सबा - 15 Prabodh Kumar Govil द्वारा मनोविज्ञान में हिंदी पीडीएफ

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सबा - 15

- तू चलेगी?
- कहां!
- मेरी सहेली के घर।
- क्यों, क्या है वहां? बिजली ने कहा।
- आज उसकी सगाई है रे। चमकी ने चहकते हुए कहा।
- तो मैं चल कर क्या करूंगी, तुम जाओ। सहेली तुम्हारी है। मेरा वहां क्या काम। बिजली ने पल्ला झाड़ते हुए कहा।
- काम तो किसी का भी क्या होता है सगाई में। मौज मस्ती करेंगे, खायेंगे - पियेंगे और...
- ...और? बिजली ने उत्सुकता से पूछा।
- उसके दूल्हे को देखेंगे। चमकी ने मानो कोई रहस्य खोल कर पटाक्षेप कर दिया।
बिजली बुझ सी गई। फ़िर मंद स्वर में बोली - दूल्हे को क्या देखना है? एक जैसे होते हैं सभी!
अब चमकी चौंकी। गरज कर बोली - ऐ, क्या हुआ है तुझे? तू हमेशा ऐसे उखड़ी- उखड़ी क्यों बोलती है? जब देखो तब ऐसी ही उदासी भरी बातें करती है। चमकी मानो बिजली को डांटने ही लगी।
फिर सुर बदल कर धीरे से उसे समझाती हुई बोली - तू सचमुच चल मेरे साथ। जी बहल जायेगा तेरा, लगता है तेरी तबीयत ठीक नहीं है। बाहर निकलेगी तो थोड़ा हवा पानी बदल जाएगा। अच्छा लगेगा तुझे। कहते- कहते चमकी ने न जाने कहां से निकाल कर एक सुंदर सा सूट भी उसके सामने रख दिया। बोली - ये पहन, तुझ पर बहुत जमेगा।
बिजली की आंखों में चमक आ गई। सूट को उठाती हुई उस पर हाथ फेरकर बोली - दीदी, बुलाया तो तुझे है उसने, मेरा चलना क्या ठीक रहेगा?
चमकी ने उसकी ओर गौर से देखते हुए आंखें तरेरी। बिजली इतने भर से ही सकपका गई। बोली - अच्छा बाबा चलती हूं तुम्हारे साथ।
कुछ देर बाद ही चमकी और बिजली सज- धज कर अपने सैंडिलों से खट - खट करती सड़क पर थीं।
ई - रिक्शा से उतर कर जब उस घर के ठीक सामने पहुंचे तो बिजली बोल पड़ी - ओह, अच्छा- अच्छा, नंदिनी की सगाई है क्या? मैं तो सालों से उसे मिली नहीं हूं।
दरअसल चमकी और बिजली के साथ ही स्कूल में पढ़ने वाली नंदिनी से बिजली का बरसों से मिलना हुआ ही नहीं था। उसे कुछ मालूम नहीं था कि नंदिनी कहां है, क्या कर रही है। वैसे भी, स्कूल में सब साथ में थे ज़रूर, लेकिन उसकी दोस्ती तो चमकी से ही थी। बिजली को तसल्ली सी हुई कि चलो किसी अजनबी परिवार में तो नहीं ले आई है चमकी उसे।
दूसरे मेहमान लोग और लड़के वाले ज़्यादा लोग नहीं थे। सामने के बड़े से चौक में सबका बैठने का इंतज़ाम था।
पीछे के दरवाजे से बच्चों की भीड़ के बीच से रास्ता बनाती दोनों भीतर कमरे में निकल गईं। नंदिनी बिजली को देख कर बड़ी खुश हुई।
मुश्किल से दो घंटे में सब काम निपट गया। अपनी सहेलियों के बीच पहुंच कर चमकी को तो ये भी याद नहीं रहा कि बिजली कहां है।
जब वापस लौटने का समय आया तो वो इधर- उधर देखती बिजली को ढूंढने लगी।
लड़के वाले चले गए थे। ज्यादातर मेहमान भी या तो चले गए थे या फिर निकलने की तैयारी में थे। अफरा- तफरी सी मची हुई थी।
लगता है कि बिजली को भी कोई सहेली मिल गई होगी तो उससे बातें करने में कहीं इधर- उधर हो गई होगी, यही सोचती चमकी उसे तलाश करने लगी। लेकिन जब उसे बिजली नहीं दिखी तो वह कुछ हड़बड़ाती सी उसे खोजने लगी।
कहां चली गई बिजली? इसे देखो, गाय सी सीधी- सादी लड़की है इसे मुंह से कुछ बोलने में भी शर्म आती है। कहीं जा रही थी तो कह कर तो जाती। चमकी अब मन ही मन बिजली पर बिगड़ने लगी थी। और क्या? बता कर तो जाना चाहिए न, कहां चली गई। अब ये अच्छा लगता है कि सगाई के घर में किसी खोए हुए बच्चे की तरह चमकी उसे तलाश करती फिरे। किसी से कुछ पूछ भी नहीं सकते!
चमकी पैर पटकती हुई यहां से वहां झांकती रही।