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दरद न जाने कोय

दरद न जाने कोय- याने

जीवन तो सरलता से जीने की कला है

रमेश खत्री का ताज़ा उपन्यास दरद न जाने कोय आया है. उपन्यास को पढना एक सुखद अनुभव रहा. मध्यम वर्ग का नायक किस तरह जीवन की उलझनों के बीच खुद को खुश रखने का प्रयास करता है,यह रमेश खत्री ने प्रेम संबंधों को जीते हुए दिखाया है, उपन्यास में नायक –नायिका के बीच लम्बे पत्र व्यवहार का जिक्र है जो पठनीयता देता है. विवाह और उसकी त्रासदी, प्रेम, घृणा, वासना, रोमांस, प्लेटोनिक, रूमानी प्यार का सम्मिश्रण है यह उपन्यास. स्त्री पुरुष सम्बन्धों को परिभाषित करने प्रयास भी यह उपन्यास करता है. लेखक का कवि मन बार बार भटकता हुआ जीवन को जीने की कला और सहारा ढूंढ़ता है. प्रेम कथा एक नए रूप में सामने आती है. यह उपन्यास मध्यम वर्ग की समस्याओं को दिखाता है उनके हल का सार्थक प्रयास भी करता है. प्रेम की पीड़ा को महसूस किया जा सकता है. एक कसबे और एक महानगर के बीच झूलता उपन्यास आज के जीवन के कटु यथार्थ को समझाता है. यहाँ प्रेम कथा है जो स्त्री पुरुष संबंधों को नए ढंग से प्रेषित करटी है. 

उपन्यास जयपुर, उज्जेन माउंट आबू शहरों के बीच कहानी का ताना बना बुनता है. पत्र शैली भी है जो प्रभावित करती है. लेकिन आजकल के युग में थोड़ी पुरानी लगती है. सपना, लतिका भुआ भतीजी कथा के प्रमुख पात्र है. एक मंदिर में विस्फोट का भी वर्णन है. वीरेंद्र नौकरी के सिलसिले में इन शहरों में आता जाता है. कभी सपना तो कभी लतिका. विवाहेत्तर सम्बन्धों को जीता है. सुख, दुःख, आशा, निराशा के भंवर जाल में डूबता उतरता रहता है. अवसाद भी भुगतता है. घर परिवार की समस्याओं से भी दो चार होता है. खुद को सँभालने की कोशिश भी करता है सहारा भी ढूंढता है, सोचता है यही तो जीवन है इसे जीना ही कला है. 

उन्यास में भाषा के कई तेवर है निमाड़ी मालवी भाषा जो मेवाड़ी के करीब है का खूब प्रयोग लेखक ने किया है. जो रचना को एक आंचलिक भाव देता है. यह भाषा बोलीं खूब मीठी लगती है. 

उपन्यास में तलाक विवाह विच्छेद और कानूनी दाव- पेच भी है लेकिन वे उपन्यास की आत्मा को जिन्दा रखने के लिए जरूरी थे. 

आज की जीवन शैली में पति पत्नी सम्बन्धों में ठंडापन फिर लड़ाई झगड़ें फिर सुकून की तलाश में भटकता जीवन यही सब चलता रहता है. शांति कही नहीं. संतोष घर में ही ढूंढा जाना चाहिए. कोरोना काल में व्याप्त विसंगतियों पर भि लेखक ने कलम चलाई है वह एक ऐसा खोफनाक समय था जो आज भी आशंका से भर देता है. दुःख और दर्द का एक समंदर था कोरोना. 

328 पन्नों का उपन्यास इसी शांति, प्रेम, आनंद की खोज तलाश करता है, अनंत काल से यह खोज जारी है और आगे भी जारी ही रहेगी. 

हिंदी में त्रिकोणीय प्रेम पर खूब उपन्यास कहानियां आई है और आगे भी आएगी. हिंदी के प्रेम उपन्यासों में यह उपन्यास अपनी जगह जरूर बनाएगा. ऐसी आशा करना व्यर्थ नहीं होगा. कवर आकर्षक है लेकिन मूल्य ज्यादा है. 

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दरद न जाने कोय लेखक –रमेश खत्री, मंथन प्रकाशन, जयपुर, पेज -328 मूल्य -390रूपये

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यशवन्त कोठारी, 701, SB-5, भवानी सिंह रोड,बापू नगर, जयपुर -302015 मो. -94144612 07

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