(3)
पुष्कर जब कमरे में गया तो दिशा उसकी राह देख रही थी। पुष्कर उसके पास जाकर बैठ गया। वह जानता था कि इस नए माहौल में उसके बिना दिशा बहुत अकेलापन महसूस कर रही होगी। वह उसे भरोसा दिलाना चाहता था कि भले ही वह पूरा दिन उससे दूर रहा पर उसके बारे में सोच रहा था। बिना कुछ बोले वह दिशा का सर अपनी गोद में लेकर सहलाने लगा। उसका ऐसा करना दिशा को अच्छा लगा। वह चुपचाप उसकी गोद में सर रखे लेटी रही।
दोनों चुपचाप थे पर एक दूसरे के भाव को समझ रहे थे। दिशा का सर सहलाते हुए पुष्कर बोला,
"दिशा आज इस नई जगह आकर तुम्हें मेरी सबसे अधिक ज़रूरत महसूस हुई होगी। पर मैं क्या करता ? ऐसा ही रिवाज़ है। मैं चाहकर भी तुम्हारे पास नहीं रह सकता था।"
दिशा ने उसका हाथ पकड़ कर चूम लिया। वह उठकर बैठ गई। उसने कहा,
"पुष्कर मैं समझती हूंँ। तुम्हारे लिए अपने घरवालों को खुश रखना ज़रूरी है। उन लोगों ने भी हमारी खुशी के लिए बहुत सी बातों को नज़रंदाज़ किया है। तुम्हारी खुशी के लिए मैं भी थोड़ा एडजस्ट करने को तैयार हो गई।"
"थैंक्यू दिशा....."
दिशा ने कुछ सोचकर कहा,
"मान लो कि अगर तुम्हारे घरवाले हमारे रिश्ते के लिए तैयार ना होते तो ?"
पुष्कर ने उसका हाथ पकड़ कर कहा,
"शादी तो मैं तुमसे ही करता। मैंने सोचा था कि मैं अपनी पूरी कोशिश करूँगा कि घरवाले शादी के लिए मान जाएं। लेकिन अगर नहीं मानते तो भी मैं तुम्हें ना छोड़ता।"
दिशा को उसकी बात अच्छी लगी। वह जानती थी कि पुष्कर उसे बहुत प्यार करता है। पुष्कर ने आगे कहा,
"सबसे अधिक डर मुझे बुआ जी का था। हमारे घर में पापा से भी अधिक उनकी चलती है। ऐतराज़ उन्हें अधिक था। एक तो हमारी जातियां अलग हैं। दूसरा उन्हें....."
कहते हुए वह रुक गया। दिशा समझ गई कि वह क्या कहते हुए रुक गया। उसने कहा,
"उन्हें मम्मी के डिवोर्सी होने पर ऐतराज़ था।"
"दिशा वह पुराने खयालों की हैं। मैं जान रहा था कि अगर मम्मी पापा मान भी गए तो वह रोड़ा अटकाएंगी। इसलिए मैंने कह दिया था कि शादी मुझे दिशा से ही करनी है। चाहे आप लोगों का फैसला कुछ भी हो। शायद इसी वजह से इस बार बुआ की चल नहीं पाई।"
दिशा ने कुछ सोचकर कहा,
"बुआ जी ने मुंह दिखाई के समय एक दो बार कहा था कि आजकल बच्चे अपनी ही देखते हैं। दुनिया समाज की परवाह नहीं करते हैं। वह पूरी तरह से खुश तो नहीं हैं।"
"मुझे उनकी परवाह नहीं है। बचपन से देखता आया हूँ कि अपना सिक्का चलाने के लिए मम्मी को दबाती आई हैं। पापा जानते हुए भी कुछ बोलते नहीं थे।"
"पापा ने कुछ नहीं कहा यह ठीक नहीं था। पर मम्मी ने भी तो सबकुछ चुपचाप सह लिया। उन्हें अपने लिए तो आवाज़ उठानी चाहिए थी।"
उसने पुष्कर की तरफ देखा और आगे बोली,
"मैं इस तरह चुप नहीं रह सकती हूँ। मैं तुम्हारे लिए थोड़ा एडजस्ट ज़रूर कर रही हूँ। लेकिन अगर ऐसा कुछ होता है जो मेरी अंतरात्मा को गवारा ना हो तब मैं चुप नहीं रहूँगी।"
पुष्कर ने आश्वासन दिया,
"मैंने पहले भी तुमसे कहा था कि मैं तुम्हें कुछ ऐसा करने के लिए मजबूर नहीं करूँगा जो तुम्हें पसंद ना हो।"
दिशा ने उसके सीने में सर रखकर कहा,
"तुम पर पूरा भरोसा है।"
पुष्कर ने उसे अपनी बाहों में समेट लिया। दोनों एकबार फिर चुप हो गए। अब प्रेम की भावना उफान पर थी। पुष्कर दिशा को चूमने लगा। दोनों एक दूसरे में खो गए।
आधी रात का समय था। भवानीगंज में पूरी तरह शांति छाई हुई थी। कुत्तों के भौंकने की आवाज़ उस शांति को और डरावना बना रही थी। नीचे एक तांत्रिक बाबा आए हुए थे। वह बैठक में तखत पर पालथी मारकर बैठे थे। उनके दाहिनी तरफ एक चेला खड़ा था। उनकी आँखें बंद थीं। बद्रीनाथ और उमा उनके सामने चुपचाप सर झुकाए खड़े थे। किशोरी ने हाथ जोड़कर बाबा से प्रार्थना की,
"बाबा आप तो सब जानते हैं। इतने सालों बाद घर में खुशियां आईं हैं। ऐसा ना हो कि इस शुभ अवसर पर कुछ अमंगल हो। कोई ऐसा उपाय कीजिए कि वह कुछ ना कर पाए।"
तांत्रिक बाबा ने अपनी आँखें खोलीं। उन्होंने गंभीर आवाज़ में कहा,
"घबराओ मत। मैं ऐसा उपाय कर दूँगा कि इस घर पर किसी की भी बुरी दृष्टि नहीं पड़ेगी। लेकिन जैसा मैं कहूँगा मानना पड़ेगा।"
किशोरी ने कहा,
"बाबा आपका आदेश कोई नहीं टालेगा।"
तात्रिक बाबा ने कहा,
"अभी मैं घर के द्वार पर तथा चारों ओर अपनी शक्ति से सुरक्षा घेरा बना दूँगा। उसके बाद अपने डेरे पर जाकर तंत्र साधना करूँगा। उसके लिए आवश्यक सामग्री चाहिए। आप लोग पैसा दे दें। मैं स्वयं व्यवस्था कर लूँगा।"
किशोरी ने बद्रीनाथ की तरफ देखा। उन्होंने अपनी जेब से पैसे निकाल कर तांत्रिक बाबा के पैरों के पास रख दिए। तांत्रिक बाबा ने अपने चेले की तरफ देखा। उसने पैसे उठाकर रख लिए। तांत्रिक बाबा भी उठकर खड़े हो गए। वह घर के मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गए। सब उनके पीछे पीछे द्वार तक आ गए। उन्होंने अपनी झोली से कुछ निकाला। उसे हाथ में लेकर कुछ बुदबुदाते रहे। उसके बाद मुठ्ठी खोलकर दिखाते हुए बोले,
"यह नींबू मिर्ची की साधारण माला नहीं है। इसे मैंने अपनी शक्ति से अभिमंत्रित किया है। इसे द्वार पर लगा देता हूँ।"
अपने चेले की सहायता से उन्होंने उसे द्वार पर लटका दिया। उसके बाद मकान के चारों तरफ जल छिड़क कर उसे सुरक्षा घेरे में लिया। वह बोले,
"तुम्हारा घर कुछ समय तक सुरक्षित रहेगा। तब तक मेरी तंत्र साधना पूरी हो जाएगी। फिर कोई खतरा नहीं रहेगा।"
उसके बाद दो ताबीज़ निकालते हुए कहा,
"यह नव विवाहित जोड़े के लिए है। सुबह नहा कर दोनों इसे पहन लें। जब तक मेरी तंत्र साधना पूरी नहीं होती है तब तक इसे उतारना नहीं है।"
किशोरी ने उमा की तरफ देखा। उमा ने दोनों ताबीज़ तांत्रिक बाबा से ले लिए। तांत्रिक बाबा अपने चेले के साथ चले गए। जाते समय आश्वासन दे गए कि वह तंत्र साधना करके हमेशा के लिए समस्या का समाधान कर देंगे।
बद्रीनाथ ने मुख्य द्वार बंद कर दिया। सब सोने चले गए। केदारनाथ की पत्नी सुनंदा जागी हुई थी। वह सब कुछ आड़ से देख और सुन रही थी। वह आंगन में सीढ़ियों के पास गई। उनकी आड़ में अपना फोन निकाल कर किसी से बात करने लगी। बात करके वह वापस जाकर लेट गई।
विशाल को नींद नहीं आ रही थी। वह बार बार करवट बदल रहा था। वह थका हुआ था। अपने भाई की शादी के लिए वह रात भर जगा रहा था। रास्ते में बस में कुछ देर के लिए सोया था। पर बरात विदा होकर घर आई थी उसके बाद से उसने ज़रा भी आराम नहीं किया था। फिर भी उसे नींद नहीं आ रही थी।
नींद ना आने के दो कारण थे। पहला यह कि नई जगह उसे जल्दी नींद नहीं आती थी। जो कमरा पुष्कर और दिशा को दिया गया था वह उसका था। कुछ दिनों के लिए उन दोनों को दिया गया था। घर के बाकी कमरों में बचे हुए मेहमान थे। इसलिए जब उसके चाचा केदारनाथ खाना खाने के बाद घर लौट रहे थे तो वह भी उनके साथ चला आया। यहाँ उसे कमरा तो मिल गया पर उसे नींद नहीं आ रही थी।
दूसरा कारण था कि उसका मन बहुत उदास था। शाम को बातों ही बातों में पुष्कर ने उसकी पत्नी का ज़िक्र कर दिया था। वह पहले से ही अपनी पत्नी को याद कर रहा था। पुष्कर के ज़िक्र ने मन में एक हलचल सी मचा दी थी। वह तालाब के पास घूमने चला गया था। बहुत देर तक उसके किनारे बैठा रहा था। जब भी वह दुखी होता था तो वहीं जाकर बैठ जाता था। तलाब के किनारे बैठे हुए वह अपने अच्छे दिनों को याद कर रहा था।
घर लौटकर भी उसका मन शांत नहीं हुआ था। उसने सोचा कि शायद जगह बदलने से कुछ अच्छा लगे। वह अपने चाचा के साथ चला आया। यहाँ आकर भी कोई फर्क नहीं पड़ा था। बहुत देर से वह करवटें बदल रहा था।
जब बहुत देर तक नींद नहीं आई तो वह बिस्तर पर उठकर बैठ गया। सोच रहा था कि क्या करे। तभी उसे ऐसा लगा जैसे कि बगल में चाचा के कमरे का दरवाज़ा खुला है। वह अपने कमरे की खिड़की पर आया। उसने देखा कि उसके चाचा आंगन में जाकर किसी से फोन पर बात कर रहे हैं। उसे कुछ सुनाई नहीं पड़ रहा था। अंधेरे में उनके चेहरे के हावभाव भी समझ नहीं आ रहे थे। उसने सोचा कि शायद कमरे में नेटवर्क नहीं होगा। इसलिए बाहर आकर बात कर रहे हैं।
उसके मन में सवाल आया कि इतनी रात गए चाचा किससे बात कर रहे हैं ? पर वह उनसे कुछ पूछना नहीं चाहता था। कुछ देर बात करके चाचा अपने कमरे में चले गए। विशाल ने अलमारी में रखे अपने फोन पर समय देखा। रात के एक बज रहे थे। वह वापस अपने बिस्तर पर जाकर लेट गया।
एकबार फिर अपनी पत्नी और बेटे का खयाल उसे परेशान करने लगा। इस बार उसने एक आह भरते हुए कहा,
"तुम लोग हमें अकेला छोड़कर चले गए। बर्दाश्त नहीं होता है यह अकेलापन।"
वह ज़ोर ज़ोर से रोने लगा। कोई उसका रोना सुनने वाला नहीं था। अक्सर वह इसी तरह अकेले में रोता था। लेकिन उसके माँ बाप या कोई और उसका दर्द समझने वाला नहीं था।