प्रेमचंद शैली में राज बोहरे - रूपेंद्र राज राज बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

प्रेमचंद शैली में राज बोहरे - रूपेंद्र राज

प्रेमचंद की यथार्थवादी शैली का अनुसरण राजनारायण बोहरे

रूपेंद्र राज..

Rew ,"मेरी प्रिय कथाएं"

पुस्तक : मेरी प्रिय कथाएँ

लेखक : राजनारायण बोहरे

पृष्ठ : 168

मूल्य : 349/-

प्रकाशक : ज्योतिपर्व प्रकाशन

पुस्तक समीक्षा : रूपेंद्र राज..

गद्य साहित्य में कहानियों का इतिहास लगभग सौ वर्ष पुराना है.हिंदी साहित्य में जो स्थान मुंशी प्रेमचंद को मिला वहां तक का सफर अभी तक किसी कहानीकार द्वारा तय नहीं किया गया .
जाहिर सी बात है इन सौ वर्षों में कहानी की विधा में आमूलचूल परिवर्तन हुए हैं .इन परिवर्तनों के साथ साहित्यकार अपने लेखन को निरंतर मांजते चले आ रहे हैं .
राजनारायण बोहरे प्रेमचंद की यथार्थवादी शैली का अनुसरण करते हुए अपने पात्रों के मनोविज्ञान से पाठकों पर गहरा असर छोड़ते हैं .विषय कोई भी हो उनके किस्सागोई उन विषयों को यथार्थ के तल तक पहुंचाती है.सतह पर तैरता पाठक विषय के तल पर जा डूबता है और प्रच्छ्वास वह कहानी उसके मस्तिष्क में लगातार मंथन करती रहती है .
राज बोहरे जी की कहानी के पाठ के बाद पाठक लंबे समय तक उसके असर से उभर नहीं पाता और स्मृतियों में अनिश्चितकाल तक वे कहानी अंकित हो जाती है.आपके तीन कहानी संग्रह आए हैं "इज्जत- आबरू", "गोष्टा तथा अन्य कहानियां, और "हादसा".आपका एक कहानी संग्रह ,"मेरी प्रिय कथाएं" जिसमें लगभग दस कहानियाँ प्रकाशित हैं. "चम्पा महाराज चेलम और प्रेम-कथा" एक ऐसी कहानी जिसे हर संभ्रांत वर्ग को पढ़ना चाहिए और समझना चाहिए कि कुल-जाति, वर्ण, परम्पराओं को किस तरह से व्यवस्थित किया जाता रहा है.यह एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण की कहानी है.अक्सर राज बोहरे जी की कहानियों में पात्र द्वारा किए गये संवाद इस श्रेणी में आते हैं जो कहानी को सपाट बयानी से बचाते हैं.एक विशेष बात इस कहानी में यह कि यह सुबह से प्रारंभ होकर शाम तक समाप्त हो जाती है. इसे कथा की श्रेणी में भी लिया जा सकता है क्यों कि सुबह से शाम तक केवल एक ही विषय पर मंथन करता पात्र अनेक पात्रों के आधे से अधिक जीवन का लेखा-जोखा अपनी स्मृति पटल से कह जाता है.इस कहानी की पृष्ठभूमि प्रेमचंद की कहानियों से मिलती जुलती किंतु कथावस्तु अलग कलेवर की कुछ और अधिक यथार्थवादी लगी. गांव के तीन मुख्य पात्र चम्पाप्रसाद, लूले कक्का और कालका प्रसाद. लूले कक्का इस कहानी का कथानक गढ़ता है,और चम्पाप्रसाद कथावस्तु तथा कालका प्रसाद कथ्य का विषय- सूत्र है जो कहानी में अदृश्य है.यह कहानी जात ,कुजात, वर्ण तथा क्षेत्रियता के पुरातन मूल्यों को तोड़ती दिखी, जिसका कारण अपने नीजी स्वार्थी के लिए कुलीनों द्वारा रूढ़ियों और परम्पराओं में लाए गये सामाजिक मूल्य तथा व्यवस्थाओं के परिवर्तन की पोल खोलती है."मृगछलना" शब्दों का अविष्कार ऐसे ही घटता है. इस कहानी का शीर्षक इतना सशक्त है कि इस एक शब्द में कहानी को समेटने की क्षमता रखता है, कुछ शीर्षक कहानी का अंत पूर्व में ही निर्धारित कर देते हैं. और कुछ शीर्षक पाठक की उत्सुकता बढ़ाते हैं और अंत में रहस्योद्घाटित करते हैं.इस शीर्षक ने पाठक को कहानी के अंतिम पंक्ति तक बांध कर रक्खा है. अंतिम पंक्ति पढ़ते ही सहसा इस शीर्षक के अर्थ का आभास होता है.युवा मन का आकर्षण जिसे वह भावनात्मक धरातल पर अपने मन-मस्तिष्क में परिकल्पित कर स्वयं को प्रेम छलना से चाह कर भी बाहर आने नहीं देता. "गवाही " हमरे परिवेश का एक घिनौना यथार्थ जहाँ अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए हत्या को सबसे सहज उपक्रम माना जाता है. हत्या भी किसी आम राह चलते व्यक्ति की नहीं बल्कि किसी प्रभावशाली व्यक्ति की जिससे जुड़े खासोआम दहशत से भर जाएं.एक लोमहर्षक घटना जिसमें वर्चस्व प्रधान लोगों द्वारा निरंतर ईमानदारी और सच्चाई की हत्या करने के वातावरण को पुष्ट किया है, कहानी चश्मदीद गवाह को अपने कर्तव्य से हटने को विवश करती यथार्थ स्थिति से रूबरू कराती है.
"बाजार वेब" यह कहानी भले ही साधारण सी घटना का उल्लेख लगती है किंतु भारतीय परिवेश में घरों में घुसते हुए बाजार पर तीखा व्यंग्य है. एक अति साधारण गृहणी को महत्वकांक्षा के चरम पर बिठा बाजारवाद की अंधी दौड़ में झोंक दिया जाता है. एक साधारण स्त्री की कुचली भावनाओं का दोहन किस तरह कुशलता से किया जा रहा है उसका सजीव चित्रण है ये कहानी.आम व्यक्ति जाल दर जाल में उलझता उत्पाद का एक हिस्सा बना दिया जाता है. लेखक ने बहुत ही सूक्ष्मता से वृद्धि के समीकरणों के प्रलोभन को पाठकों के सामने रखा है यह लेखक का विषय पर मज़बूत पकड़ भी दर्शाता है.वैश्वीकरण के दौर में अपने स्तर को उठाने के लिए घरों में घुसते बाजार व्यक्ति के सुख-चैन को छीनते दिखाई दिए."मलंगी" यह एक अनोखी सी कहानी है. जैसे किसी के संस्मरण से निकल कर सीधा पन्नों पर उतर आई हो.ग्रामीण परिवेश की कहानी जिसमें पालतू जानवर और मनुष्य के बीच का सौहार्द और तालमेल कुशलता से दर्शाया गया. "अस्थान" एक कुशल कहानी जिसमें एक जीवन को राग -वैराग्य से होते हुए पुनः राग की और मुड़ते तथा तथाकथित वैराग्य को अनावरित करते दिखाया गया साधु-संतों की अपनी दुनिया भी इस दुनियाँ से अलग नहीं. वहाँ भी इनकी अपनी तरह की सल्तनत है, , अपने तौर तरीके हैं, कानून है,पहचान के प्रमाण हैं. ऊपर से शांत व निर्लिप्त दिखाई देने वाली यह दुनिया भीतर से उतनी ही भव्य और लिप्त है. कहानी के अपयुक्त श्लोक- उक्तियों आदि का समावेश तथा इस पृष्ठभूमि पर कहानी कहना अद्भुत कौशल की बात है."भय" सत्य को भी सत्य होने के प्रमाण की आवश्यकता है. कहानी में अपने कार्य को ईमानदारी से करने के बाद उसके विपरीत परिणाम के भय को कुशलता से दर्शाया है .एक बेहतरीन मनोवैज्ञानिक कहानी मे भय के तमाम भावों को शब्द देते हुए कुशलता से भय पर विजय पाते दिखाया." डूबते जलयान" कहानी एक वैवाहिक बंधनों के संस्कारों में बंधी परिस्थितियों वश अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने सही और गलत के मानसिक अंतर्द्वंद से झूलती आधुनिक लड़की की कहानी है. कहानी का अंत बड़ी कुशलता से
पाठक के नैतिक- अनैतिक विवेक पर छोड़ा गया."गोस्टा" ग्रामीण सामाजिक व्यवस्था पर गहरी चोट करती है यह कहानी. सोचने पर विवश करती है कि कब ऐसी सर्वहिताए व्यवस्थाएं केवल कुछ लोगों को अपने ही हित साधने पर सीमित हो जाती हैं. धीरे-धीरे सबसे कमजोर व्यक्ति शिकार होता है और इन व्यस्थाओं के जाल में फंसता जाता है कहानी सकारात्मक अंत पर समाप्त होती है."मुहीम" दिल दहला देने वाली कहानी.इस पृष्ठभूमि पर जीवंत कहानियाँ कहीं हैं राज बोहरे जी ने. आंचलिक भाषा इस कहानी की सफलता का बड़ा सूत्र है.बीहड़ की पृष्ठभूमि पर निर्दोष पर निरंतर अत्याचार की लोमहर्षक कहानी है. केतकी और गिरीराज के बीच का मानवीय अंतर्संबंध बहुत मार्मिक बन पड़ा.
कोई भी लेखन तब तक प्रभावित नहीं करता जब तक उसमें कुशल गढ़न न हो, घटनाओं का जीवंत संप्रेषण न हो, संवादों में स्वाभाविकता न हो, पाठक को विचारमग्न करने की क्षमता न हो. भाषा शिल्प, आंचलिकता, संप्रेषणियता, विचार बोधिता राजनारायण बोहरे जी का कथा क्षेत्र एक समुन्नत कथा क्षेत्र है.

ज्योतिपर्व प्रकाशन
गाजियाबाद रूपेंद्र राज..