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आधी रात का समय था। विशाल धीरे धीरे सीढ़ियां उतरते हुए आंगन में आया। एकबार चारों तरफ देखा। पूरी तरह सन्नाटा था। उसने अपनी जैकेट का हुड ऊपर किया। दरवाज़ा खोला। बाहर जाकर धीरे से भेड़ दिया। एकबार फिर इधर उधर देखा और चल दिया।
शाम को उसकी कौशल से बात हुई थी। वह उससे मिलना चाहता था। विशाल ने उससे कहा था कि रात बारह बजे के बाद पुराने शिव मंदिर के पीछे आकर मिले। फरवरी शुरू हो गई थी पर आज ठंडी हवा चल रही थी। विशाल ने चलते हुए अपनी जैकेट की चेन ऊपर तक चढ़ा ली। वह चलते हुए बार बार इधर उधर देख रहा था। इंस्पेक्टर हरीश ने जबसे उसे कौशल की तस्वीर दिखाई थी वह डर गया था। हालांकि उस समय उसने अपनी पूरी कोशिश की थी कि मन के भाव को चेहरे पर ना झलकने दे। फिर भी उसे डर था कि इंस्पेक्टर हरीश उसका पीछा ना कर रहा हो।
विशाल पुराने शिव मंदिर के पीछे पहुँचा। वहाँ एक टीनशेड कमरा था। विशाल ने उस कमरे के दरवाज़े पर दस्तक दी। दरवाज़ा फौरन खुल गया। विशाल अंदर चला गया। उसने कौशल से कहा,
"तुम यहाँ क्यों आए हो ?"
कौशल ने गुस्से से कहा,
"तो क्या करता..... तुमने पूरे पैसे नहीं दिए थे। वह दे दो। मैं भी आराम से पंजाब चला जाऊँ।"
"तुमसे कहा तो था कि जब पैसों का इंतज़ाम हो जाएगा हम बता देंगे। तुम आकर ले लेना।"
"हाँ.... हर बार मैसेज में यही लिखते हो। पर कब तक इंतज़ार करूँ। इतने दिनों से मैं मेरठ में रह रहा हूँ। पर अब मुझे पैसे चाहिए जिससे मैं पंजाब जाकर अपना काम कर सकूँ।"
कौशल ने विशाल की तरफ उंगली करके कहा,
"तुम कह रहे थे कि पुलिस के पास मेरी तस्वीर है। अगर मैं पकड़ा गया तो तुम भी मुसीबत में आ जाओगे।"
उसकी इस हरकत पर विशाल ने गुस्से से कहा,
"तुम हमें धमकी दे रहे हो। वैसे तुमने जितना काम किया था उसके हिसाब से बहुत पैसा मिल गया है तुम्हें। फिर भी हम मना नहीं कर रहे हैं। कोशिश कर रहे हैं जब इंतज़ाम हो जाएगा तुम्हें बता देंगे।"
"मैं कब तक बैठा रहूँ। पैसों के लिए ही तो तुम्हारे काम के लिए हाँ कहा था। अब मैं बीच में फंसा हूँ। कब तक मेरठ में दोस्त के साथ रहूँ। पैसे मिलें तो मैं पंजाब जाऊँ और अपना काम करूँ। पुलिस की मुसीबत और बढ़ गई है।"
विशाल ने कुछ सोचकर कहा,
"तुम फिलहाल मेरठ लौट जाओ। हम अगले हफ्ते तक पैसों का इंतज़ाम कर लेंगे। तब तुम्हें फोन करेंगे। तुम्हें रकम कैश में ही चाहिए। यहाँ मत आना। हम तुम्हें जो जगह बताएंगे वहीं आकर पैसे ले जाना।"
कौशल ने अविश्वास भरी नज़रों से विशाल की तरफ देखा। विशाल ने कहा,
"भरोसा करो.....अगले हफ्ते तक हम खुद आकर पैसे दे जाएंगे।"
कौशल ने कहा,
"मैं दो दिन यहाँ रहने वाला हूँ। तुम पैसों का इंतज़ाम कर दो। फिर झंझट खत्म।"
कौशल ने जिस तरह से यह बात कही थी उससे स्पष्ट था कि वह अपनी बात पर अड़ा हुआ है। विशाल ने समझाने की कोशिश की। उसने कौशल से कहा कि उसका यहाँ रहना ठीक नहीं है। लेकिन कौशल ने कहा कि वह सावधान रहेगा। पर जाएगा तो अपना पैसा लेकर ही। जब वह नहीं माना तो विशाल ने कहा कि वह कोशिश करता है कि पैसों का इंतज़ाम करके उसे दे दे।
बद्रीनाथ की आँख खुली तो उन्होंने उमा को बिस्तर पर बैठे हुए पाया। उमा डरी हुई लग रही थीं। उन्हें इस तरह बैठे देखकर बद्रीनाथ ने कहा,
"क्या बात है उमा ? सोई नहीं।"
उमा ने उनकी तरफ देखा। उनकी आँखों में डर दिखाई पड़ रहा था। बद्रीनाथ ने कहा,
"उमा बात क्या है बताओ...."
उमा ने कहा,
"माया मेरे सपने में आई थी। कह रही थी कि अब किसी को नहीं छोड़ेगी।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"तुम कह रही हो ना कि सपना देखा था। फिर डरने की क्या बात है ? बेवजह का वहम मत पालो।"
उमा ने जैसे उनकी बात सुनी ही नहीं थी। वह बोल रही थीं,
"तांत्रिक तो ठग निकला। अब क्या होगा ? उस माया से मुक्ति कैसे मिलेगी ?"
बद्रीनाथ भी बहुत देर तक इस विषय में सोचते रहे थे। शुरुआत में उन्हें भी इस बात का डर लगा था। पर बहुत सोचने पर वह कुछ शांत हुए थे। उन्होंने कहा,
"उमा हमें लग रहा है कि अब हमको माया से डरने की ज़रूरत नहीं है।"
यह सुनकर उमा को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने कहा,
"आप यह क्या कह रहे हैं ? डरने की ज़रूरत क्यों नहीं है ? अब तो कोई उसे बस में करने वाला भी नहीं है।"
बद्रीनाथ उठकर बैठ गए। उमा की तरफ देखकर बोले,
"पहले भी उसे रोकने वाला कौन था ? जिसे हम तांत्रिक समझ रहे थे वह तो ठग था। उसके सारे उपाय बेकार थे। फिर माया को किसने रोका होगा ?"
बद्रीनाथ की बात सुनकर उमा सोच में पड़ गईं। उन्होंने प्रश्न भरी नज़रों से उनकी तरफ देखा। बद्रीनाथ ने समझाते हुए कहा,
"उमा......माया को जो करना था वह उसने कर लिया। उसने श्राप दिया था कि इस घर में कभी खुशियां नहीं आएंगी। पहले उसने कुसुम और मोहित को हमसे छीना। उसके बाद जब संभावना हुई कि पुष्कर के ज़रिए इस घर में खुशियां आ सकती हैं तो उसे भी ले गई। अब उसने इस घर में खुशियां आने के सारे रास्ते बंद कर दिए हैं। अब उसके लिए कुछ नहीं बचा है।"
उमा को अभी भी बद्रीनाथ की बात पर यकीन नहीं था। उन्होंने कहा,
"भले ही तांत्रिक ठग था। लेकिन माया तो सच है। वह अभी भी हमारे पीछे पड़ी है। सोनम और मीनू ने उस दिन उसकी उपस्थिति को महसूस किया था। उसी रात हमने भी जो महसूस किया वह झूठ नहीं था। वह अभी भी इस घर के आसपास मंडरा रही है।"
उमा ने अपना तर्क दिया था। बद्रीनाथ सोच में पड़ गए। उन्होंने कुछ सोचकर कहा,
"उमा.... हमको अब ऐसा लग रहा है कि माया से डरने की ज़रूरत नहीं रह गई है। बच्चियों को और तुम्हें जो लगा उसे हम नकार नहीं रहे हैं। लेकिन अगर उसे कुछ करना होता तो उसे रोकने वाला कौन था। सोचकर देखो अगर उसे हम सबको मारना होता तो कुसुम और मोहित के साथ ही साथ सबको मार देती। तभी उसका बदला पूरा हो जाता। हम फिर कह रहे हैं। वह हमें मारना नहीं चाहती थी। सिर्फ दुख देना चाहती थी। वह काम तो उसने कर दिया। हमारी ज़िंदगी में अब दुख के अलावा बचा क्या है ?"
उमा उनकी बात पर विचार कर रही थीं। बद्रीनाथ महसूस कर रहे थे कि उनकी बात का कुछ असर हुआ है। उन्होंने आगे कहा,
"उमा बहुत सारी बातें हमारे बस में नहीं होती हैं। उन्हें ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। हमें ऐसा ही करना होगा। ईश्वर पर आस्था रखो। मन से डर को निकाल दो।"
उन्होंने उमा को लिटाया उसके बाद उनका माथा सहलाने लगे। उमा दिनभर के काम से थकी हुई थीं। अपने पति की बातों से उनके मन को कुछ हद तक तसल्ली पहुँची थी। वह सो गईं। उमा के सोने के बाद बद्रीनाथ को भी नींद आ रही थी। वह लेटने जा रहे थे कि उन्हें पेशाब करने जाने की आवश्यकता महसूस हुई। वह वॉशरूम गए। जब वापस अपने कमरे में जा रहे थे तो उन्हें घर का दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई। उन्होंने देखा कि विशाल बाहर से अंदर आ रहा है। वह विशाल के पास गए। उन्हें देखकर विशाल सकपका गया। बद्रीनाथ ने उससे पूछा,
"तुम इतनी रात में बाहर क्या करने गए थे ?"
विशाल ने बहाना बनाते हुए कहा,
"नींद नहीं आ रही थी इसलिए बाहर टहलने चले गए थे।"
बद्रीनाथ को कुछ अजीब लगा। उन्होंने कहा,
"अभी ठंड गई नहीं है। आज तो ठंडी हवा चल रही है। ऐसे में बाहर घूमना ठीक नहीं है।"
"पापा जैकेट पहनी हुई है।"
"तुम दरवाज़ा खुला छोड़कर बाहर घूमने चले गए थे। कोई पीछे से घर में घुस जाता तो। इन सब बातों का खयाल रखना चाहिए।"
विशाल ने कोई जवाब नहीं दिया। वह तेज़ी से सीढ़ियां चढ़कर ऊपर चला गया। बद्रीनाथ ने दरवाज़ा अच्छी तरह से बंद किया। उसके बाद अपने कमरे में आकर लेट गए। उन्हें माया का डर नहीं रह गया था। लेकिन बीते कुछ समय से विशाल की हरकतों को देखकर वह बहुत परेशान थे। आज जिस तरह वह इंस्पेक्टर हरीश का नाम लेकर खीझ रहा था वह उन्हें सही नहीं लग रहा था। उन्होंने सोचा कि वह विशाल से बात करेंगे।
ताबीज़ वाली बात से बहुत सी अफवाहें फैल गई थीं। उन्हें शांत करने के इरादे से इंस्पेक्टर हरीश ने अदीबा को पुलिस स्टेशन बुलाकर एक रिपोर्ट सौंपते हुए कहा,
"इस रिपोर्ट को अपने अखबार में छाप दो। इससे बेकार की बातें बंद हो जाएंगी।"
अदीबा ने उस रिपोर्ट को ध्यान से पढ़ा। उसे पढ़ने के बाद बोली,
"ताबीज़ पुष्कर के घरवालों ने पुष्कर और दिशा की हिफाज़त के लिए पहनाए थे।"
"हाँ.... रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि ताबीज़ देने वाला तांत्रिक एक फरार अपराधी था जो लोगों को ठग रहा था। तंत्र मंत्र सब बेकार की बातें हैं। इनका पुष्कर की हत्या से कोई लेना देना नहीं है।"
अदीबा किसी सोच में पड़ी थी। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"तुमने ताबीज़ वाली बात कहकर एक बवाल पैदा किया था। अब इस रिपोर्ट को छाप कर उसे शांत करो।"
अदीबा ने आश्वासन दिया कि वह ऐसा करने की पूरी कोशिश करेगी। यह कहकर वह पुलिस स्टेशन से बाहर चली गई।