चन्द्रमुखी Lotus द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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चन्द्रमुखी

कितनी वेदना कितनी विरह.
कितने समर्पण के बाद चंद्रमुखी के हिस्से मे देवदास का प्रेम आता है...
वो भी मृत्यु के निकट होने पर
देवदास की प्रेम स्वीकृति...
वो देवदास जो चंद्रमुखी को इसलिए छुने नही देता क्योकि वो पारो का है...
देवदास का प्रेम तो पारो के लिए
और चंद्रमुखी का प्रेम देवदास के लिए...
देवदास पर जाने कितनी ऐसी कहानिया लिखी गई होगी
पारो को पा न सकने का गम देवदास को था
और उसे भुलाने के लिए वो चंद्रमुखी के प्रेम का सहारा लेता है
वो तो पारो का ही रहता उम्र भर मरते दम तक
चंद्रमुखी का क्या..
वो कितनी निर्मल सरलता से प्रेम मे बहती एक धारा
उसका परिचय बस इतना ही
देवदास के प्रेम मे समर्पित प्रेमिका
देवदास तो पारो का ही था
बस वो तो उसका गम भुलाने के लिए चंद्रमुखी के पास आया था...
पर चंद्रमुखी देवदास से अनवरत प्रेम करते गई निस्वार्थ प्रेम
पर उसके हिस्से मे क्या आया
देवदास तो पारो का ही था ...
उसकी सांस भी उखडी तो पारो की चोखट पर
चंद्रमुखी के हिस्से मे क्या आया
प्रेम के बदले मे प्रेम भी नही..
और ना ही देवदास और ना ही उसके आखरी क्षण
तो क्या...
देवदास के लिए चंद्रमुखी का प्रेम कम था
चंद्रमुखी समा की तरह पिघलती रही देवदास के प्रेम मे
चंद्रमुखी ने पारो के प्रेम मे देवदास को जाने की इजाज़त देकर
देवदास और पारो के लिए त्याग किया
शमा की तरह जलकर आखिर मे वो राख ही बन गई
समर्पण की देवी....
ये तो हुई एक सच्ची कहानी जो डेढ सौ साल पहले घटित हुई थी..
आज की दूनिया मे उसका वजूद क्या
आज भी देवदास के रूप मे भुले भटके पुरूष
चंद्रमुखी सी स्त्रीयों के पास आते है
अपनी पारो को भुलाने...
पारो से प्रेम तो बहुत करते है
पर उसके धिक्कारने पर या उसके किसी और को चुनने पर
चंद्रमुखी जैसी समर्पित प्रेमिका ओ के पास आते है
और जाने पर पारो को भुलने कि चेष्टा करते है
पर ये मायूस प्रेमी अपनी पारो को भुला नही पाते
अपने आशियाने को फूक कर भी
चंद्रमुखी जैसी समर्पित प्रेमिकायें नायिका बन जाती है

और बदले मे देवदास जैसे पुरूष उन्हे छूने का अधिकार भी नही देते...
क्योकि उसपर तो उनकी अधिकृत प्रेमिका का अधिकार होता है
इश्क और सांसो का सम्बन्ध ही ऐसा होता है
किसी से इश्क हो जाए
तो सांसो के खत्म होने पर ही टूटता है
देवदास जैसे पुरूषो का पैमाना पारो के प्रेम से लबालब भरा होता है...
जिसे और भरने की जरूरत नही...
ये तो चंद्रमुखी जैसी स्त्रियों के पास आकर भी
पैमाने को और ना भरने की गुजारिश करते है...
चंद्रमुखी प्रेम देकर छलक कर निचे गिर भी जाए तो भी पैमाने को छूकर छलक कर निचे गिर गई इसी मे सकून ढूढ लेती है..
देवदास का प्रेम कूछ अलग सा है
तो चंद्रमुखी का प्रेम इतना बराबर भी नही कि चंद्रमुखी के प्रेम मे देवदास जैसे पुरूष अपनी पारो को भुला दे...
प्रेम मे तो दोनो ही है
देवदास पारो के तो
चंद्रमुखी देवदास के....
देवदास तो पारो पारो कहते हुए पारो के पास चला गया..
पर चंद्रमुखी के हिस्से मे क्या आया देवदास के साथ गुजरे कुछ क्षण...
जिसमे भी वो पारो पारो ही करते रहा...
देवदास पर तो कर्ज ही रहा
चंद्रमुखी के प्रेम का....