गंगा की खोली से कुछ ही दूरी पर उसकी बचपन की सहेली फुलवंती अपने परिवार के साथ रहती थी। उसके परिवार की आर्थिक स्थिति गंगा जितनी खराब नहीं थी। उसके माता-पिता, दोनों भाई मैकू और छोटू, सब काम पर जाते थे। फुलवंती और गंगा एक दूसरे के घर खेलने जाते थे। गंगा फुलवंती की ही तरह मैकू और छोटू को अपना भाई मानती थी। बचपन में सब साथ-साथ खेलते थे लेकिन अब गंगा जवान हो रही थी। उसने लड़कों के साथ खेलना भी बंद कर दिया था। फुलवंती भी बड़ी हो रही थी। अब वह मिलतीं तो अकेले शांति से बैठ कर बातें करती थीं। दुख की इस घड़ी में फुलवंती अक्सर गंगा के पास आया करती थी।
एक दिन गंगा कचरे की गाड़ी से उतरकर अपनी खोली की तरफ़ जा रही थी। छोटू बड़ी ही पैनी नज़रों से उसे ताक रहा था। तभी उसका बड़ा भाई मैकू वहाँ आ गया और छोटू की नज़रों में पल रही हवस को पहचान गया।
उसने पूछा, "क्या बात है छोटू तेरी आँखों की पुतलियाँ हिलना डुलना भूल गई हैं? क्या देख रहा है?"
छोटू डर गया, "नहीं-नहीं भैया कुछ भी तो नहीं।"
"अरे छोटू क्या छुपा रहा है। जहाँ तेरी पुतलियाँ अटकी हैं ना, मेरी भी कब से वहीं पर अटकी हुई हैं। रोज़ देखता हूँ जवानी और ख़ूबसूरती का बेमिसाल संगम है वो, पर सिर्फ़ देखकर ही मन को बहलाना पड़ता है।"
"तो भैया कुछ करो ना ताकि मन और तन दोनों की तमन्ना पूरी हो सके।"
"हाँ छोटू इच्छा तो मेरी भी यही है पर आजकल कानून बड़ा सख्त हो गया है। यदि किसी को पता चला तो हम बड़ी मुसीबत में फँस सकते हैं।"
"अरे छोड़ो भैया ये अकेली जान, बिना माँ बाप की किस को बताएगी? अरे सब कुछ छुपा जाएगी, इतनी हिम्मत नहीं है उसमें।"
"हिम्मत की बात मत कर छोटू? माँ बाप के मरने के हफ्ते भर के अंदर ही अकेली कचरे की गाड़ी खींचने लगी, वह भी किसी की मदद के बिना। ऊपर से वह शांता ताई और मनु काका भी तो हैं ना उसका ख़्याल रखने वाले। देख छोटू वह ही दो खोलियाँ हैं जो थोड़ी अलग-थलग हैं। जब तक शांता ताई और काका हैं हम कुछ नहीं कर सकते। हमें उन दोनों के कहीं जाने का इंतज़ार करना ही पड़ेगा। आख़िर वे कब तक उसके चौकीदार बने रहेंगे। कभी तो कहीं ना कहीं जाएंगे ही ना। तब तक भड़कने दो हमारे तन मन के शोले। जितना भड़केंगे उतना ही ज़्यादा आनंद भी उठा लेंगे।"
"तुम ठीक कह रहे हो भैया। क्या दिखती है, उसे देखते ही मन बेचैन होने लगता है।"
"इंतज़ार कर ले छोटू पहला मौका मैं तुझे ही दूंगा।"
छोटू और मैकू के बीच हो रहे इस वार्तालाप की हल्की-सी ध्वनि फुलवंती के कानों से टकरा गई और वह संवाद उसके कानों में शूल की तरह चुभ गए। इस खतरनाक इरादे को जानकर फुलवंती अपनी सहेली के लिए घबरा गई। उसके कानों में वह शब्द गूँजने लगे। उसकी स्वयं की रक्षा करने वाले उसके भाई इतने खतरनाक हैं, इतने मैले हैं? यह सोच कर वह हैरान भी थी और दुखी भी थी। उसने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह ऐसा तीर चलायेगी जिसमें एक साथ दो निशाने होंगे। अपनी सहेली की इज़्ज़त बचाना और भाइयों को सही राह पर लाना। फुलवंती भी शांता ताई की खोली पर नज़र रखे हुए थी।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः