्सर आम सभाओं में चीरहरण का कार्यक्रम रहता है, अपनी धोती की गांठ कसकर बांधो और दूसरों को लग्गी लगाओं। इसे सीखना हो तो चोपड पर भाषण मारों। ज्ञान छांटो।

 इधर चोपड पर हजामत करने वालों ने भी अपना प्रभुत्व दिखाया है। तेल लगाने ओर तेल बेचने का लधु उद्दोग भी चोपड परा ज्यादा चलता है।

 जुतमपेजार, हाथापाई, पतंगबाजी, मुर्गाबाजी, चोंचें लडाने आदि कार्यो का सफल निष्पादन भी चोपड पर ही सम्भव है।यहां से कुछ आगे छोटी चोपड है, और दूसरी ओर रामगंज की चोपड है, पर वो मजा कहां हां कभी घंुघरूओं की झंकार का शौक हो तो छोटी चोपड पर नौश फरमाएं। चोपड- चोपड है, और चोपड पर चकल्लस करने के लिए चितचोर होना पड़ता है। गणगोर, तीज या किसी उत्सव के दिनों में चोपड की शान ही निराली होती थी।

 सायंकाल चोपड़ सुहानी हो जाती है। यहां तक कि नालियां और बदबू भी अच्छी लगती है। घोड़े की लीदों को फेफड़ों में भर भर कर लोग घर ले जाते हैं। दूसरी ओर कुछ हिजड़े भी बतियाते रहते हैं। जहां तक गायों, घोड़ों के अलावा जानवरों का प्रश्न है, चोपड पर गधे काफी मात्रा में पाए जाते हैं। सायंकाल यह खकसार भी वहीं दुलत्ति झाड़ता रहता है। जहां तक चोपड के भविष्य का प्रश्न है, मैं आश्वस्त हूं, क्योंकि जहां पर देश के भविष्य का पता नहीं वहां पर चोपड के भविष्य की चिंता करना मूर्खता है। हां, चोपड पर कभी आपकी इच्छा चकल्लस की हो तो बंदे को सेवा का एक मौका अवश्य दें।

 चोपड पर रोटी की बहस अक्सर जारी रहती है, इसे भी एक शगल की तरह लिया जाता है, बकौल एक शायर के-

 भूख है तो सब्र कर, रोटी नहीं तो क्या हुआ,

 आजकल दिल्ली में है, जेरे बहस ये मुद्दआ।

 

’’’’’’’’

यशवन्त कोठारी

86,लक्ष्मी नगर ब्रहमपुरी बाहर,जयपुर-302002

.9414461207