मेहमान Rakesh Rakesh द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मेहमान

प्रभाकर विदेश में भारतीय दूतावास का कर्मचारी था वह 15 वर्ष के बाद अपने देश जाने वाला था, इतने वर्षों में विदेश में उसके बहुत से मित्र बन गए थे उसकी अभिलाषा थी अपने विदेशी मित्रों और उनके परिवार के सदस्यों को दिखाने की भारत में सभी धर्मों के लोग एक दूसरे के त्योहार को कैसे मिलजुल कर प्यार मोहब्बत से मानते हैं, और अपने विदेशी मित्रों को भारत लाकर अतिथि देवो भावों का सही अर्थ समझना चाहता था, इसलिए वह अपने दो खास मित्रों और उनकी पत्नियों को अपने गांव की होली दिखाने अपने साथ भारत लेकर आता है।

प्रभाकर की पत्नी सुजाता भी खुश थी कि अब मेरे पति की अभिलाषा पूरी होने वाली है।

प्रभाकर अपने विदेशी मित्रों के साथ भारत आने के बाद एयरपोर्ट से एक प्राइवेट गाड़ी अपने गांव तक छोड़ने के लिए किराए पर बुक करता है।
और गाड़ी में बैठने के बाद अपने बचपन की होली का एक किस्सा विदेशी मित्र और उनकी पत्नियों को सुनता है कि "जब मैं 12 वर्ष का था तो विद्यालय की छुट्टी होने के बाद अपने सबसे पक्के तीन मित्रों के साथ आम अमरूद के बाग में आम अमरूद चोरी करके तोड़कर खाने जाता था, उस बाग में माल्टे के बहुत से पेड़ थे, मुझे आम अमरुद से ज्यादा माल्टा खाना पसंद था। एक दिन मेरे माल्टा खाने के लालच की वजह से हम चारों दोस्त पकड़े गए थे।

"और उस बाग के माली ने हम चारों मित्रों के घरों में शिकायत कर दी थी उस दिन हम चारों दोस्तों को घर वालों ने रात का खाना भी नहीं दिया था और हम चारों दोस्तों को एक सप्ताह तक परिवार वालों की डांट फटकार सुननी पड़ी थी, इसलिए हम चारों मित्रों ने होली की आग में उस बाग के माली कि चारपाई और लाठी जला दी थी।

"और हम चारों मित्रों को हमारे घर वालों ने सजा दी थी कि इस बार हम होली नहीं खेलेंगे होली ना खेलने देने की वजह से मैंने पूरे एक महीने बाबूजी से बात नहीं की थी और अगली होली आने पर बाबूजी ने होली से दस दिन पहले ही मुझे पिचकारी गुलाल होली के रंग बिरंगे रंग लाकर दे दिए थे।"

फिर प्रभाकर इस किस्से के बाद होली का दूसरा किस्सा विदेशी दोस्तों को सुनता है कि "हमारे गांव की होली आसपास के गांव की होलियो से सबसे ज्यादा बड़ी होली होती थी, हम चारों मित्र और गांव की कुछ लोग जंगल से सुखी लड़कियां काटकर होली में डालते थे और जलने वाली होली से पहले पूरे गांव से चंदा इकट्ठा करके लकड़ी की टाल से सूखी लकड़ियां खरीद कर डालते थे, जिस दिन जलने वाली होली होती थी तो हम चारों मित्र होली के पास ढोलक लेकर होली के गीत चारपाई पर बैठकर गाते थे और जब महिलाएं बच्चे होली की पूजा करने आते थे, तो हम उनकी पूजा का सामान या किसी और चीज की उनको जरूरत होती थी तो पूरी मदद करते थे और शाम को होली जलने से पहले होली में सुखे कड़े जरुर डालते थे। होली पर गांव में सबके घर में खोए कि गुजिया पकोड़े पापड़ चटपटी नमकीन आदि चीज़ों के अलावा और भी पकवान बनते थे, अगर गांव में किसी के घर में पैसे की दिक्कत की वजह से पकवान नहीं बनते थे तो गांव का कोई ना कोई व्यक्ति उसकी पैसे देकर मदद कर देता था।

"और रंग वाली होली के दिन में और मेरे तीनों मित्र गांव के कुछ लोगों के साथ होली की मंडली बनाकर होली के गाने गाते हुए गांव के घर-घर जाकर होली खेलते थे और अपनों से बड़ों का आशीर्वाद लेते थे।"

रास्ते में ढाबा देखकर प्रभाकर ड्राइवर को दोपहर का खाना खाने के लिए गाड़ी रोकने के लिए कहता है ढाबे के पास एक बहुत बड़ा होली का सामान बेचने का बाजार लगा हुआ था, सबके साथ खाना खाने के बाद प्रभाकर अपने विदेशी दोस्तों से कहता है कि "गांव जाने से पहले होली का बाजार घूम लेते हैं।"

अपने और विदेशी मित्रों के लिए प्रभाकर होली के बाजार से रंग-बिरंगा गुलाल पिचकारी और खाने के लिए खोए की गुजिया की मिठाई चटपटी नमकीन पापड़ पकोड़े बनाने के लिए बेसन आदि सामान खरीदता है।

होली का बाजार घूमने के बाद विदेशी मित्र की पत्नी कहती है कि "होली का बाजार घूम कर और तुम्हारे मुंह से होली के किस्से सुनकर भारत का रंगों से भरा त्यौहार होली मनाने का उत्साह और बढ़ गया है।"

प्रभाकर गांव के बाहर सबको गाड़ी से उतर कर उस मैदान से सबको लेकर जाता है जहां गांव की होली रखी जाती थी, लेकिन अपने गांव की होली देखकर प्रभाकर चकित रह जाता है क्योंकि गांव की होली साइकिल ट्रैक्टर की टायर थोड़ी सी सूखी झाड़ियों थोड़े से सुख कांडों से रखी हुई थी और होली के पास दो-तीन जंगली कुत्ते बैठे हुए थे और एक भैंस का काला कटरा खूंटे से बांधा हुआ था। शाम को होली जलनी थी किंतु किसी ने होली की पूजा भी नहीं कर रखी थी।

अपने विदेशी मेहमानों को उस होली के बारे में कुछ भी बताएं बिना प्रभाकर जल्दी से उन सबको अपने घर ले जाता है।

घर पहुंचने पर प्रभाकर के माता-पिता उसके विदेशी मेहमानों का बहुत ज्यादा उत्साह से स्वागत नहीं करते हैं और प्रभाकर के छोटे भाई बहन भी गर्म जोशी से विदेशी मेहमानों का स्वागत नहीं करते हैं और उसके छोटे भाई बहन कुछ मिनट का भी समय उन विदेशी मेहमानों को नहीं देते हैं।

प्रभाकर अपने परिवार के इस बर्ताव से और गांव की होली को देखकर निराश होकर अपने विदेशी मेहमानों को अपने घर छोड़कर अपने बचपन के मित्रों से मिलने और उन्हें अपने विदेशी मित्र के साथ होली खेलने के लिए निमंत्रण देने चला जाता है।

वह पहले दोस्त के घर जाता है तो उसे उसकी पत्नी से पता चलता है कि भाई के साथ जमीन जायदाद के बंटवारे के झगड़े की आज कोर्ट में तारीख है वह वहां गया हुआ है।

फिर वह दूसरे दोस्त के घर जाता है, तो वहां उसे पता चलता है कि ज्यादा शराब और दूसरे नशे करने से उसकी मृत्यु हो गई है।

उसके बाद फिर दुखी और निराश होकर वह तीसरे मित्र के घर जाता है, तो उसका तीसरा दोस्त बेरोजगारी की चिंता गरीबी भुखमरी से जवानी में ही 70 वर्ष का बुड्ढा हो गया था।

दूसरे दिन रंग वाली होली (दुल्हाडी) पर अपने विदेशी मेहमानों को गांव कि होली दिखाने ले जाता है, तो गांव की कुछ महिलाएं बच्चे उसके विदेशी दोस्तों की पत्नियों के साथ कीचड़ से होली खेलते है और विदेशी दोस्तों की पत्नियों को कीचड़ में लथपथ कर देती है।

इतने में कुछ युवक मंडली बनकर आते हैं और प्रभाकर उसके विदेशी दोस्तों का चेहरा काले रंग से काला कर देते हैं।

शाम को अलग-अलग संप्रदायों के गुटों में झगड़ा हो जाता है, क्योंकि उस संप्रदाय के लोगों ने उन संप्रदाय के लोगों के चेहरे पर होली का गुलाल मल दिया था होली जिनका त्यौहार नहीं था और झगड़ा इतना बढ़ जाता है कि पूरे जिले में प्रशासन को कर्फ्यू लगाना पड़ जाता है।

जिले से कर्फ्यू खत्म होने के बाद प्रभाकर अपने विदेशी मेहमानों को सम्मान के साथ उनके देश के लिए विदा करता है और अपनी पत्नी से कहता है "हम जब अपने त्यौहारो रीति रिवाज सब कुछ भूलते जा रहे हैं तो अतिथि देवो भव का अर्थ नई पीढ़ी को समझना संभव नहीं है। और इसी ही तरह दुनिया से मानवता खत्म होती रही तो एक दिन कोई भी मेहमान किसी के घर नहीं आएगा।