यशवंत कोठारी
भाइयों, मामाओं और पिताओं,
आप को व आप की यादों को प्रणाम.
आशा हैआप सब अपनी अपनी गृहस्थी में व्यस्त या अस्त व्यस्त होंगे. मुझे आप सब की याद एक साथ आई सो यह सामूहिक पत्र जिसे आप सब व्हात्ट्स एप्प या एस एम् एस पर पढ़ सकते हैं. जानती हूँ आप लोग अब प्रोढ़ हैं हाई बी पी, मधुमेह थाइरोइड के रोगी है, चार सीढियाँ चढ़नें में हांफ जाते हैं मैं भी पहले जैसी नहीं रही फिर भी यह मेसेज.
सब से पहले मुझे रमेश ने देखा और इक तरफ़ा प्यार में पड़ गया. रमेश ने आसमान के तारे तोड़ कर लेन का वादा किया था, मगर बेचारा लम्बाई के कारण मार खा गया. रमेश आजकल अपनी मोटी गोल मटोल बीबी आवारा बच्चों के साथ सुखी- दुखी जीवन बिता रहा है. मुझे उसकी ज्यादा याद नहीं आती.
मेरा दूसरा प्रेम स्कूल में शर्मा जी के बेटे से हुआ जो कोपियों के आदान प्रदान से होता था, मगर एक दिन उसे उसके पिताजी ने देख लिया और उसकी वो कुटाई हुई की मुझे आज भी याद है. उसने ने जो फूल दिए थे वो दूसरे दिन ही मुरझा गए और उसका प्यार भी. इधर मेरे पापा मम्मी ने मुझे दुनियादारी सिखाने की कोशिश की, मगर मैंने कोई परवाह नहीं की.
मेरे तीसरे प्रेमी ने मुझे कालेज के गेट पर रोक लिया मैंने भी कोई विरोध नहीं किया विरोध कालेज के दादा ने किया क्योकि कालेज उसके बाप का था उसको कालेज से निकल दिया गया. मुझे मजबूरन अपने चोथे आशिक को ढूँढना पड़ा. मैं चाह कर भी कुछ न कर सकी. मैंने पढाई पर ध्यान दिया, मगर फिर भी तुम्हारे कारण मैं फेल हो गयी. निराशा और डिप्रेशन के कारन मैं प्रेम कवितायेँ पढने लगी मगर मेरा मन नहीं लगा. मैंने नौकरी तलाशी मगर आप सब जानते ही हो वहां क्या करना पड़ता है?
मुझे प्रेम शब्द से ही प्रेम हो गया. प्रेम के बिना मैं कितनी अधूरी थी यह तुम पुरुष कभी भी नहीं समझ सकोगे. क्योकि तुम लोगों के लिए प्रेम केवल देह है, तुम सभी पुरुष देह से आगे नहीं सोच पाते, यही तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी और मेरा हथियार.
जिस दादा ने मुझे पटा लिया था वो जल्दी ही कली का रस चूस कर भंवरें की तरह उड़ गया. मैं फिर पुरानी यादों के सहारे जीने लगी मगर बेरहम जमाना किसी को इज्ज़त से जीने कहाँ देता है, लेकिन आजकल इज्ज़त को कौन पूछता है?
इस बार मैंने खुद ही पहल की और एक लखपती को पकड़ा, उसके पास गाड़ी थी बंगला था, बाप का दिया सब कुछ था सिवाय इज्ज़त के सो मैंने उसकी इज्ज़त बचा ली. इस प्रेमी से मैंने भी जल्दी ही पीछा छुड़ा लिया जो एक दो हीरे के हार मिले वो बेटी के लिए रख लिए.
भाइयों, मामाओं और प्रेमियों,
अब आप सब की यादें ही है जिनके सहारे इस उम्र में भी खुश रहती हूँ क्योकि पिछले कोरोना में वे भी चले गए. यह सही है कि प्यार अमर अज़र है. मेरा प्यार भी नहीं मरेगा. मगर ज़माने का क्या करे ?वो किसी कोजिन्दा कहाँ रहने देता है ?
रमेश, सुरेश, दादा सब भूत पूर्व हो गए और मैं अभूतपूर्व. वैसे फिगर के हिसाब से अभी भी कालेज गर्ल लगती हूँ. तुम लोगों की घर वाली जैसी गोलमटोल नहीं. कभी याद हमारी आये तो फेस बुक पर ढूँढ लेना मिल जाउंगी.
मेरे भूत पूर्व प्रेमियों, प्रेम की पीड़ा बहुत बुरी होती है लेकिन एकल जीवन की पीड़ा और भी गहरी होती है. मेरे अजन्मे बच्चों के मामाओं- काकाओं खुश रहना अहले वतन अब हम तो सफ़र करते हैं. अगले जन्म में जरूर मिलेंगे.
शायर ने सही लिखा-
चलो यहाँ से चले और उम्र भर के लिए,
यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है.
आमीन.
-आप की अभूतपूर्व प्रेमिका
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