यशवंत कोठारी
इधर शादी ब्याह की दुनिया में भयंकर बदलाव आये हैं अब विवाह हाई-फाई, हाई टेक हो गए हैं. इन दिनों रिसोर्ट संस्कृति ने अपने पाँव पसार लिए है. गरीब अमीर सब अपने बच्चों की शादी रिसोर्ट में कर के पुण्य कमाना चाहते हैं, समाज में अपनी नाक ऊँची करना चाहते हैं, ये अलग बात है की शादी चल जाएगी इसकी गारंटी रिसोर्ट, समाज, दूल्हा, दुल्हन या उनके माता-पिता कोई नहीं देते. शादी से पहले एक और नया चलन आया है प्री वेडिंग शूट. रिसोर्ट में अगर यह फिल्म नहीं देखी तो क्या देखा इस शूट की तुलना आप केवल पोर्नोग्राफी से कर सकते हैं. बेंड, है बाजा है, बारात है, बस बरात के घूमने के लिए जगह नहीं है चलो पूल का चक्कर मार कर तोरण कर लेते हैं, लेडीज संगीत में केवल लेडीज होती है गहने कपडे, लाइट्स और डीजे का कान फोडू संगीत, बालीवुड तक के एक्टर आते हैं. पैसे का ऐसा भोंडा प्रदर्शन, दुनिया वालों देखो मेरे पास भी है पैसा.
पिछले दिनों कुछ इसी तरह की शादियों से रूबरू होना पडा. बुफे का प्रचलन अब पुराना पड़ गया है हर कोई कर लेता है. लेकिन समाज को आप के पैसे वाला होने का पता तभी चलता है जब लड़का व लड़की वाले दोनों किसी एक ही रिसोर्ट में शादी करने का फैसला करते हैं. आप को इ कार्ड मिलता है उस में शहर से दूर किसी गाँव के बाहरी हिस्से में किसी खेत को रिसोर्ट –फार्म हाउस बना कर उसका पता भेजा जाता है वहां तक पहुंचने के लिए एक गूगल मेप भेजा जाता है एयरपोर्ट रेलवे स्टेशन से दूरी बताई जाती है लेकिन आवागमन के लिए जो सुविधा डेस्टिनेशन मेरिज में होती है वो यहाँ नहीं है. रिसोर्ट में घुसते ही आप से पूछा जाता है आप लड़की वालों की तरफ से हैं या लड़के वालों की तरफ से. फिर आप को उस मंजिल पर पहुँचाया जाता है जहाँ के लायक आप है. आप अपने होस्ट का पता लगाने की असफल कोशिश करते हैं लेकिन तभी आप का आधार कार्ड माँगा जाता है फिर आप को एक रजिस्टर में नाम पता लिखने को कहा जाता है फिर एक रूम बॉय इस की जांच करके आप को एक कमरे में पहुंचा देता है. सभी काका एक कमरे में सभी मामा एक कमरे में और चाचियाँ, मामियां एक कमरे में. सेंसर से खुलने बंद होने वाले रूम की लाइट भी सेंसर से जलती- बुझती है. सब कुछ रिसोर्ट संस्कृति का मारा. खाने के काउंटर पर लड़की वाले लड़के वाले को नहीं पहचानते लड़के वालों का बाराती होने का रुतबा ख़तम
हल्दी की रस्म ही सबसे बड़ी रस्म. जो अलग अलग भी और साथ साथ भी. सब पीले पीले.
खाने के इतने आइटम की आप पागल हो जाये पूरे लॉन में मेराथन रेस की तरह दौड़ना पड़ता है पूरे आईटम को देखने चखने केलिए शायद दूसरा जन्म लेना पड़े.
युवा लोग ऊंट,स्विमिंग पूल,का आनद ले या रस्में निभाएं कुछ लोग रस्मों को छोड़ कर अपना जुगाड़ बिठाने में लग जाते हैं कोई किसी को नहीं पहचानता, सब अपने अपने कमरे में बंद. एक मेनू एक कार्यक्रम का व्हात्ट्स एप्प मेसेज बस. शादी कहाँ है मंडप कहाँ है फेरे कहाँ है इन सबसे आप को कोई मतलब नहीं वापसी से पहले एक नौकर आप को एक गिफ्ट पेक दे जाता है वो भी सिग्ननेचर ले कर. समझदार लोग जाने से पहले बाथरूम से साबुन, तेल, शैंपू, नैपकिन भी ले जाते हैं शादी और रिसोर्ट के स्मृति चिन्ह के रूप में.
रिसोर्ट संस्कृति नया नया चलन है दोनों परिवार मिल कर खर्चा उठाते हैं लेकिन भारी खर्च के बावजूद आनंद नहीं उठा पाते,यह नव धनाढ्य वर्ग का नया शगूफा है नया नया गुब्बारा है जल्दी ही फूटेगा. यह डेस्टिनेशन मेरिज से आगे की चीज है. हनीमून का तो महत्व ही ख़तम क्योकि प्रेवेडिंग में ही सब कुछ हो जाता है और दिखा भी दिया जाता है. न हनी है न मून केवल हेडेक है.
रिसोर्ट की शादी याने एक खुली जेल कोई भाग नहीं सकता क्योकि आस पास कोई परिवहन नहीं आप की कार है तो आ- जा सकते हैं लेकिन अन्य साधन नहीं. लेकिन गरीब की शादी कैसे होगी सर जी ? जरा सोचिये.
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