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वो माया है.... - 9



(9)

दिशा ने ध्यान से सुना तो उसे लगा कि नीचे कोई पूजा चल रही है। उसे आश्चर्य हुआ कि इतनी रात गए कौन सी पूजा हो रही है। पुष्कर का ध्यान भी आती हुई आवाज़ों की तरफ था। उसने ध्यान से सुना। कुछ चीज़ें उसकी समझ में आईं। उसके बचपन में पापा हर मंगलवार की शाम को सुंदरकाण्ड का पाठ करते थे। तब उसे और विशाल को भी पास बैठा लेते थे। वह सोच रहा था कि अपने डर के कारण सब लोग पाठ कर रहे हैं। आखिर कब तक यह लोग इस तरह बेवजह का डर पाल कर रखेंगे। दिशा को यह तो समझ आ गया था कि कोई पाठ हो रहा है। पर किस चीज़ का और क्यों उसे नहीं मालूम था। वह उठकर बैठ गई। उसने पुष्कर को हिलाकर पूछा,
"अब यह सब क्या हो रहा है ?"
पुष्कर भी उठकर बैठ गया। उसने कहा,
"बजरंगबली की पूजा कर रहे हैं। सुंदरकाण्ड का पाठ है।"
दिशा ने कुछ सोचकर कहा,
"बजरंगबली की पूजा.... मतलब किसी भूत प्रेत का डर है।"
पुष्कर ने टालने के लिए कहा,
"सुंदरकाण्ड का पाठ लोग मन की शांति और बल पाने के लिए करते हैं।"
"पर इतनी रात को तुम्हारे घर वाले डर से छुटकारा पाने के लिए ही यह पाठ कर रहे हैं। सुबह से ही सुरक्षा की बात सुन रही हूँ। ताबीज़ बांधने को कहा जा रहा था। अब समझ आ रहा है कि इन्हें किसी भूत प्रेत का डर है।"
उसने पुष्कर की तरफ देखकर कहा,
"इतनी देर से लेटे हुए मेरे दिमाग में चल रहा था कि कोई बात है जो मुझे बताई नहीं जा रही है। तुम्हें पता है पर तुम भी नहीं बता रहे हो‌। दूसरों की छोड़ो पर तुमने मुझसे शादी की है। तुम भी मुझसे बातें छुपाओगे।"
दिशा की बात से स्पष्ट था कि वह पुष्कर से नाराज़ है। पुष्कर को बात अच्छी नहीं लगी। उसने कहा,
"दिशा तुम्हारी यह शिकायत ठीक नहीं है।"
"क्यों ? मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा है। बिना किसी बात के तो सब डर नहीं रहे हैं। तुम्हें भी वह बात पता है। पर तुमने बताया तो नहीं। फिर क्या मुझे शिकायत भी नहीं करनी चाहिए।"
पुष्कर परेशान था। शादी का तीसरा दिन था। उन दोनों के बीच प्यार भरी बातें होने की जगह तकरार हो रही थी। उसने कहा,
"दिशा मैंने तुमसे छुपाया नहीं है। पर बताने वाली बात भी तो हो। तुम सही कह रही हो। इन लोगों को भूत प्रेत का डर है। बेवजह का वहम। अब ना तुम इन सब पर विश्वास करती हो और ना मैं। मैंने तो सोचा था कि यहाँ शादी की खुशियां होंगी। मैं और तुम कुछ दिन यहाँ बिताकर चले जाएंगे। इन लोगों को जो वहम पालना है पाले रहें। लेकिन यहाँ तो यह सब बखेड़ा खड़ा हो गया।"
दिशा सब सुनकर सोच में पड़ गई‌। नीचे से पाठ की आवाज़ें आ रही थीं। दिशा के मन में यह जानने की इच्छा तीव्र हो गई थी कि बात क्या है। उसने कहा,
"पुष्कर यह ठीक है कि हम दोनों इन अंधविश्वासों पर भरोसा नहीं करते हैं। फिर भी एक बात जानने की उत्सुकता है कि तुम्हारे घरवालों के साथ ऐसा क्या हुआ जो वह भूत प्रेत से डरते हैं। भले ही भूत प्रेत नहीं होते हैं पर उनके साथ ऐसा कुछ तो हुआ होगा जिसने उनके मन में वहम डाल दिया।"
"भवानीगंज एक कस्बा है। गांव कस्बों में लोग ऐसी बातें मानते हैं। उनका कोई आधार नहीं होता है। फिर हमारे घर में तो बुआ जी भी हैं। तिल का ताड़ बनाने में माहिर हैं।"
दिशा को पक्का यकीन हो गया था कि इस घर में कोई हादसा हुआ है। उसे इतना पता था कि विशाल की पत्नी और बच्चे की अचानक मौत हो गई थी। उसके बाद से विशाल सब चीज़ों से कट गया था। बारात में वह गया था। पर फेरे देखने की जगह वह आराम करने चला गया था। बात क्या थी उसे कुछ मालूम नहीं था। पर अब उसके मन में आ रहा था कि इस सबके पीछे विशाल की पत्नी और बच्चे की मौत ही है। बिना सही कारण जाने उसे चैन नहीं पड़ने वाला था। उसने कहा,
"पुष्कर कोई तिल तो रहा होगा जिसका बुआ जी ने ताड़ बना दिया। देखो वह चाहे कोई भी बात हो मुझे जानना है। मुझे ऐसा लगता है कि जो है उसका संबंध विशाल भइया की पत्नी और बच्चे से है। अब तुम इधर उधर की बातें किए बिना सब ठीक से बताओ। मेरे लिए जानना ज़रूरी है।"
अभी तक पुष्कर इन सब बातों से दिशा को दूर रखना चाहता था। उसका सोचना था कि कुछ ही दिन उसे और दिशा को यहाँ काटने हैं। उसके बाद दोनों शहर में अपने हिसाब से रहेंगे। पहले ही वह यहाँ कम आता था। अब और भी नहीं आएगा। कभी एक दो दिन के लिए आना भी पड़ा भी तो यहाँ की बातों से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। उसने दिशा को बस इतना बताया था कि उसके बड़ा भाई विशाल की पत्नी और बच्चे की अचानक मौत हो गई थी। इस बात से विशाल को बहुत सदमा पहुँचा था। वह उदास रहने लगा। पहले ठेकेदारी का काम करता था। वह भी छोड़ दिया। अब बस थोड़ी सी खेती है उसे देख लेता है‌।
दिशा सारी बात जानना चाहती थी। पुष्कर भी अब टाल नहीं सकता था। वह बिस्तर से उतर कर खड़ा हो गया‌। उसने कहा,
"तुम जानना चाहती हो तो बता देता हूँ। पर ज़रा वॉशरूम हो आऊँ।"
पुष्कर वॉशरूम चला गया। दिशा कहानी सुनने के लिए बिस्तर पर पालथी मारकर बैठ गई। उसने अपने पैरों पर कंबल डाल लिया। नीचे से पाठ की आवाज़ें आ रही थीं।
वॉशरूम से आने के बाद पुष्कर कुर्सी लेकर उस पर बैठ गया। उसने कहा,
"मेरे और विशाल भइया के बीच दस साल का अंतर है। भइया की शादी हुई थी तब मैं छोटा था। मैं बहुत खुश था कि बारात में जाऊँगा। भाभी को विदा करा कर लाऊँगा। घर में सभी बहुत खुश थे। एक कारण तो यह था कि दूसरी पीढ़ी की यह पहली शादी थी। दूसरा भइया की शादी एक पैसे वाले घर में हो रही थी। कुसुम भाभी के पापा का बिज़नेस था। उन्होंने भइया को भी अपने साथ व्यापार में लगा लेने का वादा किया था।"
पुष्कर रुककर कुछ सोचने लगा। जैसे बीते दिनों को याद कर रहा हो। उसने कहा,
"मुझे याद है भइया की शादी में बरातियों का बड़ा अच्छा स्वागत हुआ था। बारात को ठहराने की जगह बड़ी और खुली हुई थी। सभी बरातियों का ध्यान रखा जा रहा था। सबने खूब तारीफ की थी। उस छोटी उम्र में जब सब मुझे दूल्हे का भाई होने के कारण सम्मान दे रहे थे तब मैं खुद को किसी राजकुमार की तरह समझ रहा था।"
उस समय को याद करते हुए पुष्कर के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। दिशा को भी अच्छा लगा। पुष्कर ने आगे कहा,
"तुम्हारी तरह कुसुम भाभी भी इस घर में विदा होकर आई थीं। मम्मी ने उनका भी स्वागत किया था। भाभी के मायके की हैसियत हमारे घर से बड़ी थी। वह अपने माँ बाद की इकलौती संतान थीं। पर उन्होंने कभी इस बात का कोई रौब नहीं दिखाया। स्वभाव की बहुत अच्छी थीं। मुझे बहुत प्यार करती थीं। जैसा तय हुआ था भाभी के पापा ने भइया को अपने बिज़नेस में लगा लिया। उनका ईंट का भट्टा था। साथ में कंस्ट्रक्शन मैटीरियल का भी काम था। भइया ने उनका बिज़नेस तो संभाला ही। साथ में ठेकेदारी का काम करने लगे। घर में पैसा आने लगा। मोहित का जन्म हुआ तो ढेर सारी खुशियां भी आईं।"
अपने भतीजे मोहित को याद करके पुष्कर भावुक हो गया। उसकी आँखें नम हो गईं। उसने कहा,
"दिशा मोहित के आने से मैं अपने आप को बड़ा समझने लगा था। क्योंकी मैं चाचा बन गया था। मोहित ऐसा था कि सिर्फ एक मुस्कान से किसी का भी मन मोह ले। घर में सब लोग उसके ही पीछे लगे रहते थे। बुआ जो अक्सर किसी ना किसी बात से नाराज़ ही रहती थीं वह भी उसे देखकर खुश हो जाती थीं। घरवाले ही नहीं मोहल्ले वाले भी उसकी बातें सुनकर खुश होते थे।"
पुष्कर एकबार फिर रुका। जो कुछ पुष्कर ने मोहित के बारे में बताया था उसे सुनकर दिशा कल्पना कर रही थी कि वह कितना चंचल और मोहक बच्चा रहा होगा। नीचे से आती आवाज़ें बता रही थीं कि पाठ अभी चल रहा है। दिशा ने कहा,
"तुम मोहित को बहुत प्यार करते थे ?"
यह सवाल सुनकर पुष्कर जैसे किसी झरोखे से अतीत में झांकने लगा। उसने कहा,
"सबसे अधिक मैं ही उसके साथ खेलता था। उसका पहला दोस्त मैं ही था। मुझसे बहुत सारी बातें करता था। सुबह मेरे स्कूल जाते वक्त दरवाज़े पर खड़े होकर मुझे विदा करता था। दोपहर को जब लौटकर आता था तो दरवाज़े पर खड़ा होता था। कहता था कि पहले मुझे साइकिल में बैठाकर घुमाओ तब अंदर आना। उसे साइकिल पर बैठाकर मैं दुकान तक ले जाता था। वहाँ उसे टॉफी दिलवा कर तब घर आता था।"
दिशा गौर से पुष्कर के चेहरे को देख रही थी। मोहित की बात याद करते हुए वह वैसा ही लग रहा था जैसे कि कोई पिता अपने बच्चे के बचपन को याद करता है। दिशा और पुष्कर कई सालों से एक दूसरे को जानते थे। शादी से पहले एक साथ रहने भी लगे थे। पर पुष्कर के इस रूप से वह अनजान थी।

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