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वैंपायर अटैक - (भाग 4)

पेट्रो के देहरादून में सक्रिय होने की जानकारी दिल्ली तक पहुंचने में अधिक समय नही लगा।

सरकार इस मुद्दे के साथ बहुत ही संवेदनशीलता के साथ निपट रही थी....तभी तो सारे देहरादून में तुरन्त ही कर्फ्यू लगाने का आदेश जारी कर दिया गया......सुनसान सड़को पर पुलिस की आवाजाही बढ़ गयी थी.....किसी अनजान खतरे से आशंकित ,डरे सहमे से लोग अपने घरों में कैद थे....

'ऑपरेशन ड्रैकुला' को अंजाम देने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स भी देहरादून के लिए रवाना कर दी गयी।

पर वैम्पायर आम इंसानों से ज्यादा शक्तिशाली तो होते ही है साथ ही कुटिलता में भी वो इंसानों से कई कदम आगे ही रहते है........पेट्रो भी एक कुटिल वैम्पायर था.....एक खतरनाक कुटिल वैम्पायर।

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रात के अंधेरे में देहरादून की सेंट्रल जेल पर पहरा और अधिक कड़ा कर दिया जाता है...कारण था इस जेल में बंद उत्तराखंड के कई खतरनाक अपराधी...जिनमे कई दुर्दांत लुटेरे,खूनी एवं बड़े अपराधी शामिल है..

.जेल के कैदखाने पर नजर गड़ाए पुराने ऊंचे विशाल दरवाजे के शिखर पर एक शख्स खड़ा था...भयानक सी शक्ल वाला....दो नुकीले दांत....आंखों में राक्षसी चमक....बिल्कुल सही ,यह पेट्रो ही था.....

शायद पेट्रो का आज का टारगेट यही जेल थी....या फिर सीधे शब्दों में कहा जाए तो इस जेल में बंद कैदी...।

" कौन है वहां " यह कड़कती हुई आवाज निगरानी चौकसी पर तैनात संतरी की थी......जिसकी नजर पेट्रो पर पड़ चुकी थी......कोई जबाब न मिलने पर सन्तरी ने पेट्रो को निशाने पर लेते हुए ऊपर की ओर तान दी।

पर पेट्रो अभी किसी से उलझकर अपना समय व्यर्थ नही करना चाहता था....इसलिए उसने सन्तरी को नजरअंदाज करते हुए छलांग अंदर की ओर लगा दी।

अपनी ड्यूटी के प्रति मुस्तैद संतरी ने खतरे की घण्टी बजा दी थी......उधर जेल के अंदर कैदी बैरक के सामने स्टूल पर बैठकर ऊंघते हुए सुरक्षाकर्मी की आंख ढंग से खुल भी पाती उस से पहले ही उसकी गर्दन से खून का फब्बारा फूट चुका था.....पर वो मरा नही....वो गुलाम वैम्पायर बन गया था...पेट्रो का पालतू वैम्पायर...... अगले ही क्षण बिना कुछ भी पूछे वह पेट्रो के हाथ मे सभी बैरको की चाबियां थमा चुका था.....और पेट्रो बैरक के अंदर था।

पेट्रो की शैतानी स्पीड बेमिसाल थी.....सुरक्षा कर्मी जब तक हथियारों से लैस हो कर अंदर आये वह अपना काम कर चुका था.....जेल की सभी बैरकों के ताले खुले पड़े थे.....और उनके अंदर पड़े कैदियों के हावभाव लगातार बदल रहे थे।

सुरक्षा कर्मियों ने अंदर आकर इत्मीनान से चबूतरे पर बैठे पेट्रो के ऊपर बंदूके तान कर हाथ ऊपर करने की चेतावनी दे डाली.......रात के अंधेरे में पहले तो उन्होंने पेट्रो को जेल से भागने की फिराक में कोई सजायाफ्ता अपराधी समझा ....पर जब उसके चेहरे पर टॉर्च से रोशनी डाली तो खून से भींगे उसके लाल दांत देखकर समझ गए कि शहर में कर्फ्यू की यह खौफनाक वजह ही उनके सामने है।

"फायर......" की तेज आवाज के साथ पेट्रो पर गोलियों की बौछार कर दी गयी......पर गोलियां जब तक उसके शरीर को छू पाती.....पेट्रो उस जगह से गायब था.......तेज छलांग के साथ वह खड़ा था फिर से मुख्यद्वार के उसी शीर्ष पर जहां कुछ देर पहले खड़ा था ।

इस से पहले कि सुरक्षा कर्मी अगला कोई कदम उठाते....गर्रर्रर्रर्रर्रर ...एक साथ कई जंगली जानवरो की दहाड़ के जैसी चीत्कार पीछे की ओर से सुनाई दी।

घबराकर सुरक्षा कर्मियों ने पीछे पलट कर देखा....सभी बैरकों से बड़ी तादाद में कैदी बाहर निकल रहे थे....एक नए व खतरनाक रंग रूप में....वो सभी वैम्पायर बन चुके थे।

सुरक्षा कर्मियों ने बचाव का काफी प्रयत्न किया पर वैम्पायर बन चुके खूंखार कैदी अब नीम चढ़े करेले हो गए थे....मतलब पहले से कई गुना अधिक खूंखार......सुरक्षाकर्मियों का खून चख चख कर अपनी प्यास बुझाने लगे थे.....।

जान बचाकर भागे एक सुरक्षाकर्मी ने वायरलेस पर अपने उच्च अधिकारियों को जेल पर 'वैम्पायर अटैक' की सूचना दी.....पर जब तक जेल का मेन गेट तोड़ कर लगभग एक सैकड़ा वैम्पायर कैदी बाहर आ चुके थे......अंदर पड़ी थी कई सुरक्षाकर्मियों की रक्त से भीगी हुई लाशें......वो वैम्पायर नही बने थे....क्योकि हाल ही में बने वैम्पायर में इतनी शक्ति नही होती कि वो दूसरों को वैम्पायर बना सके....यह शक्ति पेट्रो जैसे खतरनाक और पुराने वैम्पायर में ही होती है।

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कुछ ही देर में सेंट्रल जेल छावनी बन चुकी थी....भारी पुलिस बल यहां मौजूद था....पर अब क्या हो सकता था....पेट्रो तो अपनी सेना तैयार कर ही चुका था....और वह भी एक खूंखार सेना......यह वैम्पायर सेना सारे शहर में फैल कर सरेआम तबाही मचाने लगी।

शहर का सारा पुलिस फोर्स इनको रोकने में लगा दिया गया....पर ये वैम्पायर न तो पुलिस की वर्दी से डर रहे थे और न ही गोलियों की बौछार से।

शहर के आम लोग अब घरों में भी सुरक्षित न थे....दरवाजे तोड़ कर ये वैम्पायर घरों के अंदर लोगो को शिकार बनाने लगे थे.....आज की रात देहरादून शहर के लिए बहुत भारी पड़ रही थी।

दिल्ली से स्पेशल टास्क फोर्स तीन निजी विमानों के सहारे देहरादून आ चुका था......अब उन पर...या फिर यू कहूँ कि विवेक,हरजीत सिंह और लीसा की तिकड़ी पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी थी।

लीसा अपने साथ रोमानिया से आते वक्त दो 'वैम्पायर किलर गन' लेकर आई थी....जिसमे से उसने एक विवेक को दे दी थी.......इन्ही गन्स के सहारे यह दोनों देहरादून के एक बड़े शॉपिंग मॉल के बाहर तोड़फ समूह से भिड़ गए........उनके बैकअप के लिए टास्क फोर्स की टीम भी लसाथ थी।

विवेक की ओर पीछे से बढ़ते हुए एक वैम्पायर पर लीसा ने अपनी गन से निशाना साधा.....गन से निकली हुई रोशनी से नहा गया था वैम्पायर..... पर यह क्या ....जिस रोशनी के प्रभाव से कुछ सेकेंड्स में ही वैम्पायरो का नाश हो सकता था....लगातार उसकी रोशनी झेलने के बावजूद भी उस वैम्पायर का कुछ भी न बिगड़ा था.....ठीक यही विवेक के साथ भी हुआ...उसकी गन से निकली रोशनी से भी वैम्पायरो का बाल बांका भी नही हो रहा था.....अचम्भे में डूबे हुए विवेक और लीसा दोनों ही घिर चुके थे......।

कहानी जारी रहेगी................


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