नोटम नमामि -इस पुस्तक के 4 संस्करण होगये हैं Yashwant Kothari द्वारा हास्य कथाएं में हिंदी पीडीएफ

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नोटम नमामि -इस पुस्तक के 4 संस्करण होगये हैं

फेक न्यूज़ याने झूठीं ख़बरों के बड़े खतरे

यशवंत कोठारी

फेक न्यूज़ के खतरे सर पर चढ़ कर बोलने लगे हैं. क्या सरकार ,क्या पार्टियाँ और क्या चुनाव लड़ने वाले सब के सब इस महा मारी से डरे हुयें हैं.

यह कोई पहली बार नहीं है की फेक न्यूज़ ने अपना रूप दिखाया है.महाभारत के युद्ध में युद्धिष्ठिर ने अश्व्थामा की मृत्यु का झूठा प्रचार कर द्रोणाचार्य को अर्जुन के हाथों मरवा दिया था.बाद के दिनों में भी युद्ध और प्रेम के लिए फेक न्यूज़ का सहारा लेना एक आम बात हो गयी.लेकिन वर्तमान समय में सोशल मीडिया के कारण यह समस्या विकराल हो गयी है.हार जीत के फैसले भी फेक न्यूज़ के सहारे होने लगे हैं.टिकट किसको मिला इसकी फेक न्यूज़ तो रोज पढने को मिल रही है. पूरी फर्जी सूची ही वायरल कर दि जाती है.इस समस्या से पूरा मीडिया तृस्त है. इसी के साथ प्लांटेड न्यूज़ भी फेक न्यूज़ की बड़ी बहन है.इस काम में सरकार ,बड़े ओद्ध्योगिक घराने सब मिले हुए हैं.सबके अपने अपने स्वार्थ है और इन स्वार्थों को पूरा करने का लालच हैं.फेक न्यूज़ की समस्या और उसका निराकरण कैसे हो इस पर काफी चिंताएं व्यक्त की जा रही है.सोशल मीडिया पर कोई चीज पढ़ कर अगर मन में नफरत पैदा हो तो उसे फेक न्यूज़ ही होना चाहिए.ध्रुवीकरण के लिए लोग फेक न्यूज़ फैलाते हैं.फेक न्यूज़ की प्रमाणिकता नहीं होती केवल अपनी व्यक्तिगत इच्छा या स्वार्थ होते हैं,

.पिछले कुछ दिनों से राफेल के मामले में जो समाचार आ रहे है ,उनकी सत्यता की जाँच सुप्रीम कोर्ट कर रहा है.उसी प्रकार पिछली शताबदी में उछला बोफोर्स का मुद्दा भी अंत में फेक न्यूज़ ही साबित हुआ.

चुनाव के दिनोंमे समाचार माध्यमों में चुनावी समाचार प्रमुखता से नज़र आने लगतें हैं नेताओं के चुनावी दौरों और चुनावी वादों की बड़ी-बड़ी तस्वीरें, बैनर और टीवी चैनलों पर विमर्श बढ़ जाते है. इस दौरान नेता और राजनीतिक दल अपने अपने हक़ में हवा बनाने के लिए अपने पक्ष की चीज़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने केलिए फेक न्यूज़ व् पेड़ न्यूज़ का सहारा लेते हैं.इसके लिए मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स में ख़बरों के बीच पेड न्यूज़को मिला दिया जाता है. फेक न्यूज़ अफवाहों की तरह ही बड़ी तेजी से फैलती हैं क्योकि फेक न्यूज़ के साथ जिस प्लेटफार्म से वह आती है उसका आधार होता है.इस आधार के कारण विश्वनीयता बनती बिगडती है.व्हात्ट्स एप्प विश्व विद्ध्यालय में रोजाना एसी हजारों न्यूज़ टहलती रहती है ,इन में से अपने काम की फेक न्यूज़ को आदमी आगे बढाता रहता है.फेस बुक,इन्स्टा ग्राम ट्विटर आदि भी अपना योगदान करते हैं.अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में भी झूठें समाचारों ने अपना योगदान दिया था.भारत में समस्या ज्यादा जटिल है यहाँ पर फेक न्यूज़ फ़ैलाने का काम बड़ी बड़ी कम्पनियां बंगलौर ,सिएटल,गुरु ग्राम में कर रही हैं पेड न्यूज़ की तरह ही फेक न्यूज़ एक बड़ा व्यवसाय बन गया है.जो चुनाव के समय और भी ज्यादा तेज़ी से फैलता है.जिनको टिकट नहीं मिला वे भी टिकट के लिए या सामने वाले को हराने के लिए फेक न्यूज़ का सहारा लेते हैं प्लांटेड न्यूज़ के लिए तो मंत्रियों के कार्यालय यहाँ तक की पी एम ओ तक काम करते हैं.अप्रेल में फेक से सम्बंधित एक आदेश को सरकार को तुरंत वापस लेना पड़ा. फेक न्यूज़ की कोई निश्चित परिभाषा देना सम्भव नही है.

फेक न्यूज़ असली न्यूज़ से भी ज्याद तेज़ी से फैलती है .फेक न्यूज़ को सामान्य भाषा में अफवाह या झूठा समाचार कहा जा सकता है.फेक न्यूज़ के कारण दंगे,आगजनि ,हत्या ,लूट पाट तक हो जाती है .

आखिर इस को केसे रोका जा सकता है?

सोशल मीडिया के अलावा माउथ पब्लिसिटी भी एक अन्य तरिका है जो फेक न्यूज़ को फैला ता है,लेकिन इसे रोकना मुश्किल है.कुछ स्टिंग ओपरेशंस किये गए हैं जो बताते हैं की किस प्रकार बड़े समाचार माध्यम भी पेड न्यूज़ के धंधे में पड़ गए हैं.

सोशल मीडिया अपने विचार शेयर करे लेकिन उनकी सत्यता को भी जांचे .लेकिन फेक न्यूज़ फ़ैलाने वाले के अपने स्वार्थ होते हैं,पैसा भी लिया दिया जाता है.फेक न्यूज़ एक तरह का वैचारिक प्रदुषण है ,एक धुंध फोग- स्मोग है.इस से बचने के उपाय होने चाहिए.

मुख्य धारा के लोग इस पर लगाम लगाने में असफल है ,ज्यादातर मीडिया का ध्रुवीकरण हो चु का है ,वे जो तटस्थ होने का दावा करते है वे भी बिकने को तेयार है ,वे नहीं तो मालिक बिकने को तेयार है. मालिक नहीं तो अख़बार-चेन्नल बिक जाता है.फेक न्यूज़ को कोई भी रोक पायेगा एसा नहीं लगता.

एक सेमिनार में फेस बुक,ट्विटर ,व्हाट्स एप्प आदि से जुड़े लोग मानते हैं की यह एक बड़ा खतरा हैं और वे लोग इसके प्रति गंभीर है,मुख्य मीडिया की समस्या ये है की असली खबर कौन सी है .फेक या अफवाह कौन सी है? फेक न्यूज़ को जन जागरण से ही रोका जा सकता है.जनता यदि जागरूक होगी तो सोशल मीडिया भी अपने जिम्मेदारी समझेगा और फेक न्यूज़ या गलत समाचार को रोकने में मदद मिलेगी.फेक न्यूज़ के मामले में दुनिया भर के मीडिया घराने गंभीर है,बी बी सी ने इस पर काफी काम किया है और लगातार कर रहे हैं. पत्रिका शुद्ध के लिए युद्ध कार्यक्रम चला रहा है.इस तरह के वर्कशॉप भारत में भी किये जारहे हैं आखिर मीडिया का आज़ाद रहना जरूरी है मगर उसका सच्चा होना व् विश्वसनीय होना भी बहुत जरूरी हैं .सावधानी हटी दुर्घटना घटी की स्थिति कभी भी आ सकती हैं.भरोसा जीतने के लिए क्या किया जा सकता हैं भरोसा टूटने पर कुछ भी हो सकता है.हत्या ,बलात्कार,दंगा,मोब लीचिंग आदि भरोसा टूटने के बाद के दुखद परिणाम है.एक झूठी व्हातट्स अप्प सूचना कोई भी अन्याय कर सकती है.भारत में पिछले दिनों ऐसे काम हुए हैं हमें बेहद सावधान रहने की जरूरत है.जिस आसानी से फेक न्यूज़ फैलाई जाती है उसे रोकने की व्यवस्था भी उतनी ही कारगर होनी चाहिए.सरकार ,समाज,अख़बार,चेनल सब को मिल कर कोशिश करनी चहिये मगर सबके अपने अपने स्वार्थ है ,यदि पत्रकार ज्यादा होशियारी करता है तो उसे नोकरी से हटा दिया जाता है,चेन ल बंद हो जाते हैं अख़बार की लाइट का टी जा सकती हैं या एक विपरीत प्रकृति का स्टिंग ऑपरेशन किया जा सकता हैं.ख़बरों को जमीनी हकीकत से जोड़ने की जरूरत हैं ग्राउंड रिपोर्ट सच्ची होगी यदि ईमानदारी से का म हो लेकिन ईमानदारी की परिभाषा क्या हैं.

?अमेरिका में राष्ट्रपति पर एक मीडिया घराना मुकदमा ठोक देता है क्या भारत में यह संभव है?

चुनावों के आस पास यह समस्या और भी बड़ी हो जाती है .रोज़ फेस बुक ट्विटर,व् अन्य माध्यमों से टिकट मिलने ,काटने हारने जीतने की खबरे आती है और लोग मजे लेते हैं प्यार ,शादी,ऑनर किल्लिंग में भी फेक न्यूज़ का असर होता है.यह सब रोका जाना चाहिए.साहित्य तक अछूता नहीं है.

यह समस्या केवल भारत की ही हो एसा नहीं है अमेरिका में फेस बुक के मालिक को सरकार व् संसद से माफ़ी मंगनी पड़ी थी.भारत में भी गलत समाचारों के प्रकाशन पर अख़बारों के मालिको व् संपादकों को संसद व् विधानसभाओं व् सार्वजानिक प्लेटफार्म पर माफ़ी माँगनी पड़ी थी लेकिन वे इक्का दुक्का मामले थे अब तो कुएं में ही भंग पड गयी है. मीडिया चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता क्योकि संपादक,मालिक,रिपोर्टे आदि में से कोई न कोई बिकने को तेयार है बस उचित कीमत चाहिये .

फेक न्यूज़ को समाचारों के रोपण जैसा ही समझा जाना चाहिए.लोगों की मौत तक को फेक न्यूज़ के रूप में उडा दिया जाता है,इसे रोकने के गंभीर प्रयास होने चाहिए.

समाचारों के बिना जीवन नहीं व बिना फेक न्यूज़ ,पेड़ न्यूज़, व् प्लांटेड न्यूज़ के समाचार नहीं.

फेक न्यूज़ आने वाले चुनावों,बनने बिगड़ने वाली सरकारों में एक बड़ा रोल अदा करेगी .हमें सावधान रहने की जरूरत है.

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यशवंत कोठारी ,८६,लक्ष्मी नगर ,ब्रह्मपुरी बाहर ,जयपुर-३०२००२ मो-९४१४४६१२०७