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किशोरी के खाना खा लेने के बाद बद्रीनाथ और उमा ने भी अपना व्रत तोड़ा। इससे तनाव कुछ कम हुआ। विशाल पुष्कर को बुलाकर लाया। उससे कहा कि वह अपना और दिशा का खाना ले जाए। पुष्कर दोनों थालियां लेकर ऊपर चला गया। विशाल ने खाना खाया और तालाब तक टहलने चला गया।
नीलम खाना खाकर आराम करने लगीं। सुनंदा के जाने के बाद से उनका मन यहाँ बिल्कुल नहीं लग रहा था। उन्होंने अपने घर फोन करके कह दिया था कि जितनी जल्दी हो सके आकर ले जाएं।
बद्रीनाथ, उमा और किशोरी बैठक में बातें कर रहे थे। किशोरी बोलीं,
"भाई हमने तो अपनी ज़िंदगी में ऐसी ज़िद्दी और बदतमीज़ औरत नहीं देखी।"
यह कहकर उन्होंने उमा की तरफ ऐसे देखा जैसे कह रही हों कि सब तुम्हारी वजह से है। उमा का दिल पहले से ही ग्लानि से भरा था। पुष्कर की बात मानने के लिए सबसे अधिक उन्होंने ही ज़ोर दिया था। किशोरी की बात सुनकर उन्होंने नज़रें झुका लीं।
जब पुष्कर की शादी की बात उठी तब उसने बताया कि वह दिशा से प्यार करता है और उससे ही शादी करेगा। दिशा के पापा नहीं थे। उसके मम्मी पापा का तलाक हो चुका था। वह दूसरी बिरादरी की भी थी। सबसे बड़ी बात वह आधुनिक विचारों वाली थी। शादी से पहले बद्रीनाथ किशोरी के साथ उसे देखने गए थे। तब किशोरी ने कहा था कि लड़की बड़ी तेज मालूम पड़ती है। हमारे घर में निभा नहीं पाएगी। उनका कहना था कि माँ अपने पति के साथ निभा नहीं पाई। उसने भला दिशा को क्या सिखाया होगा। शहर में पली है। नौकरी करती है। अपने हिसाब से जीने की आदत है उसे। उसके लिए यहाँ के माहौल में ढलना बड़ा मुश्किल होगा। उन्होंने तो शादी के लिए साफ मना कर दिया था।
जब पुष्कर को अपने घरवालों के फैसले के बारे में पता चला तो उसने साफ कह दिया कि वह हर हाल में दिशा से ही शादी करेगा। विशाल के साथ जो हुआ था उसके बाद बद्रीनाथ और उमा खुशियों के लिए पुष्कर की तरफ ही देख रहे थे। उन्होंने सोचा कि बेटा अगर नाराज़ हो गया तो जीवन भर के लिए दोनों अपने घर में खुशियों के लिए तरस जाएंगे। उमा ने बद्रीनाथ को समझाया। बद्रीनाथ भी उमा की बात से सहमत थे। पुष्कर की ज़िद के आगे वह भी कमज़ोर पड़ गए थे। उन्होंने सोचा था कि बड़े बेटे की ज़िंदगी तो दुख में बीत रही है। कम से कम छोटे बेटे का घर बस जाए। इसलिए उन्होंने और उमा ने किशोरी को समझाया। उनसे विनती की कि वह मान जाएं। बहुत मान मनुहार के बाद किशोरी ने यह कहकर हाँ कर दी कि वह तो भले के लिए कह रही थीं। लेकिन अगर तुम लोगों को यही सही लगता है तो कर लो।
बद्रीनाथ भी जानते थे कि किशोरी ने उमा को लक्ष्य करके ताना मारा था। उन्हें उमा से हमदर्दी थी। उन्होंने देखा कि उमा की आँखों से आंसू टपक रहे हैं। बद्रीनाथ ने समझाया,
"अब रोने से क्या लाभ उमा ? गलती तो हम दोनों की ही है कि बेटे के मोह में आ गए। अब जो हुआ बदल तो नहीं सकते हैं।"
किशोरी भी अब नरम पड़ीं। उन्होंने उमा को अपने पास बैठाकर चुप कराया। वह बोलीं,
"तुम लोग बार बार कह रहे थे तो हम भी मान गए। लगा कि पुष्कर तो बचपन से ही मनमानी करता है। कहीं हमारी अवहेलना करके शादी कर ली तो समाज में क्या मुंह रह जाएगा। सो हमने भी हामी भर दी।"
उन्होंने बद्रीनाथ की तरफ देखकर कहा,
"बद्री तुम्हारे जीजा तो असहाय छोड़कर चले गए। ससुराल वालों ने भी मायके ठेल दिया। यहाँ आकर रहने लगे। तुम्हें और केदार को औलाद की तरह पाला है। सदा इस घर का भला चाहा। आज भी चाहते हैं। हम कोई लड़ाई लगाने के लिए तो कुछ कर नहीं रहे हैं।"
यह कहकर किशोरी अपने आँचल से आंसू पोंछने लगीं। बद्रीनाथ ने कहा,
"जिज्जी अब ऐसी बात मत करो। हम और उमा तो आपके संरक्षण में हैं। नसीब समझते हैं कि आप हमें सही गलत बता रही हैं।"
किशोरी ने गंभीर आवाज़ में कहा,
"सब समझते हैं बद्री। तुमने और उमा ने हमेशा सम्मान किया है। हमारे मन में कोई शिकायत नहीं है। बस डर है। उसका शाप विशाल का जीवन बर्बाद कर चुका है। अब पुष्कर की ज़िंदगी में खुशियां आईं हैं। उन्हें भी उसका शाप ना निगल जाए। हमने तो अपनी तरफ से उपाय किया है। तांत्रिक बाबा को उसे वश करने में कुछ समय लगेगा। तब तक के लिए उन्होंने ताबीज़ दिए थे। उन्हें पहन लेते तो ठीक था। पर दोनों तो पढ़े लिखे हैं। फिर बड़ों की बात मानकर अपनी हेठी कैसे करा लें।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"तांत्रिक बाबा ने कहा था कि उनकी तांत्रिक क्रिया पंद्रह दिन चलेगी। पुष्कर ने तो अगले हफ्ते बहू के साथ घूमने जाने का प्रोग्राम बनाया है।"
किशोरी ने गुस्से से कहा,
"बनाया होगा प्लान। अगर उन लोगों को हमारी बात नहीं माननी है तो हम भी अब उनके सामने नहीं झुकेंगे। जब तक तांत्रिक बाबा सब सही हो जाने के बात नहीं करते हैं तब तक पुष्कर और बहू घर की देहरी नहीं लांघेंगे।"
उमा यह सोचकर घबरा रही थीं कि अब आगे कोई अनहोनी तो नहीं होगी। बैठक से वह सीधे पूजाघर में गईं और भगवान के सामने हाथ जोड़कर बैठ गईं। उनके मन में हलचल मची थी। अतीत की बातें उनके सामने आ रही थीं।
विशाल की पत्नी और बच्चे की अचानक मृत्यु ने सबको दहला दिया था। जिस तरह उन दोनों की मृत्यु हुई थी वह साधारण नहीं थी। तब सबको यही लगा था कि उसने अपना बदला ले लिया। उसके बाद कई सालों तक सिन्हा परिवार में कुछ अमंगल नहीं हुआ। सबको लगा कि अपना बदला लेकर वह शांत हो गई। किशोरी के हाँ करने पर घर में एकबार फिर खुशियां आने की उम्मीद बंधी। बद्रीनाथ और उमा बहुत खुश थे। दोनों पुष्कर और दिशा की शादी की तैयारियां करने लगे। शहर जाकर उन लोगों ने बरीक्षा और गोदभराई की रस्म छोटे पैमाने पर कर ली।
बरीक्षा की रस्म के तीन दिन बाद ही सिन्हा परिवार की गाय मंगला की मौत हो गई। मंगला स्वस्थ थी। खूब दूध देती थी। मंगला की मौत ने एकबार फिर उन लोगों के खौफ को जगा दिया। सबको यही लगा कि उसने पीछा नहीं छोड़ा है। सिन्हा परिवार की खुशियों को खौफ के साए ने ढक दिया। सब सोचने लगे कि अब क्या किया जाए। किशोरी ने कहा कि यह समझना हमारी भूल थी कि वह शांत होकर बैठ गई है। वह हमारे परिवार की खुशियों का ही नाश करना चाहती है। अब तक परिवार में कोई खुशी नहीं आई थी इसलिए वह चुप थी। जैसे ही पुष्कर की शादी की बात चली मंगला की हत्या कर उसने बता दिया कि वह कहीं नहीं गई है। हम पर नज़र रखे है। उससे छुटकारा पाने का कोई उपाय करना होगा। बद्रीनाथ और उमा उनकी बात से सहमत थे।
अपनी पत्नी और बच्चे की मौत के बाद विशाल जैसे हर चीज़ से उदासीन हो गया था। उसे अब ना खुशियों की फिक्र थी और ना ही दुख आने का डर था। इन सबके बीच वह बस चुपचाप घर में होने वाली बातें सुनता रहता था।
बद्रीनाथ को भवानीगंज के बगल वाले गांव में किसी तांत्रिक का पता चला। उन्होंने किशोरी को बताया तो उन्होंने कहा कि बिना देर किए तांत्रिक से मिले। उससे निपट पाना मेरे और तुम्हारे बस में नहीं है। बद्रीनाथ तांत्रिक से मिले। आग्रह करके घर लाए। सारी बात जानने के बाद तांत्रिक ने कहा कि यह उसका ही काम है। उसका बदला पूरा नहीं हुआ है। वह इस वंश का नाश करना चाहती है। पहले उसने विशाल की पत्नी और बच्चे को मार दिया। इस बात से विशाल हर चीज़ से दूर हो गया। अब वह छोटे बेटे पुष्कर का परिवार बढ़ने नहीं देगी। इसलिए उसने मंगला को मारकर चेतावनी दी है।
तांत्रिक का कहना था कि उसकी नज़र अब केवल पुषकर और उसकी पत्नी पर होगी। बाकी किसी को वह नुकसान नहीं पहुँचाएगी। जब तक घर में नई बहू का प्रवेश नहीं हो जाता तब तक वह पुष्कर को भी कुछ नहीं करेगी। नई बहू के आने के बाद वह सक्रिय होगी। तभी उसे काबू में कर हमेशा के लिए उससे छुटकारा पाया जा सकता है। इसलिए आप लोग बेटे की शादी कीजिए। मैं बहू के आने के बाद अपना काम शुरू कर दूँगा।
पुष्कर इन सब बातों से अनभिज्ञ शहर में था। उसने सोचा था कि उसे शादी और उसके बाद घूमने जाने के लिए छुट्टी चाहिए होगी। इसलिए अभी से छुट्टी क्यों ले। उसने कह दिया था कि आप लोग अपने अनुसार शादी की तैयारियां कीजिए। मैं शादी से दो दिन पहले छुट्टी लेकर आ जाऊँगा। जब वह शादी के लिए घर आया तब उसने पाया कि घर में जो खुशी दिखनी चाहिए वह है नहीं। उसे लगा कि यह सब उसकी बुआ के कारण है। उन्होंने शादी के लिए हांँ तो कर दी लेकिन नाराज़ होंगी। जिसका असर उसके मम्मी पापा पर है। उसने अपनी मम्मी से कारण जानना चाहा तो उन्होंने मंगला की मौत और उससे उपजे खौफ के बारे में बताया। पुष्कर को इन सब बातों पर यकीन नहीं था। उसने समझाया कि वह परेशान ना हों। ईश्वर पर विश्वास रखें सब ठीक रहेगा।
उमा को लगा था कि पुष्कर और दिशा को ताबीज़ पहनने से कोई परेशानी नहीं होगी। लेकिन ताबीज़ के चक्कर में इतना बवाल हो गया। उमा समझ गईं कि दिशा से कुछ भी मनवा लेना आसान नहीं है। वह परेशान हो गईं। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की कि सब ठीक हो जाए।