ग्लोबल वार्मिंग ए सीरियस वार्निंग
आजकल भारत में ख़ास कर उत्तर भारत में भयंकर बाढ़ ने लाखों लोगों का जीवन तबाह कर दिया है . बाढ़ प्रत्येक वर्ष आता है पर विगत के कुछ वर्षों में बाढ़ का प्रकोप बढ़ते जा रहा है . पर ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं हो रहा है बल्कि दुनिया के अनेक देशों में यही स्थिति देखने को मिलती है , अमेरिका , जापान आदि विकसित और आधुनिक देशों को भी बाढ़ के भीषण रौद्र रूप का सामना करना पड़ रहा है . पड़ोसी देश पाकिस्तान को पिछले साल भयानक बाढ़ का सामना करना पड़ा था . हम प्रायः सुनते आये हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते क्लाइमेट चेंज हो रहा है और धरती के वायुमंडल का औसत तापमान बढ़ने के कारण ऐसा हो रहा है . अब सारी दुनिया के सामने यह एक चुनौती है कि अगर आगामी कुछ वर्षों में इसे कंट्रोल नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ियों को इसका भयंकर परिणाम भुगतना होगा .
पेरिस समझौता - वैज्ञानिकों ने अध्ययन कर देखा है कि 2011 - 2020 का दशक सर्वाधिक गर्म दशक रहा है . औसत ग्लोबल तापमान में औद्योगिक क्रांति से 2019 तक लगभग 1.1°C की बढ़त हुई है . वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि औद्योगिक क्रांति के समय के तापमान में 2°C की बढ़त होने का भयंकर परिणाम होगा जिसे मानव , पशु पक्षी , पेड़ पौधों सभी को भुगतना होगा . इसलिए वैश्विक स्तर पर 2015 में पेरिस समझौता हुआ था जिसमें यह निर्णय लिया गया कि धरती के तापमान में वृद्धि को 1.5 °C तक सीमित रखा जाए . इस समझौते में भारत सहित 196 देशों ने भाग लिया था .
ग्लोबल वार्मिंग क्यों - आखिर ‘ भूमंडलीय ऊष्मीकरण ‘ यानी ग्लोबल वार्मिंग क्यों हो रहा है . आज से 50 साल पहले ऐसा नहीं देखा गया था . इसका एक प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है और इसकी वज़ह ग्रीनहाउस गैस हैं .
अब प्रश्न यह है कि ग्रीनहाउस गैस क्या है –हमारे वायुमंडल में कई प्रकार के गैस हैं जिनमें कुछ नेचुरल हैं और कुछ मैन मेड यानी मानव द्वारा निर्मित , इनमें कुछ गैसों को ग्रीनहाउस गैस कहते हैं . ये गैस धरती के ऊपर एक नेचुरल लेयर या ट्रैप बना लेते हैं . जैसा कि हम जानते हैं धरती को ऊष्मा ( हीट ) सूर्य की किरणों से मिलती है . ये गैस हीट को धरती पर आने देते हैं पर धरती से परावर्तन के बाद लौटने में बाधा देते हैं जिसके चलते वायुमंडल का तापमान ज्यादा हो जाता है .
ग्रीन हाउस गैस - वायुमंडल में मौजूद प्रमुख गैस हैं - वाष्प , कार्बन डाइऑक्साइड , मीथेन , ओज़ोन , नाइट्रस ऑक्साइड और क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स . इसमें सब से ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड है जिसकी मात्रा औद्योगिक क्रांति ( 1750 ) की तुलना में 2020 तक 48 % बढ़ गयी है . इस गैस का मुख्य स्रोत स्वयं हम यानी मानव है . दूसरा प्रमुख और शक्तिशाली मानव निर्मित गैस मीथेन है पर वायुमंडल में इसकी आयु बहुत ही कम होती है . तीसरा नंबर नाइट्रस ऑक्साइड का है . नाइट्रस ऑक्साइड और कार्बन डाइऑक्साइड की आयु बहुत लम्बी होती है , ये सैकड़ों साल भी रह सकते हैं और धीरे धीरे वायुमंडल में इनकी मात्रा बढ़ती जाती है . इसके अतिरिक्त कुछ प्राकृतिक कारण भी हैं , जैसे - सूर्य के रेडिएशन में बदलाव और ज्वालामुखी द्वारा छोड़े गैस . पर कुल ग्लोबल वार्मिंग में इसका योगदान करीब 0. 1C रहा है ( पिछले 20 वर्षों में )
ग्लोबल वार्मिंग के मुख्य कारण - क्लाइमेट में नेचुरल चेंज - सूर्य के रेडिएशन में बदलाव और ज्वालामुखी द्वारा छोड़े गैस , टैक्टोनिक शिफ्ट , धरती की ऑर्बिट ( परिक्रमा ) में सूक्ष्म बदलाव . कुल मिला कर ग्लोबल वार्मिंग में इनका योगदान बहुत ही कम है .
नेचुरल या प्राकृतिक कारणों में अल नीनो और ला नीनो के नाम भी आते हैं .
अल नीनो और ला नीनो - स्पेनिश भाषा में इसका अर्थ ‘ क्राइस्ट का बालक ‘ जबकि ' ला नीनो ‘ का मतलब है छोटी लड़की . ग्लोबल वार्मिंग में इनका संदर्भ प्रशांत महासागर की समुद्री सतह के तापमान में होने वाले बदलाव से है . अल नीनो से तापमान बढ़ता है और ला नीनो से कम होता है जिसके चलते मौसम में असाधारण ( हवा की गति या चक्रवात आदि ) बदलाव हो सकते हैं और गर्मी या ठंडा , सूखा या बाढ़ . इन दोनों का असर दुनिया भर में होता है . इनके असर पर हमारा नियंत्रण नहीं है परन्तु ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में हम कमी ला सकते हैं .
मानव निर्मित मैन मेड - विश्व की आबादी लगातर बढ़ रही है . हमारी जरूरतों को पूरा करने के लिए नीचे लिखे साधनों में काफी बढ़त हो गयी है . अनुमान है कि मैन मेड कारणों के चलते ग्लोबल तापमान प्रति दस वर्षों में 0. 2 C बढ़ता है .
यातायात के साधन - जल , थल और नभ तीनों मार्गों के यातायात के साधनों में तेल या गैस के प्रयोग के चलते ग्रीनहाउस गैस निकलते हैं .
बिजली का उत्पादन - इलेक्ट्रिसिटी प्रोडक्शन के लिए बड़ी मात्रा में कोयला , तेल या नेचुरल गैस का प्रयोग होता है जिस से ग्रीनहाउस गैस निकलते हैं . न्यूक्लियर , विंड पावर , हाइडल पावर और सोलर एनर्जी में प्रदूषण बहुत कम है .
उद्योग , कारखाने - आयरन - स्टील , केमिकल , सीमेंट ,अन्य धातु , कागज आदि के उत्पादन के दौरान वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैस आते हैं .
कृषि - कृषि में केमिकल , फर्टिलाइजर और कीटनाशक के प्रयोग से वातावरण में मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड आते हैं .
मवेशी - गाय और भेड़ आदि पशु भोजन पाचनक्रिया के दौरान मीथेन गैस रिलीज करते हैं .
तेल और गैस का प्रोडक्शन - कारखानों में तेल और गैस का उपयोग होता है पर इनके ड्रिलिंग ,उत्पादन , ट्रांसपोटेशन , भंडारण आदि हर स्टेज पर प्रदूषण के चलते ग्रीनहाउस गैस निकलते हैं .
भवन निर्माण - के लिए स्टील , सीमेंट , एलुमिनियम , शीशा आदि का उत्पादन कारखानों में होता है .
IPCC ( इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट कंट्रोल ) के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग और क्लाइमेट चेंज के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार खुद मानव है .
वनों की कटाई - बढ़ती आबादी की जरूरतों की पूर्ति के लिए कल कारखानों , भवन आदि की मांग भी बढ़ती है . इसके लिए जंगल काटे जा रहे हैं . इनकी कटाई से इनमें स्टोर्ड कार्बन डाइऑक्साइड वायुमंडल में फैलते हैं .
हमारे लाइफ स्टाइल - बढ़ती आबादी के लिए बुनियादी जरूरतों भोजन , वस्त्र और आवास की मांग में बढ़त हुई है . इसके अलावा भी लोग अन्य सुविधा के साधनों का प्रयोग करते हैं जो ग्रीनहाउस गैस पैदा करते हैं , जैसे हीटिंग और कूलिंग के लिए गैस , तेल , बिजली आदि का इस्तेमाल .
सर्वाधिक योगदान यातायात , कल कारखाने और बिजली के चलते होता है . उसके बाद कृषि ,भवन निर्माण और लाइफ स्टाइल का नंबर है .
क्लाइमेट चेंज के प्रमाण - धरती पर क्लाइमेट चेंज तीव्र गति से हो रहा है , इसका प्रमाण -
औसत ग्लोबल तापमान में वृद्धि
समुद्र की सतह का गर्म होना
ग्लेशियर का पिघलना और आइस शीट में कमी
समुद्र का अम्लपन ( acidity ) बढ़ना
एक्सट्रीम मौसम और अप्रत्याशित घटनाएं
समुद्र की सतह का बढ़ना
आर्कटिक में बर्फ का लगातार घटना
अमेरिका , ब्राज़ील , यूरोप , कनाडा व अन्य देशों के जंगलों में लगातार आग लगने की घटना में वृद्धि .
गर्मी से मरने वालों की संख्या में बढ़त होना . 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में लगभग 50 लाख लोग गर्मी और ठंड से संबंधित रोग से मरे जिनमें आधा से ज्यादा अकेले एशियाई थे
( भारत में ठंड से संबंधित 6. 5 लाख ; गर्मी से संबंधित 74000 मौतें )
10 . मौसम के आगमन और विदाई के समय में भी कुछ परिवर्तन हो रहा है . ऐसा पक्षियों के प्रवास ( migration ) , अंडा देना ( nestling ) और पशुओं की सुप्तावस्था ( hibernating ) के समय में बदलाव से देखा गया है
क्लाइमेट चेंज को लेकर मिथ -
1 . धरती पर क्लाइमेट चेंज सदा से होते रहा है - यह सही है कि हमारी धरती के करीब 450 करोड़ साल के इतिहास में क्लाइमेट में बदलाव हुए हैं , नेचुरल हीटिंग कूलिंग होते रहते हैं . वे बदलाव विगत के कुछ दशकों में हुए तीव्र चेंज की तुलना में कुछ भी नहीं थे , खास कर औद्योगिक क्रांति के बाद से . 2001 से अभी तक के 18 वर्ष बहुत गर्म रहे हैं .
2 . पेड़ पौधों को CO 2 चाहिए - इन्हें भी कार्बनडाईऑक्सइड चाहिए . ये CO2 अब्जॉर्ब भी करते हैं और रिलीज भी . जंगल कम होते जा रहे हैं जिसके चलते CO 2 अब्जॉर्ब करने की क्षमता कम हो रही है और वायुमंडल में इसकी मात्रा बढ़ रही है .
3 . क्लाइमेट चेंज भविष्य की समस्या है - क्लाइमेट चेंज भविष्य की समस्या है इसलिए अभी से हम क्यों अपनी सुविधाओं को त्यागने का कष्ट करें , ऐसा सोच कर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों का अस्तित्व खतरे में डाल रहे हैं . क्लाइमेट चेंज से विगत कुछ वर्षों की दुखद घटनाओं से हमें सबक लेना चाहिए .
4 . पशु पक्षी , पेड़ पौधे क्लाइमेट चेंज के अनुकूल हों जायेंगे - डार्विन के सिद्धांत के अनुसार हम सभी इसके आदि हो जायेंगे . हालांकि कुछ हद तक यह सही है पर सभी प्लांट और पशुओं के लिए नहीं - only fittest can survive . कुछ ने क्लाइमेट चेंज से संघर्ष कर अपने अस्तित्व को कायम रखा है - मूव एंड एडाप्ट और कुछ का नामोनिशान मिट गया है . जंगल कट रहे हैं , नित नए रोड , भवन , डैम , कारखाने बन रहे हैं उनके मूव करने की जगह भी कम रह गयी है .
5 . रिन्यूएबल एनर्जी एक मार्केटिंग है और बिना धूप के संभव नहीं - सोलर या रिन्यूएबल एनर्जी के लिए हमेशा धूप की आवश्यकता होगी . आजकल की उन्नत तकनीक से बादल रहने पर भी सोलर एनर्जी पैदा कर सकते है . सोलर एनर्जी प्रोड्यूस करना बहुत खर्चीला है , ऐसा कहना भी ठीक नहीं है . आधुनिक तकनीक द्वारा सोलर पैनल पहले की तुलना में बहुत सस्ते हो गए हैं .
6 . सिर्फ कुछ देश इसके लिए जिम्मेदार हैं - कुछ लोग चीन और भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश को इसके लिए ज्यादा जिम्मेदार मानते हैं . इसके लिए विकसित देश और अन्य सभी देश भी उतने ही जिम्मेदार हैं . यह एक वैश्विक समस्या है और ग्लोबल स्तर पर इसे सुलझाना होगा .
ग्लोबल वार्मिंग पर कैसे लगाम लगाएं -ग्लोबल वार्मिंग में कमी के लिए प्रत्येक आदमी योगदान दे सकता है -
घर की लाइट बदलें - रेगुलर बल्ब की जगह CFL या LED लाइट लगाना
यातायात के साधनों में यथासंभव कमी करें - जहाँ तक हो सके ट्रेवल कम करें . ड्राइव कम करें , अपनी निजी कार का टायर प्रेशर , इंजन ट्यूनिंग ठीक रखें और कार पूल का उपयोग करें
रीसायकल - औसतन हर घर करीब एक टन CO2 सालों बचा सकता है , इसके लिए घर से निकले आधे वेस्ट ( कचड़े - trash ) का भी रीसायकल करें तो ऐसा सम्भव है .
हॉट वाटर का कम प्रयोग - अपने स्नान या कपड़े धोने के लिए हॉट वाटर का प्रयोग न करें या कम से कम करें
पैकेजिंग में कमी लाना - घर के उपयोग में लाने वाली चीजों या ट्रैश के लिए पैकेज खास कर प्लास्टिक का उपयोग न करें और यदि करना हो तो रीसायकल वाले बैग या पॅकेज करें .
एयर कंडीशनर का कम यूज करें - यथासंभव एयर कंडीशनर का उपयोग कम करें और करें तब टेम्परेचर इतना कम न रखें कि कंबल भी ओढ़ें और एयर कंडीशनर भी चलाएं .
बिजली का कम से कम उपयोग करें - जहाँ जरूरत नहीं है लाइट, फैन , एयर कंडीशनर आदि ऑफ रखें . टीवी आदि डिवाइस बेकार का ऑन छोड़ें .
ईंधन का कम इस्तेमाल - घर में रसोई आदि के लिए उतना ही ईंधन जलाएं जितना जरूरी हो और उसका एफिशिएंट उपयोग करें
वृक्ष लगाएं - जहाँ संभव हो कम से कम एक वृक्ष लगाएं .
रिन्यूएबल एनर्जी यूज करें - यथासंभव रिन्यूएबल एनर्जी ( सोलर सेल ) यूज करें
ज्यादा फल सब्जी खाएं - ताकि रसोई में ईंधन का यूज कम हो
खाने की बर्बादी रोकें - कचड़े में खाना फेंकने से मीथेन गैस बनता है .
इलेक्ट्रिक कार या बाइक यूज करें - ट्रेडिशनल पेट्रोल या डीजल कार या बाइक की जगह इलेक्ट्रिक व्हीकल ड्राइव करें
बिजली के वैकल्पिक स्रोतों का उपयोग - विद्युत् उत्पादन के लिए कोयला , तेल और गैस यूज न कर यथासंभव वैकल्पिक स्रोतों का प्रयोग करें - हाइडल पावर , विंड पावर ,न्यूक्लिअर पावर , सोलर पावर
समाप्त