गरम चाय से दीपा का हाथ जलने के बाद आदित्य उसके हाथ पर बरनोल लगाने की जगह उसको जीवन में पहली बार जोरदार थप्पड़ मारता है क्योंकि गैस पर खाना पकाते वक्त खुद जल जाना या छत पर धुले हुए कपड़े सुखाते समय कपड़े सुखाने के लिए रस्सी पर डालने की जगह धुले हुए कपड़े छत से नीचे धूल मिट्टी में गिरा देना या फिर सब्जी मंडी या बाजार से सब्जी घरेलू सामान लाते समय कभी सब्जी कभी घरेलू सामान से भरा थैला दुकान पर ही छोड़ कर घर वापस आ जाना, यह दीप का प्रतिदिन का काम हो गया था।
आदित्य उसके माता-पिता आदित्य का छोटा भाई उसकी रोज-रोज की ऐसी हरकतों से दुखी हो गए थे, इसलिए वह एक बड़े डॉक्टर से दीपा का अच्छी तरह ईलाज करवाने के बाद उस डॉक्टर की सलाह पर मनोचिकित्सक से दीपा का ईलाज करवाते हैं।
और एक महीने दीपा का अच्छी तरह ईलाज करने के बाद मनोचिकित्सक भी कहता है कि "दीपा पूरी तरह तंदुरुस्त है, बस पूरा परिवार मिलकर इनका ध्यान रखें।"
किसी को समझ आए या ना आए लेकिन दीपा को खुद पता था कि उसे कोई बड़ा रोग नहीं लगा है, उसे तो बस इस बात की चिंता रात दिन सताती रहती है, कि कहीं उसका पति आदित्य उसे तलाक देकर दूसरी शादी ना कर ले।
क्योंकि एक बच्चे की मां बनने के बाद आदित्य ने उसकी परवाह करना छोड़ दिया था और ना ही उससे प्यार भरी बातें करता था और ना ही कहीं घुमाने फिराने लेकर जाता था और जब वह सज संवर कर उसके सामने आती थी, तो भी उस पर ध्यान नहीं देता था, अब एक बेटे की मां बनने के बाद आदित्य उसे अपना पहले जैसा प्रेम दीवाना नहीं लगता था।
सुबह से रात तक घरेलू कामों में व्यस्त रहने के कारण दीपा के पास इतना समय भी नहीं रहता था, कि वह फोन पर अपने माता-पिता छोटे भाई बहनों से बात कर सकें।
जब दीपा का एक महीने फोन नहीं आता है, तो दीपा की मां दीपा को फोन करके उसके हालचाल पूछती है?
दीपा के अपनी मां से संबंध मां बेटी जैसे नहीं थे, बल्कि दो अच्छी सहेलियां जैसे थे। इसीलिए दीपा अपने मन की एक एक बात अपनी मां को बता देती है।
दीपा की मां दीपा की सारी बात सुनकर हंस कर उससे कहती है "यह कोई समस्या नहीं है, बस तू इतना सा काम कर प्रतिदिन सुबह की सैर किया कर।"
"कैसे सुबह की सैर करूं सुबह तो मुझे सांस लेने की भी फुर्सत नहीं रहती है, ससुर जी आप के दमाद मेरा देवर सब सुबह जल्दी अपने अपने ऑफिस जाते हैं, इनके लिए नाश्ता लंच बॉक्स तैयार करना पड़ता है, उसके बाद बेटे का दूध पकाना और फिर सासू मां अपने लिए नाश्ता दोपहर का खाना पकाना पड़ता है, घर में झाड़ू पोंछा करने के बाद घर के सारे गंदे कपड़े धो कर सुखाने पड़ते हैं।" दीपा कहती है।
"फिर एक काम कर शाम की सैर करना शुरू कर दे, और सब के ऑफिस से घर आने से पहले घर वापस आ जाया कर, बेटे को जब तक तेरी सांस संभाल लिया करेगी।" दीपा की मां कहती है।
"ठीक है मां मैं फोन कटाती हूं, घर का सारा काम पड़ा हुआ है।"दीपा ने कहा
प्रतिदिन शाम की सैर पर जाने से अब दीपा को शरीक तंदुरुस्ती के साथ-साथ मानसिक तंदुरुस्ती भी महसूस होने लगी थी और उसके चेहरे पर पहले से ज्यादा रौनक नजर आने लगी थी।
और तीन महीने ही शाम की सैर पर जाने के बाद एक दिन उसका पति आदित्य ऑफिस से घर आकर दीपा को अपनी बाहों में लेकर कहता है कि "कल मैंने ऑफिस से छुट्टी ली है, कल हम उसी पार्क में घूमने चलेंगे, जहां हम शादी से पहले मिलते थे और मेरा मन कर रहा है, कि कल मैं तुम्हें अपनी पसंद की नई साड़ी दिलवाऊ।"
कई वर्षों के बाद अपने पति की प्रेम भरी बातें सुनकर दीपा अपनी मांं से फोन करके कहती है कि "मां आपका शाम की सैर का नुक्सा काम कर गया है।"
और अपने पति आदित्य पर दबाव डालकर पूरे परिवार को शाम की सैर के लिए तैयार करवा लेती है। क्योंकि पूरा परिवार और खुद दीपा सुबह अपने-अपने कामों में बहुत व्यस्त रहते थे।
शाम की सैर करने से अब उसके परिवार में खुशियों के साथ तंदुरुस्ती भी आ गई थी।