में और मेरे अहसास - 80 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

में और मेरे अहसास - 80

सुख का सूरज लेके आई है सुबह,
नई उमंगे नया सवेरा लाई है सुबह.

इंतज़ार था जिस पाती का हरपल,
साजन की खबर लाई पुरवाई है सुबह.

कई सालों से हाथों न आई हुईं थीं,
बात दिल की आज सुनाई है सुबह. 

मुस्कराती इठलाती बहलती सखी,
जैसे गई थी वैसे ही लौटाई है सुबह. 

भोर को प्रफुल्लित करने बाली मधुर, 
प्यारी बांसुरी सुनाने बुलाई है सुबह.
१-६-२०२३


नीद मेरी उड़ा गया है कोई,
साथ मुझे चुरा गया है कोई.

प्यार की बेड़ियों में जकड़,
मुहब्बत लुटा गया है कोई.

उदासियों के बादल हटाकर,
हँसना सिखा गया है कोई.

पास आकर जन्मों की सखी, 
दूरिया मिटा गया है कोई.

हसीन चहरे परसे खमोशी से,
चिलमन हटा गया है कोई.
२-६-२०२३


जहाँ वाले बेवफा है,
यहाँ कौन बावफ़ा है?

जानकर भी सखा,
क्यूँ ढूंढता वफ़ा है?

बेदृदों से उम्मीद कर,
अपने आप जफ़ा है?

इंसान जिंदा है पर,
भावना रफा दफा है.

जो जितना मिले वो,
रज़ामंदी ही नफ़ा है.

साँसों की बंदिशों में,
जिंदगी ही ख़फ़ा है.

वक़्त गुजारने का,
कैसा फलसफा है?

क़ायनात में बस एक,
मुहब्बत ही सफा है.

हृश्न के छुते ही आज,
फ़िर मिला शिफा है.

छोटी ग़ज़ल नहीं,
प्यार पूरा दफ़ा है.

दिल के सौदे में,
बेजुबान तफ़ा है.
३-६-२०२३

 

बचाओ उसे जल ही जिंदगी है,
दिल से करो खुदा की बंदगी है.

किये जा रहे हैं बेफाम उपयोग,
देख चारों और फ़ैली तिश्नगी है.

कोई नहीं चाहता उसे सँभालना,
तभी क़ायनात से नाराजगी है.

जन्मोजन्म के प्यासे लोगों के,
तन मन मे फैली अफ़्सुर्दगी है

बरसा नहीं है मन भिगानो ने,
आज तालाबों को नाशादगी है
अफ़्सुर्दगी - निराशा
तिश्नगी -प्यास
नाशादगी - उदासी का भाव


इश्क और इबादत नहीं है जुदा,
वहीं तो है एक ही सच्चा खुदा.

सच्चे मन करनी होती है और,
दौनों में चाहिए होती है वफ़ा.

एक बार पुकार के देख लेना.
सुनता है दिल से की हुईं सदा.

गर रूह का मिलन हो जाता है तो,
सखी कर भरोसा मिलता है मका.

जैसा भी है, जो सामने आया है,
आज जो भी हो खुदा की है रज़ा.
५-६-२०२३


आँखों के समंदर में डूब जाना चाहते हैं,
करीब और भी करीब लाना चाहते हैं.

बहोत हो चुकी सालों की दूरिया जानेमन,
दिल की गहराइयों से अपनाना चाहते है.

कुदरत की कारीगरी रंगती नूर देखकर,  
वादियों में सुरीले नगमें गाना चाहते हैं.

मुलाकात मुमकिन नहीं हो पा रहीं हैं तो,
तस्वीर देखकर दिल बहलाना चाहते हैं.

तन्हाइयों में यादें रुला न जाए इस लिये,
दिलकश नज़ारे निगाहों में समाना चाहते हैं.
६-६-२०२३


तन मन समर्पित कर टूटकर बरसो,
गगन की तरह विशाल दिल रखो.

सुनने के लिए तैयार है दिल की ,
सखी जी में जो है खुलकर कहो. 

दुनिया वाले जिस राह चल रहे है,
समय की मांग वक्त के साथ बहो.

गुलाबों के साथ राबता किया है,
तो काँटों का दर्द खामोशी से सहो.

रात भर पीकर ख्वाबों की बोतल,
सखी जाम पीकर कभी कभी बहको.
७-६-२०२३

 

सुनो जिंदगी की मौज लो
मस्ती से मजा रोज लो


जिस अवनी पर जन्म लिया,
अपने स्वार्थ से बरबाद किया.

हर पल हर लम्हा चारो और से,
ज़हरीली गेस से प्रदूषित किया.

सदा ही निर्मल पवित्र पिलाया,
केमिकल युक्त पानी ही दिया .

प्यार और ममता लूटती रहीं,
खामोश रखकर आंसूं पिया.

भुगत रहा है अपनी गलती, 
मानव दशा देख तड़पे जिया.

लहलहाती फसले लाई खुशी,
कलकल नदियों ने घाव सिया.

सुरक्षित रखे जल थल वायु,
पेड़ लगाने का संकल्प लिया.
८-६-२०२३

हिम्मत रख अच्छे दिन भी आएँगे,
चैन ओ सुकूं के लम्हे भी पाएँगे .

अपना हाथ अपना नसीब बस,
मेहनत की रोटी कमाकर खाएँगे.

खुद चैन से जियें औरों को जीने देगे,
क़ायनात में अमन की बहारें लाएँगे.

प्रेम की गंगा को निरंतर बहाकर,
फ़िर खुशियों के नगमें सुहाने गाएँगे. 

जीवन खुद्दारी के साथ जीना है कि,
सखी जहां में नाम छोड़कर जाएँगे.
९-६-२०२३

श्रम करने से पीछे नहीं रहना चाहिए
मेहनती लोगों को सलाम करना चाहिए

अपना हाथ अपना जगन्नाथ होता है
इच्छा का झोला पसीने से भरना चाहिए

जैसा कर्म करेगा वैसा ही फल मिलेगा
कोई भी काम करसे नहीं डरना चाहिए

न सोच क्या पाया है क्या पायेगा बस
कुछ न कुछ कर गुजर के मरना चाहिए

बैठे बैठे से कोई नहीं खिलाने वाला
खुद की आलस से खुद लड़ना चाहिए
१०-६-२०२३


खुश रहोगे तो दुनिया जलेगी
वो तो कुछ न कुछ तो कहेगी

गर बज़्म में रवानी मिल गई तो
जिंदगी तो साथ वक्त के बहेगी

गुनगुनाने नई नई गज़ले सखी
हर रोज नई महफ़िले सजेगी

सफर -ए-मंज़िल मिलेगी वहां
ख़्वाबों में मुलाकात है सहेली

उम्र गुज़र गई तन्हाइयों में अब
दिल की गुड़िया दर्द न सहेगी
११-६-२०२३

तन्हाइयों से सुलह कर लो
देख तस्वीरें मन को भर लो

खुद को तरोताजा रखकर
जितना जी चाहे सँवर लो

सांसो को रुकने से पहले
नेकी ओ पाक रहगुज़र लो

बहकी हुईं फ़िजा कहती हैं
सखी खुशनुमा सहर लो

हमसफर हमनवा के साथ
मुहब्बत में और निखर लो
१२-६-२०२३


बातों ही बातों में रात ढल गई,
बिगड़ी हुई बात आज बन गई.

ताउम्र इश्क़ को जिया है हमने
हृश्न की रहमदिली दाल गल गई

जरा सा आंखे भरकर देखा तो
एकांत दिल की नगरी बहक गई

लो चंद लम्हों की मुलाकात की 
नजदीकियों से और महक गई

चांदनी भी शर्माकर, बादलों के
तेवर देख यकबयक छटक गई
१३-६-२०२३


इंतज़ार करके थक गया हूँ
इकरार करके थक गया हूँ

तूफ़ान को रोकने के लिए
इबादत करके थक गया हूँ

दिल तड़प रहा है रातभर
इनायत करके थक गया हूँ

मझधार में ज़िन्दगी आई है
इफाजत करके थक गया हूँ

नज़रों से मादकता पीने को
इजारत करके थक गया हूँ
१४-६-२०२३


सॅभल जाओ आ रहे हैं दिन बहार के
बुला रहीं हैं मदमस्त फिज़ाएं पुकार के

बाद मुताबिक मुद्दतों के मिले हो सखा
अब कहाँ जा रहे हो जिंदगी सवाँर के

बड़े जोर-शोर से आया है तूफ़ान देखो
आकर्षित करेगी हवा क़दम संभाल के

बहुत होशियारी काम लेना चाहिए कि
सुना है चालक तोल माप है सुनार के

एक एक पन्ना मांग रहा हैं इन्साफ़
ध्यानसे पढ़ो कई रूप होते हैं गुहार के
१५-६-२०२३

 

सोच रहा हूँ किस और जिन्दगी ले जा रही है
क्या चैन और सुकून की साँस भी पा रहीं हैं

चले जाने वाले मुड़कर कभी भी नहीं लौटाते
उदासी रात और दिनों की नींदे खा रहीं हैं

तन्हाइयों में इस लिए नहीं रहना चाहते कि
सखी साथ अपने यादों के बवंडर ला रहीं हैं

सब को खबर हो गई है वीरानियों की तो
दिल बहलाने हवाएं  मधुर नगमें गा रहीं हैं

आजकल तबियत खास्ता रहने लगी है
महफ़िलों में रातभर जागने की ना रहीं हैं
१६-६-२०२३


खुली फिज़ाओ में क्या हम मिलेगे कभी ?
अपने प्यार के क्या गुल खिलेंगे कभी ?

दिल की कश्ती डूब चुकी है और
उदासी वाले क्या दिन फिरेगे कभी?

आंख बारहा भिग जाती है ये सोच कि
रंगीन नज़ारे क्या फ़िर दिखेंगे कभी?

हर पल बदल देते हैं अपनी ही जुबान वो
वादा निभाने को क्या वह सिखेगे कभी?

खुद का नाम लिखने में आलस करते हैं
परदेश जाकर क्या ख़त लिखेंगे कभी? 
१७-६-२०२३
पिता की जगह कोई नहीं ले सकता
पिता सा प्यार कोई नहीं दे सकता
18-6-2023