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खबर सुनकर सूरज स्तब्ध था। वह सोच रहा था कि यह तो बड़ी मुसीबत हो गई। इंस्पेक्टर हरीश फौरन कांस्टेबल शिवचरन को लेकर उस जगह के लिए निकल गया जहाँ चेतन की लाश मिली थी। वहाँ पहुँच कर इंस्पेक्टर हरीश के सामने जो दृश्य था वह चौंकाने वाला था। उसने कांस्टेबल शिवचरन की तरफ देखा। शिवचरन ने कहा,
"सर इसके शरीर पर तो बिल्कुल वैसे ही निशान हैं जैसे पुष्कर के शरीर पर थे।"
इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"हाँ....दूसरी बात यह है कि लाश झाड़ियों से कुछ दूर दीवार के पीछे है। पिछली बार पेड़ के पीछे थी।"
वह चेतन की लाश के पास गया। उसने देखने का प्रयास किया कि गर्दन पर वार करने का कोई निशान है कि नहीं। जैसा पुष्कर की गर्दन पर था। लेकिन लाश इस तरह खून से सनी थी कि देख पाना मुश्किल था। उसने कहा,
"शिवचरन ज़रा नज़र दौड़ाओ आसपास कोई निशान मिले।"
वह और शिवचरन देखने लगे। लेकिन ऐसा कुछ भी उन्हें दिखाई नहीं पड़ा। इंस्पेक्टर हरीश और शिवचरन फॉरेंसिक टीम के आने की राह देखने लगे।
अदीबा दिशा के बारे में जानकारी लेने पुलिस स्टेशन आई थी। वहाँ उसे चेतन की हत्या के बारे में पता चला। यह बात उसके लिए भी आश्चर्य में डालने वाली थी कि पुष्कर और चेतन की हत्या एक तरह से की गई थी। इंस्पेक्टर हरीश चेतन की हत्या की कार्यवाही में व्यस्त था। इसलिए अदीबा अपने ऑफिस वापस लौट गई। उसने चेतन की हत्या की खबर अखलाक को सुनाई। अखलाक ने कहा,
"पुष्कर की हत्या और चेतन की हत्या का तरीका एक जैसा है। दोनों का हत्यारा एक ही मालूम पड़ता है। यह तो बहुत दिलचस्प बात है। पर सवाल यह उठता है कि इन दोनों हत्याओं के बीच ऐसा क्या संबंध हो सकता है कि इन दोनों का हत्यारा एक ही हो।"
"यही बात तो मैं भी सोच रही हूँ। अगर हत्या करने का तरीका एक जैसा है तो हत्यारा भी एक होगा। लेकिन चेतन और पुष्कर के बीच किसी संबंध का होना तो मुमकिन नहीं लगता है। फिर भी दोनों की हत्या किसी तरह जुड़ी हुई मालूम पड़ती है। बहुत ही अजीब सा कनेक्शन है, जो रहस्यमई है।"
अखलाक के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने कहा,
"अब हमें एक नया मसाला मिल गया है। चेतन की हत्या की खबर को पुष्कर की हत्या से जोड़ते हुए एक रिपोर्ट लिखो। इस बात का खास ज़िक्र करो कि हत्या का तरीका एक है पर मरने वाले दोनों लोगों के बीच कोई संबंध नहीं था। सिवाय इसके कि पुष्कर और दिशा जिस ढाबे में रुके थे चेतन वहाँ काम करता था। बाकी तुम जानती हो कि अपनी स्टोरी को दिलचस्प कैसे बनाना है। जाकर अपनी रिपोर्ट बनाओ जिससे अगले एडिशन में छप सके।"
अदीबा ने उठते हुए कहा,
"ठीक है सर मैं अपनी रिपोर्ट तैयार करती हूँ।"
अदीबा जाने लगी तो अखलाक ने उसे रोक लिया। वह वापस अपनी जगह पर जाकर बैठ गई। अखलाक ने कुछ सोचकर कहा,
"अभी एक बात दिमाग में आई। इस्माइल ने बताया था कि पुष्कर और दिशा टैक्सी में कोई ताबीज़ तलाश रहे थे।"
"हाँ सर...."
अखलाक ने अपने दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में फंसा लिया। दोनों कोहनी मेज़ पर रखकर कुछ सोचने लगा। अदीबा भी अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी कि अखलाक ने ताबीज़ का ज़िक्र क्यों किया। कुछ क्षणों के बाद अखलाक ने कहा,
"अदीबा थोड़ी विचित्र है पर एक बात दिमाग में आई है।"
अदीबा के दिमाग में भी कुछ आया था। लेकिन उसे अपने मन में दबाकर उसने कहा,
"कैसी विचित्र बात सर ?"
अखलाक कुछ आगे की तरफ झुककर बोला,
"ताबीज़ अक्सर खुशकिस्मती या हिफाज़त के लिए होते हैं। लोग किसी बुरी ताकत से बचने के लिए भी ताबीज़ पहनते है। पुष्कर और दिशा के बारे में अब तक जो पता चला है उसके हिसाब से दोनों बहुत आधुनिक किस्म के थे। ऐसे लोग अक्सर इस तरह की चीज़ों पर यकीन नहीं रखते हैं। लेकिन इस्माइल के हिसाब से पुष्कर का ताबीज़ ना मिलने से दोनों कुछ परेशान थे।"
"इस्माइल ने बताया था कि दोनों ने बारी बारी से अच्छी तरह टैक्सी के अंदर ताबीज़ तलाश किया था। उसके बाद दोनों ढाबे में चले गए थे।"
"मेरा प्वाइंट यह है अदीबा कि अमूमन आज की पीढ़ी के पढ़े लिखे लोग ताबीज़ या ऐसी दूसरी चीज़ों पर यकीन नहीं करते हैं। पुष्कर और दिशा ताबीज़ को लेकर परेशान थे इसका मतलब ताबीज़ किसी खास मकसद से दिया गया था। अगर तुम ताबीज़ वाली बात को भी अपनी स्टोरी में डालो तो लोगों की दिलचस्पी और अधिक बढ़ जाएगी।"
अदीबा के दिमाग में भी ताबीज़ को लेकर अखलाक जैसी बातें आई थीं। उसने कुछ सोचकर कहा,
"सर यह बात पूरे केस को बेवजह अंधविश्वास की तरफ ले जाएगी। मुझे लगता है कि यह ठीक नहीं होगा।"
"तुम्हें ऐसा क्यों लगता है ?"
अखलाक ने जिस तरह यह सवाल पूछा था वह तरीका अदीबा को कुछ अजीब लगा था। वह आश्चर्य से उसकी तरफ देख रही थी। अखलाक ने कहा,
"मैं तुमसे कुछ ऐसा लिखने को तो कह नहीं रहा हूँ जो झूठ हो। जिस टैक्सी से दिशा और पुष्कर ट्रैवल कर रहे थे उसके ड्राइवर ने यह बात बताई है। तुम्हें वही सच लिखना है जो तुमने इस्माइल से सुना।"
अदीबा अभी भी अखलाक की बात से सहमत नहीं थी। उसने कहा,
"ताबीज़ वाली बात का ज़िक्र करने से लोगों का दिमाग बेवजह अंधविश्वास की तरफ जाएगा। लोग कहानियां बनाएंगे।"
"तुमको सिर्फ एक सूचना देनी है। लोगों की सोच उसे क्या रंग देती है यह उन पर है। तुम लोगों की कल्पना को तो नहीं रोक सकती हो।"
"फिर भी सर...."
अखलाक ने उसे बीच में रोकते हुए कहा,
"तुमने अपनी स्टोरी में कहीं भी पुष्कर की हत्या के लिए दिशा को ज़िम्मेदार ठहराया है। नहीं.... फिर भी लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब दोनों एकसाथ ढाबे के अंदर गए थे तो पुष्कर अकेला बाहर क्यों गया ? क्या दिशा ने किसी साजिश के तहत उसे बाहर भेजा था ? लोगों की इस सोच के लिए अखबार या तुम तो ज़िम्मेदार नहीं हो।"
अखलाक का तर्क अदीबा को सही लगा था फिर भी वह पूरी तरह से संतुष्ट नहीं थी। उसे दुविधा में देखकर अखलाक ने कहा,
"अदीबा....इस केस की रिपोर्टिंग की वजह से हमारे अखबार का सर्कुलेशन बढ़ा है। मैं चाहता हूँ कि इस मौके का फायदा उठाऊँ। इसलिए तुम वही लिखो जो मैंने कहा है।"
अदीबा एकबार फिर जाने के लिए खड़ी हो गई। अखलाक ने कहा,
"तुम सोच रही होगी कि मैं स्वार्थी हो रहा हूँ। हाँ.....मैं अपने और अपने अखबार के फायदे के बारे में सोच रहा हूँ। लेकिन कोई गलत बात लिखने को नहीं कह रहा हूँ। जो तुमने सुना है वही लिखो।"
अदीबा ने अपना सर हाँ में हिलाया और चली गई।
तांत्रिक यह कहकर चला गया था कि वह अपने गुरु के पास जा रहा है। जब लौटकर आएगा तो माया को वश में करने का अनुष्ठान करेगा। जाने से पहले उसने बद्रीनाथ को अनुष्ठान पर आने वाले खर्च का हिसाब बनाकर दे दिया था। उसका कहना था कि वह सिर्फ पैसों का इंतज़ाम करके रखें। सामग्री की व्यवस्था वह कर लेगा। बद्रीनाथ आंगन में कुर्सी डालकर बैठे थे। पास ही किशोरी चारपाई पर बैठी धूप सेंक रही थीं। उमा रसोई में खाना बना रही थीं। बद्रीनाथ चिंतित लग रहे थे। उन्हें चिंता में देखकर किशोरी ने कहा,
"बद्री....अब इतना मत सोचो। जो पैसा लग रहा है लगा दो। एकबार उस माया से छुटकारा मिल जाए। फिर भगवान भोलेनाथ सब सही करेंगे।"
बद्रीनाथ ने गहरी सांस छोड़ते हुए कहा,
"पैसों की चिंता नहीं है जिज्जी। हम तो यह सोचकर चिंतित हैं कि अब हमारे वंश का क्या होगा ? विशाल का भरा पूरा परिवार बिगड़ गया। पुष्कर ने तो अभी वैवाहिक जीवन में कदम ही रखा था और चला गया।"
"कह तो रहे हैं बद्री। एकबार तांत्रिक बाबा माया को बस में कर लें। उसे मजबूर कर दें कि अपना श्राप वापस ले ले। फिर सब सही हो जाएगा।"
उमा किसी काम से आंगन में आई थीं। किशोरी की बात उनके कानों में पड़ी तो वह बोलीं,
"अब क्या सही हो जाएगा जिज्जी। माया के श्राप ने सर्वनाश तो कर ही दिया है। अब बचा क्या है ?"
उमा इधर किशोरी की बातों को काटने लगी थीं। किशोरी को बुरा लगता था। फिर सोचती थीं कि जवान बेटे की मौत के गम के कारण इस तरह बात कर रही है। आज भी उन्हें बुरा लगा। उन्होंने संयत में रहते हुए कहा,
"क्या हो गया है उमा तुमको ? इस तरह की बातें करने लगी हो। कुछ ठीक क्यों नहीं हो सकता है ?"
उमा की जगह बद्रीनाथ बोले,
"जिज्जी वैसे उमा गलत भी क्या कह रही है। सही होने के लिए बचा क्या है। पुष्कर तो वापस आ नहीं सकता है।"
इस बार किशोरी कुछ गुस्से से बोलीं,
"ना तुम सही हो और ना ही उमा। माना पुष्कर वापस नहीं आ सकता है। विशाल तो है। उसकी ज़िंदगी दोबारा शुरू हो सकती है।"
बद्रीनाथ ने कहा,
"जिज्जी उसका होना भी क्या मायने रखता है। हर चीज़ से तो उसने खुद को दूर कर लिया है। दिनभर या तो ऊपर अपने कमरे में पड़ा रहता है या तालाब वाले मंदिर में जाकर बैठ जाता है। अभी भी वहीं गया होगा। बस निरुद्देश्य सा जी रहा है। दोबारा ज़िंदगी शुरू करने का कोई लक्षण तो दिखता नहीं है।"
उसी समय दरवाज़े पर दस्तक हुई। बद्रीनाथ ने जाकर दरवाज़ा खोला। विशाल अंदर आ गया। एकबार आंगन में चारों तरफ देखा। फिर सीढ़ियां चढ़कर ऊपर चला गया। बद्रीनाथ ने किशोरी की तरफ देखा। किशोरी जय भोलेनाथ बोलकर चारपाई पर लेट गईं।