में और मेरे अहसास - 79 Darshita Babubhai Shah द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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में और मेरे अहसास - 79

वो एक चहरा जो आज तक नहीं भूल सके l

पर्दों का पहरा जो आज तक नहीं भूल सके ll

 

ढ़ेर सारे प्यार के बदले जो तूने दिये हुए हैं l

वो घाव गहरा जो आज तक नहीं भूल सके ll

 

तपता सहरा जो आज तक नहीं भूल सके ll

बादल गरज़ा जो आज तक नहीं भूल सके ll

 

आँखों से बरसा जो आज तक नहीं भूल सके ll

 

 

प्यार तो है मगर कुछ कमी है l

यार तो है मगर कुछ कमी है ll

 

कजरारी आँखों से छलकता l

जाम तो है मगर कुछ कमी है ll

 

यार से वस्ल-ए-मुलाकात की l

रात तो है मगर कुछ कमी है ll  

 

दिल फेंक आशिक मिजाज का l

साथ तो है मगर कुछ कमी है ll

 

दिल रखने के लिए कहने को l

पास तो है मगर कुछ कमी है ll

१६-५-२०२३ 

 

 

दुनिया की रस्मों से अजनबी हैं हम l

प्यार की कसमों से अजनबी हैं हम ll

 

अपनों ने जाने अनजाने दिये हुए l

दिल के ज़ख्मों से अजनबी हैं हम ll

 

महफिलों में गीत गजलों के लरजते l

रसीले लब्जों से अजनबी हैं हम ll

 

दिलों दिमाग से किये हुए प्यार जैसे l

जान लेवा मर्जो से अजनबी हैं हम ll

 

चुपके चुपके इशारों में बातेँ करती हुईं l

शरारती पलकों से अजनबी हैं हम ll

१७-५-२०२३

 

 

ख्वाबों की शमा बुझ न जाए कहीं l

ख्यालों की शमा बुझ न जाए कहीं ll

 

बहकी रात में सजी हुई महफ़िलों में l

शराबों की शमा बुझ न जाए कहीं ll

 

नूरजहां ए हसीना की मौजूदगी में l

शबाबों की शमा बुझ न जाए कहीं ll

 

सखी चमकती दमकती रोशनीओ में  l

शहरों की शमा बुझ न जाए कहीं ll

 

हर किसीको पैसों का पागलपन है l

हवसों की शमा बुझ न जाए कहीं ll

१८-५-२०२३ 

 

 

 

दिवाना बन जाऊँ अगर तुम जो कहो l

तारे तोड़ लाऊँ अगर तुम जो कहो ll

 

महफिलों की शानो शौकत छोड़कर l

गालियों में गाऊँ अगर तुम जो कहो ll

 

गर ताउम्र खुश रहने का वादा करो तो l

दुनिया छोड़ जाऊँ अगर तुम जो कहो ll

 

 

नगमा प्यारा सुनाऊँ अगर तुम जो कहो ll

१९-५-२०२३ 

 

 

गर मुझे जानते हो तो मेरा दर्द समझो l

अपना मानते हो तो मेरा दर्द समझो ll

 

मिरी छोटी सी खुशी के लिए जीती हुईं l

बाझी हारते हो तो मेरा दर्द समझो ll

 

हर वो काम जो मेरा हो उसमें अपनी l

जान डालते हो तो मेरा दर्द समझो ll

 

मिरी आँखों से बहने वाले थे, खुद ही l

अश्क सारते हो तो मेरा दर्द समझो ll 

 

चुपचाप मुहब्बत निभाने वाले सखा l

दर्द को पालते हो तो मेरा दर्द समझो ll

२०-५-२०२३ 

 

 

अर्श की ऊँचाई पे पहुँचना है,

तूफानी बादलों सा गरजना है.

 

लोगों ने रास्ते की धूल समझा,

सच्चे हीरे की तरह चमकाना है.

 

आफताब की रोशनी के जैसे,

अंगारों सा आज दहकना है.

 

महफ़िल में आज जाम नहीं, 

आँखों से पीकर बहकना है.

 

माली की मेहनत उजागर क 

सखी क़ायनात में महकना है.

 

पलभर भी चैन सुकूं न पाया, 

जीते जी आग में दहकना है. 

 

मुक्त मन से खुले आसमाँ में, 

पंछी संग ऊपर चहकना है.  

२१-५-२०२३ 

 

वो भूली बातेँ लो फ़िर याद आ गईं,

वो भूली रातें लो फ़िर याद आ गईं.

 

दुनिया से छुप छुप के मिलन की,

वो मुलाकाते लो फ़िर याद आ गईं.

 

आज जाने अनजाने चल रहे हैं तो ,

वहीं रास्तें लो फ़िर याद आ गईं.

२२-५-२०२३ 

 

 

आँखों से क्यूँ बहता है पानी?

जीवन तो है यहां आनी जानी.

 

प्यार भरा पयामत आने को है , 

अच्छी सी सुबह बाकी है आनी.

 

कहकर रहेगे सारी दिल की बातेँ, 

आज हमने भी है दिमाग में ठानी.

 

मत हो उदास मेरे हम नवाज तू,

सदा के लिए रखेगे बनाकर रानी. 

 

देखकर सभी लोग बौखला जाए,

आशिकी आंखों में चमक है लानी. 

 

धीरे धीरे पढ़ना दिवाने दर्शिता ,

सखी प्यार से लिखी है कहानी.

२३-५-२०२३ 

 

 

मुकाबला करना है तो खुद से करो,

हौसलों के साथ कदम आगे भरो.

 

पहुँचना है शिखरों की चोटी पर, 

चट्टानो की ऊचाईयों से ना डरो.

 

लोग क्या कहेंगे यही सोच सोच,  

दिल का चैन ओ सुकून ना हरो.

 

कुछ कर गुजरने के लिए आज, 

बेखौफ होकर सात समंदर तरो.

 

सुहाने ख्वाबों को देखने के लिए, 

प्यारी मीठी सी गहरी नीद में सरो.

२४-५-२०२३ 

 

 

बदनाम हो जायेगे यूँ रुसवा न करो सर-ए -  बाजर,

जी ही नहीं पायेगे यूँ रुसवा न करो सर-ए -  बाजर.

 

उम्रभर गम खाकर जिया है हर लम्हा हर पल हमने, 

जो कहो वो खायेंगे यूँ रुसवा न करो सर-ए -बाजर.

 

दुनिया की नजरों का सामना करने का हौसला और,  

जिगर कहा से लायेगे यूँ रुसवा न करो सर-ए - बाजर.

 

इतने नहीं परेशान न हो साथ साथ चलने को सखा, 

पर्दा डालके आयेगे यूँ रुसवा न करो सर-ए -बाजर.

 

जानते हैं तुम्हारी पसंदगी एक मौका तो दो आज,  

प्यारा गीत गायेगे यूँ रुसवा न करो सर-ए -बाजर.

२५-५-२०२३ 

 

 

साथ निभाने का वादा क्या हुआ?

जान लुटाने का वादा क्या हुआ?

 

बीज उम्मीदों के दिल में बोकर वो, 

प्यार सिखाने का वादा क्या हुआ?

 

हासिल नहीं होने वाला कुछ कहकर,  

याद मिटाने का वादा क्या हुआ?

 

आज जीती हुई बाजी हार कर,

हमे जिताने का वादा क्या हुआ?

 

खुद ही कहा कभी हमे भी सुनना, 

गज़ले सुनाने का वादा क्या हुआ?

२६-५-२०२३

 

 

इश्क ए हकीकी का असर देख लो,

इश्क ए मिजाजी का असर देख लो.

 

भाप से बने घने बादलों के साथ,  

इश्क ए रवानी का असर देख लो.

 

आँखों में मुहब्बत भरे जज्बातों से, 

इश्क ए जवानी का असर देख लो.

 

इशरत है गुलों में फ़ना हो जाना,

इश्क ए गुलाबी का असर देख लो.

 

जन्नतनुमा आगोश में मयस्सर हो, 

इश्क ए इलाही का असर देख लो.

२७-५-२०२३

 

 

मुख़ातिब

 

खुदा से मुखातिब है, 

लोगों से आजिज़ है.

 

तड़प तलसाट का,  

वक़्त भी शाहिद है. 

 

दिल के ज़ख्मों को, 

छुपाने में माहिर हैं. 

 

मन बहला के जीना, 

यही मुस्तक़बिल है. 

 

वक़्त बेवक्त आती है, 

याद भी आक़िल है. 

 

हसरते आबिदा हुई, 

जिंदगी ताहिल है. 

२८-५-२०२३ 

आजिज़ - तंग आने का भाव

शाहिद- गवाह

राशिद -जो सही तरीक़े से निर्देशित है

आबिदा - तपस्विनी

मुस्तक़बिल - भावी

आक़िल - बुद्धिमान

ताहिल - आध्यात्मिक

 

दर्द का रिश्ता दूर तलक साथ निभाता है,

प्यार का रिश्ता दूर तलक साथ निभाता है.

 

साथ साथ बिताये हुए सुहाने और हसीन, 

याद का रिश्ता दूर तलक साथ निभाता है.

 

बाद मुद्दतों के बड़ी मुश्किल से मयस्सर, 

साथ का रिश्ता दूर तलक साथ निभाता है.

 

मुहब्बत में दो रूहों के मिलन की चांदनी,  

रात का रिश्ता दूर तलक साथ निभाता है.

 

महाराजाओ के दरबार में मल्हारी रागिनी, 

राग का रिश्ता दूर तलक साथ निभाता है.

२९-५-२०२३ 

 

 

जीवन की डोर बंधी है तुमसे,

साँस की डोर बंधी है तुमसे.

 

सारी दुनिया से अलग मिरी, 

राह की डोर बंधी है तुमसे.

 

रूह से जुड़े हुए रिश्तो के, 

चाह की डोर बंधी है तुमसे,

 

जन्मोजन्म तेरा साथ रहे, 

जान की डोर बंधी है तुमसे,

 

पाक आत्मा से निकले हुए, 

नाद की डोर बंधी है तुमसे,

३०-५-२०२३ 

 

 

चिराग बोला ये सुबह क्यूँ होती है भला,  

नीद तोड़ चैन सुकूं को क्यूँ धोती है भला?

 

रूहों के मिलन के लम्हे लुटने के लिए,

चारो और उजाले को क्यूँ बोती है भला? 

 

चार दिन तो मिलते हैं खुशियों के सखी, 

दुनिया गहरी नीद में क्यूँ सोती है भला?

 

एक सा वक्त नहीं रहने वाला किसीका, 

बारहा आज आंख क्यूँ रोती है भला?

 

दिल ने जो चाहा उससे ज्यादा ही मिला, 

फ़िर निगाहें सपने क्यूँ जोती है भला?

३१-५-२०२३