अंजू शर्मा का महत्वाकांक्षी कहानी संग्रह-पुस्तक समीक्षा राज बोहरे द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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अंजू शर्मा का महत्वाकांक्षी कहानी संग्रह-पुस्तक समीक्षा

अंजू शर्मा का महत्वाकांक्षी कहानी संग्रह

राजनारायण बोहरे

कहानी संग्रह - सुबह ऐसे आती है: अंजू शर्मा

प्रकाशक -भावना प्रकाशन दिल्ली

2020

अंजू शर्मा का दूसरा कहानी संग्रह सुबह ऐसे आती है पुस्तक मेला 2020 में दिल्ली में विमोचन हुआ। भावना प्रकाशन से प्रकाशित इस कहानी संग्रह में लेखिका की बारह कहानियां सम्मिलित हैं । इन कहानियों के अध्ययन से पता लगता है कि अंजू इस समय बहुत कलात्मक ढंग से अपनी कहानियां रच रही है ।

पहली कहानी उम्मीदों का उतार पतझड़ एक प्रेम कहानी है जिसमें कि दो प्रेमी आखरी बार उस पार्क में मिलने आए हैं जहां वे दोनों पहले सदा मिलते रहे हैं । प्रेमी पुरुष को आई ए एस बनने की चाय है और प्रेमिका एक नौकरी करती है जिसमें उसे बीस हजार वेतन मिलता है। लड़की के परिवार वाले उसकी शादी अन्य जगह तय कर चुके हैं , लेकिन लड़की चाहती है कि वह इसी लड़के से ब्याह करे। वह यहां तक कहती है कार्ड भी छपे नहीं है और इस इंक्रीमेंट के बाद मेरी सैलरी बीस हजार हो जाएगी, सुनो इतने में घर चल जाएगा ना? तुम्हारे आई ए एस तक।"

लेकिन लड़का कहता है " अपनी बदकिस्मती का बोझ तुम्हारे नाज़ुक कंधो पर कैसे डाल सकता हूं मैं "

लड़की तड़प उठती है उन दोनों के बीच अपने और तुम्हारे जैसे अजनबी शब्द कहां से आए । इसके बाद लड़का अशोक वाजपेयी की वह कविता सुनाने को कहता है जो इस लड़की से सुना करता था "तुम चले जाओगे पर थोड़ा सा ही रह जाओगे"

बात करते-करते लड़की की मनोदसा बदलती है ,जब वे पार्क से रुखसत हो रहे होते हैं, इस बात पर बिन कहे ही सहमत हो चुके होते हैं कि लड़की किसी लड़के से ब्याह करेगी या दूसरे शब्दों में कहें कि वे दोनों परस्पर विवाह करेंगे जहां घरवालों ने तय किया लड़की वहां विवाह नहि करेगी।

दूसरी कहानी "दर्द कोई फूल ना था" में शगुन एक कारपोरेट दफ्तर की महिला अधिकारी है जो ज्यादाकार्य बोझ के कारण एक सहायक चाहती है। उसके अनुरोध पर कश्मीरी पंडित परिवार की एक कमसिन लड़की "तनु" उसे सहायक के रूप में मिलती है जो बहुत सुंदर और मेहनती है। मित्रता बढ़ने पर शगुन पाती है कि यह लड़की एक कश्मीरी युवक से प्यार करती है । शगुन उन्हें शादी कर लेने की सलाह देती है । लड़की और लड़का संजय दोनों जम्मू यात्रा पर जाते हैं लेकिन लौट के तनु कहती है कि उसने शादी से मना कर दिया। शगुन दुःखी होती है। बाद में संजय की बस पर हमला होने से परेशान तनु को नींद नहीं आती लेकिन अगले दिन उसे राहत भरी खबर मिलती है कि संजय बच गया है। संजय लौटकर आता है तो उसका परिवार दिल्ली में बसना चाहता है तो शगुन फिर तनु से विवाह का आग्रह करती है ।और तनु भी विवाह करने तैयार हो जाती है ।

तीसरी कहानी "द हैप्पी बर्थडे ऑफ सुमन चौधरी " है ...यह कहानी हरियाणा के चौधरी विशंभर सिंह के घर में जन्मदिन मनाने का निवेदन रखने वाली उनकी बेटी सुमन चौधरी की कहानी है। उस घर मे लड़की का जन्मदिन मनाना छोटी बात नहीं कहा जा सकता क्योंकि हरियाणा में लड़कियों का उनके घर में कोई सम्मान नहीं होता। हरियाणा में लड़कियों की संख्या लगातार घटती जा रही है ।सुमन के पक्ष में घर की सभी महिलाएं, भाई तक है तो बड़े चौधरी को सहमति प्रदान करने पड़ती है। बड़े चौधरी विशंभर सिंह अपने छोटे भाइयों सहित अनुमति देते हर तो इस संयुक्त परिवार में जन्मदिन की तैयारियां होती हैं। अनमने भाव से जन्मदिन मनाने की अनुमति दे चुके विशंभर और उनके छोटे भाई जन्मदिन की सांझ कहीं बाहर चले जाते हैं। अलबत्ता पार्टी बड़ी धूमधाम से होती है , खूब नाच गाना होता है और सबसे बड़ी बात यह है कि सुमन चौधरी का मंगेतर अनूप इसमें शामिल होता है। जिसके साथ सुमन "सुन साहिबा सुन " के गाने पर ठुमके लगारही है। कथाकार कहता है कि इसके बाद कोई जन्मदिन उस घर में मनाबया नहीं यह तो पता नहीं, लेकिन सुमन ने अपनी बेटी का जन्मदिन सदा इसी तरह से मनाया। सामान्य प्रदेशों में यह बात महत्वपूर्ण न हो, पर हरियाणा में यह बात बहुत ही महत्वपूर्ण है कि एक लड़की ने जिद से अपना जन्मदिन मनाया और वह भी धूमधाम के साथ।

चौथी कहानी "डरना मना है" झोपड़पट्टी में रहने वाले तथा सड़क से पन्नी बीनने वाले एक किशोर की कहानी है , जिसका नाम पसंद "वसंत" है। उस को खाली बोतल खोजने के लिए कचरे के ढेर पर जाना पड़ता है। एक दिन भूखे प्यासे भटकते हुए एक चौराहे पर उसे जादू टोना का समान दिखता है । एक वृद्धा उसे टोने के सामान से से दूर रहने का इशारा करती है पर भूखा प्यासा बसंत ठीक वही चला जाता है जहां टोना टोटके का सामान पड़ा हुआ है।वह देखता है कि वहां एक फूटी मटकी से लाल कपड़े की पोटली निकली हुई पड़ी है, महिलाओं के श्रृंगार का सामान रखा है इसके साथ में रखा है ₹50 का नया नोट। बसन्त को याद आता है कि उसकी मां भी ऐसे टोना टोटका से दूर रहने को कहती थी कि दूर रहा करो नहीं तो भूत लग जाएगा। , मॉ की समझयस के बाद भी बसंत को ₹50 का लालच आ चुका है और कुछ देर तक खड़ा रहता है फिर झपट कर सबसे पहले 50 का नोट उठाता है और बाद में एक-एक करके वहां पड़े सामान में सीसा काजल, तेल ,साबुन सब उठा लेता है। यहां तक कि लाल पितली में बंधे गुलगुले भी। फिर वह घर की ओर चल पड़ता है । कहानी की आखिरी पंक्ति देखिए -दुनिया के सबसे बड़े डर ने उसका हर डर स्याही चूस की तरह चूस लिया था- भूख और गरीबी.

नौ बरस के बाद नाम की पांचवी कहानी में 9 बरस के बाद मिले तो दोस्तों की गाथा है। पहला दोस्त विदेश में रहता है जहां उसने स्टेला नाम की लड़की से शादी की है , जबकि दूसरा दोस्त अमित भारत में है। अमित के घर पहुंचने पर उसकी पत्नी के रूप में सिमी को देख कथावाचक प्रथम पुरुष अचरज से भर जाता है, क्योंकि उसे याद है 9 वर्ष पहले सिमी की शादी तो किसी दूसरे व्यक्ति से हो चुकी थी । बहुत देर तक सवाल करते रहने के बाद अमित विस्तार से उसे बताता है कि सिमी का पहला पति उसे गर्भवती छोड़कर अचानक खत्म हो गया था तो अमित ने पहले सिमी को इस हादसे से नॉर्मल किया, मित्रता रखी और धीरे से शादी का प्रस्ताव रखा । सोचने का उसे भरपूर समय दिया और छह वर्ष का समय लेने के बाद उन दोनों ने विवाह किया है। सिमी कि पहले पति की बेटी भी उसके साथ में है।

छठवीं कहानी "मन से मन की दूरी" में विनय उर्फ वीनू के मन में उठी ऐसी दूरी की दास्तान है जहाँ विनय के मन में उठे पहले-पहले प्रेम का अंकुर मसल दिया गया था। युवावस्था में जिस युवती की ओर वह आकर्षित हुआ उसका ब्याह उसकी ही मौसी के लड़के के साथ हो जाता है तो बिनय मौसी के घर से ही रिश्ते तोड़ लेता है। वे लीग यदाकदा मिलते तो हैं लेकिन विनय उनके घर नहीं जाता, जहां कभी वह स्थाई रूप से रहता था एक अरसे के बाद मौसी के यहां लड़की की शादी में बुलाने का निमंत्रण मिलता है तो बिनय वहाँ वजाने का निर्णय कर लेता है । उसे मौसी की बात याद आती है कि मन से मन की दूरी को पार करना बड़ी चीज होती है अब वह लड़की जो उस की भाभी बन गई है , उसके प्रति ना कोई भाव बचा है , ना कोई आकर्षण ना अपराध की भावना। इसलिए वहबेशक जाना चाहता है ।उसके जाने का निर्णय सुनकर पत्नी और बच्चे अचरज से भर जाते हैं ।

आठवीं कहानी "जेनेलिया डिसूजा किसी से नहीं डरती" डिसूजा आंटी की दास्तान है जो वे अपने पड़ोसी की 12 वर्षीय बच्ची एना को सुना रही है । जेनेलिया तब जिनी कहलाती थी, उन दिनों दिल्ली की किसी प्राइवेट फॉर्म में जॉब करती थी, उसे किसी धर्म और ईश्वर में आस्था नहीं थी। ना वह चर्च जाती थी ,ना क्रिसमस मनाती थी। वह एक रात दफ्तर से देर से चली तो लगातार दो ऑटो खराब होते जाने से वह परेशान सी सड़क पर थी, एक स्कूटर सवार उसे लिख देता है और वह पल भर में ही बहुत लंबी सड़क को पार कर फ्लाई ओवर के उस पार उतार कर अचानक गायब हो जाता है । जिनी ऐसे महज संयोग समझती है, भले वह समझती है कि इतनी लंबी सड़क इतनी जल्दी कभी पार नहीं हो सकती थी। वह घर जाकर अपनी दादीमां को बताती है तो ग्रैंड मां कहती है कि कोई फरिश्ता था या वह बहुत अच्छी आत्मा थी जो तुम्हें मदद करके चला गया। लेकिन जिनीलिया किसी अच्छी बुरी आत्मा को नहीं मानती । इसे महज संयोग की तरह देखती है। क्योंकि उसे यह भी पता है कि जिस रोड से वे लोग आए ,जिस फ्लाईओवर से स्कूटर सवार ने स्कूटर से पार किया वह रोड ओर फ्लाई ओवर पिछले दो साल से बंद ही पड़ा था , फिर वे आए कहां से ? मन में शंका होने के बाद भी, जेनेलिया की कोई आस्था नहीं हिलती ,वना उसे कोई डर लगता, ना उसके मन में कोई श्रद्धा थी, ना कोई चमत्कार का भाव । कहानी का शीर्षक है जेनेलिया डिसूजा किसी से नहीं डरती

नवी कहानी "वर्जित फल " संग्रह की ऐसी कहानी है , जिसे लेखिका ने पूरी कलात्मकता, तार्किकता और जागरूकता के साथ लिखा है। नीला की चचेरी बहन स्निग्धा का पति प्रभास स्वभाव से खिलंदड़,हँसमुख और दिलफेंक युवक है जो गाहे-बगाहे नीला को इंप्रेस करता रहता है, और नीला का पति मोहित ऐसा नहीं है। अपने पति मोहित के उदासीन उ व्यवहार से खुद को इग्नोर महसूस करती नीला ना चाहते हुए भी प्रभास की तरफ आकृष्ट होती जा रही है । संयोग से उन दिनों प्रायः ऐसे मौके आते हैं , जब प्रभास व नीला निपट अकेले में ही बहुत समय तक साथ रहते हैं। प्रभास के जन्मदिन पर मोहित अपने घर पर खाना पीना रखता है तो नीला पूरे मन से प्रभास का मनपसंद खाना बनाती है । इसे देख प्रभास की खुशी का ठिकाना नहीं रहता। खाने के बाद पान लेने मोहित और स्निग्धा के जाने के बाद नीला ओर प्रभास घर में अकेले रह जाते हैं , मौका है और लंबे समय की प्रतीक्षा भी की वे परस्पर एक हो जाये। सहसा नीला फिर द्वंद्व में पड़ जाती है कि इस अप्रत्याशित मौके पर वह प्रभास के साथ आदम और हव्व की तरह वर्जित फल चख ले या खुद को बचा कर रखें। उसके संस्कार और सहसा उसके संस्कार व नैतिक विचार जाग खड़े होते हैं और वह वर्जित फल चखने से बचने के लिए खुद को बेडरूम में बंद कर लेती है यह कहते हुए "नहीं इस बार मुझे कोई वर्जित फल नहीं चाहिए , मेरी चेतना की लगाम आज मेरे हाथ में है , मेरी चेतना की लगाम मेरे हाथों में है,कोई सर्प मुझे लुभा नहीं पाएगा ** मैं मुक्त करती हूँ स्त्री को उस कलंक से जो सदियों से लगा है उसके माथे पर *** न कोई फल आज उस आज हव्वा को लुभाएगा न हीं आदम कोई वर्जित फल खाएगा। धूर्त सर्प आज पूरी तरह नाकाम रहा और वह चुपचाप वहां से दूर जा रहा है दूर बहुत दूर

संग्रह की ग्यारवी वीं कहानी है "दूर है किनारा" यह तपन की कहानी हैं जो एक फैक्ट्री में कभी मजदूरी का काम किया करता था और जहां चौकीदारी करते समय चोरी करने आये अपने दोस्त का खून हो गया था ।उसे 20 साल की सजा हुई थी ,जब सजा हुई थी जेल में पत्नी मिलने आया करती थी, तब एक दिन उसने मना कर दिया था अपनी पत्नी शुभा को कि अब तुम आना बंद कर दो ,अपने बच्चे मंजरी और सुहाष को पालो।शुभा उसके कहने पर जेल आना बंद कर देती है और मंजरी व सुहाष को पालने लगती है , बीस वर्ष की सजा पाए तपन को सरकार 14 वर्ष में ही छोड़ देती है । लेकिन इसकी सूचना तपन अपने घर नहीं देता , वह सबको अचानक चौकना चाहता है । कहानी के आरम्भ में वह जेल से रिहा होकर घर लौट रहा है, अपने कस्बे अपने शहर के एक कोने को एक दुकान को एक-एक बाजार को बड़े गौर से देखता है और मन में बहुत खुश होता है कि यह माहौल और अब सदा उसके चारों और रहेगा। जब अपने घर पहुंचता है तो उसे देखकर सब लोग खुश होते हैं पर एक अनकहा सा असमंजस सबके चेहरे पर दिखाई देता है। बात करते मैं उसे पता लगता है कि बेटी मंजरी के रिश्ते के संबंध में कुछ देर में ही मेहमान आने वाले हैं। तपन मन ही मन फैसला करता है और तुरंत ही घर से बाहर निकल जाता है उसने तय किया है कि यहां नहीं रुकेगा, क्योंकि नए मेहमानों से क्या कहेगा कि अभी अभी उम्र कैद कर उम्रकैद काट कर आया आदमी है

बारहवीं कहानी "लौट रहा हूं मीता" एक दंपति की कहानी है ... एक दिलफेंक पति उदय की कहानी भी। उदय एक कारपोरेट कंपनी में ब्रांच मैनेजर है, कभी उसकी पत्नी नीता भी उसके साथ जॉब करती थी , लेकिन ब

बेटी के जन्म के बाद जब दूसरी गर्भावस्था में नीता को प्रीमेच्योर बेटा पैदा हुआ तो डॉक्टर की सलाह पर वह घर पर आराम करने लगती है । बाद में दोनों पति-पत्नी निर्णय लेते हैं कि मीता घर संभालेगी और उदय रुपया कमाएगा। घर संभालते संभालते मीता एकदम घरेलू स्त्री हो जाती है उसमें से पसीना और मसालों की गंध आती थी , जबकि उदय उसमें अपनी प्रेमिका नुमा पत्नी खोज रहा होता है , जब खोज घर में पूरी नहीं होती तो ऑफिस में नई सेक्रेटरी राईमा से पुरी होती है जो सुंदर भी है स्मार्ट भी । वे दोनों जन दफ्तर के बाद लॉन्ग ड्राइव पर जाते रहते है, अंत मे

कंपनी की पार्टी आयोजित की गई है जिसमे उदय अपनी पत्नी मीता को नहीं लाता कल्पना करता है कि रायमा के साथ अपना बेस्ट टाइम बिताएगा । लेकिन राईमा भी उसको नजर ही नही आती , तो वह पार्टी वाले होटल के होल से बाहर की तरफ निकलता है तो अचानक अंधेरे में उसे कोई छाया सी दिखाई देती है ., राइमा की आवाज भी सुनता है वह जो अपने बेटे की बीमारी की सूचना देने पर नोकरानी पर गुस्सा हो रही थी , जल्दी फोन कर वह उस पुरुष साये की बांहों में समा जाती है जो औऱ कोई नहीं कंपनी का एमडी यानी मालिक है, उदय की कय्या हैसियत उसके सामने। पल भर ने उदय स्त्री देह के लालच से बाहर आ जाता है, उसका मोहभंग हो जाता है ,सहसाउसे अपने बेटे का बुखार याद आता है और तुरंत ही पार्टी छोड़कर अपने घर निकल लेता है। पत्नी नीता को फोन पर यह बताते हुए कि "मैं लौट रहा हूं मीता"..

अंजू शर्मा के इस संग्रह की चर्चा इसकी भाषा को लेकर भी की जानी चाहिए , कुल बारहों कहानियों में राजस्थान , हरियाणा , दिल्ली तथा खड़ी बोली के क्षेत्र की कहानियां है। सँग्रह में कारपोरेट जगत की बहुत सारी कहानियां है । हरियाणा की कहानी द हैप्पी बर्थडे ऑफ सुमन चौधरी में अधिकृत रूप से हरियाणवी भाषा का प्रयोग किया गया है , विवरण ही नही संवाद भी हरियाणा के हैं। चौधरी विशंभर सिंह से उनकी पत्नी बोलती है "सुणो हो जी । सुमन इबके अपना जन्मदिन मनाना चहाबे है" सिर पर रखा पल्ला संभालती चौधराइन के मुंह से निकला यही एक वाक्य था जो उस आलीशान ,सजावटी ड्राइंग रूम में गूँजता है।

" बावली से छोरी ..अरे के चाहिए उसने मंगा कर दे दे और के होवे से जन्मदिन ।" बड़े चौधरी ने हाल से बाहर निकल कर दरवाजे के बाएं साइड में गलियारे में लगे वाशबेसिन पर हाथ धोते हुए जोर से यह कहकर ठहाका लगाया । इसी कहानी में आगे आता है ' पढ्डे लिक्खे छोरे आजकल छोरी भी पढडी लिक्खी चहावे सै। इसका ते जी कती पढ़ाई में नी लगता। बारमी तै कर ले फेर आग्गे देखी जागी"

अंजू शर्मा भाषा को खिलौने की तरह प्रयोग करती हैं । बे अमूर्त भावों को भी मूर्त कर देती हैं । कहानी दर्द कोई फूल का एक वाक्य देखिए "बादल थे की गलतफहमी की तरह छा जाते , वह भ्रम की शक्ल में किसी बाधा फरेब महबूब की मांग की माफिक गगन से ही चले जाते और खुशनुमा मौसम की सारी उम्मीदे अपने साथ ही भर ले जाते झोले में।काम था कि खत्म होने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आते थे पर काम की अधिकता भी उस नामुराद मौसम से शगुन का ध्यान हटाने में सफल ना हो सकी थी।"

अंजू शर्मा के इस संग्रह की कहानियों को हम कथा के स्तर पर बांटे तो हमको 3 तरह की कहानियां दिखाई देती हैं -पहला दांपत्य संबंधों की कहानियां यानी पति पत्नी के रिश्ते और दांपत्य संबंधों को बार- बार ,अलग-अलग कोण से परीक्षण करती हुई, आधुनिक युग के पति-पत्नी के संबंधों में आ रही कोल्डनेस या विवाहेतर तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति अथवा नए सवालों के जवाब में वर्किंग कपल आदि को लेकर लिखी गई कहानियां। इस संग्रह की कहानियों में "लौट रहा हूं मीता" "मुस्तक बिल" "वर्जित फल" "मुख्तसर सी बात है" और "सुबह ऐसे आती है " कहानियां कही जा सकती हैं । विवाहेतर प्रेम या विवाह पूर्व के प्रेम की कहानियां में "दर्द कोई फूल नहीं" और "मन से मन की दूरी" नाम की दो कहानियां है, तीसरे प्रकार के कथानक अंजू ने लोक रीति, अंधविश्वास और परंपराओं के विरोध के के ऊपर कहानियां लिखी हैं जिनमें "हैप्पी बर्थडे सुमन चौधरी" "डरना मना है" "जेनेलिया डिसूजा किसी से नहीं डरती" और "मुस्तकबिल" कहानियों के नाम आते हैं ।

इन कहानियों की विशेषताओं को अगर हम संक्षेप में कहना चाहे और उन्हें कुछ विषयों में बांटना चाहें तो कह सकते हैं कि अंजू ने कुछ जरूरी विषयों पर कलम चलाई है जिनबोर आम कहानीकार न वात करता न ध्यान देता।

इस संग्रह की समस्त कहानियों पर विशेषताओ के नजरिये को देखते हुए अगर हम संक्षेप में बात करें तो पाते हैं कि अंजू ने अपनी कहानियां अलग अलग खास विषयों पर लिख हैं । जिनमें से एक बोल्ड लेखन है। वैसे तो हर कहानी में बोल्डनेस कहीं ना कहीं झलकती है, लेकिन "सुबह ऐसे आती है" और "मुख्तसर सी कोई बात है " कहानियों के नाम प्रमुखता से लिए जा सकते हैं। सुबह ऐसे आती है की कुछ पंक्तियां देखिए "उसके स्पर्श ने पुरु को पूरी तरह जागृत कर दिया और उसे एक अजीब सी बेचैनी से भर दिया था ।**स्त्री के मन पर जिसका नाम लिखा हो उसकी देह उस स्पर्श को बहुत समय तक अजनबी नहीं मान पाती।

अंजू की कहानियों की दूसरी विशेषता है संदेश प्रधान कहानियां इस संग्रह की 'डरना मना है " " वर्जित फल' और "मैं लौट रहा हूं मीता" ऐसी कहानियां हैं जो अपने विवरण में पाठक को वृतांत का संपूर्ण सुख भी देती हैं और अन्त में संदेश भी छोड़कर जाती हैं । विवाहेतर संबंध पर भी अंजू ने कहानियां लिखी हैं, इस संग्रह में शामिल "वर्जित फल" और "लौट रहा हूं मीता" इस विषय की बहुत अच्छी कहानियां है। इसमें वर्जित फल तो अंजू शर्मा ने बहुत गहरे डूब कर लिखी गयी है । विवाहेतर सम्बन्धो की जड़ में प्रायः पति की उदासीनता और तीसरे व्यक्ति का मोहक व्यक्तित्व होता है। वर्जित फल कहानी बहुत जरूरी विषय पर लिखी गई कहानी है । प्रायः प्रौढ़ हो चुके पति पत्नी के रिश्ते में आई जिस्मानी और मानसिक ठंडक या उदासीनता का लाभ उठाकर यहां तीसरे व्यक्ति की उपस्थिति की सम्भवना प्रबल बन जाती है । ऐसे विषय पर वर्जित फल कहानी बहुत कलात्मक अंदाज में अंजू ने लिखी है। लेकिन यह भी एक मैसेज फुल कहानी है इसमें अंत में पत्नी अपने बहन के पति के प्रति बढ़ते आकर्षण और देह संसर्ग के उपस्थित स्वर्ण अवसर को बहुत सख्ती के साथ ठुकरा कर स्वयं को एक सुरक्षित स्थान पर बंद कर लेती है। लगभग "मुख्तसर सी बात है"कहानी भी ऐसी ही है , पर इसमें तीसरे की उपस्थिति नहीं है , इसमें पति पत्नी के बीच में नौकरी की व्यस्ततम जिन्दगी को लेकर और परस्पर विचार भेद को लेकर बढ़ती दूरी का जिक्र है। यह कहानी भी अंजू ने बोल्ड तरीके से लिखी है ।इस कहानी को तो अंजू के कहानी कला के कौशल की दृष्टि से भी देखा जाना चाहिए। बहुत छोटे लगभग एक और डेढ़ पेज के अध्याय बनाकर लिखी गई इस कहानी को पढ़ते समय किसी उपन्यास की तरह सुख मिलता है तो किसी बहुत कलात्मक क्लासिक रचना से गुजर जाने का आध्यात्मिक और एकेडमिक आनंद भी प्राप्त होता है । पर अंजू केएस सँग्रह से गुजर चुकने के बाद पाते है कि इसमें सब कुछ अच्छा अच्छा ही नहीं है , हम पाते हैं कि इस संग्रह में बहुत कुछ कमियां भी रह गई हैं। पहली कमी तो यही है कि अंजू ने शायद पहला ड्राफ्ट यहां भेज दिया है या उसने सहज रूप से लिखी कहानियों को इसमें शामिल कर लिया है । ऐसे पुराने और बार-बार रिपीट किए गए विषय पर लिखी हुई नॉर्मल कहानियों में "दूर है किनारा" और "मन से मन की दूरी " कहानियों के नाम निर्बाध रूप से लिए जा सकते हैं । अंजू जिस तरह डूबकर कहानियों में काम करती है उसका नमूना भी इस संग्रह की कुछ कहानियां में मिला है, लेकिन इस संग्रह की कुछ कहानियां ऐसी भी हैं जिनको अभी कुछ और काम करने की गुंजाइश थी, ऐसी कहानियों में "हैप्पी बर्थडे ऑफ सुमन चौधरी" जिलेनिया डिसूजा किसी से नहीं डरती " "उम्मीदों का उदास पतझड़ " "दर्द कोई फूल नहीं" और "नौ वर्ष के बाद" कहानियों के नाम लिए जा सकते हैं ..इन तमाम छोटी-बड़ी कमियों या खासियत के बाद भी संग्रह सुबह ऐसे आती है अंजू का एक ऐसा संग्रह है जो न केवल पठनीय है बल्कि वर्तमान हालात खासतौर पर पारिवारिक हालात, स्त्री पुरुष संबंध, सूखते दांपत्य रिश्तों पर लिखी गई कहानियों का संग्रह है। अंजू की पहचान इस संग्रह की कहानियों के आधार पर भी कायम होगी

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राज बोहरे

इंदौर