ब्रज श्रीवास्तव -पुस्तक समीक्षा राज बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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ब्रज श्रीवास्तव -पुस्तक समीक्षा

सृजन के असली क्षण है यह जब वह श्रमिक कला के आनंद में भी डूबा है।

राजनारायण बोहरे

पुस्तक-ऐसे दिन का इंतज़ार

(कविता संग्रह)

कवि-ब्रज श्रीवास्तव

प्रकाशक-बोधि प्रकाशन जयपुर

पृष्ठ-96

मूल्य-100/-₹

ऐसे दिन का इंतजार कवि बृज श्रीवास्तव का कविता संग्रह है जो बोधि प्रकाशन जयपुर से प्रकाशित हुआ है । कवि का यह तीसरा कविता संग्रह है । इसके पहले उनका संग्रह ‘तमाम गुमी हुई चीजें ‘ सन 2003 में और ‘घर के भीतर घर’ सन 2013 में प्रकाशित हो चुका था। बृज श्रीवास्तव एक जाने-माने कवि हैं और हिंदी की तमाम महत्वपूर्ण पत्रिकाओं नया ज्ञानोदय, पहल, वागर्थ, वसुधा, कादंबिनी, कथादेश, इंडिया टुडे, शुक्रवार तथा तद्भव जैसी दर्जनों पत्रिकाओं और समाचारपत्रों में उनकी कविताएं और समीक्षाएं छपती रही हैं।

कोई कहानीकार अपने समकालीन लेखक को जब कुछ पढ़ने का परामर्श दे तो किसी कविता संग्रह का नाम ले मैंने ऐसा कम देखा है। इस संग्रह को पढ़ने की सलाह मुझे पद्मा शर्मा ने दी थी पद्मा शर्मा एक मशहूर कथाकार हैं , उन्होंने बृज श्रीवास्तव का यह कविता संग्रह पढ़ के मुझे परामर्श दिया कि आधुनिक कविता या आज की कविता को सरल अंदाज में देखना है तो बृज श्रीवास्तव का कविता संग्रह पढ़िए। उत्सुकतावस मैंने यह संग्रह प्राप्त किया और इसके अध्ययन के बाद मुझे लगा कि पद्मा शर्मा जी का कहना सही था। आइए इस कविता संग्रह पर खुलकर चर्चा करें।

कवि बृज श्रीवास्तव को अपनी समृद्ध संस्कृति पर गर्व है। कवि अपने रिश्ते नाते भी दिल से जीते हैं । कवि अपने पिता और मां से कवि गहराई से जुड़े हैं । अपनी कविताओं में ना केवल मां के गुणों को याद करते हैं, बल्कि उनकी दिनचर्या तक को याद करते हैं मां की ढोलक (पृष्ठ 9) और मां प्रवास पर है (पृष्ठ 78 पर प्रकाशित) ऐसी ही कविताएं हैं । मां ही नहीं अपने साहित्यिक मित्रों, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहरों , त्यौहारों को भी कवि अपनी गहराई से याद करता है ऐसी कविताओं में अलविदा का गीत (पृष्ठ 34) खबरों का अर्ध्य (पृष्ठ 65-66) उदयगिरी (पृष्ठ 70) भुजरियाँ (पृष्ठ 96) का नाम लिया जा सकता है । कविता ‘’मां प्रवास पर है’’ कविता में कवि ने लिखा है –

वहां एक समुद्र होगा

विराटता पर इतराता हुआ

वही होगी आज मां भी

अपनी विराटता से बेखबर

मां प्रवास पर है

वह मन से प्रवास पर नहीं होगी

इस समय

प्रकृति से बृज भाई का गहरा लगाव है। उन्हें अपने आसपास के पर्वत, खेत, मौसम और वन्यजीवों से बहुत प्यार है । बिगड़ते पर्यावरण पर वे गहरी चिंता व्यक्त करते हैं , तो नन्ही चींटी जैसे जीवों से शिक्षा भी लेते हैं । इस तरह की प्रकृति की कविताओं में उनकी कविता इस चींटी की तरह (पृष्ठ 15) एक मनोकामना (पृष्ठ 14) है किसकी वजह से (पृष्ठ 33) नदियों से कुछ मत कहो (पृष्ठ 41) पता नहीं (पृष्ठ 42 ) बरसात की प्रतीक्षा में (पृष्ठ 43/44) गालियां (पृष्ठ 76/77) खेत (पृष्ठ 82 ) और पहला प्यार (पृष्ठ 91/92) है । कविता खेत में वे लिखते हैं

तुम्हारे पास

हम बरसों तक नहीं गए

फिर भी पहुंचाते रहे

तुम हमें ताज़ा अनाज

इधर हम हुए कि

एक बड़ी रकम लेकर एक बड़े सेठ से

कर आए तुमसे रिश्ता खत्म

कचहरी में दस्तखत कर कर

संसार के हर कवि ने अपनी प्रेयसी, उसकी यादों , उसके बिछोह से जुड़ी कविता जरूर लिखी होगी , क्योंकि कहा गया है वियोगी होगा पहला कवि आह से निकला होगा गान ! बृज श्रीवास्तव के भीतर का कवि भी गहरा प्रेमी है वह प्रेम और बिछोह की बातें बड़ी शिद्दत से याद करता है । इस वियोग को वह मन से अन्तिमतः स्वीकार कर चुका है । सारी मर्यादा और समाज के बंधन तोड़ने के एक गृहस्थ कवि के विचार उसमें समा गए हैं। जो उसके अवचेतन मन से प्रकट होते हैं। कविता हम और तुम का अंश देखिए-

हम और तुम

सचमुच ही

कभी ना मिल पाएंगे

मिलने की ललक

न मिल पाने की कसक

बनाए रखेगी

हमे एक बेहतर इंसान

वियोग के इस मौके ने

हमें दिखाया है एक अलग ही रास्ता

इस पर चलते हुए लगता है

जरूर दर्ज होगा नाम, हमारा भी तुम्हारा भी

ठीक से जीने वालों की कतार में में।

बृज श्रीवास्तव लंबे समय से मानवतावादी विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध रहे हैं। इसलिए विचार उनकी कविता में सहज रूप से गुंथे हुए दिखते हैं। उनकी तमाम कविताएं विचार कविताएं कही जा सकती हैं । जिनमें अंधियारा (पृष्ठ 23) मुझे चिंता है (पृष्ठ 45) अवांछित (पृष्ठ 48) यह जो तनाव (पृष्ठ 49) ऐसे दिन का इंतजार (पृष्ठ 61/62) प्रतिरोध (पृष्ठ 67) सन्नाटा (पृष्ठ 80) अच्छी खबर (पृष्ठ 81) मशीन (पृष्ठ 87) कभी यूँ ही (पृष्ठ 95) दृष्टव्य हैं। अपनी एक कविता प्रतिरोध में वे लिखते हैं -

अभी-अभी मैंने प्रतिरोध

कर ही दिया है दर्ज

देख रहा हूं

कई लोग एक साथ

हथियार में बदल रहे हैं।

कवि बृज श्रीवास्तव सहज कवि हैं । कविता की तलाश में, कविता के विषय की तलाश में कवि कहीं दूर या अमूर्त दुनिया में नहीं जाते । वे अपने आसपास की दुनिया से कविता के विषय चुन लेते हैं । तो उनकी कविता भी बड़ी सहज ही होती है शिल्प के स्तर पर भी भाषा के स्तर पर भी और निष्पत्ति के स्तर पर भी। उनकी कविता एंबुलेंस (पृष्ठ 25) अलविदा का गीत (पृष्ठ 34) वृद्धाश्रम ( पृष्ठ 39) कवि मन ( पृष्ठ 50) भिखारी (पृष्ठ 54) श्रमिक के लिए (प्रश्न 56 ) मोहल्ले के लड़के (पृष्ठ 60 )अंतिम यात्रा (पृष्ठ 68 ) गालियां (पृष्ठ 76/77) प्रिय कवि का जाना (पृष्ठ 93/94) ऐसी ही कविताएं हैं।

कविता एंबुलेंस के अंश देखिए-

उसके पास वक्त की कमी है

तेज़-तेज़ जाना पड़ रहा है उसे

भूल जाओ अभी कुछ सोचना

और कुछ बोलना

सुनो ये सायरन की आवाज

और बस दुआ करो

एंबुलेंस जा रही है।

वर्तमान व्यवस्था से असंतुष्टि हर कवि का पहला गुण या पहली पहचान है , क्योंकि माना जाता है व्यवस्था की समीक्षा करना हर साहित्यकार का कार्य है और दुनिया के पहले कभी वाल्मीकि द्वारा रामराज्य की समीक्षा से आरंभ हुई यह परंपरा आधुनिक नहीं है बल्कि युगों पुरानी है । जिसको आज का हर कवि भी मानता है और पालन करता है । बृज श्रीवास्तव केवल राजकीय व्यवस्था से असंतुष्ट नहीं हैं वे वर्तमान समाज की रीति नीति आदत और मान्यताओं से भी असहमति दर्ज कराते हैं । व्यवस्था से असहमत होने की ऐसी कविताओं में उनकी कविता दौड़ (पृष्ठ 16) मेरी दिनचर्या में (पृष्ठ 17) वह प्रसंग (पृष्ठ 18) उसका आत्मकथन (पृष्ठ 21/22) रसभरी कविता सुनाओ (पृष्ठ 46) कवि मन (पृष्ठ 50) आवाज (पृष्ठ 51) कविता के मन की बात (पृष्ठ 53) आई है कविता (पृष्ठ 57) पयह सोचना ठीक नहीं (पृष्ठ 59) अपना पक्ष (पृष्ठ 63) गेहूं ने कहा था (पृष्ठ 85) शामिल है । अपना विरोध दर्ज कराते हुए या अपना पक्ष प्रकट करते हुए वे लिखते हैँ-

अन्याय की खबर सुनकर

तुम मुस्कराते हो

आखिर तुम कैसे हो

तुम किस ओर हो

इंसानियत की तरफ

या सियासत की तरफ

अपना पक्ष तय करो

तुम्हारे बारे में कुछ

तय हो जाये

इससे पहले

स्त्री के प्रति कवि बृज बहुत विनम्र व आदरशील हैँ।वे अपनी तमाम कविताओं में कभी मां के बहाने, बहन के बहाने, पत्नी या प्रेयसी के बहाने आदर प्रकट करते ही हैं , संपूर्ण स्त्री जाति के लिए भी वे आदर प्रकट करते हैं। उनकी कविता तुम्हारे बारे में ( पृष्ठ 37 )बहुत ज्यादा होना चाहा तुमने-( पृष्ठ 84) देवी ( पृष्ठ 90) में उन्होंने संपूर्ण स्त्री जाति के प्रति आस्था प्रकट की है। देवी कविता का अंश देखिए -

तुम्हारे पास कला थी

जिसे पिरोई तुमने सेवा

और पूजा में , व्रत में

शक्ति थी तुम्हारे पास

जो तुम घर-बार के कामों के अलावा

कहीं ना इस्तेमाल कर सकीं

तुम ही रहीं सरस्वती, दुर्गा और लक्ष्मी

लेकिन केवल पुराणों की कहानियां

यह कविता केवल स्त्री के प्रति आदर की कविता नहीं है बल्कि स्त्री विमर्श की भी एक सशक्त कविता है।

इस संसार को श्रमिक ने सुंदर बनाया है ।श्रमिक इस संसार के सृजक हैं , निर्माता भी और नीव के पत्थर भी । यह बात जब श्रीवास्तव भली प्रकार जानते हैं । उनके पूर्व के संग्रहों में और इस संग्रह के बाद की कविताओं में अनेक जगह श्रम और श्रमिक के प्रति आदर आदर प्रकट होता है। इस संग्रह में श्रमिक के लिए ( पृष्ठ 56) और गालियां (पृष्ठ76/77 )में उन्होंने श्रमिक की दुनिया की झलकियाँ प्रस्तुत की है उ, नकी आपस के बोलचाल और गालियां तथा उनके महत्व को प्रतिपादित किया है। कविता श्रमिक के लिए का अंश देखिए

वह चुन रहा है दीवार में ईंटे

सुनते हुए एक फिल्मी तराना

उसके साथ साथी मजदूर भी गुनगुनाने

लगा है

अद्भुत है यह दृश्य

सृजन के असली क्षण है यह

जब वह श्रमिक

काम के साथ-साथ

कला के आनंद में भी डूबा है।

बृज श्रीवास्तव ने कुछ कविताओं में परंपरागत कवि विषयों से हटकर नए विषय लिए हैं और वहां वे पूरे नएपन के साथ अपनी बात कह पाते हैं । ऐसी विशिष्ट विषय में एक कविता है किन्नर ( पृष्ठ 47) और एक कविता है खेत ( पृष्ठ 82) । किन्नर कविता में लिखते हैं

वे भी निकम्मे हो सकते हैं

आदमी की तरह

औरत की तरह वे भी

शोषित होते हैं

कौन कहता है कि किन्नर अलग होते हैं

लुटेरे तो उनकी भी हत्या कर देते हैं।

समाज की आधुनिकता पर श्रीवास्तव ने अनेक कविताओं में लिखा है । कवि मनुष्य के इस आधुनिक हो जाने पर शर्मिंदगी अनुभव करते हैं । उनकी कविता यहां कोई नहीं (पृष्ठ 58) मशीन (पृष्ठ 87) इस तरह की प्रवृति की प्रतिनिधि कविताएं हैं। यहां कोई नहीं का एक अंश देखिए -

यहां कोई नहीं लगता मुझे जीवित जैसा

किसी का हृदय धड़कता नहीं

कोई भी तो नहीं मुस्कुराता मासूमियत से

वह इसलिए जिंदा नहीं है मेरे लिए

क्योंकि दिन-रात आंखें गड़ाए रहता है

रुपयों के हिसाब से

और वह इतना ही करता है प्यार मुझसे

जितने प्यार से वह सुरक्षित समझता है खुद को

मेरे साथ रहकर।

ऐसा नहीं कि इस संग्रह की सभी कविताएं अपने निष्पत्ति तक पहुंची है। इसमें से तमाम ऐसी कविताएं हैं जो या तो जल्दबाजी में संग्रह में शामिल कर ली गई या कवि की डेस्क पर अधूरी ही लिखी गई थी और बिना देखे भाले उन्हें शामिल कर लिया गया, या कवि का ध्यान अब तक इन पर गया नहीं है । ऐसी अधूरी सी लगती कविताओं में हम जब साथ चलते थे(पृष्ठ 35) यह प्यार (पृष्ठ 36) उसकी रचना ( पृष्ठ 38 )मरणोपरांत जीवन (पृष्ठ 86) जब उदास होता हूं (पृष्ठ 88) के नाम प्रमुखता से लिया जा सकते हैं।

बृज श्रीवास्तव के इस संग्रह की भाषा बहुत सहज व सरल है । वे सहज बोलचाल की भाषा में कविता लिखते हैं । खास बात यह है कि उनकी विदिशा की भाषा और बोली का रंच मात्र असर भी उनकी कविता में नहीं दिखता वे मानक भाषा का इस्तेमाल करते हैं। भाषा की तरह उनकी कविता का शिल्प भी सहज और सरल है कोई टेढ़े मेढे शिल्प में न तो कविता लिखते हैं , ना उनका वर्ण्य व विषय जटिल है। जटिलता से वे दूर रहते हैं , अमूर्त कविता नहीं लिखते उनके बिम्ब भी अमूर्त नहीं है। वे कवियों या आलोचकों के लिए कविता नहीं लिखते, बल्कि पाठक के लिए कविता लिखते हैं । वे बहुत अच्छा गाते भी हैं तो सुर ताल को साधते हुए उनकी कविताओं में एक -रिदम है । कविताओं के आकार भी वह बहुत लंबे नहीं रखते उनकी कविता प्रायः एक पृष्ठ में पूर्ण हो जाती हैं और उनकी बहुत सारी कविताएं तो 6 या 7 पंक्तियों की ही हैं । कुल मिलाकर देखा जाए तो 21 या 22 शब्दों ऐसी सहज सरल कविताएं वे रच देते हैं । इस संग्रह की कविताएँ पढ़ कर बहुत खुशी हुई ।यह संग्रह श्रीवास्तव के विविध कविताओं का प्रतिनिधि काव्य संग्रह है जिसमें उनके सरोकार , उनकी चिंता भाषा और शिल्प साफ साफ दिखाई देता है ,जो सहज है सरल है और दीर्घ जीवी भी।

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