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विशाल बैंक आया था। उसे कौशल को देने के लिए पैसे निकालने थे। अभी तक वह कौशल को टालना चाह रहा था। उसके ससुर के ईंट के भट्टे वाली ज़मीन पर अब बटाई पर खेती होती थी। उससे हुई आमदनी का एक हिस्सा विशाल को ही मिलता था। विशाल सोच रहा था कि गेंहूँ की फसल कटने तक कौशल को टाल दे पर वह मानने को तैयार नहीं था। इसलिए विशाल अपनी जमा पूंजी से पैसे निकालने आया था। इस बैंक अकाउंट का बद्रीनाथ को पता नहीं था।
इस बैंक अकाउंट का एटीएम कार्ड नहीं था। ना ही डेबिट या क्रेडिट कार्ड था। जब भी विशाल को ज़रूरत होती थी तो बैंक जाकर पैसे निकाल लेता था। वैसे इस अकाउंट से पैसे निकालने की ज़रूरत कम ही पड़ती थी। विशाल ने सारी औपचारिकताएं पूरी कर दीं। कर्मचारी ने उसे पैसे निकाल कर दे दिए साथ में रसीद भी। विशाल ने पैसे एक बैग में रखे थे। बैंक से निकलते हुए उसने कौशल को मैसेज किया कि जो जगह बताई थी वहाँ आकर पैसे ले जाए। पूरी सावधानी बरते। कौशल ने मैसेज किया कि वह उस जगह पर ही है। विशाल तेज़ी से बैंक से निकल गया। उसने ध्यान नहीं दिया कि कोई था जो उसे ध्यान से देख रहा था।
बैंक से कुछ ही दूर पर कौशल उसका इंतज़ार कर रहा था। वह चाय की दुकान के पीछे खड़ा था। विशाल इधर उधर देखते हुए उसके पास गया। कौशल ने अपना हुलिया बदल रखा था। विशाल ने उसे बैग देते हुए कहा,
"पैसे पूरे हैं। तुम जल्दी से यहाँ से निकल जाओ। आज रात ही भवानीगंज भी छोड़ देना। अब हमारे बीच कोई संपर्क नहीं रहेगा।"
कौशल ने बैग लेकर कहा,
"मुझे भी यहाँ से निकलने की जल्दी है। हमारे बीच हिसाब साफ हो गया है। अब संपर्क की ज़रूरत ही नहीं है।"
कौशल बैग लेकर पास खड़ी एक मोटरसाइकिल के पीछे बैठ गया। उस पर कोई पहले से सवार था। उसने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और लेकर चला गया।
विशाल ने खबर रोज़ाना में छप रही रिपोर्ट पर नज़र रखना शुरू कर दिया था। उसने स्टॉल लगाने वाले पप्पू से कहा था कि जब भी खबर रोज़ाना में अदीबा की रिपोर्ट छपे तो उसकी कॉपी उसके लिए ले आए। पप्पू ने उसे फोन करके कहा था कि उसके लिए खबर रोज़ाना की एक कॉपी लेकर आया है।
पप्पू से खबर रोज़ाना की कॉपी लेकर विशाल तालाब वाले मंदिर के चबूतरे पर बैठकर पढ़ने लगा। पूरी रिपोर्ट पढ़ने के बाद उसके माथे पर पसीने की बूंदें उभर आईं। रिपोर्ट में अदीबा ने ज़िक्र किया था कि ढाबे पर एक आदमी पुष्कर और दिशा को घूर रहा था। पुष्कर की हत्या के बाद ढाबे पर काम करने वाले एक लड़के चेतन ने उसे फोन पर किसी को कत्ल के बारे में बताते हुए सुना था। चेतन की भी हत्या कर दी गई। पुलिस उस आदमी तक पहुँचने की पूरी कोशिश कर रही है। पुलिस को जल्दी ही सफलता मिलने की उम्मीद है। उसके ज़रिए पुलिस उस आदमी तक पहुँच सकती है जिससे वह बात कर रहा था।
खबर विशाल के लिए अच्छी नहीं थी। उसे डर लग रहा था कि कहीं कौशल पकड़ा ना जाए। उसने सोचा कि फोन करके उसे अखबार में छपी खबर के बारे में बताकर आगाह कर दे। उसने कौशल का नंबर मिलाया। पर स्विच ऑफ बता रहा था। विशाल ने सोचा कि शायद कौशल ने सावधानी बरतते हुए वह सिम कार्ड निकाल दिया होगा। उसे कुछ तसल्ली हुई।
बद्रीनाथ किसी काम से बाज़ार आए थे। सामान खरीद कर वह दुकान से निकले तो उनकी भेंट अपने मित्र शिवराज रस्तोगी से हो गई। शिवराज एक समय में उनके साथ स्कूल में पढ़ाते थे। शिवराज ने वह नौकरी छोड़कर व्यापार शुरू कर दिया। बद्रीनाथ स्कूल के प्रिंसिपल हो गए थे। बहुत समय बाद उन दोनों की मुलाकात हुई थी। शिवराज के कहने पर दोनों एक छोटे से रेस्टोरेंट में जाकर बैठ गए। शिवराज ने चाय और समोसे का ऑर्डर दिया। ऑर्डर का इंतज़ार करते हुए शिवराज ने कहा,
"बहुत समय बाद मुलाकात हुई। पिछली बार मिले थे तो तुमने बताया था कि पुष्कर की नौकरी लग गई है। उसकी शादी की या नहीं।"
शिवराज का सवाल सुनकर बद्रीनाथ उदास हो गए। उन्होंने कोशिश की पर अपने आंसू रोकने में नाकाम रहे। उन्हें रोते हुए देखकर शिवराज ने कहा,
"बद्रीनाथ बात क्या है ? रो क्यों रहे हो ?"
"क्या करें.... किस्मत में रोना लिखा है।"
यह कहकर बद्रीनाथ का बांध टूट गया। आसपास के लोग उनकी तरफ देखने लगे। ऑर्डर लेकर आया वेटर भी ध्यान से देख रहा था। शिवराज ने उन्हें चुप कराया। जग से गिलास में पानी डालकर उनकी तरफ बढ़ा दिया। बद्रीनाथ को लगा कि इस तरह रोना ठीक नहीं है। उन्होंने रुमाल निकाल कर आंसू पोंछे। थोड़ा सा पानी पिया। उसके बाद बोले,
"हमारे परिवार में खुशियां टिकती नहीं हैं। अब किस्मत कहो या हमारे पाप कर्म।"
शिवराज उनके रोने का कारण जानना चाहते थे। उन्होंने कहा,
"तुम बताओ हुआ क्या है ?"
"पुष्कर अब इस दुनिया में नहीं है।"
कहते हुए बद्रीनाथ का गला रुंध गया। यह बात सुनकर शिवराज भी दुखी हो गए। कुछ देर तक दोनों चुप रहे। उसके बाद शिवराज ने कहा,
"क्या हुआ था उसे ?"
बद्रीनाथ ने उन्हें बताया कि शादी के बाद पुष्कर अपनी पत्नी के साथ ससुराल जा रहा था। वहाँ से उसे और बहू को घूमने जाना था। ससुराल जाते समय रास्ते में एक ढाबे पर रुके। वहाँ किसी ने पुष्कर की हत्या कर दी। शिवराज कुछ देर समझने की कोशिश करते रहे। उसके बाद बोले,
"तुम्हारे घर में कुछ समस्या है। पहले विशाल की पत्नी और बच्चे की भी अचानक बीमार पड़कर मौत हो गई थी। अब यह तो और भी विचित्र बात है। उस ढाबे पर दिन के समय कोई आकर पुष्कर को मार गया।"
बद्रीनाथ ने उनकी तरफ देखकर कहा,
"क्या बताएं.... हमें तो कुछ समझ नहीं आ रहा है।"
"बद्रीनाथ दुनिया में बहुत सी ऐसी बातें हैं जो हमारी समझ से परे हैं।"
यह कहते हुए शिवराज ने जिस तरह से बद्रीनाथ की तरफ देखा वह अर्थपूर्ण था। बद्रीनाथ समझ रहे थे कि वह क्या कहना चाहते हैं। शिवराज ने कहा,
"कोई है जो तुम्हारे घर की खुशियां छीन रहा है। पहले तुम्हारी बहू और पोते की मौत। अब पुष्कर की हत्या इसका प्रमाण है। मेरी बात का यकीन करो ऐसा होता है।"
शिवराज ने स्पष्ट कर दिया था कि वह क्या कह रहे हैं। बद्रीनाथ ने भी खुलकर उन्हें सारी बात बता दी। सब सुनने के बाद शिवराज ने कहा,
"मेरा अपना व्यक्तिगत अनुभव है। व्यापार में पूरी मेहनत कर रहा था। पर सफलता नहीं मिल रही थी। तब मैं अपने साढ़ू के कहने पर बाबा कालूराम से मिला। उन्होंने पता कर लिया कि मेरी तरक्की को रोकने वाला कौन है। उन्होंने अपनी शक्ति से उसे समाप्त कर दिया। अब सब सही है। तुम चाहो तो उन्हें अपनी समस्या बता सकते हो।"
शिवराज की बातों ने एक नई उम्मीद जगाई थी। उमा को तसल्ली देने के लिए उन्होंने कहा था कि अब माया से डरने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन उनके मन में था कि भले ही माया उन लोगों की जान ना ले पर उनकी ज़िंदगी में खुशियां भी नहीं आने देगी। लेकिन महिपाल द्वारा ठगे जाने के बाद से अब सावधान हो गए थे। उन्होंने कहा,
"परेशान तो हम बहुत हैं। पर उस तांत्रिक के ठग निकलने के बाद से अब मन जल्दी किसी पर भरोसा नहीं कर पाएगा।"
"बद्रीनाथ....हर कोई एक जैसा नहीं होता है। बाबा इस तरह का धंधा नहीं करते हैं। मुझे तो उन पर पूरा भरोसा है। मेरी तो उन्होंने बहुत सहायता की। नहीं तो मेहनत करते रह जाते और हाथ कुछ ना आता। बाकी तुम्हारा फैसला है।"
बद्रीनाथ सोच में पड़ गए। वह सोच रहे थे कि शिवराज को फायदा हुआ है। इसलिए बाबा कोई ठग तो नहीं हो सकते। उन्होंने कहा,
"शिवराज अगर तुम हमें बाबा जी से मिलवा सको तो बहुत मेहरबानी होगी।"
"मेहरबानी वाली कौन सी बात है इसमें। मुझे तो तुम्हारी मदद करके खुशी होगी। पर मैं कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा हूँ। लौटकर आते ही मिलवा दूँगा। तुम मुझे अपना नंबर दे दो।"
शिवराज ने नंबर फीड करने के लिए अपना फोन निकाल लिया। बद्रीनाथ ने नंबर देने के बाद कहा,
"मिस कॉल दो तुम्हारा नंबर सेव कर लें।"
शिवराज ने मिस कॉल दी। उनका नंबर सेव करने के बाद बद्रीनाथ ने कहा,
"बाबा जी का या उनके किसी चेले का भी तो नंबर होगा। तुम दे दो तो हम बात कर लेंगे।"
"बद्रीनाथ.....बाबा कालूराम साधना में लीन रहते हैं। उन तक जाना पड़ता है। वह भी हर किसी की मदद नहीं करते हैं। मैं ही ले जाऊँगा। लौटकर आने पर तुम्हें बताऊँगा। अभी चलता हूँ।"
उन्होंने वेटर को बिल लाने के लिए कहा। जब वह बिल देने लगे तो बद्रीनाथ ने खुद बिल चुकाने की बात की। शिवराज मान गए। बिल चुकाने के बाद बद्रीनाथ शिवराज के साथ बाहर निकले। बद्रीनाथ ने कहा,
"लौटकर फोन करना।"
"बिल्कुल करूँगा। मैं भी चाहता हूँ कि तुम्हारी परेशानी जल्दी से जल्दी दूर हो।"
शिवराज कुछ कदम आगे बढ़े। फिर वापस बद्रीनाथ के पास आकर बोले,
"एक बात और बतानी थी। मुझे लगता है कि मैंने विशाल को गंगाराम बैंक की त्रिलोक नगर वाली ब्रांच में देखा था।"
बद्रीनाथ ने आश्चर्य से कहा,
"गंगाराम बैंक में तो हमारा कोई अकाउंट नहीं है। हमारे सारे अकाउंट तो भवानीगंज के सरकारी बैंक में हैं।"
शिवराज ने कहा,
"था तो विशाल ही। हो सकता है कि किसी काम से गया हो।"
यह कहकर शिवराज चले गए। बद्रीनाथ के दिमाग में उलझन पैदा हो गई थी। कुछ देर खड़े रहने के बाद उन्होंने एक रिक्शा रोका। अपना सामान रखकर उस पर बैठ गए। उसे भवानीगंज चलने का आदेश दिया।