नेताजी सुभाषचंद बोस राज बोहरे द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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नेताजी सुभाषचंद बोस

नेताजी जिनका जीवन खुद उपदेश है
15 अगस्त सन 1947 को जब लाल किले से आजादी का परचम फहराया जा रहा था, एक शायर ने कहा था-
आज हम आजाद हैं हिंदुस्ता आजाद है,
यह जमीन आजाद है यह आसमा आजाद है!
गुरुद्वारे पर कलीसा पर हरम पर देर पर,
चाहे जिस मंजिल पर ठहरे कारवां आजाद है !!
कारवां को आजादी दिलाने वाले शहीदों के नाम पर अभी हमारे इर्द-गिर्द जिन व्यक्तित्व को महिमा मंडित किया जाता है, वे सब एकपक्षीय कार्यवाही अर्थात विनम्र और अहिंसक सेनानियों में से हैं ।लेकिन जिन लोगों को यथार्थ में स्वतंत्रता सेनानी यानी सैनिक या क्षत्रप कहा जाए, ऐसे लोगों के नाम पर हमारे देश के सरकारी साहित्य ने एक अजीब सी चुप्पी ओढ़ रखी है ।यह चुप्पी न केवल रहस्य मय है बल्कि इस देश की राष्ट्रीय चेतना से वोट प्राप्त रहने वालों के लिए एक बेचैनी पैदा करने वाली भी है। चुप्पी के घने कोहरे में छिप रहे जी ऐसे ही ओजस्वी व्यक्तित्व का नाम है- नेताजी सुभाष चंद्र बोस!
सही अर्थों में सेनानी कहे जाने वाले नेताजी ने जैसे बुद्धिमत्ता और वीरता के काम किए हैं, उनको याद करके हमारे देश के युवकों के माथे सदैव गर्व से ऊंचे उठे रहेंगे! आईसीएस की नौकरी में चयन प्राप्त करने के उपरांत उसे ठोकर मार देने वाले नेताजी को एक जमाने में चीता से ज्यादा फुर्तीला, शेर से ज्यादा खूंखार और मन की विचार गति से ज्यादा गतिशील माना गया था। जिन दिनों वे अंग्रेजों की आंख में धूल झोंक कर देश छोड़ गए थे, उन दिनों जर्मनी में हिटलर उनका इंतजार कर रहा था, और भी विश्व राजनीति को दृष्टिगत रखकर ही हिटलर से भेंट करने हेतु गंभीरता से निर्णय कर चुके थे। नेताजी हमारे देश की बुद्धिमत्ता के प्रतीक हैं ,बलिदानी तरुणाई के प्रतीक हैं ,चाणक्य जैसी वैचारिक चालों के कारण भी विश्व गुरु इस देश की परंपरा के प्रतीक है। उनका जीवन अपने आप में एक प्रेरणा शास्त्र है। उन्होंने अपने विचारों और भाषणों से उपदेश देने का ज्यादा याद नहीं किया, न ही वे भाषण बाजी और कागजी कार्रवाइयों में ज्यादा विश्वास करते थे । उनका एक ही सूत्र था, लक्ष्य पर पैनी निगाहें रखना और लक्ष्य भेद के लिए अचानक हमला कर देना। उनका जीवन युवकों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शिक्षा प्रदान करता है । आईसीएस जैसी शक्ति संपन्न प्रशासक की नौकरी को देश के लिए छोड़कर अनेक उपदेश दिखाते हैं ,देशहित को सर्वोपरि मानकर निजी सुख सुविधा राव रुतबा और शक्तियों को त्याग देना हर एक युवक का प्रथम कर्तव्य होना चाहिए । दुश्मन की गुलामी भरी बात सब से बढ़ाकर देश सेवकों के साथ सूखी रोटी खाना या भूखे रह जाना वे स्वीकार करते हैं और अपने आश्रम से सिद्ध भी करते हैं । जब सारे न्याय और मानवीय तर्क तिरोहित हो जाएं तो मैदान में आकर देश की अस्मिता की रक्षा करना भी इस आचरण से भी प्रकट करते हैं । सिंह की तरह अपने अब तक प्राप्त किए गए लक्ष्य, उद्देश्यों और स्वयं की योग्यता का परीक्षण भी अनिवार्य मानते हैं। इसलिए आईसीएस परीक्षा से खुद का सिंहावलोकन भी कर लेते हैं या फिर कितने चले? कैसे चल ?उन में कितनी योग्यता है? कि शेर की तरह इतनी चलकर मुड़कर देख पा रहे हैं ! उनका इस लीक पर बंध कर नहीं चलें । उनका जीवन इस घटना से यह संदेश देता है कि हम समय-समय पर खुद की योग्यता जांच दे ।
कांग्रेस दल में एक ऐसा समय आया था जब महात्मा गांधी की इच्छा के विरुद्ध नेताजी सुभाष चंद्र बोस चुनाव लड़कर अध्यक्ष पद पर विजई हुए थे ,बाद में बापू की उदासी देखकर उन्होंने अध्यक्ष पद का अपना त्यागपत्र भी बापू के पास भिजवा दिया था। इस घटना से उन्होंने यह उपदेश दिया कि समय पढ़ने पर न्याय और लोक का साथ देना चाहिए ,इसके विरोध में कितनी ही महत्वपूर्ण हस्ती क्यों ना बैठी हो! हां बुजुर्ग परिजनों का विरोध सहकर बादशाहत करने के लिए खिलाफ थे ,इसी कारण बापू के विरोध में बैठने के बाद भी उन्होंने चुनाव लड़ा ,अपनी लोकप्रियता जांची, और जीत का सेहरा बन्ध जाने के बाद बुजुर्गों का विरोध न करने की अपनी नीति के तहत अपने पद से त्यागपत्र देकर बापू को भिजवा दिया था ।
फारवर्ड ब्लॉक जैसे एक दल की स्थापना करके उन्होंने अपनी राजनीतिक विचारधारा का परिचय दिया था और दोस्त दुश्मन सबको हिला कर रख दिया था ।
एक कुशल शतरंज खिलाड़ी की तरह शह और मात की क्रिया में बड़े निपुण थे । अंग्रेज़ों को विश्व युद्ध में गहरी देखकर उन्होंने न केवल अन्य देशों में अपने मित्र पैदा किया, बल्कि आजाद हिंद फौज की स्थापना भी बाहर जाकर कर ली। उनको अपने अनुयायियों के रूप में समर्पित और जावाज साथी मिले। दुश्मन की असावधानी का लाभ देना एक बड़ी चतुराई है, अपने साथी खोज लेने की चतुराई आदमी को बड़े जतन से मिलती है और हर व्यक्ति को यह चतुराई सीख लेना चाहिए । यह चतुराई नेताजी सुभाष चंद्र बोस में थी।
जब देश को आजादी मिलने की मात्र कल्पना थी, तब नेताजी देश की प्रस्तावित मिलिट्री फोर्स, देश का प्रस्तावित नारा, देश का प्रस्तावित झंडा, राष्ट्रगीत और रेडियो प्रसारण की बात कर रहे थे
वह अपने योग से दशको बाद की बात सोच रहे थे विचार कर रहे थे, उस पर अमल कर रहे थे ।
वह दूरदर्शी प्रशंसक थे । उनसे बड़ा आशावादी स्वतंत्रता सेनानी इतिहास में दूसरा नहीं मिलता। अपने योग से आगे की सोच कर चलने की शिक्षा और विदेश में निर्देश भी अन्य सबको देते हैं। राष्ट्रीयता के अमर गायक कवि श्री कृष्णा सरल ने सुभाष चंद्र बोस पर लिखे अपने महाकाव्य में उस घटना का जिक्र बड़े मानववीय ढंग से किया है, जिसमें आजाद हिंद फौज के लिए आम आदमी से वह यथाशक्ति सहयोग मांगते हैं एवं जैसे समृद्ध व्यक्ति का प्रभाव था एक आकिंचन वृद्ध अपने अंतिम चांदी के गहने आजाद हिंद फौज को दान कर देती है और नेताजी की महानता देखिए कि वे उसकी श्रद्धा को हार्दिक धन्यवाद देकर गौरव मण्डित करते हैं। देश के लिए लड़ने वालों को छोटे से छोटे व्यक्ति द्वारा गया दिया गया दान भी बहुत कुछ होता है ,आकर में नहीं अभी तो भावार्थ में, सूक्ष्म अर्थ में।
कैसा दुर्भाग्य है कि हम शुद्ध स्वार्थ और मुंह में फंसकर राष्ट्र और कौम को बुलाकर बैठे हैं ,काम न करना हमारी शान है, लोगों को ठग लेना हमारा चातुर्य ,शासकीय धन यानी गवर्नमेन्ट मनी नुकसान कर देना हमारी बहुत बड़ी उपलब्धि हम मानते हैं । नैतिकता, निष्ठा और व्यस्त पर हमारे लिए शर्म और अपमान की बातें हो गई हैं। तो हमारा क्या होगा कि हम आजाद रहेंगे, कि हम मनुष्य हैं!
विश्वास करेगा कि हम सुभाष चंद्र बोस के उत्तराधिकारी हैं, कभी नहीं! कभी नहीं !
तो लिए हम किंचित बात तो उनका ध्यान करें ।पांच बात तो मानव मूल्य और भारत ताकि भारतीयता की रक्षा करें। अपने तथा मित्र गणों और स्वास्थ्य का प्रत्यय करें, सुभाष स्मृति वर्ष में इतना ही सही।