जब मन की आंखें खुली Rakesh Rakesh द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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जब मन की आंखें खुली

सेठ उमाशंकर खानदानी रईस था। वह अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था। प्रकृति की अनमोल संपदा का उसकी निगाह में कोई मोल नहीं था, वह अपने व्यापार में लाभ के लिए प्रकृति का दिल खोल कर दोहन करता था। रोज व्यापार के सिलसिले में भाग दौड़ की जिंदगी से तंग आकर वह शांति और सुकून पाने के लिए गर्मियों के मौसम में जयपुर घूमने जाता है। जयपुर के होटल का एक कमरा किराए पर लेता है। और पूरा जयपुर घूमने के बाद भी उसे जब सकून शांति नहीं मिलती है, तो वह इसलिए एक रात जयपुर के होटल से अपनी गाड़ी से लॉन्ग ड्राइव पर अकेले निकल जाता है। वह रात के 2:00 बजे से अपनी गाड़ी से चलते-चलते सुबह तक जयपुर से बहुत दूर एक ऐसी जगह पहुंच जाता है, जहां मनुष्य का नामोनिशान नहीं था और वह नुकीले काटो की वजह से उसकी गाड़ी के एक नहीं दोनों टायर पंचर हो जाते हैं। गर्मी का मौसम था, इसलिए सुबह-सुबह ही तेज धूप हो जाती है। सेठ उमाशंकर किसी गाड़ी मैकेनिक की दुकान ढाबा मनुष्य की खोज में पैदल पैदल जयपुर की तरफ वापस चलने लगता है। दोपहर तक तापमान 45 डिग्री हो जाता है। तेज गर्मी की वजह से सेठ उमाशंकर को पानी की प्यास लगने लगती है। उसे दूर तक पेड़ की छाया नहीं मिलती है। सेठ उमाशंकर चारों तरफ से तेज धूप गर्म लू में घिर जाता है। दोपहर के एक बजे तक पानी की प्यास की वजह से उसका बुरा हाल हो जाता है। पानी की प्यास की वजह से उसकी सोचने समझने की शक्ति भी धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। चारों तरफ रेतीला खाली मैदान टिका टॉक दुपहरी में उसे किसी से सहारा मिलता भी दिखाई नहीं दे रहा था। वह गाड़ी मैकेनिक ढाबा मनुष्य आदि को ढूंढना छोड़कर सबसे पहले पानी ढूंढने लगता है। तेज गर्मी की वजह से पानी की प्यास उसकी और अधिक बढ़ जाती है। पानी की प्यास की वजह से उसकी पैदल चलने की हिम्मत टूटने लगती है। तेज धूप गरम लू की वजह से धरती आग उगल रही थी। वह जमीन पर बैठने की कोशिश करता है, तो जमीन तप रही थी। सेठ उमाशंकर कि हिम्मत टूटने लगती है, अब उसे अपनी मृत्यु निश्चित लगती है। उसकी किसी से मदद की उम्मीद भी खत्म हो गई थी। इतने में सेठ उमाशंकर को एक बड़ा सा पानी से भरा गड्ढा दिखाई देता है। उस पानी से भारे गड्ढे में कुछ जंगली पशु पक्षी पानी पी रहे थे। सेठ उमाशंकर जितना उस पानी से भरे गड्ढे के पास पहुंचने की कोशिश करता था, उतना ही वह पानी से भरा गड्ढा उसे दूर नजर आता था। उस समय सेठ उमाशंकर को पानी बहुमूल्य रत्न से भी ज्यादा कीमती लग रहा था। जब उसकी पैदल चलने की हिम्मत टूट जाती है, तो वह पानी पीने की प्यास बुझाने के लिए जमीन पर रेंगने लगता है और रेंगते रेंगते पानी के पास पहुंच जाता है। पानी के गड्ढे के पास पहुंच कर बदबूदार पानी देकर पानी की प्यास बुझाने की उसकी उम्मीद टूट जाती है। गड्ढे के पानी के पास पहुंचकर उसके साथ एक बुरी घटना और होती है क्योंकि पानी से भरे गड्ढे के पास जंगली पशु कुत्ते सियार पक्षी गिद्ध चील पानी पी रहे थे और वह सेठ उमाशंकर को अपनी तरफ आता देखकर उस पर हमला कर देते हैं और उसे जगह-जगह चीर फाड़ कर लहू लुहान कर देते हैं। अपने शरीर से खून बहता देख सेठ उमाशंकर किसी तरह उन जंगली जानवरों को पत्थर मार कर वहां से भागा देता है। तभी उसके शरीर से खून बहता देख गिद्ध चील उसके शरीर के जख्मो को नोच नोच कर खाने लगते हैं। सेठ उमाशंकर के अनजाने में किए किसी अच्छे कर्म की वजह से उस पर ऊपर वाले की कृपा हो जाती है और धीरे-धीरे काली काली घटाएं छाने लगती है और कुछ ही देर में मूसलधार बारसात होने लगती है। बारसात की वजह से सेठ उमाशंकर के शरीर में थोड़ी सी शक्ति आ जाती है। सेठ उमाशंकर उसी समय जल्दी से अपने दोनों पैरो के जूते उतार कर उनमें बारिश का पानी इकट्ठा करके अपनी पानी की प्यास बुझाता है और बारिश का पानी पीने से उसकी जान बच जाती है। अपने घर सही सलामत वापस आने के बाद माता-पिता से कहता है "जो प्रकृति का सम्मान नहीं करता उसको प्रकृति पर अपना अधिकार जताने का कोई हक नहीं है। और अपने माता-पिता से लंबी आयु का आशीर्वाद लेकर कहता है "आज से मेरे जीवन में दुनिया के सारे रंगों से पानी का रंग सबसे पसंदीदा होगा।"