सबा - 17 Prabodh Kumar Govil द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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सबा - 17

रास्ते भर बिजली कुछ न बोली। वह किसी कठपुतली की तरह साथ चलती रही।
उसने अपने चेहरे को इस तरह ढक रखा था कि वो तो उन सबको अच्छी तरह देख पा रही थी लेकिन उनमें से कोई भी उसका चेहरा नहीं देख पाया था। किसी ने ऐसी कोशिश भी नहीं की। उस बड़ी सी जीप में कुल छः सात लोग थे।
लंबा रास्ता था। लगभग दो घंटे का सफ़र करने के बाद जब एक छोटे से गांव के ढाबे पर गाड़ी रुकी तो सब लोग नीचे उतर गए लेकिन बिजली उसी तरह पीछे की सीट पर अकेली बैठी रही जहां वो अब तक बैठी आई थी।
एक बूढ़े से दिखने वाले सज्जन ने अपने साथ चल रही औरत से कहा - उस छोरी को भी पूछ ले, कुछ खाए पिए तो! उतरे तो बुला ले।
लेकिन उस प्रौढ़ महिला को अपने पति का इस तरह किसी गैर लड़की में रुचि लेना शायद जंचा नहीं। उसने उपेक्षा से कहा, भूखी क्यों होगी! अभी तो सगाई से आ रहे हैं सब। मेरा तो खुद का ही पेट गले तक भरा है।
बिजली ने ये वार्तालाप सुनने के बाद नीचे उतरने का इरादा बिल्कुल ही छोड़ दिया। वैसे भी उसकी इच्छा थी नहीं, क्योंकि उस मंडली में कोई उसके साथ का नहीं था। वो सभी एक ही परिवार के लोग दिखाई देते थे। चार पुरुष थे और तीन महिलाएं। एक - दो को छोड़ कर सभी बड़ी उम्र के लोग।
रास्ते में भी उन लोगों ने आपस में कोई ज़्यादा बातचीत नहीं की थी जिससे बिजली को अब तक यह पता नहीं चला कि ये लोग कौन हैं और इनमें आपस में क्या रिश्तेदारी है।
करना भी क्या था जानकर।
बिजली का तनाव अभी तक दूर नहीं हुआ था। वह राजा के कहने से गाड़ी में बैठ ज़रूर गई थी लेकिन उसका गुस्सा अभी तक जस का तस था।
गुस्से की तो बात ही थी। राजा ने हद कर दी थी। बिजली अपना आपा खो बैठी और उसने राजा का हाथ मजबूती से पकड़ लिया था।
वो तो अच्छा हुआ कि किसी को कुछ पता नहीं चला वरना वहां भीड़ भरे घर में भारी तमाशा खड़ा हो सकता था।
दरअसल बिजली तो चमकी के साथ नंदिनी के घर उसकी सगाई में आई थी। चमकी वहां जाते ही सबके साथ व्यस्त हो गई क्योंकि वो नंदिनी के घर में सबको जानती थी। बिजली गुमसुम सी आंगन के एक कौने में अकेली खड़ी थी कि तभी उसकी निगाह बाहर कुछ दूरी पर खड़े बातें कर रहे लड़कों के एक झुंड पर पड़ी जिनमें उसे राजा भी दिखाई दे गया। बिजली को सहसा विश्वास नहीं हुआ। वह चौंक कर उधर देख ही रही थी कि उसे अकेला राजा कुछ फासले पर खड़ी हुई जीप की दिशा में जाता दिखाई पड़ा।
वह आगा - पीछा सोचे बिना उस ओर दौड़ पड़ी। राजा भी उसे वहां देख कर हतप्रभ रह गया।
घर की कुछ महिलाओं ने दूर से वो दृश्य देखा तो सांस रोक कर देखने लगीं कि ये कौन लड़की है जो होने वाले दूल्हे के पास दौड़ कर पहुंची और उससे बात करने लगी।
इधर के लोगों ने सोचा कि वो दूल्हे के साथ आने वाली मंडली में से ही कोई है तो लड़के के परिजनों ने सोचा कि होने वाले जीजा से हंसी - ठिठोली करने कोई पूर्व परिचित साली उसे घेर रही है। किसी ने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।
बिजली को वहां देख कर राजा के चेहरे का रंग उड़ गया। वह एकाएक गिड़गिड़ाया, बोला - कुछ मत सोचना बिजली, ये सब झूठ है, बिल्कुल गलत...
- अच्छा, अब भी फरेब? झूठ पर झूठ। कसम खाई थी न तूने मेरी और अपनी मां की?? अरे शर्म कर, मुझे तो कहीं भी मरने दे, पर कम से कम अपनी मां की जान का सौदा तो मत कर...
- बिजली मैं कसम खाता...
- फिर कसम! अरे जा रे कसमवीर!!
लेकिन इससे पहले कि और कोई भी लोग वहां आकर उनका वार्तालाप सुनें, राजा ने बिजली से कहा - नहीं मानती तो हिम्मत कर बिजली... अभी लौटेंगे, हमारे साथ चल, तुझे सब पता चल जाएगा।
राजा ने ही बिजली से कहा कि चलते समय इस गाड़ी में बैठ जाना। मैं दूसरी गाड़ी में साथ ही रहूंगा। घबराना मत। कल मैं खुद तुझे छोड़ने वापस तेरे घर आऊंगा। कम से कम तेरी गलत - फहमी तो दूर होगी।
... चल तेरी एक और सही! पता तो चलेगा कि दुनिया कैसी है? और बिजली राजा की बात पर विश्वास करके इस तरह सबकुछ भुला कर चली आई थी।
थोड़ी देर के विश्राम के बाद दोनों गाड़ियां फिर चल दीं, किसी अनजाने गंतव्य की ओर!