वो माया है.... - 49 Ashish Kumar Trivedi द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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वो माया है.... - 49



(49)

अदीबा ने इंस्पेक्टर हरीश द्वारा दी गई रिपोर्ट अखलाक के सामने रख दी। उसे पढ़ने के बाद वह बोला,
"अगर इस रिपोर्ट को ऐसे ही छाप दिया तो जो पाठक हमसे जुड़े हैं दूर हो जाएंगे।‌ इसमें लिखा है कि तंत्र मंत्र सब बेकार की बातें हैं। इनका पुष्कर की हत्या से कोई लेना देना नहीं है। यह पढ़कर तो पाठकों की सारी दिलचस्पी खत्म हो जाएगी।"
अदीबा जानती थी कि अखलाक की यही प्रतिक्रिया होगी। उसने कहा,
"सर अब पुलिस ने कहा है तो छापना पड़ेगा ही।"
"ऐसे कैसे छापना पड़ेगा। हमें अखबार भी चलाना है।"
"सर मैंने पहले ही कहा था कि ताबीज़ वाली बात नहीं छापते हैं। बेवजह गलतफहमी हो जाएगी।"
अखलाक कुछ देर अदीबा को घूरता रहा। उसका इस तरह से घूरना अदीबा को अच्छा नहीं लग रहा था। उसने कहा,
"क्या बात है सर ?"
"बात यह है अदीबा कि तुम शुरू से ही बेवजह की बातें कर रही हो। इसलिए तुम्हें उस इंस्पेक्टर हरीश की बात सही लग रही है। लेकिन मैं ऐसे नहीं सोच सकता हूँ। मेरे लिए मेरे अखबार का सर्कुलेशन बढ़ाना पहली प्राथमिकता है।"
यह बात अदीबा को अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,
"इसका मतलब यह तो नहीं है कि हम कुछ भी छाप देंगे।"
यह सुनकर अखलाक भड़क गया। उसने गुस्से से कहा,
"यह मत भूलो अदीबा कि रिपोर्ट तुमने ही तैयार की थी। अब तुम मुझे बताओ कि उस रिपोर्ट में कुछ भी वाली कौन सी बात थी। इस्माइल ने तुम्हें ताबीज़ वाली बात बताई थी। यह क्या झूठ था ? क्या तुमने उस रिपोर्ट में यह लिखा था कि पुष्कर की हत्या किसी इंसान ने नहीं बल्की शैतानी शक्ति या अतृप्त आत्मा ने की है ?"
अदीबा ने धीरे से कहा,
"नहीं सर....."
"फिर भी उस इंस्पेक्टर हरीश ने तुम्हें बेवजह की बातें सुनाईं और तुम सुनकर चली आई थी। आज उसने यह रिपोर्ट बनाकर छापने का आदेश दे दिया। तुम उसका आदेश मानकर रिपोर्ट मेरे पास ले आई।"
अखलाक की बात भी सही थी। दरअसल अदीबा खुद उलझन में थी। जब इंस्पेक्टर हरीश ने वह रिपोर्ट उसे छापने के लिए कहा था तब उसके मन में आया था कि कह दे कि उसका काम वह अपने हिसाब से करेगी। पर वह कह नहीं पाई थी। अखलाक ने आगे कहा,
"इंस्पेक्टर हरीश अगर अपने बयान के रूप में इसे छपवाना चाहे तो उसके नाम से छाप देंगे। पर उसकी रिपोर्ट जैसी है वैसी ही नहीं छापेंगे।"
अदीबा कुछ सोचकर बोली,
"सर आपका क्या सुझाव है ?"
अखलाक ने कुछ क्षण विचार करने के बाद कहा,
"सबसे पहली बात तो यह लाइन हटा दो कि तंत्र मंत्र बेकार है और उसका पुष्कर की हत्या से कोई लेना देना नहीं है। हमारे अखबार में ऐसा कोई दावा नहीं किया गया था कि पुष्कर की हत्या में कोई शैतानी शक्ति है। दूसरा कुछ ऐसा रिपोर्ट में जोड़ो जिससे लोगों को सोचने के लिए नया मसाला मिले।"
अदीबा फिर सोच में पड़ गई। उसे ऐसा कुछ समझ नहीं आ रहा था जो रिपोर्ट में लिखा जा सके। उसकी दुविधा देखकर अखलाक ने कहा,
'चेतन जिस ढाबे पर काम करता था वहाँ जाकर उसके मालिक से मिलो। पुलिस ने उसे थाने में बुलाकर बहुत पूछताछ की थी‌। कोई बात तो पता चलेगी जो काम की हो।"
अदीबा को यह सुझाव अच्छा लगा। उसने कहा,
"मैं अभी लकी ढाबा जाकर सूरज पाल से मिलती हूँ।"
वह जाने लगी तो अखलाक ने कहा,
"अदीबा मेरी कही कोई बात बुरी लगी हो तो माफी चाहता हूँ। तुम जानती हो कि यह अखबार मेरे लिए बहुत मायने रखता है।"
अदीबा ने कुछ कहा नहीं। बस मुस्कुरा कर केबिन से निकल गई।

बीते कुछ दिनों से सूरज की तबीयत ठीक नहीं चल रही थी।‌ वह ढाबे पर कम ध्यान देता था। अधिकतर अपने कमरे में पड़ा रहता था। ढाबे का सारा काम रामदीन देख रहा था। सूरज के मन में शैतानी शक्ति वाली बात घर कर गई थी। उसे लगता था कि जैसे उस शक्ति ने पुष्कर और चेतन की हत्या कर दी है वैसे ही उसकी भी हत्या कर देगी। उसके मन में इतना अधिक डर था कि ढाबा बंद होने के बाद वह रात में यहाँ नहीं रुकता था। ढाबे से कोई तीन किलोमीटर दूर एक बस्ती में उसका एक परिचित रहता था। रात को वह उसकी कोठरी में जाकर सोता था। वह परेशान था क्योंकी यह व्यवस्था अधिक दिनों तक नहीं चलने वाली थी।
सूरज‌ अपनी परेशानी में समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे। उसका गांव गाजियाबाद के पास था।‌ वहाँ उसके दो भाई रहते थे। कभी वह सोचता था कि ढाबा बंद करके गांव चला जाए। वहाँ कुछ काम मिल गया तो ठीक नहीं तो कहीं नौकरी कर लेगा। लेकिन बड़ी मुश्किल से उसने यह ढाबा बनाया था। लकी ढाबा अब तक उसके लिए लकी रहा था। इसलिए ढाबा‌ बंद करने के खयाल से ही वह बेचैन हो जाता था। कभी उसका मन कहता कि जान बचेगी तो और भी कुछ कर सकता है। यहाँ खतरा है। अतः यहाँ से चला जाना ही ठीक है। जब वह ढाबा बंद करने का मन बनाता तो खयाल आता कि उस शैतानी शक्ति से वह कैसे भाग सकता है। उस शक्ति ने पुष्कर को उसके घर से इतनी दूर आकर दबोच लिया। फिर वह कहीं भी जाए खतरा उस पर मंडराता रहेगा।
सूरज असमंजस की स्थिति में था। समझ‌ नहीं पा रहा था कि क्या करे ? किससे मदद मांगे ? असमंजस की इस स्थिति में उसकी तबीयत और अधिक बिगड़ रही थी।
कुछ देर पहले वह यह सोचकर बाहर गया था कि कब तक लेटा रहेगा। काम करने से मन दूसरी तरफ लगेगा। वह कुछ अच्छा महसूस करेगा। उसने काम में मन लगाने की कोशिश की पर उसका मन नहीं लग रहा था। वह एकबार फिर अपने कमरे में आकर लेट गया था। अभी पाँच मिनट ही बीते होंगे कि रामदीन ने आकर कहा,
"भइया अखबार वाली दीदी आई हैं।"
सूरज का मन किसी से मिलने का नहीं था। उसने कहा कि जाकर कह दो तबीयत ठीक नहीं है। रामदीन जाने को मुड़ा तो अदीबा पीछे ही खड़ी थी। उसने दरवाज़े से कहा,
"क्या हो गया आपको ?"
आवाज़ सुनकर सूरज उठकर बैठ गया। अदीबा अंदर आ गई। सूरज ने उसे बैठने का इशारा किया। अदीबा के बैठने पर बोला,
"इधर कई दिनों से तबीयत ठीक नहीं रहती है।"
"आपका कर्मचारी चेतन बेरहमी से मारा गया। उसका दुख तो होगा ही। वैसे पुष्कर और उसकी हत्या एक तरह से हुई थी।"
रामदीन अभी भी वहीं खड़ा था। सूरज ने कहा,
"तुम जाकर अपना काम देखो।"
रामदीन चला गया। सूरज ने अदीबा से कहा,
"हम ज्यादा बात करने की स्थिति में नहीं हैं।"
अदीबा समझ गई थी कि वह बात नहीं करना चाहता है। लेकिन वह चाहती थी कि यहाँ तक आई है तो कुछ लेकर ही जाए। उसने कहा,
"मैंने जब चेतन की हत्या के बारे में सुना तो दुख हुआ। आप तो उसके साथ रहते थे। समझ सकती हूँ आपको धक्का लगा होगा।"
यह कहकर उसने सूरज की तरफ देखा। सूरज ने कुछ नहीं कहा। उसने बात आगे बढ़ाई,
"अजीब सी बात है कि दोनों हत्याओं का तरीका एक जैसा था। आपको क्या लगता है कि इसका क्या कारण हो सकता है ?"
सूरज ने अभी भी कुछ नहीं कहा। पर अदीबा की पत्रकार वाली निगाहें उसके चेहरे के भावों को पढ़ रही थीं। उनके हिसाब से सूरज कुछ कहना चाहता था पर कह नहीं रहा था। अदीबा जानती थी कि कुरेदने से कुछ ना कुछ बाहर आएगा। उसने कहा,
"जिस दिन पुष्कर की हत्या हुई उस दिन चेतन ने ऐसा कुछ देखा या सुना था जिसके कारण उसकी भी हत्या कर दी गई ?"
सूरज के चेहरे पर उसके अंदर का संघर्ष स्पष्ट था। लेकिन वह कुछ बोला नहीं। अदीबा ने कहा,
"सूरज जी मुझे लगता है कि कुछ है पर आप बता नहीं रहे हैं। बताइए ना.....शायद आपके मन में जो है उसके कारण ही आप बीमार महसूस कर रहे हों।"
सूरज कुछ सोचकर बोला,
"आप पुलिस से जाकर पूछिए। वह अच्छी तरह बता लेंगे।"
"पुलिस तो वह बताएगी जो उनकी तहकीकात में सामने आया है। मैं तो वह जानना चाहती हूँ जो आपकी परेशानी का कारण है।"
सूरज अभी भी चुप था। पर ऐसा लग रहा था कि वह बताने को तैयार है। अदीबा ने कहा,
"बता दीजिए.....आपका मन हल्का हो जाएगा।"
सूरज ने अदीबा की तरफ देखकर कहा,
"हम जो बताएंगे वह आप जैसे पढ़े लिखे लोग मानेंगे नहीं। पुलिस भी हमारी बात को बकवास कह रही थी।"
"आप बताइए तो सही। मैं आपकी बात को‌ अच्छी तरह से सुनूँगी और समझूँगी भी।"
सूरज ने उसे अपने मन का डर बताया। साथ में चेतन ने जो सुना था वह भी बताया। अदीबा के हाथ एक अच्छी खबर लगी थी। पुलिस को एक आदमी की तलाश थी जो उस दिन दिशा और पुष्कर को घूर रहा था। उसने किसी से फोन पर हत्या के बारे में बात भी की थी। अदीबा का काम तो हो गया था। पर वह सूरज को समझाना चाहती थी कि उसका डर गलत है।
उसने सूरज को उस ठग तांत्रिक के बारे में बताया जिसने पुष्कर और दिशा के लिए ताबीज़ बनाए थे। उसने सूरज से कहा,
"आप अपने मन से इस वहम को निकाल दीजिए कि आपको कुछ होगा। पहले की तरह अपना काम कीजिए। पुलिस जल्दी ही दोनों हत्याओं के बारे में पता कर लेगी।"
सूरज को समझाने के बाद अदीबा वहाँ से चली गई। सूरज को उसकी बात पर भरोसा नहीं हो रहा था। वह अभी भी परेशान था।