शिकार RAMAN KUMAR JHA द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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शिकार

बात एक जंगल की है। वो जंगलों की सूची में काफी लोकप्रिय जंगल है। हर किसिम के जंगली प्राणी का वहां सामंजस्य से आवास है। सब अपने-अपने दिनचर्या में व्यस्त एवं खुश हैं। जंगल का राजा "शेर" भी अपने औपचारिक कामों में व्यस्त रहता है। उसके राज्य में सभी प्राणी ख़ुश मगर भयभीत रहते हैं।

भय का मुख्य कारण है, राजा के अति निकट दिखने वाला "सियार"। वो अपनी चाटुकारिता से और चापलूस स्वभाव के कारण राजा के अति निकट बना रहता है। राजा के हर बात पर हाँ में हाँ मिलाना, अन्य जानवरों की चुगली करना, हर मुद्दे में टांग अड़ाना, बिन मांगे ही अपनी राय देना, यह उस "सियार" की प्रवृत्ति है।

"सियार" के व्यक्तित्व का एक सच यह भी था, कि वो स्वयं भी डरपोक प्रवृत्ति का था। सब कोशिशों के बावजूद उसे यह सदैव भय रहता था, कि शेर कहीं दूरी न बना लें। कहीं उसका ही शिकार न कर दे। एक डर यह भी, कि वो जो शेर के नाम पर अन्य प्राणियों पर धौंस जमाता रहता था वो कहीं छोड़नी न पड़े। सब के सामने तिरस्कार न हो जाए। वो सदैव इस असमंजस से परेशान रहता था। प्राणियों कि एक नैसर्गिक लक्षण है कि आप चाहे किसी के साथ रहें, आप की प्राकृतिक बनावट व गुण नहीं बदलता।

जंगल के अन्य जानवरों को उस "सियार" से ईर्ष्या और क्रोध दोनों ही था। एक तो "सियार" अपना औपचारिक और निर्धारित काम नहीं करता था, दूसरा, शेर के समक्ष बैठ कर, औरों की शिकायत एवं कार्य दोष निकालता था, तथा उनकी निन्दा करता था।

"सियार" के इस स्वभाव से सभी परेशान थे, मगर कुछ‌ कर नहीं पा रहे थे, क्योंकि उसको शेर का समर्थन था। हाथी, चीता, भेड़िया और जंगल के अन्य प्राणी जब कभी आपस में चर्चा करते तो उस "सियार" की ही बात होती। सभी कहते, कि हमारे सामने उस सियार की क्या औकात है। पर क्या करें, शेर ने उसे समर्थन दे रखा है। अगर समर्थन ना होता तो उस चुगलखोर की तो हम सब मिलकर शिकार करते, ताकि वह "सियार" अपनी औकात में रहता या जंगल छोड़ के चला जाता। और आगे कोई भी "सियार" जैसा दुस्साहस करने की नहीं सोचता। मगर ये सिर्फ बातें ही हो सकती है, अमल तो तब हो जब ये शेर सिंघासन छोड़ दे और नया शेर सिंघासन पर विराजमान हो।

कहते हैं ना कि वक़्त बड़ा बलवान होता है। वक़्त किसी के काबू में नहीं रहता है, ना ही सर्वदा किसी के अनुकूल रहता है। वह अपनी चाल कब बदलता है ये सिर्फ वो ही जानता है। जंगल में भी वक़्त ने चाल बदला। उस शेर की सेहत अकस्मात खराब हो जाने के कारण उसे पद से निवृत्त किया गया। अब सिंघासन पर एक नया शेर विराजमान होगा। अब जंगल में एक नये किस्म की हलचल दिखाई देने लगी। "सियार" अब अन्य जानवरों से घनिष्ठता बढ़ाने की ताक में रहता था। स्वभाव एक दम विनम्र और अपने काम से काम रखने लगा। जंगल में ये बातें भी होने लगी कि नया शेर दिमाग से शातिर है, और अपने कार्य में कुशल। अतः उसे ना किसी की चापलूसी पसंद है ना निजी औपचारिक कामों के लिए किसी की सहायता की जरूरत है। अब "सियार" बहुत विचलित हो रहा था। उसके पुराने कर्मो के कारण जंगल के सभी वासी उसके विरुद्ध थे, इधर नये शेर को उस जैसों की कोई जरुरत नहीं थी।

नये शेर ने अपना काम काज सम्भाला। सभी जानवरों से उसके औपचारिक कार्यों का विवरण लिया। "सियार" ने भी अपना निर्धारित काम का विवरण दिया। नया शेर उसके विवरण से संतुष्ट नहीं हुआ। उसने फिर मंत्री मंडल के साथ बैठक की। नये नीति बनाए गए। सियार के उपर चीता को नियुक्त किया गया। और भी कई फेर बदल किये गये। मंत्री मंडल का विस्तार भी किया गया। अब "सियार" के सतायें, कई जानवर सत्ता में आ गए थे। "सियार" अब रोज भयभीत रहता था। उसके चाल में, ना अब अकड़ थी, ना वो दबदबा। उसके काम में भी दोष दिख रहा था। चीता ने उसे कई चेतावनी पत्र दिए और शेर को भी उसके विरुद्ध औपचारिक जानकारी देता रहा।
अब "सियार" को यकीन हो गया था कि या तो जंगल के पुराने प्राणी उसका शिकार करेंगे या फिर इस जंगल का नया राजा।

वो इस भय से कि उसके साथ अब क्या होगा, रोज़ विचलित रहता था। मानसिक चिंता वह झेल नहीं पा रहा था। एक दिन "सियार" के कार्य त्रुटि और शिकायतों को लेकर जंगल के सभी प्राणी शेर के पास पहुंचे। यह जानकर "सियार" सहम सा गया। उसे मन ही मन विश्वास हो चला था, कि आज उसका शिकार होना निश्चित है। शेर के कक्ष से एक-एक कर सभी प्राणी बाहर आपस में बातें करते हुए निकल रहे थे।

"सियार" बहुत डर गया, और कोई कुछ कहे इस से पहले ही अपना त्यागपत्र शेर के समक्ष रख दिया। शेर ने उसे स्वीकार करते हुए बताया, कि तुम ने खुद ही, खुद का शिकार कर लिया, वरना हम सब तो तुम्हें एक और मौका देना चाह रहे थे।

रमण बे-इल्म ©