वैंपायर अटैक - (भाग 5) anirudh Singh द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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वैंपायर अटैक - (भाग 5)

लीसा और विवेक की ओर बढ़ते वैम्पायरो को रोकने के लिए हरजीत सिंह अपने दल समेत खड़े थे.....इस स्पेशल टास्क फोर्स की प्राथमिकता थी कि ऐसे सिविलियन जो वैम्पायर बन गए है उन पर जानलेवा हमला न किया जाए......इस बात को ध्यान में रखते हुए इस टीम ने इन वैम्पायरो पर 'स्टॉक पैलेट गन' से हमला किया ।

स्टॉक पैलेट गन आम पैलेट गन्स से अधिक प्रभावी होती है ...इसके जबरदस्त धक्के से शिकार कई मीटर पीछे गिरता है....पर उसको अधिक नुकसान नही पहुंचता है.....वैम्पायरो की टुकड़ी को भी इसके अटैक ने लीसा और विवेक से दूर फेंक दिया।

"लीसा मैडम..ये हमारे हथियारों का प्रभाव क्यों नही हो रहा इन पे"
बड़े ही चिंतित स्वर में विवेक ने प्रश्न किया।।

"विवेक..समझ आ गया.....ये भी इनकी रहस्मयी शक्तियों में से एक है......वैम्पायर्स का एक तरीके से एक ही बार नुकसान किया जा सकता है.....ऐसे प्रहार जो इनके लिए एक बार घातक सिध्द होते है इनका शरीर स्वत: ही इसका एंटीडोट तैयार कर लेता है......हमने पहली बार जब पेट्रो पर इस हथियार से हमला किया तो वह काफी घायल हो गया था...पर अब उसका शरीर इस हथियार के दिव्य प्रकाश का एंटीडोट तैयार कर चुका है.......इसलिए जब उसने इन कैदियों को वैम्पायर बनाया तो इनके अंदर भी वह एंटीडोट अपने आप ही आ गया।"

( लीसा ने यह सारी बात अंग्रेजी व टूटी फूटी हिन्दी में विवेक को बताई...पर पाठकों की सुविधा के लिए इसे हमने पूर्णतः हिंदी में रूपांतरित करके यहां लिखा है। )

"ओह नो......मतलब ये हथियार अब बेकार है हमारे लिए....कैसे रोकेंगे अब हम पेट्रो व उसकी सेना को" विवेक व्याकुल हो रहा था।

"हथियार बेकार नही हुए......ईश्वर न करे कि ड्रैकुला आजाद हो.....पर अगर हो गया तो शायद उससे लड़ने में मदद मिल सकती है इन हथियारों से हमें।" लीसा का प्रत्येक कथन उसके आशावादी दृष्टिकोण को दर्शाता था।

. "........बचो सर......" झपट के विवेक ने हरजीत सिंह को अपनी ओर खींच लिया.....पीछे से एक वैम्पायर द्वारा उखाड़ कर फेंके गए बिजली के खम्भे से वह बाल बाल बचे।

अब स्टॉक पैलेट गन से वैम्पायर्स नियंत्रित नही हो पा रहे थे....अब वक्त था लीसा द्वारा अपने दूसरे हथियार के प्रयोग का....लीसा ने इंस्पेक्टर हरजीत सिंह को आगे की योजना बताई।

अपने साथ लाई कुछ सामान लीसा ने पास खड़ी बख्तरबंद गाड़ी में रखा था.....यह गाड़ी देहरादून के क्षेत्रीय प्रशासन ने टास्क फोर्स को मुहैया करवाई थी.....जल्दी ही लीसा के हाथ मे एक अजीब किस्म का जाल था

यह जाल प्लेटिनम एवं इथियोल से बना हुआ था......इथियोल एक दुर्लभ किस्म की धातु थी....जिसका उपयोग इजिप्ट वालो ने वैम्पायरो से हुए युध्द में सदियों पहले किया था....यह धातू शैतानी ताकतों को सोखने की क्षमता रखती थी।

लीसा का इशारा मिलते ही टास्क फोर्स ने दोगुने जोश के साथ स्टॉक पैलेट गन से वैम्पायरो पर फिर से हमला किया...प्लान के तहत सभी वैम्पायरो को सम्भलने का मौका दिए बिना धक्के देते हुए एक जगह पटक दिया गया......और फिर लीसा ने चीते सी फुर्ती दिखाते हुए एक मंझी हुई शिकारी वाले अंदाज में जाल फेंका......और अगले ही पल सभी पांचों वैम्पायर कैद में फड़फड़ा रहे थे......टास्क फोर्स के सभी योद्धाओं ने बड़े ही उत्साह के साथ विजयघोष का नारा लगाया........इंस्पेक्टर हरजीत सिंह और टास्क फोर्स की डिफेन्स विंग का नेतृत्व कर रहे लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ सूरी ने लीसा को विजय की शुरुआत के लिए बधाई दी।

विवेक भी पास खड़ा था.....काफी निश्चिन्त सा.... लीसा मैडम के सीक्रेट प्लान बी की सफलता पर मन्द मन्द मुस्कुराता हुआ।

लीसा ने भी पहली बार इस जाल का प्रयोग किया था.....जाल के अंदर बिन पानी मछली की तरह फड़फड़ाते हुए वैम्पायर इस जाल की उपयोगिता को स्वयं ही बयां कर रहे थे।

कमजोर शक्तियों वाले वैम्पायरो की सबसे बड़ी कमजोरी होती है धूप......अंधेरे में यह जितने अधिक शक्तिशाली होते है.....दिन में उतने ही कमजोर......दो-तीन घण्टे की तेज धूप इनको आम इंसान बना देने के लिए पर्याप्त होती है......इसलिए टास्क फोर्स के दो सिपाहियों को उनकी निगरानी के लिए छोड़ बाकी लोग निकल पड़े अन्य वैम्पायरो की तलाश में।

इन चार-पांच वैम्पायरो को काबू करने के लिए टास्क फोर्स को काफी मेहनत करनी पड़ी....सारे शहर में तो और भी बुरी हालत थी......बेकाबू हो चुके इन वैम्पायरो जा उत्पात बढ़ता ही जा रहा था....क्षेत्रीय पुलिस इनसे मोर्चा संभाले हुई थी.....पर उनके लिए यह एकदम नई आफत थी जिसके परिणामस्वरूप इस वैम्पायर सेना ने सारी व्यवस्था को ही पंगु बना दिया था......कई पुलिस वाले अपनी जान गंवा

लीसा के पास भी तीन से चार जाल ही थे.....अब इतने कम संसाधनों के साथ वैम्पायरो की सारी फौज को नियंत्रित करना बहुत बड़ी चुनौती थी।

और फिर समय भी कम था......क्षेत्र में एकदम से बढ़ चुकी वैम्पायरो की गतिविधियों के कारण ड्रैकुला की कैद लगातार कमजोर होती जा रही थी।

सबसे बड़ा डर यही था....अगर वो आजाद हो गया तो फिर सारी मानवजाति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ना निश्चित था।

"लीसा मैडम ....मुझे लगता है,अब हमें अपनी रणनीति बदलनी होगी....." विवेक ने सुझाव देते हुए अपनी बात रखी "अगर हम इन वैम्पायर्स के पीछे ही पड़े रहेंगे तो बहुत समय बर्बाद हो जाएगा..... और हो सकता है तब तक वो पेट्रो वैम्पायर्स की एक और फौज खड़ी कर दें.....अगर हम इस जड़ को यानी पेट्रो को ही किसी प्रकार खत्म कर दें तो महाविनाश रोका जा सकता है।"

विवेक की बात का सभी ने समर्थन किया....अब टास्क फोर्स को कैसे भी पेट्रो को ढूंढ कर काबू में करना था...... शहर में तबाही का दौर जारी था......उधर कमजोर होती कैद से बाहर निकलने की उम्मीद में ड्रैकुला खिलखिला रहा था।

.............कहानी जारी रहेगी..............