अकेली - भाग 9 Ratna Pandey द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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अकेली - भाग 9

खोली का दरवाज़ा खुलते ही छोटू और मैकू अंदर घुस गए। छोटू ने गंगा कुछ पूछ सके उससे पहले ही उसका मुँह दबा दिया और मैकू गंगा की ओढ़नी खींचने लगा।

छोटू ने कहा, "बहुत इंतज़ार किया है तेरे लिए गंगा हमने।"

वह जबरदस्ती गंगा को बिस्तर पर पटकने ही वाला था कि फुलवंती ने खोली को रौशनी से भर दिया। लाइट के जलते ही जो दृश्य दिखाई दे रहा था वह बहुत ही डरावना था। छोटू का हाथ गंगा के मुँह पर था। मैकू के हाथों में गंगा की ओढ़नी थी जिसे वह हमेशा अपने वक्ष स्थल पर ओढ़ कर रखती थी। मैकू उसे खींच रहा था और छोटू का एक हाथ गंगा की चोली के नज़दीक जा रहा था।

उसी वक़्त फुलवंती के रूप में मानो श्री कृष्ण उनके सामने आकर खड़े हो गए। फुलवंती ने मैकू के हाथों से गंगा की ओढ़नी छुड़ाई और छोटू के हाथ को धक्का मारते हुए अलग किया। उसके बाद फुलवंती ने वहीं पर उल्टी कर दी। यह दृश्य इतना भयानक था जो एक बहन अपनी आँखों से अपने भाइयों को करता हुआ देख रही थी। गंगा अपनी ओढ़नी को फिर से उसके सही स्थान पर लपेटने लगी। मैकू और छोटू को काटो तो खून नहीं। वे अपनी बहन की नज़रों के सामने किसी का बलात्कार करने की कोशिश करते हुए पकड़े गए थे।

फुलवंती की आँखें देखकर दोनों भाइयों की नज़र नीचे झुक गई। वे दोनों मुँह से आवाज़ तक ना निकाल पाए। दोनों घुटने के बल बैठ गए और उनके हाथ अपने आप ही आपस में जुड़ कर माफ़ी की भीख मांग रहे थे। उनकी नज़रें फुलवंती से मिलने के बाद ऐसी झुकीं कि फिर ऊपर उठ ही ना पाईं।

फुलवंती ने आख़िर अपनी ज़ुबान खोलते हुए कहा, "शर्म आ रही है मुझे तुम दोनों की सोच पर, मेरे भाई हो तुम उस पर। गंगा एक अकेली, बेसहारा, बिन माँ बाप की बेटी तुम्हें आसानी से मिल जाएगी, यही सोच कर आए थे ना? शांता ताई नहीं हैं, इसी का फायदा उठाने आए थे ना? एक कचरा बीनने वाली की बेटी की औक़ात ही क्या है। वह तुम्हारा क्या बिगाड़ेगी, यही सोच कर आए थे ना? तुम अपनी भूख शांत कर लोगे और वह चुपचाप सहन कर लेगी, यही सोच कर आए थे ना? पर गंगा इतनी कमज़ोर नहीं है। वह तो अकेली ही तुम्हारा मुकाबला कर सकती थी पर मैं तुम्हें रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी मेरी नज़रों के सामने ताकि तुम झूठ ना बोल सको और जीवन भर इसी शर्म के साथ जियो कि तुम्हारी बहन ने तुम्हें यह अश्लील हरकत करते हुए देख लिया है।"

"गंगा तो तुम्हें अपना भाई मानती थी। उसे लगता था कि उसे कोई छेड़ेगा, तंग करेगा, तो वह तुमसे मदद मांगेगी और तुम? तुम ख़ुद ही मेरी गंगा को मैली करने चले आए। माँ बापू को जब यह पता चलेगा तो वह तुम्हें इस दुनिया में लाने पर पछताएंगे। शायद शर्मिंदा होकर वह आत्महत्या ही कर लें। अब तुम्हें तुम्हारे गुनाह की सज़ा ज़रूर मिलेगी। तुम एक बहन के भाई हो। यदि कोई मुझे बुरी नज़र से देख भी लेता है तो तुम्हारा खून खोलने लगता है। काश तुमने हर स्त्री के लिए ऐसा ही सोचा होता। वह तो अच्छा हुआ जो मैंने तुम दोनों की बातें सुन ली थीं वरना तुम जो पाप करते उसको सुधारने का तो कोई रास्ता ही नहीं होता। मुझे मेरे ही भाइयों से एक स्त्री को बचाना पड़ेगा, मैंने कभी नहीं सोचा था। ऐसा मत कहना कि हमें माफ़ कर दो क्योंकि इसकी कोई गुंजाइश ही नहीं है। आज के बाद मैं जीवन में कभी तुम्हें राखी नहीं बाँधूँगी। भगवान ने हमारा रिश्ता बना दिया है जो अमिट है, वह कभी टूट नहीं सकता। लेकिन हर रक्षा बंधन पर तुम अपनी सूनी कलाई देखकर अपनी ग़लती को याद कर शर्मिंदा होते रहोगे। तुम हमेशा पछताते रहोगे कि तुम्हारे मन में ऐसी दुर्भावना आई ही क्यों? मैं अभी पुलिस को बुलाती हूँ।"


रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः