Wo Maya he - 36 books and stories free download online pdf in Hindi

वो माया है.... - 36



(36)

सूरज से मिलने वाले अपमान ने चेतन के मन में उसके लिए एक घृणा पैदा कर दी थी। वह अक्सर सोचता था कि उसे सबक सिखाए लेकिन उसकी हिम्मत नहीं पड़ती थी। वह अपनी स्थिति को समझता था। दुनिया में उसका कोई नहीं था। कोई ऐसा ठिकाना नहीं था जहाँ वह जा सके। वह इतना पढ़ा लिखा था नहीं कि कहीं कोई अच्छी नौकरी ढूंढ़ लेता। सूरज ने उसे काम दिया था। बासी ही सही पर पेट भरने के लिए खाना मिल जाता था। रात में सड़क पर नहीं सोना पड़ता था। यही सोचकर वह चुपचाप सब सहन कर रहा था।
चेतन जितना दबता था सूरज उस पर उतना ही हावी हो रहा था। छोटी छोटी गलतियों पर उसे बुरी तरह झिड़क देता था। उससे कहता था कि वह कामचोर है। मुफ्त की रोटियां तोड़ रहा है। उसे बुरा लगता था पर खून का घूंट पीकर रह जाता था। आज तो सूरज‌ ने अति कर दी। गाली देने और झिड़कने के साथ उस पर हाथ उठाया। उसे लात मारी।‌
अपना यह अपमान चेतन सह नहीं पा रहा था। उसे लग रहा था कि ऐसी जिल्लत भरी ज़िंदगी से तो मर जाना अच्छा है। वह सोच रहा था कि अपनी ज़िंदगी को खत्म कर ले। वह विचार कर रहा था कि क्या करे जिससे इस जीवन से छुटकारा मिले। तभी उसके मन से आवाज़ आई,

'मरने की बात सोच सकते हो। पर सूरज का विरोध करने की हिम्मत नहीं कर सकते हो‌। मरने से अच्छा है कि उसकी नाइंसाफी सहना बंद कर दो। आवाज़ उठाओ। उसके खिलाफ जाओ।'

मन की इस फटकार ने चेतन को कुछ हिम्मत दी। वह इस विषय में सोचने लगा। अभी तक वह समझ नहीं पाता था कि करे क्या‌ जिससे सूरज का विरोध कर सके ? लेकिन आज‌ उसके मन में कोई दुविधा नहीं थी। वह जानता था कि उसे क्या करना है। सूरज ने उसे वह बात पुलिस को बताने से मना की थी जो पुष्कर की हत्या से संबंधित हो सकती थी। उसने इंस्पेक्टर हरीश को वह बात बताने का निश्चय किया।
इंस्पेक्टर हरीश ने उसे अपना फोन नंबर दिया था। सूरज ने एक पुराना मोबाइल चेतन को दे दिया था। अक्सर वह चेतन को ढाबे का सामान लाने बाहर भेजता था। तब वह इस फोन के ज़रिए उससे संपर्क रखता था। चेतन ने अलमारी से अपना फोन उठाया। उसने इंस्पेक्टर हरीश का नंबर सेव कर रखा था। लेकिन बहुत रात हो गई थी। इस समय कॉल करना ठीक नहीं था। पर वह नहीं चाहता था कि सुबह तक उसका संकल्प कमज़ोर हो जाए। इसलिए उसने इंस्पेक्टर हरीश को छोटा सा मैसेज भेजा,
'कल‌ बात करनी है...चेतन'
चेतन ने सेंड का बटन दबाया ही था जब उसे लगा कि सूरज‌ उसके पीछे खड़ा है। सूरज ने कड़क कर कहा,
"हमारा काम छोड़कर यहाँ कैसे आ गए ‌? फोन पर क्या कर रहे थे ?"
सूरज की आवाज़ सुनकर चेतन डर गया। कुछ समय पहले सूरज‌ का विरोध करने की जो बात उसके मन में थी वह इस तरह से गायब हो गई थी जैसे जलता हुआ कपूर। फोन उसके हाथ से गिर गया। सूरज ने फोन उठाया तो उसे इंस्पेक्टर हरीश को भेजा गया मैसेज दिखा। उसने घूरकर चेतन की तरफ देखा। उसके बाद उसके बाल पकड़ कर बोला,
"पुलिस वाले से क्या बात करनी है तुझे ?"
चेतन रोने लगा। सूरज ने अपनी पकड़ कसते हुए कहा,
"तेरी इतनी हिम्मत कि तू हमारे मना करने पर भी उससे बात करेगा।"
सूरज ने बुरी तरह से चेतन को पीटा। उसे दर्द में कराहता छोड़कर अपने कमरे में चला गया।

इंस्पेक्टर हरीश अपनी पत्नी के साथ कुछ बात कर रहा था। उसका फोन चार्जिंग पर लगा हुआ था। उसने मैसेज अलर्ट सुना। वह उठकर अपना फोन लेने जा रहा था तभी उसकी पत्नी ने कहा,
"वैसे तो हमेशा अपने काम में लगे रहते हो। अभी इतनी ज़रूरी बात कर रही हूँ तो भी तुम्हारा ध्यान फोन में लगा है। अभी मेरी बात सुनो। बाद में देख लेना।"
इंस्पेक्टर हरीश वापस अपनी जगह पर बैठ गया। उसने कहा,
"इसमें इतना सोचने वाली क्या बात है। अगर तुम्हारे मम्मी पापा ले जा रहे हैं तो चली जाओ उनके साथ घूमने। मुझे तो छुट्टी मिलना मुश्किल है। तुम्हें जो खरीदारी करनी हो कर लो। जितने पैसे चाहिए बता देना।"
"ठीक है.....पर सोच लो। मम्मी कह रही थीं कि बीस दिन का टूर है। तुम मैनेज कर पाओगे।"
"तुम मेरी फिक्र मत करो। मैं मैनेज कर लूँगा।"
अपनी पत्नी को चिंता में देखकर इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"देखो मुझे तो तुम्हें घुमाने फिराने का समय मिलता नहीं है। अब मौका मिल रहा है तो चली जाओ। लेकिन कोशिश करना कि अपना खर्च खुद करो। इसलिए कह रहा था कि ज़रूरी चीज़ें खरीद लो और जितने पैसे चाहिए ले जाना। बहुत मत सोचो। मम्मी को बता दो कि तुम भी चल रही हो।"
उसकी पत्नी की चिंता दूर हो गई। वह अपनी मम्मी को फोन करने लगी। इंस्पेक्टर हरीश ने उठकर मैसेज देखा। उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई।

सूरज अपने कमरे में इधर से उधर चक्कर लगा रहा था। गुस्सा दूध के उफान की तरह आया था। उसके आवेग में उसने चेतन को बुरी तरह पीट दिया था। पर अब वह चिंता में था। चेतन ने इंस्पेक्टर हरीश को मैग्सेज भेजा था। सूरज सोच रहा था कि मैसेज पढ़कर कल वह चेतन से मिलने आएगा। चेतन की बुरी हालत देखकर पूछेगा कि उसे क्या हुआ है। चेतन सब बता देगा। उसे लगेगा कि सूरज सच छुपाना चाहता था इसलिए उसने चेतन को इस तरह मारा है। वह तो चेतन को वह बात बताने से इसलिए मना कर रहा था ताकि पुलिस उसे परेशान ना करे। लेकिन अब तो परेशानी बहुत बढ़ गई थी। पुलिस सूरज‌ को मारपीट के इल्ज़ाम में गिरफ्तार भी कर सकती है। अब सूरज पछता रहा था कि उसने गुस्से में ऐसा काम क्यों किया। उसने सोचा कि जाकर चेतन से बात करता है।
सूरज जब रसोई में पहुँचा तो चेतन अपनी जगह पर नहीं था।‌ उसने इधर उधर देखा। चेतन नहीं दिखा। उसने ढाबे में हर तरफ देखा चेतन कहीं नहीं था। सूरज परेशान हो गया। वह सोच रहा था कि चेतन आखिर कहाँ चला गया। उसके मन में आया कि कहीं पुलिस स्टेशन तो नहीं चला गया। यह खयाल मन में आते ही वह और परेशान हो गया। वह सोच रहा था कि अब चेतन पुलिस को जाकर मारपीट के बारे में बताएगा। साथ ही उस दिन की बात भी बताएगा। वह बुरी तरह फंस जाएगा। वह सोचने लगा कि इस मुसीबत से कैसे बच सकता है। उसके मन में आया कि पुलिस स्टेशन यहाँ से दूर है। चेतन पैदल ही निकला होगा। वह जिस तरह कराह रहा था बहुत तेज़ चलने की स्थिति में नहीं होगा। वह चाहे तो उसे रास्ते में ही रोक सकता है। यह विचार आते ही वह उठा। अपनी बाइक निकाली और चेतन को रोकने चल दिया।
मोटरसाइकिल लेकर वह रास्ते पर नज़र रखते हुए चला जा रहा था। लेकिन चेतन उसे दिखाई नहीं पड़ रहा था। चलते हुए वह पुलिस स्टेशन के पास पहुँच गया। उसे लगने लगा कि उसे देर हो गई। शायद चेतन पुलिस स्टेशन पहुँच गया होगा।‌ हो सकता है पुलिस उसे गिरफ्तार करने के लिए निकलने वाली हो। वह पुलिस की गिरफ्त में नहीं आना चाहता था। क्या करे उसकी समझ में नहीं आ रहा था। कुछ देर सोचने के बाद उसे लगा कि भागकर जाने के लिए उसके पास कोई जगह नहीं है। उसने सोचा कि भाग भी गया तो पुलिस पीछा नहीं छोड़ेगी। इसलिए ढाबे पर‌ जाता है। पुलिस आएगी तो वह अपना पक्ष‌ रखेगा।
सूरज ढाबे पर वापस लौट आया। उसे लग रहा था कि शायद पुलिस इंतज़ार करती मिले। लेकिन ढाबे पर कोई नहीं था। देर रात तक उसने इंतज़ार करता रहा। सूरज को लग रहा था कि जैसा उसने सोचा था वैसा नहीं हुआ। चेतन पुलिस स्टेशन नहीं गया। वह कहीं और ही गया है। कहाँ गया है वह कह नहीं सकता था। उसने तय कर लिया था कि पुलिस के आने पर क्या कहेगा।
सुबह छह बजे रोज़ की तरह बाकी के लोग काम पर आ गए। उन्होंने चेतन के बारे में पूछा। सूरज ने कह दिया कि वह कल ढाबा बंद होने के बाद ही कहीं चला गया। अभी तक लौटकर नहीं आया है।
सुबह नौ बजे के करीब इंस्पेक्टर हरीश कांस्टेबल शिवचरन के साथ आया। उसने सूरज से कहा कि उसे चेतन से मिलना है। सूरज ने उसे वही बताया जो अपने ढाबे पर काम करने वाले लोगों से कहा था। उसकी बात सुनकर इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"तुम्हारा कहने का मतलब है कि दस बजे ढाबा बंद होने के बाद वह कहीं चला गया। पर तुमने तो कहा था कि वह अनाथ है और उसका कोई नहीं है।"
"कहा था सर....वह सचमुच अनाथ है। पर फिर भी महीने में एकबार वह कहीं जाता है। कोई दिन फिक्स नहीं है। जब वह कहता है तब हम जाने देते हैं।"
शिवचरन ने सवाल किया,
"तुमने पूछा नहीं कहाँ जाता है ?"
"एकबार पूछा था। उसने कहा कि उसका पर्सनल मैटर है। उसके बाद हमने पूछा नहीं।"
सूरज ने महसूस किया कि इंस्पेक्टर हरीश और कांस्टेबल शिवचरन दोनों को ही उसकी बात पर यकीन नहीं हो रहा है। उसने कहा,
"चेतन के पास रहने की जगह नहीं थी इसलिए तरस खाकर उसे यहाँ रहने देते हैं। इसका मतलब यह तो नहीं है कि हम उसकी हर बात जानते हैं।"
इंस्पेक्टर हरीश कुछ सोच रहा था। तभी एक फोन आया। खबर सुनकर उसने सूरज की तरफ घूरकर देखा। इंस्पेक्टर हरीश ने कहा,
"ढाबे और थाने के बीच एक सुनसान जगह पर चेतन की लाश मिली है।"
यह सुनकर सूरज परेशान हो गया।

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