सबा - 33 Prabodh Kumar Govil द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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सबा - 33

मंत्रीजी एकाएक उठ कर भीतर चले गए। उनका चेहरा अपमान और गुस्से से तमतमाया हुआ था।
बाउंसर्स को बुलाने की ज़रूरत नहीं पड़ी। ऊंची आवाज़ में बहस सुन कर गेट पर खड़ा गार्ड ख़ुद भीतर चला आया।
क्या हुआ, जब तक वो कुछ समझ पाता तब तक भीतर के कमरे पड़ा पर्दा हटा कर राज्य के असरदार मंत्रीजी भीतर जा चुके थे। गार्ड ने तो केवल पर्दा हिलता हुआ देखा।
फिर उसने कुछ त्यौरियां चढ़ा कर उस मेहमान की तरफ़ घूरते हुए देखा जिससे बात करते हुए मंत्री महोदय नाराज़ हो गए थे और अधूरी बात बीच में ही छोड़ कर निकल गए थे।
गार्ड इतना तो समझ गया कि जो आदमी सरकार के माननीय मंत्री से इस तरह बोल सकता है वो कोई ऐरा- गैरा तो होगा नहीं, वो भी जरूर कोई न कोई रसूखदार आसामी ही होगा। इसलिए गार्ड ने उससे उलझना ठीक नहीं समझा। फिर मंत्री जी ने उसे बाहर निकालने के लिए कहा भी तो नहीं था। अपनी तरफ़ से गार्ड उसे जाने को कैसे कह दे? अतः गार्ड बेरुखी सालू की ओर देखता हुआ वापस अपनी जगह पर जाकर खड़ा हो गया।
हो सकता है कि मंत्री महोदय क्षणिक क्रोध में उठकर भीतर गए हों, और पल भर बाद ही पलट कर वापस आ जाएं। इन बड़े आदमियों का क्या भरोसा?
असल में सालू को मंत्री जी से समय लेकर मिलने इसलिए आना पड़ा कि उसकी निर्माणाधीन इमारत में इस अतिरिक्त फ्लोर की अनुमति उसे शहरी निकाय की ओर से नहीं दी जा रही थी। इतना ही नहीं, बल्कि खोजबीन करने पर उसे पता चला कि उसकी फाइल जानबूझ कर अटकाई गई है और उससे बड़ी रकम रिश्वत के रूप में मांगी जा रही है।
सालू ताव खा गया। उसने घूस मांगने वाले अधिकारी को सबक सिखाने के लिए सीधे मंत्रीजी से ही मिलने की ठानी और आज इसीलिए वो यहां आया था।
लेकिन यहां हुई थोड़ी सी बातचीत से ही सालू को यह अंदाज़ लगाने में देर न लगी कि मंत्री को सारी बात की जानकारी है और अफ़सर इनकी शह पर ही मुंह फाड़ रहा है।
सालू को कोई अचंभा नहीं हुआ, क्योंकि वह पिछले कई सालों से इस काम में था। एक नए मॉल के एक कॉर्नर पर एक शानदार सैलून बनाने की उसकी योजना कोई नई नहीं थी। उसने देश - विदेश में इस प्रोजेक्ट की खासी स्टडी की थी।
उसे मंत्रीजी की ये बात सिरे से ही नागवार गुजरी कि "तुम लोग करोड़ों रुपए कमा कर ले जाना चाहते हो और सरकार को वाजिब हक भी देना नहीं चाहते।"
- वाजिब हक?
- और क्या? क्या हम जानते नहीं कि ग्रूमिंग की आड़ में तुम लोग क्या- क्या गुल खिलाते हो, नई पीढ़ी को जम कर लूटते हो और अय्याशी के नए - नए अड्डे बनाते हो।
सालू बिफर पड़ा। वह म्यांमार का मूल निवासी ज़रूर था पर उसका यहां आना - जाना बरसों से था। शहर में तमाम बड़ी- बड़ी हस्तियां उसके बारे में जानकारी रखती थीं।
उसने मंत्रीजी को खरी- खोटी सुना डाली। बोला - माफ़ कीजिए श्रीमान, आपको यह सब कहने का कोई हक नहीं है, आप जनता के कितने हितैषी हैं ये सारी दुनिया जानती है।
वह यहीं नहीं थमा। बोला - इस भयंकर जनसंख्या वाले देश में बेरोजगार युवक- युवतियों के लिए रोटी कमाने का कोई ठोस जरिया तो आप लोग बना नहीं पाए। शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी कामों में भी आपकी नाक के नीचे तमाम माफिया गैंगस्टर्स गिरोह बना कर खुली लूट मचा रहे हैं जिनकी आपको कोई परवाह नहीं है। और परवाह क्या, बल्कि जनता को लूटने वालों को पनाह देने में भी आप लोगों का ही हाथ है।
- बदतमीज़! कैसे बोल रहा है? मंत्रीजी सिटपिटाये!
सालू का हौसला और बढ़ा, बोला- मुझे बदतमीज़ कहने से पहले अपने गिरेबान में भी झांक लीजिए। पढ़ने वाले बच्चों की ज़िंदगी बरबाद करने वाले ड्रग माफिया, तस्कर, नशे के कारोबारी सब आपके गुर्गे हैं। थैलियां लेकर यहां रोज़ आपके दरबार में हाज़िरी लगाते हैं...
- गो टू हेल! मेरा समय मत खराब मत करो। कह कर मंत्रीजी भीतर चले गए थे।
सालू भी खासा अनुभवी था। बैठा रहा।
लेकिन गार्ड का अनुमान सही निकला। उसने सालू को जाने के लिए न कह कर अच्छा ही किया क्योंकि चार- पांच मिनट बाद ही मंत्रीजी वापस आ गए।