Main Galat tha - Part - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

मैं ग़लत था - भाग - 1

भले राम और छोटे लाल एक छोटे से गाँव में रहते थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। वे बचपन से साथ-साथ खेलते कूदते ही बड़े हुए थे। पूरे गाँव में उनकी दोस्ती के चर्चे थे और हों भी क्यों नहीं उनकी दोस्ती थी ही ऐसी कि यदि ज़रूरत पड़े तो वे एक दूसरे के लिए अपनी जान भी दे सकते थे। भले और छोटे दोस्त होने के साथ ही अच्छे पड़ोसी भी थे। दोनों के परिवारों के बीच भी उनकी दोस्ती के चलते बड़े ही घनिष्ठ सम्बंध थे। भले राम के परिवार में उसके पिता केवल राम, माँ माया और एक बहन सरोज थी। वहीं छोटे लाल के परिवार में उसके पिता मुन्ना लाल, माँ गौरी और बहन छुटकी थी।

गाँव में बारहवीं क्लास तक ही स्कूल था। उतनी पढ़ाई दोनों ने साथ-साथ कर ली थी। अब आगे क्या करना है, यह एक बड़ा ही पेचीदा प्रश्न था। गाँव में इसके आगे पढ़ने के लिए कॉलेज नहीं था और गाँव तथा अपने परिवार को छोड़कर दोनों कहीं बाहर शहर जाना नहीं चाहते थे। क्या करें इसी कश्मकश में कुछ समय और बीत गया। इस खाली समय में वे गाँव के अखाड़े में जाकर कसरत करते और दांव पेंच लगाना सीख रहे थे। कुश्ती का खेल देखकर उन्हें भी यह शौक लगा था। लेकिन यह मात्र शौक तक ही सीमित था। जो केवल कुछ ही दिन उनके साथ रह पाया और कुछ ही दिनों में उनका शौक ठंडा पड़ गया।

जवानी की दहलीज़ पर अपने क़दम रख चुके भले और छोटे अब साथ में मिलकर पैसा कमाना चाहते थे। आपस में बहुत विचार-विमर्श करने के बाद उन्होंने अपने-अपने घर में बात की कि उन्हें मिलकर एक किराने की दुकान खोलने का मन है।

केवल राम और मुन्ना लाल ने अपने बच्चों के मन की बात सुनने के बाद पहले आपस में चर्चा की।

केवल राम ने कहा, "देख मुन्ना हमारे गाँव में कोई भी अच्छी किराने की दुकान नहीं है। मुझे लगता है कि बच्चों की यह योजना एक अच्छी शुरुआत होगी। तेरा मन क्या कहता है मुन्ना?"

"हाँ केवल विचार तो बहुत अच्छा है और फिर हम दोनों भी तो हैं ना उनके पीछे। मेरा मन भी कह रहा है हमें उन्हें अनुमति अवश्य देना चाहिए। हाँ तो फिर हम भले और छोटे को साथ में बिठा कर उनकी इस ख़्वाहिश के ऊपर चर्चा करते हैं।"

दूसरे दिन भले के पिताजी केवल राम ने उससे कहा, "भले जाओ, जाकर छोटे और उसके बाबूजी मुन्ना लाल को बुला लो।"

"ठीक है बाबूजी," कहता हुआ वह बाजू के घर में छोटे और मुन्ना लाल को बुलाने गया।

मुन्ना लाल ने कहा, "भले यहाँ अपने आँगन में बैठकर चर्चा करते हैं। खटिया बाहर ही पड़ी है जाओ तुम्हारे बाबू जी को भी यहीं बुला लो।"

केवल राम ने आते हुए कहा, "अरे मुन्ना मैं ख़ुद ही आ गया। छोटे ज़रा एक खटिया और ले आ, जा अंदर वाले कमरे में पड़ी है।"

"जी चाचा जी अभी लेकर आता हूँ।"

भले पहले वाली खटिया पर गद्दा डालकर चादर बिछा रहा था, तब तक छोटे ने भी दूसरी खटिया पर बिस्तर लगा कर तैयार कर दिया। केवल राम की पत्नी माया रसोई में खाना पका रही थी कि तभी मुन्ना लाल की पत्नी गौरी भी उसे मदद करने आ गई।

इतने में बाहर आँगन से केवल राम की आवाज़ माया के कानों से टकराई, "अरे सुनती हो माया ज़रा गरमा गरम चाय और कांदा भजिये बना लाओगी?"

दोनों पड़ोसने एक दूसरे को देख कर मुस्कुराईं और माया ने जवाब दिया, "हाँ-हाँ क्यों नहीं अभी बनाती हूँ।"

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक

क्रमशः

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