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तुमसे जुदा होकर

"तुम चली जाओ जहां जाना है, ये रोज रोज की धमकियां मुझे नहीं सुनना समझी! मैं कर लूँगा सब|"

आरव ने अदिति को दो टूक बोल दिया। ऑफिस का टेंशन, ऊपर से छह महीनों से रिश्तों में भरी कड़वाहट। ऐसे रिश्ते किस काम के जो तकलीफ दे। खाना वो रेस्तरां से मंगा लेगा पर अदिति के साथ और नहीं रह सकता है।

अदिति को भी आरव की बात गोली की तरह लगी। मायके जाने की धमकी पर "मैं तुम्हारे बिना कैसे रहूँगा?" के बदले ये सुनने को मिलेगा ये आशा नहीं थी। "ठीक है ना मुझे कौन सा शौक है यहां चूल्हे में बिना किसी सम्मान के घुसे रहूं।"

अदिति गुस्से में मायके चली गई। हज़ारों किलोमीटर की दूरी दिलों में प्रकाश वर्ष जितनी हो चली थी। पूरे हफ्ते भर दोनों ने एक दूसरे को पूछा तक नहीं। दोनों के परिवार परेशान थे कि अब क्या होगा?

तभी शुरू हो गया कोरोना का लॉक डाउन।

वैश्विक महामारी के फैलने का तो ख्याल ही ना रहा था उन्हें अपनी परेशानियों के बीच।

इधर आरव का ऑफिस भी बंद हो गया। घर पर सारा काम निपटा कर फिर घर से ही ऑफिस का सारा काम करना होता था। मेड भी नहीं आती और ना ही कोई रेस्त्रां खुला होता था। आरव की आदत तो अदिति ने बिगाड़ रखी थी, गुस्से और झगड़े में भी कभी भोजन पर असर ना आया होगा। साफ सफाई अदिति को बहुत पसंद था तो मेड नहीं भी होती तो वो सब सम्भाल लेती थी। अब आरव को अदिति की बहुत याद आ रही थी। रातों के सन्नाटे में अब बिस्तर पर दूसरा तकिया जैसे उसे चिढ़ा रहा था कि अब मुँह मोड़ कर क्यूँ नहीं सो जाते जो रात भर निहारते हो। पर दिल तो जिद्दी है ना एक फोन भर की दूरी को कैसे खत्म कर दे?

उधर अदिति ने जब से सुना था कि आरव रेड जोन में है तो वो और परेशान हो गई। आरव को तो कुछ नहीं आता, अगर बाहर गया यहां वहाँ चीजे छू ली तो| वो तो साफ सफाई बिलकुल भी नहीं रखते हैं। खाना पीना कैसे हो रहा होगा? यहाँ भी मायके में सारे भाई वापस लौट आये थे, भाई भाभी सब को साथ हँसते खेलते देख उसका मन और हवा हो उठता और जाने कैसी टीस उठती| चाह कर भी खुश नहीं रह पा रही थी। पर दिल तो जिद्दी है ना एक फोन भर की दूरी को कैसे खत्म कर दे? और फोन तो आरव को करना चाहिए था वो क्यूँ करे भला ।

लॉक डाउन दूसरी चरण में पहुंच चुका था और दोनों के मन के बेचैनी जाने कितने चरणों को पार कर अब पछतावे की आग में जल रही थी। कड़वाहट धुलती जा रही थी। एक दूसरे के लिए जो मन में दबी अग्नि राख हुई थी फिर धधक उठी थी। दिल सारे लॉक डाउन तोड़ने को बेचैन था पर कोई यातायात का साधन नहीं| पर संचार तो था। आरव ने फोन उठाया और सीधा वीडियो कॉल लगाया। उधर अदिति कुछ बोलने के बजाय अनवरत रोये जा रही थी और उतने ही आंसू आरव ने बहाए।

"अदिति! माफ कर दो| यहां परिस्थिति इतनी भयावह हो चुकी थी कि मुझे लगा मैं तुम्हें देख ही नहीं पाउंगा। वापस आ जाओ प्लीज!"

"आरव! मुझे भी माफ कर दो, तुम बिन कोई खुशी मुझे खुशी नहीं दे पाई। मुझे ले जाओ प्लीज!"

तभी पीछे से मां आकर बोली

"चलो दो पंछियों का मिलन होगा पर लॉक डाउन के बाद| तब तक वादा करो आइंदा मसले सुलझाने की बजाय यूँ दूर नहीं भागोगे!"

"बिल्कुल नहीं माँ! इन दूरियों ने हमारी नजदीकियां जो बढ़ा दिया है| अब ना होंगे जुदा हम।"

©®सुषमा तिवारी

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