में और मेरे अहसास - 85 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 85

रेत का महल बसाया था l

खूबसूरत आशियाना था ll

 

साथ साथ जीने के लिए l

अरमानो से सजाया था ll

 

देखने वाले भी रश्क करे l

बड़े चाव से सँवारा था ll

 

मुहब्बत की निशानी में l

संगेमरमर लगाया था ll

 

फरिश्तों ने आकर सखी l

पाकीज़गी से बनाया था ll

 १६-८-२०२३ 

 

 

बचपन के दिन सुहाने थे l

वो सच्चे और रूहाने थे ll  

 

चाहत चांद को पाने की l

हसी परियों के ज़माने थे ll

 

बारिस में काग़ज़ की नाव l

खिलोने को गले लगाते थे ll

 

हसीं ठिठोली सँग खेल कूद l

यार दोस्त बड़े मस्ताने थे ll

 

रोने की कोई वजह नहीं l

कहानियों में अफ़साने थे ll

१७-८-२०२३ 

 

आँखों के समन्दर में डूबना चाहते हैं l

प्यार का खजाना लूटना चाहते हैं ll

 

मेरे पास मेरे अलावा कुछ नहीं बचा l

आख़िर सब मेलों से छूटना चाहते हैं ll

 

ज्यादा ही तेज़ लम्बी दौड़ हो गई है l

लम्हा दो लम्हा अब रुकना चाहते हैं ll

 

तकदीर में तरसना क्यूँ लिख दिया?

खुदा मिल जाए तो पूछना चाहते हैं ll

 

इजाज़त हो तो इतनी शरारत कर ले l

महबूब के सजदे में झुकना चाहते हैं ll

१८-८-२०२३ 

 

 

बुढ़ापा में तजुर्बा होता है l

जवानी में अजूबा होता है ll

 

चहेरे पर सुर्खियों से क्यूँ?

परेशान दिलरुबा होता है l

 

निगाहें सोने नहीं देती है l

जाम ही हमजुबा होता है ll

 

चाहत की इन्तहा तो देखो l

सखी प्यार सूबा होता है ll

 

बचपन से बुढ़ापे तक l

जीस्त में मर्तबा होता है ll

१९-८-२०२३ 

 

फूल मुस्कुराना सिखाते हैं l

प्यार में अजूबा दिखाते हैं ll

 

चल एक साथ बेठकर कहीं l

मुहब्बत का जाम पिलाते है ll

 

अकेले में सब से छिपकर l

आँखों से अश्क मिटाते है ll

 

कुछ उलझने कुछ कोशिशे l

तारे गिनके रात बिताते हैं ll

 

जान लेके जिंदा छोड़ देके l

ख़ुद से ख़ुद को मिलाते हैं ll

२०-८-२०२३ 

 

मिट्टी की खुशबु दिल में बसा ले l

क़ायनात में प्यार का दीप जला ले ll

 

हर कोई शहर वीरान कर रहा है l

आज उजड़ ने से बस्तियाँ बचा ले ll

 

लोग फ़ूलों से मार डालते हैं सखी l

हो सके दिलों से नफरते मिटा ले ll

 

अपने आप में हौसला बढ़ाकर l

ग़लत को ग़लत बोलके दिखा दे ll

 

ये अलग बात है शराबी नहीं है l

हाथों से नहीं नजरों से पिला दे ll

२१-८-२०२३ 

 

 

सरहद पे सैनिक शौर्य दिखाते है l

घर में वीरांगना शौर्य दिखाती है ll

 

पाती हैं दो पल सुकूं आँख बंध करके l

ताउम्र याद में ज़िन्दगी बिताती है ll

 

खुशीयाँ जल्द ही दामन भर देगी l

अपनों को ये दिलासा दिलाती है ll

 

हौसलों से जीवन में आगे बढ़कर l

खुशियो का महासागर पिलाती है ll

 

परेशानीयों को मात देकर दिन रात l

जिंदादिली से परिवार को जिताती है ll

२२-८-२०२३ 

 

बच्चे के आँसूं से भीगता आँचल l

उसकी हसीं से खिलता आँगन ll

 

क्या कहें कुछ कहा भी नहीं जाता l

अल्फाज़ में छलकता अपनापन ll

 

असर देखो बेजुबान प्यार में l

माँ के साथ जुड़ा होता है मन ll

 

धरा से सदा जुड़े रहना चाहिए l

पंचभूत मिट्टी से बना है तन ll

 

जो मिल नहीं सकता उसे पाने की l

जिद बनता है आँसू का कारन ll

२३-८-२०२३ 

 

आओ आज हाथों से चांद छुने चले l

गले मिल दिल के अरमान पूरे करे ll

 

कई दिमाग वालो की कोशिशों रंग लाई l

सालोंसे सबके जिगरमें ख्वाहिश पले ll

 

दूर से देखते रहते थे मुरादों से रात में l 

आ नजदीकी से बड़ी मुहब्बत से मिले ll

 

बाद मुद्दतों के तक़दीर ने साथ दिया l

जीभर देख ले, कोई न रह जाए गिले ll

 

चाहत मिलने की आज पूरी हो गई है l

चल चंदा की जमीन पर निशानी सिले ll

२४-८-२०२३ 

 

हरी भरी वसुंधरा देख मन पुलकित हो उठा l

मदभरी फ़िज़ाओं का लुफ्त उठाने मैं चला ll

 

हरियाली के साथ गुफ़्तगू करके आज सखी l

दिलों औ दिमाग को अजीब सा सुकूं मिला ll

 

जैसे कि धरती पर जन्नत की हूर उतर आई l

बेहतरीन नजारों ने रोमटे को दिया हिला ll

 

यादों में बसा लेगे कुदरत की कारीगरी को l

बेनमून व अफलातून क़ायनात की है लिला ll

 

चारौ ओर खुशियों की बारिस हो रहीं हैं देख l

फूलों की जाजम का रंग लीला पिला निला ll

२५-८-२०२३ 

 

हीना के खिलते रंग की सुर्खी गालों पर महके है l

नजर से नजर मिलते ही मन का मोर चहके है ll

 

तेरे काफ़िले के साथ चलने का जुनून सिर चढ़ा है l

जरा सा पास आए तो दिल का खिलौना बहके है ll

 

 

मुकम्मल दीदार के लिए खिड़की से झाकते रहते हैं l

चांद देखने के अरमान दिन रात सीने में दहके है ll

 

पांच मिनिट भी बात होती है तो जी बहल जाता है l

याद करते ही चहरे का नूर लज्जा से लहके है ll

 

लम्हों का इश्क़ नहीं सदियों की इबादत है सखी l

रोज ख्वाबों में आ जाते हैं जो ना आने का कहके है ll 

२६-८-२०२३ 

 

रक्षाबंधन का त्योहार है आया l

संग प्रीत के धागों को है लाया ll

 

पवित्र सच्चा भाई बहन का प्यार l

स्नेह का सागर उमड़ के आया ll

 

राखी के अनूठे बंधन में बाँध के l

ताउम्र रक्षा का आशीर्वाद पाया ll

 

नकचढ़ी नखरारी प्यारी बहना पर l

भाई का साथ रहता जैसे साया ll

 

भाई बहना का रिसता है निराला l

अनमोल बेनमून तोहफ़ा भाया ll

 

सदा खुशियाँ से फूले फले वीरा l

बहन के रूप में माँ की छाया ll

२७-८-२०२३ 

 

ये जीवन है एसे भी फ़साने होगे l

अब अश्कों को भी छुपाने होगे ll

 

इस क़दर डूब है अपनेआप में l

बिना आवाज़ के ज़माने होगे ll

 

प्रेम को जिंदा रखने के लिए l

मुहब्बत के खजाने लुटाने होगे ll

 

सखी साज ए नगमा छेड़ दो कि l

दिल बहलाने को सुनाने होगे ll

 

पत्थर को नरम बनाना है तो l

रूठे हुए को खुद मनाने होगे ll

 

चुप रहके मुस्कराना पड़ता है l

रिसते सिद्दत से निभाने होगे ll

२८-८-२०२३ 

 

रक्षाबंधन का त्योहार है आया l

संग प्रीत के धागों को है लाया ll

 

पवित्र सच्चा भाई बहन का प्यार l

स्नेह का सागर उमड़ के आया ll

 

राखी के अनूठे बंधन में बाँध के l

ताउम्र रक्षा का आशीर्वाद पाया ll

 

नकचढ़ी नखरारी प्यारी बहना पर l

भाई का साथ रहता जैसे साया ll

 

भाई बहना का रिसता है निराला l

अनमोल बेनमून तोहफ़ा भाया ll

 

सदा खुशियाँ से फूले फले वीरा l

बहन के रूप में माँ की छाया ll

२७-८-२०२३ 

 

दुनिया रंगीन हो गई तेरे आने के बाद l

गंभीर संगीन हो गई तेरे आने के बाद ll

 

तेरी हर धड़कन मेरे दिल में धडकती है l

तुझ में लीन हो गई तेरे आने के बाद ll

 

सुनो तुम कहीं भी रहो, रहोगे मुझ में ही l

जल की मीन हो गई तेरे आने के बाद ll

 

 

दुआ आमीन हो गई तेरे आने के बाद ll

 

 

 

 

चंचल मन बावरा हो गया है l

खुली फिजाओं में उड़ रहा है ll

 

राहों में ख़ुद का इंतजार किया l

वहा है प्रियतम रहता जहां है ll

 

चाहो तो एक बार आजमा लेना l

सखी नहीं ढूँढ सकोगे वहां है ll

 

सारी उम्र आरज़ू में ही कट गई l

कब से ढूंढते है सुकूं कहां है ll

 

मुहब्बत लिबास नहीं के बदलें l

दर्द जुदाई का ताउम्र सहा है ll

३१-८-२०२३ 

 

मैं और मेरे कृष्णा 

कृष्ण की दिवानी बांसुरी आज दिवाना बना रहीं हैं l

कृष्णा की आश में वन उपवन सुरों से सजा रहीं हैं ll

 

कुछ ज़ख्म सयाने हो गये हैं कि दर्द भी नहीं देते l

सोए हुए बैचेन और बैखोफ अरमान फ़िर जगा रहीं हैं ll

 

बेपन्हा बेइंतिहा प्यार में पागल और दिवानी होकर l

प्रिये को रिझाने वो होठों से लग के दिल लगा रहीं हैं ll

 

अनगिनत छेद ही छेद अंदर और बाहर होते हुए l

फासला कम करने खुद को खुद के भीतर समा रहीं हैं ll

 

फ़िज़ाओं में मदमस्त बहलाने वाली सुरावली छेड़ कर l

सखी को मुहब्बत की राग और रागिनी सुना रहीं हैं ll

३१-८-२०२३ 

सखी

दर्शिता बाबूभाई शाह