फुलवंती के मुँह से उसके भाइयों के मनसूबों के बारे में सुनकर गंगा ने उसे गले से लगा लिया और अपनी आँखों से टपकते हुए आँसुओं को पोंछते हुए बोली, "फुलवंती तू चिंता मत कर। मुझ में इतनी शक्ति है कि मैं ऐसे अमानुष लोगों का मुकाबला कर सकती हूँ। मैं जानती हूँ, मैं अकेली हूँ, बेसहारा हूँ, साथ ही जवान हूँ। मुझे ऐसे हालातों से निपटना ही होगा। मेरे बापू जब भी किसी औरत पर अत्याचार या बलात्कार का समाचार सुनते थे तब कहते थे कि शालू और गंगा अपनी रक्षा ख़ुद करना सीखो। बचपन में सीखे हुए कुश्ती के दांव पेच वह मुझे सिखाते रहते थे। वैसे भी जिसके पास तेरे जैसी सहेली हो उसका भला कोई क्या बिगाड़ सकता है। तूने यह सब बता कर मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है। मैं तो बचपन से तेरे घर आती हूँ। मैकू और छोटू को अपने भाई की तरह ही मानती हूँ। मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि उनके मन में हवस और वासना का ऐसा ज़हर भरा होगा, जिसे वह मेरे तन में उतारना चाहते हैं। लेकिन तू मेरे लिए अपने भाइयों के खिलाफ़ खड़ी हो गई?"
"तू क्या तेरी जगह कोई अंजान लड़की भी होती तो भी मैं यही करती। आज मैं अपने भाइयों को उनके गुनाह की सजा ज़रूर दूंगी। गुनाह तो मैं उन्हें करने ही नहीं दूंगी लेकिन जो उन्होंने सोचा है ना गंगा उसकी सजा उन्हें ज़रूर मिलेगी। चाहे उसके लिए मुझे कुछ भी क्यों ना करना पड़े। गंगा हम जैसी औरतों का किस तरह चीर हरण किया जाता है हम हर रोज़ समाचार पत्रों में पढ़ते और रेडियो में सुनते हैं। ऐसे पापियों को कितनी गालियाँ देते हैं, कितनी बद्दुआ देते हैं। गंगा मैं शर्मिंदा हूँ कि मेरे भाई भी उन्हीं पापियों में से एक हैं। मुझे तो अब उन्हें अपना भाई कहने में भी शर्म आती है।"
"गंगा ऐसा कर तू शांता ताई की खोली में सो जाना और मैं यहाँ तेरी खोली में सो जाऊंगी।"
"नहीं फुलवंती तू अपने भाइयों के सामने इस तरह, नहीं-नहीं । मैं देख लूंगी उन्हें, तू बस खोली के बाहर रहना। यदि मैं बचाओ-बचाओ कह कर पुकारूं तभी तू आवाज़ लगाना।"
"नहीं गंगा वे दो हैं, तू अकेली। दो का मुकाबला तू अकेली नहीं कर पाएगी।"
"हाँ तू ठीक कह रही है फुलवंती।"
"मुझे लगता है हमें दोनों को एक साथ यहाँ तेरी खोली में रहना चाहिए ताकि मैं उन्हें रंगे हाथों पकड़ सकूं। ठीक है ना गंगा।"
"हाँ ठीक है फुलवंती।"
रात को जब सब नींद के आगोश में चले गए, तब रात्रि के लगभग दो बजे मैकू और छोटू मौके का फायदा उठाकर घर से बाहर निकले। उन्होंने झांक कर देखा, कहीं कोई आवाज़ नहीं थी।
कहीं-कहीं से खोली के बाहर खर्राटों की आवाज़ ज़रूर सुनाई दे रही थी। दोनों भाई गंगा की खोली तक पहुँच गए।
छोटू ने शांता ताई की आवाज़ निकालते हुए कहा, "गंगा-गंगा दरवाज़ा खोलो।"
गंगा और फुलवंती छोटू की इस चाल को पहले से ही जानते थे। फुलवंती पलंग के पास ही छुप कर बैठ गई जहाँ से आसानी से उसका हाथ स्विच बोर्ड तक पहुँच सकता था और वह लाइट जला सकती थी। उसने गंगा को इशारा किया, जा गंगा दरवाज़ा खोल।
गंगा फुलवंती के पास होने के बाद भी थोड़ा घबरा रही थी फिर भी हिम्मत करके उसने कहा, "हाँ शांता ताई आती हूँ," कहते हुए गंगा ने दरवाज़ा खोल दिया।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः