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प्यासी रूह

" मैं कुछ नहीं कर सकता रवि बाबू.. वो.. वो काली परछाई बहुत ताकतवर है.. मेरी जान जा सकती है.. मुझे माफ़ कर दीजिए " कहकर पुरोहित भाग खड़े हुए।
जिंदगी इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगी रवि ने सोचा नहीं था।
रवि की नौकरी में प्रमोशन हुआ था। मीरा के साथ नए शहर में शिफ्ट होते ही उसने एक ऊंची इमारत में बड़ा सा फ्लैट लिया था। जिंदगी बहुत ही खूबसूरत तरीके से चल रही थी और एक दिन
" रवि ! एक खुशखबरी है! मैं रुक नहीं शाम तक तुम्हें बताने से "
" सच! बताओ ना मीरा ? आजकल वैसे भी सच सब कुछ अच्छा अच्छा ही हो रहा है " रवि ने ऑफिस से चहकते हुए कहा।
" तुम पापा बनने वाले हो!"
ये सुनते ही रवि की खुशी सातवें आसमान पर थी।
घर लौट कर मीरा को बड़ा सा पैकेट दिया।
" क्या है इसमे? मेरे लिए गिफ्ट? "
" नहीं बाबा, अब तुम गिफ्ट क्या करोगी? ये हमारी बच्ची के लिए गुड़िया है! "
रवि की बात सुनते हुए मीरा पैकेट खोल चुकी थी और गुड़िया देखते ही जोर से घुमा कर दे मारी दीवार पर।
" ये क्या बात हुई मीरा ?"
" तुम जानते हो रवि .. भोले मत बनो समझे, तुम जानते हो मैं कितनी सीरियस हूं अपने रिसर्च को लेकर, मुझे कामयाब बनना है। मैं चाहती हूं बस की सब बैलेंस में रहे और इस लिए सोचा कि जल्दी जल्दी परिवार पूरा कर लूं.. मुझे बेटा चाहिए ताकि समाज और परिवार से आगे दूसरे बच्चे की चिक चिक ना सुननी पड़े, उस पर तुम ये गुड़िया उठा लाए मुझे चिढ़ाने के लिए "
" मीरा ! तुम ऐसा बोल रही हो.. विज्ञान के क्षेत्र में रिसर्च करके बेवकूफी भरी बाते कर रही हो.. भला इस पर हमारा बस कैसे होगा? और हमे क्या फर्क़ पड़ता है कौन क्या सोचेगा, बच्चा हमारा होगा, कब और कितने होंगे हमारा निर्णय है। मैंने तुम्हें कभी किसी बात के लिए जबरदस्ती नहीं कहा.. ना ही रिसर्च रोकने के लिए ना ही परिवार बढ़ाने के लिए.. जैसे तुम्हें बेटा चाहिए वैसे मैंने बेटी सोच लिया, चिढ़ाने वाली कोई बात नहीं थी "
" हम इस पर और बात नहीं करेंगे रवि "
इस बहस के बाद मीरा ने वो गुड़िया उठा कर अलमारी में रख दी "

समय बीतता गया और वो दिन आ गया जब मीरा को अस्पताल ले जाया गया और उसने खूबसूरत सी बिटिया को जन्म दिया। रवि खुशी खुशी अस्पताल में वही गुड़िया ले कर पहुंचा। मीरा ने कुछ कहा नहीं, वैसे भी वो अपनी बच्ची को सीने से लगा कर मातृत्व का अनुभव कर चुकी थी। गुड़िया चुपचाप सिरहाने टेबल पर रख दी क्यूँकी रवि को इस खुशी के मौके पर नाराज नहीं करना चाहती थी।
अचानक उसे बगल वाले बेड से चिल्लाने की आवाजें आ रही थी।
" क्या हुआ है सिस्टर?"
" कुछ नहीं! बच्चा अंदर मर गया है पर नॉर्मल डिलिवरी करा कराना है मृत बच्चे को बाहर लाने के लिए "
मीरा को बहुत दुख हुआ सुनकर। उसे लगा शायद कन्या भ्रूण तो नहीं.. पर बाद में पता चला कि लड़का था।
एक दो दिन में मीरा नन्ही परि को लेकर घर आ गई थी ।
अगले दिन दरवाजे की घंटी बजी तो मीरा ने खोला, देखा तो कोई नहीं था और वही गुड़िया रखी थी नीचे। उसपर एक पर्ची लगी थी " ये आप अस्पताल में भूल आई थी "
मीरा ने मुँह बनाते हुए गुड़िया उठाई और अलमारी में बंद कर दी।
"उफ्फ! ये तो पीछा ही नहीं छोड़ती "
अगले दिन काम खत्म कर जब वो आराम कर रही थी। दोनों हाथ सर के उपर रख पलंग पर चित लेटी हुई थी और बाजू में बच्ची सोई हुई थी। अचानक उसे लगा जैसे कि किसी ने उसके दोनों हाथ भारी पत्थरों से बाँध दिया हुआ हो। मीरा की आँखे आधी खुली थी उसे कोई साया अपनी ओर बढ़ता दिखा और लगा जैसे सीने पर बैठ गया। वो चाह कर भी हिल नहीं पा रही थी। वो मन ही मन भगवान का नाम लेने लगी। थोड़े ही देर बच्ची के तरफ नजर डाली तो वो चीख चीख कर रो रही थी। मीरा के आँखों से आंसू बह चले वो चाह कर भी बच्ची को चुप नहीं करा पा रही थी। फिर उसने सारी ताकत लगा कर हाथ नीचे लाया और झटके से आजाद हुई। बच्ची को सीने से लगा कर कोशिश की ताकि दूध पिला कर चुप करा दे पर सीने से एक बूंद दूध ना निकला। रोते हुए उसने रवि को फोन किया और सब बताया। रवि दौड़ कर घर आया और समझाया कि ये सिर्फ वहम होगा। डिलिवरी के बाद ऐसी मानसिक हालत हो जाती है अक्सर। पर मीरा का दिमाग जो ऐसे तो विज्ञान के अधीन था पर मानने को तैयार नहीं था क्यूँकी उसके हाथ में अब भी दर्द था और दूध! वो कैसे गायब हो गया। दोनों ने डाक्टर से दिखा कर दूध बढ़ाने वाली दवाइयाँ लिखवा ली। जब तक रवि रहता कुछ ना होता पर जैसे ही दिन में वो ऑफिस जाता यही सब होता था। मीरा पीली पड़ चुकी थी। रवि से उसकी हालत देखी नहीं जा रही थी। आत्मा भूत ये सब तो रात को परेशान करते पर यहां ऐसा कुछ नहीं था रवि को लगा शायद मीरा को मानसिक बीमारियों ने तो नहीं घेर लिया। रवि ने अपनी मां को बताया तो उन्होंने बहुत डाँटा की मैंने तो कहा ही था कि मैं आ जाती हूँ कनाडा से तो तुम लोगों ने मना कर दिया। मां ने पुरोहित जी का नम्बर दिया ताकि कोई समाधान निकले। पुरोहित जी घर आए तो सब कुछ ठीक था। मीरा ने खाना खिलाया और आराम करने को कहा। पुरोहित जी दोपहर को जब धीरे से मीरा के कमरे के पास गए तो आँखे फटी रह गई वो सात साल जितना बड़ा लड़का था, काले साये की तरह और जाकर मीरा के सीने पर बैठ उसका दूध पी रहा था। पुरोहित जी को झटके से उसने मुड़ कर देखा और वो डर कर भाग खड़े हुए।
रवि अब ज्यादा परेशान था क्या किया जाए। माँ के कहने पर उसने एक तांत्रिक से बात की तो तांत्रिक तय समय पर घर आए। सारी व्यवस्था कर जब उन्होंने मीरा को सामने बिठाया और कहा कि हाथ आगे करे ताकि वो अभिमंत्रित काला धागा कलाई में बाँध सके तो उस अदृश्य ताकत ने मीरा के दोनों हाथ पीछे बाँध दिए। तांत्रिक ने फिर उसका आव्हान किया
" देख मैं जानता हूं तू बच्चा है इसलिए कुछ नहीं कर रहा हूं.. सामने आ, औरत को छोड़ दे"
मीरा के मुँह से अजीब आवाज़ें आने लगी
" मुझे कमजोर मत समझो.. हाँ बच्चा हूं और नहीं छोड़ूंगा.. चले जाओ यहां से"
जोर से चिल्लाते ही घर के सारे कांच टूट कर गिर पड़े।
तांत्रिक समझ गया कि ये शक्तीशाली आत्मा है, पहले इससे बात ही करनी होगी।
" तुम क्यूँ बिचारी को परेशान कर रहे हो.. वो छोटी बच्ची उसका क्या कसूर? "
" नहीं छोड़ूंगा.. ये माँ है मेरी..इसने मुझ पर ममता दिखाई जो किसी ने नहीं दिखाई, और मैं सिर्फ दूध पीने आता हूं बाकी समय चुपचाप खेलता हूं अपनी बहन के साथ.. तुम लोगों को क्या परेशानी है भला? "
" कहां से आए हो तुम? ये औरत माँ कैसे हुई तुम्हारी भला.. "
" ए तांत्रिक! चुप हो जा! वर्ना तेरा खून भी पी जाऊँगा। जब मै सात साल का था तो माँ से एक एक्सीडेंट में बिछड़ गया था तब से ना जाने कितनी कोशिश की पुनः जन्म लेने की पर ये कैसी माँ मिलती है मुझे जो दुनिया में लाती ही नहीं है। उस दिन जब मैं तड़प रहा था ना, तो मेरी चीखें सुन कर सिर्फ इस माँ की आत्मा तड़पी। मैं लड़का था फिर भी उन लोगों ने मुझे अंदर ही मार दिया पर मेरी इस माँ को तो लड़का चाहिए था ना.. उन्होंने दिल से सोचा था कि काश ये मेरा बेटा होता तो मैं ऐसा नहीं करती तो मैं आ गया अपनी माँ के साथ.. जो ममता दे वही ना होती है माँ.. बोल बोलता क्यूँ नहीं "
तांत्रिक ने रवि को बुलाकर कहा कि आसान नहीं इससे छुटकारा पाना पता करो ये बच्चा किसका था कहाँ से आया है?
रवि ने मीरा से कहा कि याद करके बताये कि कब और कहां ऐसी घटना हुई थी ।
पर मीरा तो जैसे इतनी कमजोर हो चुकी थी कि कुछ याद नहीं आ रहा था।
एक दिन अलमारी खोलते ही जब नजर गुड़िया पर गई तो उसका माथा ठनका। उसने धीरे से मैसेज किया रवि को
"रवि वो गुड़िया उस दिन अस्पताल से कोई दे गया था, शायद उस में ही कोई गडबड हो.. वहाँ.. मेरे बाजू वाली बेड पर वो औरत.. तुम पता करो वो कौन थी"
रवि ने मैसेज पढ़ा और तुरंत अस्पताल गया। वहाँ जाकर पता किया कि उस तारीख को कौन एडमिट था उस दिन वहाँ । अस्पताल से एड्रेस लेकर जब रवि वहाँ पहुंचा तो वहाँ किसी के शादी की तैयारी चल रही थी।
" एक्सक्यूज मी! वंदना जी मिलेंगी क्या? "
" जी उनकी तो आज शादी है "
शादी है? तो फिर बच्चा कैसे पहले.. हज़ारों सवाल मन में थे और रवि ने सोच लिया था कि वो वंदना से मिले बगैर नहीं जाएगा।
" जी कहिये की मैडम को की पार्सल है जो उनके हाथ में ही दे सकता हूँ "
वंदना बाहर आई।
" कहिये? "
" जी आप एक घण्टे बाद मुझे शहर के पास कब्रिस्तान में मिलिए "
" ये क्या मज़ाक है.. शाम को शादी है मेरी मुझे पार्लर जाना है..शादी के दिन मैं कब्रिस्तान क्यूँ आऊँ "
" देखिए वंदना जी ये मेरे पत्नी और बेटी की जिंदगी और मौत का सवाल है.. आपने ऐसा क्यूँ किया और कैसे किया ये मैं आपसे नहीं पूछूँगा पर हमे इस परिस्थिति से केवल आप निकाल सकती हैं "
पूरी बात सुनकर वंदना घबरा गई।
" ठीक है माँ आ जाऊँगी शाम को, पहले अपने भूतकाल के पापों का प्रायश्चित करूँगी तब आगे जीवन प्रांरभ करूँगी "
शाम को तय समय पर तांत्रिक को लेकर रवि कब्रिस्तान पहुंच गया।
वंदना ने रवि और तांत्रिक को पूरी बात बताई की कैसे उसे अपने पुराने प्रेम को छोड़ आगे अपना भविष्य बनाने के लिए अपने गर्भ में अकारण पल रहे बच्चे को खत्म करना पड़ा था।
" देखो रवि ! हमे पूरी तरह से इसका अंतिम संस्कार करना होगा वर्ना जैसे ये कई योनियों में भटकता हुआ वंदना जैसे कई और लोगों के अनचाहे गर्भ में प्रवेश करने की कोशिश करते रहेगा"
रवि ने हाथ में पड़े पैकेट से वो गुड़िया निकाली पर उस ने देखा उसके पूरे हाथ खून से सने हुए थे। रवि ने गुड़िया नीचे फेंक दी। तांत्रिक ने उसे अपने हाथो में उठाया और प्रक्रिया शुरू की क्यूँकी उन्हें यकीन था कि उस दिन वो काली परछाई अस्पताल से इसी में सवार होकर आई है।
उधर उस प्रेतात्मा को यह पता चल चुका था कि उसे उसकी माँ से दूर किया जा रहा है।
" रवि !.. रवि जल्दी घर आओ, बच्ची को पता नहीं क्या हो गया है वो रोये जा रही है" मीरा का रो रो कर बुरा हाल था।
" तुम घबराना मत मीरा कुछ नहीं होगा बच्ची को.. हम यहां कोशिश कर रहें हैं"
तांत्रिक ने अपनी शक्ति से उस आत्मा को गुड़िया में बुलाया। गुड़िया तांत्रिक के हाथ से छूट पड़ी और अचानक वहाँ भयंकर आवाजें आनी लगी।
गुड़िया जोर जोर से हवा में उड़ने लगी।
वंदना ने हाथ जोड़ कर कहा
" मुझे माफ़ कर दो! तुम्हारी गुनाहगार मैं हूँ.. मैं लालच में आ गई और ममता का त्याग किया.. इन लोगों को जाने दो.. तुम मुझे सजा दो, मैं इसी लायक हूं"
"नहीं तुम माँ हो ही नहीं.. तुम्हें तो मुझ पर ममता आई ही नहीं, माँ तो वो है"
तांत्रिक ने मंत्रोच्चारण करके गुड़िया पर काला धागा लपेट दिया।
" माँ का प्रेम लेने के लिए तुम्हें मनुष्य शरीर में होना चाहिए था बच्चे! अभी ईश्वर में विलीन हो जाओ " कहकर उसे वहीं दफना दिया।
वंदना भी माफी मांग कर घर चली गई।
घर लौट कर रवि ने देखा बच्ची अब ठीक है और उसकी माँ भी तब तक आ चुकी थी। रवि ने सबको गले लगा लिया।
" रवि ! ये मेरे ही बुरे विचारों का फल था शायद.. मैंने ही सन्तान में भेद किया था "
" नहीं मीरा ! कुछ दुष्ट आत्मायें होती हैं जो कमजोर मन और शरीर को खोजती है"
तभी बेल बजती है।
"रुको मैं देखती हूँ।"
माँ बोलती है
"कौन है माँ?"
" पता नहीं बेटा, कोई दिख नहीं रहा पर मैंने एक परछाई जरूर देखी थी.. सुनो रवि ! बेटा पार्सल भी रखा है..पता नहीं कोई एक गुड़िया दे गया है। "



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