15 वर्ष अपने बचपन की सहेलियों से दूर रहने के बाद शालू का अपने बचपन की सहेलियों से मिलने का बहुत मन करता है और वह देर रात तक अपनी सहेलियों के साथ बिताए खूबसूरत बचपन के दिनों को याद करते-करते सो जाती है।
और सुबह उठकर अपनी पुरानी डायरी ढूंढती है, जिसमें उसकी बचपन कि सहेलियों के नंबर लिखे थे। उसकी बचपन की सब सहेलियों के नंबर बंद हो चुके थे। उन सहेलियों के फोन नंबर ना मिलने के बाद शालू कि बचपन कि सहेलियों से मिलने की उम्मीद टूट जाती है और वह एक जगह गुमसुम घंटों बैठी रहती है।
इस वजह से उसका पति रवि और सात बरस की बेटी बिना नाश्ता किए बिना लंच बॉक्स लिए स्कूल और ऑफिस चले जाते हैं।
उनके जाने के बाद शालू डायरी को गुस्से में फाड़ कर कूड़ेदान में फेंक कर जल्दी से जल्दी खाना पका कर अपनी बेटी के स्कूल पति के ऑफिस देने जाती है।
शालू घर गृहस्ती में व्यस्त होने के बाद अपनी बचपन की सहेलियों से मिलने की बात भूल जाती है।
जब शालू 15 वर्ष की थी, तो पिता के देहांत के बाद उनके घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी, इसलिए उसकी मां शालू और उसके छोटे भाई को लेकर अपने मायके में अपने बड़े भाई के घर रहने चली गई थी।
और जब शालू की भाभी उसकी मां दोनों बच्चों को अपने ऊपर बोझ समझने लगी थी, तो उसकी मां ने उस शहर में आकर किराए का मकान लेकर खुद नौकरी करके अपने छोटे मासूम बच्चों को पालना शुरू कर दिया था, जिस शहर में आज शालू अपने पति बेटी के साथ रहती है।
शालू की मां जिस मकान में किराए पर रहती थी, उस मकान के मकान मालिक उसके पति रवि के पिता थे, यानी कि उसके ससुर थे।
रवि के माता-पिता ने बुरे समय में शालू की मां की बहुत मदद की थी और गरीब मां की बेटी शालू से अपने बेटे रवि की शादी कर दी थी।
रवि से शादी करने के बाद शालू को दुनिया के सारे सुख मिल गए थे, रवि हर तरह से संपूर्ण पति था, परंतु रवि की नजरों में शालू की भावनाओं की कोई कदर नहीं थी।
इसलिए शालू रवि को अपने दिल की बात कम बताती थी और इस वजह से यह भी नहीं बताती है कि कुछ दिनों से उसका दिल अपने बचपन की सहेलियों से मिलने का कर रहा है। उसकी बचपन की सबसे अच्छी सहेलियां दीपा बबीता महक थी।
दीवाली से एक सप्ताह पहले शालू अपने बेटी और पति के साथ बाजार घूमने दिवाली पर पहनने के लिए नए कपड़े खरीदने जाती है, तो रास्ते में एक छोटी सी लड़की अपने घर के आंगन में अपनी मां के साथ बैठकर घरौंदा यानी कि दिवाली का मंदिर बना रही थी।
उसे देख कर शालू को अपने बचपन के वह दिन याद आने लगते हैं, जब वह अपनी सहेलियों के साथ मिलकर दिवाली से पहले घरौंदा बनाती थी।
उस दिन दिवाली का घरौंदा देखने के बाद शालू की अपनी बचपन सहेलियों से मिलने की बेचैनी और बढ़ जाती है, इस वजह से उस दिन से दिवाली तक शालू गुमसुम कहीं खोई खोई रहती है।
तो दिवाली वाले दिन रवि को शालू पर बहुत गुस्सा आता है, कि कम से कम त्योहार तो परिवार वालों के साथ हंसी खुशी से मिलजुल कर मनाना चाहिए।
यह बात बढ़ते बढ़ते इतनी बढ़ जाती है, कि रवि शालू के सर पर एक मोटे डंडे से वार कर देता है और सर पर ठंडा लगने के बाद शालू बेहोश हो जाती है।
शालू को जब होश आता है तो रवि शालू से माफी मांग कर कहता है कि "मुझे अपनी गलती का एहसास हो गया है, होश में आने के बाद तुम एक ही बात धीरे-धीरे दोहरा रही थी कि मुझे अपनी बचपन की सहेलियों से मिलना है मुझे अपने बचपन के दिनों की बहुत याद आ रही है। मैं कैसे अपनी बचपन की सहेलियों को ढूंढ कर उनसे मिलू, मैं अपने पति को भी अपने दिल की बात नहीं बता सकती हूं क्योंकि उनकी नजरों में मेरी छोटी सी छोटी भावनाओं की भी कदर नहीं है। पति की जिम्मेदारी पत्नी को सिर्फ सुख सुविधा देने की ही नहीं होती है, बल्कि उसकी छोटी-छोटी भावनाओं की भी कदर करने की होती है।"
और कुछ ही दिनों के अंदर रवि अपनी पत्नी शालू की बचपन की सबसे अच्छी तीनों सहेलियों को ढूंढ कर शालू से मिलवा देता है।