पलछिन RAMAN KUMAR JHA द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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पलछिन

ज़िन्दगी कभी ना कभी हमें, एक मोड़ पर ले आती है, जहां हमें मजबूरी में अपने पाँव रखने पड़ते हैं। जिसकी कोई मंजिल नहीं होती है। होता है, तो बस सफर भर का साथ, और फिर एक मोड़ पे आकर, बिछड़न।
रोहित के लिए भी ऐसा ही कुछ हुआ। COVID के आगे उसकी नौकरी का आशियाना ढ़ह गया। परिवार की जिम्मेदारी को अपने कांधे पर ढोने के लिए नई नौकरी आवश्यक थी। नये संकट के सामने, एक नई नौकरी की तलाश में, उसने अपने साथियों को सूचित किया। किसी भी संकट की घड़ी में, निकटतम लोग हमारा सहारा बन सकते हैं, पर यह कौन हो सकता है, कौन आपके लिए आगे आ सकता है, यह कभी निश्चित नहीं होता। रोहित कि ज़िंदगी का अब यही नज़रिया बन गया था।

रोहित ने सभी को यह सूचना जाहिर कर दिया कि वो नौकरी की तलाश में हैं। अपने मोबाइल में द़र्ज सभी नम्बर पर उसने अपना अनुरोध भरा मेसेज भेज दिया। न जाने कौन इस मुसीबत की घड़ी में सहयोग करे, कौन काम आ जाये। हर दिन नई नौकरियों की तलाश, और हर रोज़ उम्मीद के बहाने। लेकिन कहीं से भी कोई सहारा नहीं मिल रहा था। फिर, एक दिन, उसके पुराने साथी रमा का संदेश आया। रमा ने उसका हाल-चाल पूछा, और साथ ही साथ यह बताया कि उसने सुना है कि रोहित की नौकरी चली गई है। रोहित ने हामी भरी।
रोहित ने रमा को बताया कि वह अब नौकरी की तलाश में है। रमा ने उसे सहारा देने का वादा किया, और उसे बताया कि अगर कोई vacancy हो तो वह उसे ज़रूर बताएगी। उस दिन से, रोहित और रमा के बीच की बात-चीत बढ़ गई, और वह एक दूसरे के साथ साझा करने लगे, अपनी सभी संघर्षों और सपनों को। रमा की प्रतिष्ठित स्कूल में काम करने का स्नेह और उसका संघर्ष रोहित के लिए प्रेरणा बना, और उसे एक नया उद्देश्य देखने का संदेश दिया कि कभी भी उम्मीद खोना नहीं चाहिए।

अब रोहित की रमा के साथ chatting, रोज़, वक्त बे वक्त होने लगी। Vacancy के अलावा भी बातें होती थीं। पुराने दिनों की बातें, साथ गुजारे औपचारिक समय की और निजी बातें। रमा इन दिनों एक प्रतिष्ठित स्कूल में कार्यरत हैं। पहले से बेहतर पद और वेतन के साथ।
दरअसल रमा इस दौर से गुजर चुकी थी। वो जानती थी कि अचानक नौकरी छूटने का क्या परिणाम होता है। तभी वो रोहित का सहयोग कर रही थी। COVID के पहले चरण में अनायास ही अधिकारियों ने रमा को बर्खास्त कर दिया था। एक छोटी सी बेटी के साथ उस बिचारी पे तो मानो पहाड़ गिर पड़ा हो। पति ने तो एक साल पहले ही ताल्लुक तोड़ लिया था। उन दिनों रमा ने बड़ी कठिनाईयों का सामना किया। आर्थिक भी और मानसिक भी। वैवाहिक जीवन का भंग होना, नौकरी का छूटना और पिता का अक्समात मृत्यु। एक के बाद एक, विपदा मानो उसकी राह देख रही थी। परन्तु वो डटी रही। और जब भी रोहित निराश होता तो वह अपना उदाहरण देती।

पिछले 6-8 महिनों से बातें अब रोज़ाना होने लगी। दोनों में औपचारिकता खत्म सी हो गयी थी। दोनों अब एक दूसरे के सहियोगी से साथी बन चुके थे। रमा जानती थी कि रोहित शादी शुदा है और एक बच्चे का पिता भी। रमा तो रोहित की पत्नी और बच्चे से मिल भी चुकी थी। परन्तु रोज़ दर रोज़ वो दोनो एक दूसरे के पूरक होने के मार्ग पर अग्रसर हो रहे थे। अपनत्व का भाव उनपर प्रेम रस उडे़ल रहा था और वे प्रेम के सागर में, निर्भीक होकर छलांग लगाने को तैयार थे। मगर प्यार के कोंपलों को क्या पता, कि बहार के बाद उन्हें पतझड़ भी देखना होगा।

भविष्य कि भय से कोई वर्तमान को पीठ तो नहीं करता। रमा और रोहित ने भी वही किया। उन्होंने तय कर लिया कि वे जब तक निभा पायेंगे, निभायेंगे। इधर रोहित को भी बहुत प्रयत्न के बाद नौकरी मिल ही गई। अब तो इस प्रेम को सामर्थ भी मिल गया। अब उनकी प्रेम लता आसमान छूने लगी।

दोनों के कार्य स्थल के समीप चंडीगढ़ शहर पड़ता था। मिलने के लिए इससे बेहतर कोई जगह नहीं हो सकता था। जब भी संयोग बनता दोनों किसी ना किसी बहाने चंडीगढ़ में मिल लेते। साथ में किसी अच्छे होटल में रुकते, रात बसर करते और फिर अगली मुलाकात का वादा कर के लौट जाते। अब तो तकरीबन हर माह ही, दोनो मिलते और साथ रात गुजारते। कभी कभी तो दो-दो रातें। सब कुछ से बेपरवाह, सिर्फ खुद के लिए जीते थे वे वह पल। रमा अपनी तन्हाई के सन्नाटे को, इस पलछिन कि मुलाकात के शोर से भर रही थी। और रोहित इस मुलाकात के बाद के सन्नाटे की गूंज से अंजान।

यह सिलसिला काफी समय तक चला। मगर पिछले कुछ दिनों से, रमा, रोहित से अपने किसी अन्य पूराने सहकर्मी की बात करने लगी। उसके तारीफ में कसीदे पढ़ना रमा के लिए रोज की बात हो गई। उसकी सारी निजी जानकारी, जैसे कि वो तलाक शुदा है, कोई बच्चा नहीं हैं, वगैरह वगैरह। रोहित को कभी कभी अटपटा भी लगता था। मगर वह रमा की खुशी के लिए बातें सुन लेता था। इश्क़ में इशारों की बहुत बड़ी भूमिका होती है। और औरतें, अक्सर इशारों में ही बात करती है जिसे पुरुष समझने में समय लगाता है। रोहित के साथ भी ऐसा ही हुआ। रमा ने, समीप आने के लिए भी इशारा ही किया था और अब शायद बिछड़ने के लिए भी।
खैर रमा ने फिर मिलने की इच्छा जाहिर करी। रोहित भी झट से मान गया। वीकेंड को मिलना तय हुआ। शहर और होटल तो तय रहता था। दो रात की बुकिंग करवा ली गई। तय हुआ कि शनिवार को दोपहर तक मिलकर होटल में चेकिंग कर लेंगे और सोमवार को चेक आउट।
तय अनुसार, दोनो स्टेशन पर मिले, और फिर साथ में होटल आ पहुंचे। रूम उनका तैयार ही था। बहुत ही आलीशान हनीमून सूइट जिसकी खिड़कियों से रोज़ गार्डन का नजारा था। दोनों फ्रेश हुए और नीचे रेस्टोरेंट में लंच के लिए निकल पड़े। लंच के बाद थोड़ी तफरी किया दोनों ने और वापस होटल आ गये। रूम में पहुंचते ही रमा ने रोहित को आलिंगन में भर लिया और एक दूसरे में मग्न हो गये। समय का कुछ पता ही नहीं चला। कब थक कर आंख लग गई समझ में ही नहीं आया। करीब 11 बजे भूख के अहसास से रोहित की आंख खुली। उसने खाना मंगवाया और फिर रमा के गाल को सहलाते हुए उठाया।

रमा की आँखें खुलीं, और उसने रोहित की आंखों में प्यार देखा, वहीं प्यार जो सदैव रहता है। लेकिन उस रात, कुछ अनकहा सा था जो उनके बीच हवा में तैर रहा था। खाना खाते हुए, रोहित ने रमा से उसकी चुप्पी का कारण पूछा। रमा की आँखों में एक चमक थी और चेहरे पर गहरी उदासी थी, जैसे कोई आत्मद्वंद से गुजर रही हो। मानो कुछ बताना चाहती हो मगर हिम्मत साथ नहीं दे रहा हो। और ए बेचैनी उसे अंदर ही अंदर खा रही हो। आखिरकार, रमा ने बताया कि उसका वह सहकर्मी भी चंडीगढ़ आया है और कल उसे coffee पे बुलाया है। रोहित मशवरा दे कि जाना चाहिए या नहीं।

रोहित के लिए, यह समाचार एक बिजली की तरह थी। उसने कभी नहीं सोचा था, कि इस बार का मिलने का यह अंजाम होगा। रोहित को अब यकायक अपने भ्रम पे एतबार होने लगा था। रमा के सवाल का जवाब "जाना चाहिए" कह कर बात खत्म कर दी। दोनों ने फिर उस रात एक दूसरे के साथ बिताया मगर संग नहीं।

सुबह दोनों की ही आँखों में उत्सुकता और दिल में सवाल थे। सबेरे का नाश्ता कर के रमा वहीं कपड़े बदलने लगी। दो-तीन combination try करने के बाद रमा तैयार हो गई। Body fitting Palazzo pants के उपर डीप नेक टी-शर्ट और गले में स्कार्फ। बहुत ही सुन्दर लग रही थी। एक पल को रोहित को हुआ कि वो रमा को रोक ले, जाने न दे, और सिर्फ प्यार करता रहे। मगर ऐसा कुछ किया नहीं। रमा ने रोहित को प्यार से गले से लगाया । और फिर रोहित को दो घंटे में वापस आने का वादा कर के चली गई। जाते-जाते मुस्कुराते हुए रोहित को आराम करने को कह गयी, ताकी उसके आने पर मेहनत कर सके।

रोहित होटल रूम में टीवी देखने की कोशिश कर रहा था, वक्त गुजारी के लिए! और रह-रह कर घड़ी देखता। समय तो मानो आज रेंग रहा हो। जैसे तैसे दोपहर के एक बजे। रमा को गये तीन घंटे हो गए थे। रोहित अपने मन में हो रहे अंतरद्वंद से परेशान था। उसे हो रही आभास से डर लग रहा था। रोहित का मन बहुत ही विचलित हो रहा था। तभी अचानक WhatsApp पर रमा का मेसेज आया। लिखा था- तुम लंच कर लेना। ये यहां बहुत जिद कर रहा है मुझ से, साथ लंच करने को, तो मैं लंच कर के जल्दी आती हूँ।

रोहित ने मेसेज का कोई जवाब नहीं दिया। टीवी बंद कर, सोने की कोशिश करने लगा। करीब ढाई बजे फिर मेसेज की रिंग से वो जगा। फोन देखता है तो, रमा का मेसेज था। लिखा था - सुनो जान, तुम ने लंच किया? मैं तो फस गई यार। यह तो तीन बजे फिल्म देखने को कह रहा है। टिकट अँलाइन ले लिया है। बताओ मैं क्या करूं? मैं शाम को साढ़े छः बजे तक आ जाउंगी। डिनर साथ करेंगे।

रोहित का दिल अब बिखरने लगा था। उसे यकीन होने लगा था कि रमा अब दूर जा चुकी। शाम के छः बजे रोहित होटल रूम से निकला और पास के मॉल में भटकने लगा। एक-डेढ़ घंटे की तफरी के बाद होटल आ गया। रमा अभी भी नहीं आई थी। थोड़ी देर बैठा ही होगा कि रमा आ गयी। उसने माफी मांगी, जिसके जवाब में रोहित ने "कोई बात नहीं कह कर" छोड़ दिया।
रमा फ्रेश होकर आई और दिन भर की बातें सुनाने लगी। उसकी बातों से लग रहा था मानो वो मंत्र मुग्ध होकर आई है। और इधर रहित को लग रहा था कि रमा किसी काले जादू के वश में चली गई। खैर रोहित ने डिनर के लिए पूछा कि क्या order करें। रमा ने झट से बोला कि तुम को जो खाना है मंगवा लो। मैं डिनर करके आई हूँ। इतना बोलते ही चुप हो गई। रोहित की तरफ देखने लगी। फिर स्पष्टीकरण के स्वर में बोली -" अरे यार वो बहुत आग्रह करने लगा, तो क्या करती। आइ एम सॉरी। तुम अपने लिए जो मंगवाना हो वह मंगवा लो।"
रोहित ने डिनर में सूप लिया और फिर बिस्तर पर लेट गया। कल सुबह जल्दी उठकर दोनों को ही ट्रेन पकड़नी थी। रोहित अपने ख्यालों में बेचैन और गुमसुम। रमा अपनी ख्यालों में मग्न और प्रसन्न। फिर यकायक रमा, रोहित को आलिंगन में लेते हुए बोली कहां गुम हो। रोहित अकबका गया मगर धैर्य पूर्वक बोला- तुम में। रमा फिर प्यार से कहती हैं कि "तो पूरी तरह हो जाओ।" रोहित अश्रु नयन और कुंठित स्वर में बोला - "कल हम फिर से जुदा हो जाएंगे।" रमा ने रोहित को कस के आलिंगन में लिया और चूमते हुए बोली- जब होंगे तब देखेंगे। फिलहाल तो यह साथ का आनंद लो"। फिर दोनों एक दूसरे में खो गए।

अब के मगर प्रेम रस में वो स्वाद ना था। रोहित को अब रमा पराई लगने लगी थी। अब इस आलिंगन में वो अपनत्व का एहसास न था। रोहित को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि रमा किसी और कि धरोहर है जिस पर वह हक जता रहा था। अगली सुबह रोहित और रमा जल्दी उठ गये। रोहित ने चाय का कप रमा को देते हुए कहा - जल्दी तैयार हो जाओ, train के लिए लेट हो जाएंगे। मैं breakfast भी order कर देता हूंँ।

तैयार होकर दोनों ने साथ में breakfast किया और station के लिए रवाना हो गए। Cab में आज पहली बार दोनों चुपचाप सफ़र कर रहे थे। Station पहुंच कर दोनों ने एक-दूसरे को आलिंगन किया और bye बोल कर अपनी अपनी train कि ओर जाने लगे। तभी यकायक रोहित ने रमा को आवाज दी- "सुनो रमा!" रमा पलटी और रोहित के तरफ बढ़ी। रोहित अपनी बात जारी रखते हुए - "मैं ने बहुत सोचा.... वो तुम्हारा सहकर्मी सच में बहुत अच्छा है तुम्हारे लिए। वो तलाक शुदा भी है। उसे बच्चे पसंद है... वो कहता भी था ना कि तलाक ना हुआ होता, तो वो भगवान से एक बेटी मांगता.... तुम अपनी बेटी उसको दे देना। वो भी खुश रहेगा और तुम भी।" रमा, रोहित कि बातों को शायद समझ चुकी थी या नासमझी का ढोंग कर रही थी । फिर अचानक बोली - ये क्या कह रहे हो? मतलब क्या है?
रोहित, रमा को एक आखिरी बार आलिंगन में लेते हुए बोला- "उससे शादी कर लो, दोनों खुश रहोगे और बिटिया भी।" रमा रो पड़ी और रोहित को कस के जकड़ लिया। रोहित, आलिंगन से निकलता हुआ बोला- "जब से लौटी हो, यही तो पूछना चाह रही थी!"
और रोहित ने अपनी trolley उठाई और चल दिया। रास्ते एक मोड़ पर आकर इस तरहां भी बदल जातें हैं, कभी सोचा न था।
रोहित उन पलों को जो रमा के साथ बिताए थे यादों की धरोहर मानता है और उस "पलछिन" को कहीं दिल की गहराइयों में दबा चुका है ।
कभी कभी कुछ रिस्ते आनंदित कर जाते हैं और पुरे जीवनकाल यादों के गलियारों में गोते खाते रहते हैं लेकिन रोहित और रमा का रिस्ता रोहित के लिए यादों के गलियारे में तो रहेगा परंतु एक *पलछिन* बनकर ।
बहरहाल रोहित अब अपने परिवार के साथ खुश है क्योंकि अब उसके पास एक प्रतिष्ठित नौकरी के साथ-साथ परिवार का प्रेम भी है ।