छुटकी के प्यार का इकरार करने के बाद भी पंद्रह दिन गुजर गए लेकिन भले राम किसी से भी शादी की बात करने की हिम्मत जुटा ही नहीं पाया।
आते-जाते छुटकी जब भी उसे देखती, भले नीचे सर करके निकल जाता। आखिरकार छुटकी समझ गई कि इससे तो ना हो पाएगा, यह भी उसे ही करना पड़ेगा।
आज रात जब उसकी माँ खाना बना रही थी; तब छुटकी उनके पास जाकर बैठ गई और कहा, "अम्मा मुझे तुमसे कुछ कहना है, दरअसल मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।"
"भले से प्यार करती है तू और यही बात मुझसे कहना चाहती है, है ना?"
"अम्मा ...?"
"मैं तेरी आँखों को पढ़ना जानती हूँ। जब भी वह आता है तू कितनी बदल जाती है। मैंने देखा है तुझे उसे निहारते हुए लेकिन वह तैयार होगा क्या? मैंने उसकी तरफ़ से कभी कोई ऐसी बात नहीं देखी?"
"अम्मा शायद उसे पहले तो एहसास ही नहीं था कि मैं ... अम्मा तुम मेरी मदद करो ना?"
"क्या? उसे मैं कहूँ कि मेरी बेटी तुझसे प्यार ... नहीं बाबा यह मुझसे नहीं होगा।"
"अरे अम्मा तुमने तो अलग ही ट्रेन पकड़ ली, अब तो वह समझ गया है और तैयार भी है। बस आप सब से कहने में डरता है।"
"तो तू मुझसे क्या चाहती है?"
"अम्मा आप बाबू जी से बात करो ना? क्या वह मानेंगे?"
"अरे पगली इतना अच्छा लड़का है, जाना पहचाना, क्यों नहीं मानेंगे।"
बात यदि इतनी ज़्यादा ख़ुशी की हो तो उसे फैलने में समय कहाँ लगता है।
अम्मा जी के मन में भी लड्डू फूट रहे थे। उन्होंने रात के खाने के समय ही बात छेड़ दी। जब छुटकी रसोई में थी तब उसकी माँ ने मुन्ना लाल से कहा, "अजी सुनते हो ..."
"हाँ-हाँ बोलो, क्या बोलना चाह रही हो?"
"छुटकी के लिए मैंने एक लड़का पसंद कर लिया है।"
"वाह क्या बात है, तुमने पसंद भी कर लिया है।"
"हाँ-हाँ तो क्या मैं पसंद नहीं कर सकती माँ हूँ उसकी? क्या यह हक़ सिर्फ़ पिता का ही होता है?"
"अरे यह हक़ तो बेटी का होता है। उससे पूछा है क्या तुमने?"
"हाँ पूछा है, वह तैयार है।"
"अच्छा तो बात ऐसी है," कहते हुए मुन्ना लाल मुस्कुरा दिए।
वह कहते हैं ना कि बाल धूप में सफेद नहीं हुए हैं। अनुभवों का पूरा पिटारा था उनके पास। वह समझ गए कि यहाँ बात भले राम की हो रही है।
फिर उन्होंने कहा, "लेकिन उस घर से हमने लड़की ली है, वहाँ कैसे ...?"
"क्यों नहीं कितने परिवारों में ऐसी शादी होती हैं। अरे रिश्तों में और ज़्यादा मजबूती आ जाती है।"
मुन्ना लाल ने कहा, "और वैसे भी अब जब बेटी की मर्जी है तो मना करने का कोई मतलब ही नहीं है।"
तब छुटकी की अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा, "चलो यही समझ लो, तुम बड़े चालाक हो।"
"चालाक नहीं छुटकी की अम्मा, अनुभवी कहते हैं इसे।"
"अच्छा-अच्छा ठीक है।"
"छुटकी कह रही थी अम्मा जी यहीं रहूंगी तुम्हारे पास, कहीं दूर नहीं जाना पड़ेगा।"
तब तक छोटे लाल भी दुकान बंद करके घर आ गया। जब उससे यह बात कही गई तब उसने मन में सोचा इसमें बुराई ही क्या है और फिर कहा, "हाँ बाबू जी यह तो बड़ी अच्छी बात है। भले बहुत अच्छा लड़का है। छुटकी को हमेशा ख़ुश रखेगा।"
चलो इस रिश्ते के लिए सभी तैयार थे। छोटे लाल सोच रहा था, अब भले राम को पता चलेगा जब वह भी दामाद बन कर इस घर में आएगा और उसे भी दामाद की तरह मान सम्मान नहीं मिलेगा।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः