मैं ग़लत था - भाग - 10 Ratna Pandey द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मैं ग़लत था - भाग - 10

केवल राम की ही तरह मुन्ना और उसकी पत्नी भी भले राम के घर अपनी बेटी छुटकी का रिश्ता लेकर आए।

मुन्ना लाल ने कहा, "समधी जी मुझे तुमसे कुछ मांगना है, क्या दोगे?"

केवल राम ने कहा, "हाँ-हाँ मांग ना ज़रूर दूंगा।"

"सोच ले केवल राम फिर मुकरना नहीं।"

केवल ने सोचा कहीं कोई दहेज ...?

तब तक फिर मुन्ना ने कहा, "अरे क्या सोच रहा है, बोल ना?"

"अरे मुन्ना पहेलियाँ मत बुझा, मांग ले जो मांगना है। मैंने तो तुझे अपने जिगर का टुकड़ा दे दिया है। अब उससे बड़ा तो कुछ भी नहीं है। चल दे दिया समझ, बस अब बोल दे।"

"केवल मुझे और कुछ नहीं बस मेरे जिगर के टुकड़े को तेरे घर भेजना है। बोल क्या यह रिश्ता स्वीकार करेगा।"

"क्या ...?" कहते हुए केवल राम उठ कर खड़ा हो गया और बिना कुछ बोले सीधे आकर मुन्ना लाल को गले से लगा लिया।

भले राम अंदर बैठा मन ही मन मुस्कुरा रहा था। रिश्ता पक्का हो गया, छोटे और भले ने एक दूसरे को गले से लगा लिया। बस फिर क्या था, चट मंगनी पट ब्याह की तैयारियाँ शुरू हो गईं।

भले राम दूल्हा ज़रूर था किंतु उसमें छोटे लाल की तरह कोई परिवर्तन नहीं आया। इस पूरी शादी के दौरान छोटे लाल यह महसूस कर रहा था कि भले राम तो दूल्हे जैसा लग ही नहीं रहा है। दौड़-दौड़ कर ख़ुद ही कितना काम कर रहा है। उसके आश्चर्य का ठिकाना ही नहीं था।

विवाह के अगले दिन भोजन के समय जब भले राम को नेग देने की बारी आई। तब उसने सामने से आते हुए छोटे लाल और मुन्ना लाल को देखा। वह तुरंत खड़ा हो गया और तेजी से चल कर मुन्ना लाल जो अब उसके ससुर थे उनके पाँव पड़े।

भले राम ने कहा, "आशीर्वाद दो बाबूजी।"

मुन्ना लाल ने हाथ जोड़ते हुए कहा, "अरे-अरे भले ये क्या कर रहे हो तुम? पाँव छू रहे हो? अरे अब तो तुम दामाद बन गए हो, पाँव तो हमें ..."

"बाबूजी आप यह क्या कह रहे हैं। मैं तो जैसे पहले आपका बेटा था, बिल्कुल वैसा ही अब भी हूँ।"

उनके दोनों जुड़े हुए हाथों को हटाते हुए भले ने कहा, "बाबू जी आपके यह हाथ जोड़ने के लिए नहीं, आशीर्वाद देने के लिए हैं," यह कहते हुए उसने फिर से एक बार उनके पैरों का स्पर्श किया।

"आप तो हर दृष्टि से मुझसे बहुत बड़े हैं, उम्र में भी और रिश्ते में भी। आप जैसे छुटकी और छोटे के बाबूजी हैं बिल्कुल वैसे ही मेरे लिए भी हैं।"

भले राम का यह रूप देखकर छोटे लाल शर्मिंदा हो रहा था; क्योंकि इन नौ महीनों में उसने कभी भी केवल राम से इस तरह की बात नहीं की थी। यदि वह पैर छूते तो छोटे को दामाद होने का एहसास बड़ी ख़ुशी देता। वह दामाद बन रहा था लेकिन भले राम बेटा बन गया था। यह फ़र्क़ आज छोटे लाल को महसूस हो रहा था।

भोजन के लिए जब भले राम बैठा तो छोटे ने उसे एक कौर खिलाते हुए पूछा, "भले मेरे यार तुझे क्या नेग चाहिए?"

तब भले ने कहा, "इतना अच्छा परिवार तो मिल गया अब इसके आगे इससे ज़्यादा प्यारा और कीमती क्या देगा छोटे। मुझे सब कुछ मिल गया है।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः