वैंपायर अटैक - (भाग 7) anirudh Singh द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वैंपायर अटैक - (भाग 7)

चारो तरफ से होते लगातार हमलों के बावजूद अंदर से किसी प्रतिक्रिया का न आना टास्क फोर्स को आशंकित कर रहा था कि कहीं एन वक्त पर इन वैम्पायर्स ने अपना ठिकाना तो नही बदल लिया......क्योकि अगर सच मे ऐसा हुआ तो सारी मेहनत जाया चली जाएगी........पर इन सभी कयासों को तुरन्त ही विराम मिल गया......वैम्पायर्स की प्रतिक्रिया हुई....और ऐसी जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई जिसकी उम्मीद भी किसी ने नही की थी......

पहाड़ियों के आसपास मंडरा कर बम बरसा रहे फाइटर प्लेनो की ओर नीचे से एक साथ बहुत सारी भारी भरकम चट्टाने उछाली गयी......अगले ही पल एक साथ चार प्लेन इन चट्टानों से टकरा कर ध्वस्त हो गए।

अच्छी बात यह रही कि प्लेन के जमीन पर गिरने से पहले ही इनके पायलट पैराशूट की मदद से अपनी जान बचाने में सफल हो गए।

इंडियन आर्मी के टैंकों ने लगातार विस्फोट कर कर के पहाड़ियों को तोड़ दिया था.....जिस से अधिकांश सुरंगे इन पहाड़ियों के मलवे से बंद हो चुकी थी

तभी अचानक से एक सुरंग के मुहाने पर रखा छोटे बड़े पत्थरो का ढेर हिला....और उस ढेर को हवा में तितर बितर करता हुआ एक शख्स गोली की स्पीड से बाहर निकला.......यह पेट्रो था..…....जो अब आमने सामने की लड़ाई लड़ने के पूरे मूड़ में नजर आ रहा था।

पेट्रो के बाहर निकलते ही.....पहाड़ियों पर गोले दागते टैंक्स के नाल की भी दिशा अब बदल चुकी थी........बचे हुए फाइटर प्लेन हो या फिर पिछले काफी समय से अपनी गन्स के साथ घाट लगाकर बैठे आर्मी के सैनिक या पुलिस कर्मी....सभी का टारगेट अब सिर्फ एक ही था.......पेट्रो।

इस से पहले कि पेट्रो पर अटैक किया जाता .....पहाड़ियों की ओर से बाहर निकलते बहुत से लोग दिखाई दिए........बाहर के माहौल को समझ कर अपने हाथों को आत्मसमर्पण की मुद्रा में ऊपर उठाएं हुए.....धीमे धीमे आगे बढ़ते हुए.....

सबकी नजर और गन्स की दिशा दोनों ही कुछ देर के लिए उस ओर घूम गयी......पर ये सभी वैम्पायर तो नही थे .....ये तो आम इंसान थे.....निर्दोष....आम इंसान।

"क्या है ये सब" लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ ने लीसा की ओर देखते हुए पूछा।

"ये वैम्पायर्स तो नही है....लगता है सभी वैम्पायर्स नॉर्मल हो गए.....पर.......अपने आप तो कभी नही होता ऐसा.....ऐसा तो सिर्फ तभी हो सकता है जब...जब.....कोई दूसरा बड़ा वैम्पायर्स इनकी शैतानी शक्ति को सोख ले.....म...मतलब.... ओह्ह न ....नो..."

लीसा की बात का मतलब लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ तो ढंग से नही समझ पाए थे....पर विवेक और इंस्पेक्टर हरजीत सिंह बखूबी समझ चुके थे......पर किसी को इतना समय नही मिला कि वह दूसरों को कुछ भी समझा सकें।

पेट्रो ने बड़ा दांव खेला था......जमीन से कई फ़ीट ऊपर हवा में खड़े पेट्रो के दोनों हाथ आसमान की ओर थे.....और आसमान से आती हुई काली आंधी के बवंडर जैसा कुछ लगातार उसके हाथों में समा रहा था........

सारा इलाका गोलियों....बमो......के धमाकों की आवाजों से एक बार फिर गूंज उठा.......पर इस से पहले कि बंदूक से निकली गोलियां..... फाइटर प्लेन से गिरे बम.....रॉकेट लॉन्चर से दागे गए रॉकेट....और टैंक्स ने निकले गोले....…पेट्रो के शरीर से टकराकर उसको आजमाते .........काली हवा के उस तेज बवंडर ने पहले से अधिक विकराल रूप धारण करके पास की पहाड़ी को अपने कब्जे में ले लिया.....

और यह क्या.....सभी गोलियां.... सभी बम...अपना रास्ता बदल कर उस चक्रवात की ओर खिंचते चले गए......

अचानक से हुए इस टर्निंग पॉइंट से वहां मौजूद हर एक शख्स अवाक रह गया.......

एक बार फिर से बन्दूको का ट्रिगर दबा ....पर गोलियां निकलने से पहले ही.....सैनिकों के हाथ से बन्दूके छूट कर हवा में तैरती हुई उस रहस्यमयी बवंडर की ओर बढ़ने लगी....ये क्या सिर्फ बंदूके ही नही वहां मौजूद बड़े बड़े टैंक्स और फाइटर प्लेन भी गेंद की भांति उछल कर कुछ ही सेकेंड्स में उस बवंडर में समा गये।

"ओह नो....." वहां मौजूद प्रत्येक इंसान के मुंह से बस यही दो शब्द निकले।

वैम्पायर्स किस कदर खतरनाक हो सकते है सभी को इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण इस अद्भुत घटना को देख कर मिल चुका था।

विवेक ने अपनी वैम्पायर्स नॉलेज का उपयोग करते हुए स्थिति को स्पष्ट करते हुए बताया " पेट्रो ने सभी नए बने वैम्पायर्स की काली शक्तियों को सोख लिया है....क्योकि दिन के उजाले में वो सभी वैम्पायर्स अधिक देर नही टिक सकते थे.......औ...और....अपनी जबरदस्त काली शक्तियों का प्रयोग करके उसने ये मैग्नेटिक फील्ड वाला बवंडर बना डाला है....जो प्रत्येक लोहे से बनी हुई चीज को अपनी ओर खींच रहा है......."

लीसा ने विवेक के कथन की सत्यता की पुष्टि करते हुए आगे बताया "और बिना हथियारों के हम सब मिलकर भी इसका कुछ नही बिगाड़ सकते...पेट्रो अब हमारी उम्मीद से भी ज्यादा विध्वंसक हो चुका है।"

सच मे बहुत ही विध्वंसक हो चुका था पेट्रो.....तभी तो उसने अपने हाथ के एक इशारे से ही पहाड़ो पर मौजूद बड़े बड़े पत्थरों को हवा में खड़ा कर दिया था.....और फिर उंगली हिला कर किये गए दूसरे इशारे ने बड़ी मात्रा में इन पत्थरो को बहुत ही तेज गति में अपने दुश्मनों की ओर फेंक दिया था......

बचने की लाख कोशिश करने के बावजूद साक्षात मौत के स्वरूप इन पत्थरों की चपेट में आ गए थे कई पुलिस और आर्मी वाले.....और कई डरे सहमे आम इंसान जो कुछ देर पहले तक वैम्पायर बने हुए थे।

अगले ही पल पत्थरों की बारिश से बड़े ही निर्मम तरीके से कुचली हुए वर्दी वाले कई रक्तरंजित शरीर यहां वहां बिखरे हुए थे.......अपने साथियों को इस हाल में देखकर इंस्पेक्टर हरजीत सिंह,लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ बदहवाश से खड़े थे......कल्पना भी नही की थी उन्होंने कि सिर्फ एक वैम्पायर कुछ ही पलो में इस तरह तबाही मचा देगा........अपने साथियों को खोने के बाद लाचारी की जिस पराकाष्ठा को ये दोनों महसूस कर रहे थे....कुछ दिन पहले वही सब विवेक भी महसूस कर रहा था....अपने अजीज मित्र को खोने के बाद..।

विवेक जो किसी अपने को खोने के दर्द से गुजर चुका था....पूरी कोशिश करने में लगा था कि अब और कोई इस दर्द से न गुजरे........तभी तो वह लीसा के साथ मिलकर जीवित बचे आम नागरिकों को वहां से सुरक्षित निकालने में लगा हुआ था।

पर शायद पेट्रो वहां से किसी को भी जीवित नही जाने देना चाहता था.......तभी तो उसका अगला शिकार अब विवेक ही था......उसकी उंगली से हुए इशारे को समझ कर एक पत्थर अपना स्वरूप बदल रहा था......
ये क्या अभी कुछ देर पहले तक जो पत्थर था.....अब तलवार बन चुका था....एक नुकीली धार वाली लम्बी सी तलवार..........जो पेट्रो के इशारे पर विवेक के जिस्म को लहूलुहान कर देने के लिए उसकी ओर बढ़ रही थी.....विवेक इस बात से अंजान था.......कोई कुछ समझ पाता उस से पहले....खचाक... की आवाज के साथ यह खूनी तलवार किसी के पेट को चीरती हुई आर पार हो गई........

आह....... की तेज आवाज सुन कर विवेक पीछे पलटा......खून से लथपथ हरजीत सिंह जमीन पर पड़े थे.....दरअसल विवेक को बचाने के चक्कर मे हरजीत सिंह लड़खड़ा गए थे..और उस तलवार का शिकार बन गए।

उफ्फ यह क्या हो गया .....एक बहादुर व कर्तव्यनिष्ट पुलिस ऑफिसर को इस हाल में देख सभी अवाक रह गए थे।

कहानी जारी रहेगी.......