(2)
दोपहर को खाने के बाद आंगन में नई बहू की मुंह दिखाई की रस्म हुई। मोहल्ले पड़ोस और रिश्तेदारी वाली औरतें दिशा का चेहरा देखकर उसे कुछ ना कुछ भेंट दे रही थीं। वह सभी भेंट दिशा के हाथ से सीधा किशोरी के हाथ में जा रही थीं। वह मिली हुई हर भेंट का हिसाब एक डायरी में लिख रही थीं।
दिशा की मम्मी ने उसे ऐसी रस्म के बारे में बताया था। फिर भी उसे कुछ अजीब लग रहा था। वह चाह रही थी कि जल्द से जल्द यह सब खत्म हो तो वह आराम कर सके। जब सारी औरतों ने मुंह दिखाई कर ली तो चाय नाश्ता शुरू हुआ। उसके बाद सभी औरतें अपने अपने घर चली गईं। किशोरी के कहने पर दिशा को ऊपर वाले कमरे में भेज दिया गया।
नवंबर का अंत चल रहा था। शाम को अंधेरा जल्दी हो जाता था। अंधेरा होते ही भवानीगंज के लोग अपने अपने घर वापस जाने लगते थे। सात बजते बजते कस्बे में एक अजीब सी शांति छा गई थी। ऊपर वाले कमरे में आकर दिशा ने सबसे पहले कपड़े बदले। उसके पास साड़ी पहनने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। उसने अपने सामान से एक हल्की सी साड़ी निकाल कर पहन ली थी। अपनी दोनों ननदों को उसने यह कहकर नीचे भेज दिया था कि जब ज़रूरत होगी वह बुला लेगी।
कपड़े बदलने के बाद उसे अच्छा लग रहा था। उसने कमरे पर नज़र डाली। कमरा बड़ा था। कमरे में एक अलमारी और पलंग के अलावा दो प्लास्टिक कुर्सियां और एक टेबल थी। इसलिए वह और बड़ा लग रहा था। दिशा कमरे से निकल कर बाहर छत पर आई। दूर दूर तक छुटपुट रौशनी के अलावा अंधेरा था। हल्की हल्की ठंड पड़ रही थी। कुछ देर छत पर टहलने के बाद वह अंदर चली गई। उसने दरवाज़ा बंद कर लिया। अपना फोन लेकर वह बिस्तर पर बैठ गई।
दोपहर को जब उसकी मम्मी ने फोन किया था तब उसने उन्हें बताया था कि वह एक छोटे से कमरे में दो लड़कियों के साथ अकेली है। उसकी मम्मी यह सुनकर परेशान हो गई थीं। उसने सोचा कि मम्मी को फोन करके बता दे कि अब सब ठीक है। उन्हें तसल्ली हो इसके लिए उसने उन्हें वीडियो कॉल की। उसकी मम्मी ने उसकी शक्ल देखी तो रोने लगीं। उसने कहा,
"क्या हुआ मम्मी ? रो क्यों रही हैं ? दोपहर को थोड़ी परेशानी हुई थी। पर अब सब ठीक है।"
उसकी मम्मी ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा,
"उस बात के लिए नहीं रो रही हूँ। नई जगह थोड़ी बहुत परेशानी तो होती है। बस तुम्हारी शक्ल देखी तो रोना आ गया।"
"क्यों मम्मी ?"
"बेटी विदा करने के बाद हर माँ को रोना आता है। आज घर बहुत सूना सूना लग रहा है।"
अपनी मम्मी की बात सुनकर दिशा भी भावुक हो गईं। उसकी आँखों में आंसू देखकर उसकी मम्मी ने कहा,
"अब तुम मत रो....."
"क्यों ना रोऊँ ? मुझे भी आपकी याद आ रही है।"
यह कहकर दिशा और ज़ोर से रोने लगी। उसकी मम्मी ने कहा,
"ऐसा मत करो। नहीं तो मेरा रहना मुश्किल हो जाएगा।"
दिशा ने अपने आंसू पोंछ लिए। उसकी मम्मी ने कहा,
"बेटा कोई और परेशानी वाली बात तो नहीं है ना। अगर कुछ हो तो मुझे बताना।"
अपनी मम्मी को तसल्ली देने के लिए दिशा मुस्कुरा दी। उसने कहा,
"कोई बात नहीं है मम्मी। अगर कुछ होगा भी तो आपने जिस तरह मुझे पाला है उससे निपटने की हिम्मत मुझमें है। फिर भी अगर आपकी ज़रूरत पड़ेगी तो आपको बताऊँगी। फिलहाल सब ठीक है। दोपहर को थोड़ा परेशान हो गई थी। पुष्कर भी पास नहीं था। वह बाहर बैठा था।"
"बेटा तुम्हारी ससुराल छोटे कस्बे में है। ऐसी जगहों के अपने नियम होते हैं। उनके साथ थोड़ा एडजस्ट करना पड़ेगा। लेकिन इसके अलावा कोई भी परेशानी हो तो पुष्कर से बात करना और मुझे भी बताना।"
"ठीक है मम्मी। आप परेशान मत होइए। आराम कीजिए। शादी में बहुत भागदौड़ की आपने। दो दिन बाद से ऑफिस भी जाना है। मैं कल फिर फोन करूँगी।"
दिशा ने फोन काट दिया। वह बिस्तर पर लेट गई। लेटे हुए उसे पुष्कर की याद आई। दोपहर को वह जिस तरह चोरी छिपे उससे मिलने आया था उसे बहुत अजीब लगा था। वह और पुष्कर पिछले पाँच सालों से एक दूसरे को जानते थे। पिछले तीन सालों से उनका प्रेम चल रहा था। इस बीच दोनों खुलकर एक दूसरे से मिलते थे। पिछले साल इन्हीं दिनों एकसाथ घूमने गए थे। एक ही कमरे में ठहरे थे। उनके बीच कोई फासला नहीं रहा था। ऐसे में शादी के बाद पुष्कर का उससे इस तरह मिलने आना उसे अजीब लगा था।
उसके पापा नहीं थे। मम्मी ने उसे पाला था। अकेले सबकुछ करते हुए उन्हें समझ आ गया था कि लड़की के पालन में उसे सिर्फ सुरक्षा ही नहीं देनी है। वह हिम्मत भी देनी है कि आगे चलकर वह अपने दम पर मुश्किलों का सामना कर सके। जो गलती उनके माता पिता ने की थी उसे दोहराना नहीं चाहती थीं। इसलिए दिशा को सहूलियतों के साथ साथ हिम्मत भी दी थी।
अपनी पढ़ाई पूरी कर वह दिल्ली में अकेले रहकर नौकरी कर रही थी। दिल्ली में ही उसकी मुलाकात पुष्कर से हुई। दोनों में दोस्ती हो गई। दोस्ती प्यार में बदल गई। दोनों ने उसके बाद भी जल्दी ना करते हुए समय लिया। उसके बाद शादी का फैसला किया।
दिशा और पुष्कर का पारिवारिक माहौल एकदम अलग था। पुष्कर की मम्मी अपनी ननद और पति के आदेश का ही पालन करती थीं। अपनी तरफ से कोई निर्णय नहीं लेती थीं। दिशा एक स्वावलंबी लड़की थी। अपने निर्णय खुद लेती थी। इसलिए पुष्कर के घर का माहौल जानने के बाद उसने कहा था कि किसी भी कीमत पर वह अपनी आत्मनिर्भरता नहीं छोड़ेगी। पुष्कर ने उससे कहा था कि वह खुद उसे इसलिए पसंद करता है क्योंकी उसमें अपने फैसले लेने की क्षमता है। इसलिए वह खुद नहीं चाहेगा कि वह अपने आप को बदले। दिशा को पुष्कर पर पूरा भरोसा था। इसलिए कुछ दिनों के लिए वह थोड़ा एडजस्ट करने को भी तैयार हो गई थी।
दोपहर के खाने के बाद बहुत से मेहमान विदा हो गए थे। अब गिने चुने बहुत खास लोग ही बचे थे। बद्रीनाथ अपने छोटे भाई केदारनाथ के साथ बैठक में थे। किशोरी भी उनके साथ ही थीं। केदारनाथ ने कहा,
"भइया सब अच्छी तरह से निपट गया। आप लोग बेवजह डर रहे थे।"
बद्रीनाथ कुछ नहीं बोले। पर उनके चेहरे से स्पष्ट था कि उन्हें किसी बात की चिंता है। किशोरी उनकी चिंता समझ कर बोलीं,
"बद्री चिंता मत करो। बाबा जी से बात हो गई है। आज रात वह घर के चारों तरफ सुरक्षा घेरा बनवा देंगे।"
केदारनाथ ने कुछ सोचकर कहा,
"जिज्जी आपको लगता है कि कोई अनहोनी होगी। इतने सालों से तो कुछ नहीं हुआ।"
किशोरी ने अपने छोटे भाई को घूरकर देखा। उनकी केदारनाथ से कम ही बनती थी। उन्होंने कहा,
"इतने सालों से तो इस घर में कोई शुभ कार्य भी नहीं हुआ था। फिर अनहोनी हो जाने के बाद कुछ करना तो मूर्खता है। अच्छा है कि पहले ही कुछ कर लें।"
केदारनाथ चुप हो गए। उसी समय सोनम ने आकर कहा,
"पापा मम्मी कह रही हैं कि घर में अंधेरा होगा। आप जाकर बत्ती जला दीजिए। खाना खाने आ जाइएगा।"
केदारनाथ अपने परिवार के साथ कुछ ही दूर अलग घर में रहते थे। वह उठकर चले गए। किशोरी बड़बड़ाईं,
"बीवी की बात सर झुकाकर मान लेता है।"
यह कहकर वह अंदर चली गईं।
पुष्कर बाहर दालान में बैठा था। जबसे उसे पता चला था कि दिशा ऊपर वाले कमरे में चली गई है उसे थोड़ी निश्चिंतता हो गई थी। अब वह उस पल के इंतज़ार में था जब वह दिशा के पास जा सकेगा। लेकिन उसमें अभी वक्त था। अभी तो रात का खाना होना था। उसके बाद ही कुछ हो सकता था। विशाल उसके पास ही बैठा था। उसने कहा,
"भइया रात के खाने की तैयारी हो गई ?"
उसके सवाल पर विशाल ने उसे ध्यान से देखा। विशाल ने पूछा,
"भूख लगी है क्या ?"
"नहीं ऐसे ही पूछ रहा था।"
"ऐसे ही क्यों पूछ रहे थे ? खाना बनवाने की ज़िम्मेदारी तुम्हारे ऊपर तो है नहीं।"
पुष्कर चुप हो गया। विशाल ने मुस्कुरा कर कहा,
"बहुत उतावले हो रहे हो। ऐसा क्या है। तुम दोनों तो पहले से ही एक दूसरे को जानते हो। कोई नई जान पहचान तो बनानी नहीं है।"
पुष्कर भी मुस्कुरा दिया। उसने विशाल से कहा,
"आपकी शादी में तो मैं बारह साल का था। ध्यान नहीं दिया। क्या आप भी भाभी से मिलने के लिए उतावले हो रहे थे।"
पुष्कर की बात सुनकर विशाल अचानक उठकर खड़ा हो गया। उससे बोला,
"हम तालाब तक टहलने जा रहे है। कोई पूछे तो बता देना।"
विशाल यह कहकर बिना पुष्कर की तरफ देखे चला गया। पुष्कर पछता रहा था कि उसने यह बात क्यों करी। पहले उसने सोचा कि उठकर अपने भाई के पीछे जाता है। फिर उसने इरादा बदल दिया। उसे लगा कि कुछ देर अकेला रहना ही उसके लिए ठीक है। वह उठकर बैठक में चला गया।
रात के खाने के बाद पुष्कर को ऊपर दिशा के पास भेज दिया गया। दिशा से पहली बार नहीं मिल रहा था। पर एक अजीब सी हलचल उसके दिल में मची हुई थी।