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सफल औरत के पीछे कौन?

आरोही अब सच में अफसोस कर रही थी, ये कैसी गलती हो गई उससे! अमित ने कहा था कि ज्यादा आज्ञाकारी मत बनो, पर उसे ही भूत सवार था कि घरवालो को कम से कम बता देना सही है। अमित ने कहा भी था कि "आरोही! तुम्हारी बात समझेगा कोई नहीं, फालतू का माहौल खराब होगा घर का, पापा जी को मैं अच्छे से जानता हूँ।"

आरोही को घर में सदस्यों के बीच हर बात शीशे की तरह आर पार पसंद थी। पढ़ी लिखी अपने पैरों पर खड़ी आरोही हाल ही में इस घर में बहू बन कर आई थी। सासू माँ मौसमी जी नितांत घरेलु और धार्मिक स्वाभाव की महिला थी और अपने बेटे की पसंद आरोही को उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया था। पिताजी महेंद्र जी हालांकि कुछ खास खुश नहीं थे, उन्हें समाज में अपना रुतबा कायम रखने के लिए उनके टक्कर की किसी फैमिली से रिश्ता करना था पर माँ बेटे की मनुहार के आगे हार गए।

महेंद्र जी ने आरोही से कई बार हठ मिश्रित आग्रह भी किया था कि वो अपनी जॉब छोड़ दे, चाहिए तो घर पर रह कर अमित के व्यापार में अपना 'सपोर्ट' वाला योगदान दे सकती है जैसा कि उसकी सास उन्हें देते आई थी। महेन्द्र जी सबसे कहते नहीं थकते थे आज वो जो कुछ भी है अपनी पत्नि मौसमी की वजह से है जिसने कठिन से कठिन समय में उनका साथ दिया, अपने जेवर तक दे दिए ताकि वो व्यापार कर पैरों पर खड़े हो सके। खानदान में भी मौसमी जी की सब इसी वजह से खास इज़्ज़त करते थे क्यूँकी उनके और भी कई छोटे मोटे 'बलिदानो' के फलस्वरूप आज महेन्द्र जी अपनी ऊंची नाक लेकर घूमते थे। कुल मिलाकर वो एक आदर्श पत्नि थी, पर अमित को माँ से शिकायत रहती थी। उसे हमेशा लगता था कि एक आदर्श पत्नि बनते बनते उनके अंदर से एक साधारण सी औरत और एक माँ के लिए बहुत कम जगह बची रही हमेशा, पत्नि वाले रूप को सर्वोपरि रखा था उन्होंने। अमित अपने जीवनसाथी से ऐसा कुछ नहीं चाहता था, उसने पहले ही कहा था, मैं तुम्हारा साथ दूँगा हर लड़ाई में... मेरी सफ़लता की वजह बनने की कोशिश मत करना बस खुद को खोने मत देना!

जब इतना प्यार करने वाला जीवन साथी हो तो उसके साथ मिले हर अच्छे-बुरे रिश्ते को अपनाना थोड़ा सहज हो जाता है।

बस यही सोच कर आरोही ने सीधे सबके सामने अपनी बात रखी। कम्पनी की तरफ से उसे ऑफर आया था दो महीने की ट्रेनिंग भारत के बाहर की शाखा मे! उसके बाद प्रोमोशन तय था। अमित ने कहा था कि तुम मायके का कह कर चली जाओ। बाद में पता चलेगा तो भी कोई बात नहीं, पहले बता कर उनकी बातें सुनोगी और मन खराब होगा। पर आरोही नहीं मानी और सीधे अपने विदेश जाने की बात बताई।

"अब बस यही बाकी रह गया है? अमित तुम्हारी सारी इच्छाओं को पूरा करते आया यहाँ तक कि मरज़ी से विवाह भी करने दिया और ये... ये तुम अपनी पत्नि को इतनी छोटी सी बात नहीं समझा पाए? कौन सी सदी चल रही है ये दुहाई मत देना, मेरे लिए कुछ सिद्धांत कभी नहीं बदलेंगे! औरत घर की देहरी के अंदर ही अच्छी लगती है। पर तुम्हें अपनी पत्नी की सुन्दरता, उसके कार्यक्षमता की प्रदर्शनी लगानी है! क्या तुम अपने आप को उसका भरण पोषण लायक सक्षम नहीं समझते? जो इस हद्द तक चुप हो? कहावतें बनी है कि एक सफल इंसान के पीछे एक औरत होती है। पीछे... समझ आया? और तुम बिठा रहे हो सर पर! मुझे कहने का मौका ही क्यों दिया? छोटी सी बात तुम नहीं समझा सकते थे... यहां के तौर तरीकों को बता सकते थे कम से कम! हद्द हो रखी है! "

महेंद्र जी आग बबूला हो रहे थे।

"मैंने कहा था पापा! इसको समझ ही नहीं आता!" अमित ने झुंझलाती नजरों से आरोही को देखते हुए कहा। साफ इशारा था उसने पहले ही कहा था किसी संग्राम में फिर मुझे मत घसीटना। हर लड़ाई में साथ दूँगा? आँखे चढ़ा कर आरोही ने बुदबुदाया।

ओके!

"पापा! आप खामख्वाह बात को बड़ा कर रहे। आपको पता है आरोही चाहती तो मेरे कहने पर बिना बताये चली जाती और मैं कह देता मायके गई है, पर उसे आपसे पूछ कर जाने का जुनून सवार था, अब भुगते!"

अमित की बात सुनकर भी महेंद्र जी का मूड नहीं बदला।

"तो? छुपा कर या बता कर, गलत है वो गलत है... अपनी माँ को देखो! मेरे हर सुख दुख में खड़ी रही, मायके तक की कई शादियों में नहीं गई। मुझे अपने व्यापार से छुट्टी लेने कि फुर्सत नहीं थी तो कभी बाहर जाने की.. घूमने फिरने की जिद्द नहीं की.. परिणाम सामने है.. आज इतना बड़ा व्यापार ऐशो आराम, तुम्हारा स्टार्ट अप... सब कुछ थाली में परोसा मिला है ना तुम्हें!... तुम क्यों नहीं बोलती? समझाओ अपनी लाडली बहू को। तुम्हें ही चाहिए थी आत्मनिर्भर बहू, हूंह! "

मौसमी जी चुप थी हमेशा की तरह! जैसे लगा कि पूरी जिंदगी एक पल में आँखों के सामने घूम गई। कामयाबी के पीछे खड़ी औरत ही रही, आगे आकर कभी आईना देखा ही नहीं!

आज फिर मौका था पति का हाथ पकड़ उन्हें 'सपोर्ट' करने का...एक गहरी साँस भर कर वह बोलीं

"हाँ बहू! तुम्हें क्या इतनी सी बात समझ नहीं आई?"

माँ के ऐसा कहते ही अमित और आरोही उन्हें आश्चर्य से घूरने लगे और महेंद्र जी के अधरों पर विजय मुस्कान खिंच आई।

"माँ.. आप!"

आरोही की बात अधूरी काट कर मौसमी ने अपनी बात आगे रखी। "तुम्हें अपने पति की बात सुननी चाहिए, जैसे मैंने सुनी हमेशा! क्या जरूरत थी इतना बखेड़ा खड़ा करने की?"

महेंद्र जी मुस्कान गायब। "ये क्या पट्टी पढ़ा रही हो? दिमाग फिर गया क्या तुम्हारा? बेटे बहू की शह मिलते ही तेवर बदल गए?"

महेंद्र जी ने आसान टार्गेट चुना, वो जिसे साधना हमेशा आसान रहा।

"देखिए जरा! ताउम्र आपकी कामयाबी की वजह रही मैं आपको अब गलत लग रही हूँ? अपने मतलब तक ही आपने मेरी छवि तय की है। आपने हमेशा मेरी राय से काम नहीं किया, मैंने आपके हर सही गलत में हामी भरी है। फर्क नहीं पड़ता आप कितने कामयाब है पर मैं कहीं हार गई महेंद्र जी! हमारे रिश्ते में आप ही आप थे, मैं कहाँ थी भला? और क्या ऑप्शन था मेरे पास खुद को आपके रंग में ढालने के अलावा? ना ढंग से पढ़ी ना कोई होनहार बिड़ले वाले गुण! अपनी सास के रौब मे ज़बान तक ना खोल पाने वाली मैं, अपनी माँ की रसोई से ढंग से माँ होना भी नहीं सीख पाई... मैं तो सिर्फ एक पत्नि बन कर रह गई। सब्र था कहीं तो सफल हुई। पर आज मेरे सामने एक और औरत सिर्फ 'कामयाबी के पीछे वाली औरत' बनकर रह जाएगी तो सचमुच मैं खुद को माफ़ नहीं कर पाऊँगी। मैं एक औरत के कामयाबी के पीछे की वजह बनना चाहती हूँ। और मुझे लगता है एक औरत सक्षम है खुद अपनी कामयाबी की वजह बनने के लिए, बस थोड़ा सा अपनों का साथ चाहिए। ज़माना बदल रहा है महेंद्र जी आप भी बदल जाइए, कहीं अकेले ना रह जाए आप! "

महेंद्र जी को पता नहीं क्या हो गया। अब शब्द मौन थे उनके। तूफान से पहले की शांति या कुछ और वो शांत होकर अपने कमरे में चले गए।

आरोही की आँखों से आंसू अनवरत बह रहे थे। अमित को एक पत्नि के अंदर खोई हुई माँ और औरत नजर आने लगी थी।

"बहू! तुम जाओ बेटा! पता है सब को खुश नहीं रखा जा सकता है, हमेशा हैप्पी एंडींग नहीं होती, बस याद रखना देर होने से पहले समझ जाओ कि तुम्हारी खुशियों, कामयाबी की वजह सिर्फ तुम होगी। किसने कब रोका, किसने कब साथ दिया... ईन सबसे आगे है कि तुमने कब हिम्मत बनाए रखी, विपरित परिस्थितियों में भी। निर्णय लो, परिणाम देखा जाएगा.. एक ही जिंदगी है बेटा.. दिल की सुनो.. वर्ना मेरी तरह फ्रेम मे गढ़ दी जाओगी किसी मेडल या उपलब्धि के साथ और सपनों को मार कर जीना आसान नहीं। जाओ पैकिंग करो! "

मौसमी जी की बाते खत्म होते ही आरोही उनके गले लग गई।

" थैंक्स माँ! पता है अगर एक औरत, दूसरी औरत को सपोर्ट करे तो दुनिया बहुत खूबसूरत हो जाएगी.. सच! मैं लकी हूं इतना प्यारा परिवार मिला और देखना जल्द ही पापा जी को भी अपनी इस बेटी पर गर्व होगा...वक़्त ताकतवर होता है।"

अमित देख रहा था, एक सफल औरत के पीछे एक औरत का हाथ है ये कहावत चरितार्थ हो रही थी।

-सुषमा तिवारी

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