( कहानी को समझने के लिए आगे के भाग जरूर पढ़े 🙂🙏🙏)
अगली सुबह अयंशिका का घाव काफ़ी भर गया था।वरदान सुबह उसके पास आरती लेकर आता है 🙂. "आरती अयंशिका.!!"
अयंशिका मुस्कुरा के आरती लेती है की वरदान शान को आरती दे देता है। धर्म उसके सर पर हाथ रख, "अंशि अब केसा लग रहा है.?"
अयंशिका 🙂अच्छा भईया.!!
चपला - यात्रा चल रही है.!!पर
अयंशिका :- हम चल लेंगे.!!
सभी यात्रा के साथ तैयार हो जाते है। सब चलने लगे थे की चपला और धर्म हर तरफ नज़र रखे हुए थे। वही वरदान अयंशिका के एक हाथ थाम अपने एक हाथ से उसके कंधे पर रख संभाल के चल रहा था।
(वीर गाता है 😉"दो दिल मिल रहे है.!!"वैसे ये कहानी है कितनी लम्बी मतलब मूवी 3 घंटे की होती है.. ये कितना टाइम लेगी.!!"
यस्वी उसे घूर के 😤, "क्यों तुम्हे कौन सा खजाना लूटने जाना है।"
वीर :- यार खडे खडे पैर दुख गए अगर पता चल जाये तो बैठा जाये.!
सूर्यांश वहा कुछ देख अचानक उसकी नज़र दो बड़ी शिला औ पे पड़ी.. उसने अपने जादू से उसे आराम से खिंच के सेट कर दिया.!!
वीर 'ये हुई ना दोस्त वाली बात.!!'वो जट से बैठ जाता है..वही सूर्यांश नंदिनी को बैठा के उसको अपना कोट ओढ़ता है।नदिनी उसके सीने पर सर रख आराम से देखने लगती है।वही वीर यस्वी😏 को देखता है जो उससे कुछ दुरी बना के बैठ जाती है। वीर मन मे :- बहुत जल्द तुम भी मेरी बाहो मे होंगी मिस भागेश्री.!!चारो आगे देखने लगते है।)
अयंशिका थोड़ा गिरने को होती है तो अचानक वरदान का हाथ उसको कमर से पकड़ अपनी तरफ खिंच लेता है।
वरदान 😌:- संभाल कर अयंशिका.!!!
अयंशिका तो वरदान के छूने से जम सी गई.. उसकी छुअन से अयंशिका के अंदर अजीब सा एहसास हो रहा था। वरदान ने फिर से, "अयंशिका आप ठीक तो है.., आराम करना है आपको.?"
अयंशिका :- नहीं हम ठीक है.!!
वरदान के साथ वो वापस चलने लगी.. आगे मेला था.. यहां यात्रा 3 दिन रुकने वाली थी क्युकी यही आख़री पड़ाव था । सब मेले मे घूम रहे थे.. माधवी पायल पसंद करती है.. जिसे सान उसको खरीद देता है। वही अयंशिका एक बहुत प्यारा कटार जो की चांदी का था। उसे वरदान के लिए खरीदती है।
वरदान :- अच्छी पसंद है.!!
अयंशिका :- इससे आपको हमारी याद आएगी.!!
वरदान :- हम्म.. पर तब तो हमें आपके लिए कुछ लेना चाहिए.!!
अयंशिका :- नहीं तो ऐसा कुछ नहीं है.. हमारा मन किया इसलिए हमने आपके लिए मन किया इसलिए लिया है।
वरदान :- अच्छा हमारा भी मन है हह्म्मम्म्म्म... वो ऊँगली घुमाते हुए.. एक पायल पर रुका. है.. हा ये अच्छी है।
अयंशिका ये अच्छी है ना आपको अच्छी लगी हमें बहुत पसंद आई.. वरदान अयंशिका लिए पायल खरीद देता है।
युही शाम हो जाती है।शाम को सभी एक साथ आरती करते है. की रात के वक़्त कोई अयंशिका का अपहरण कर लेता है.. धर्म के सुरक्षा चक्र के वजह से उसे पता चल जाता है..
वरदान :- हम्म. मे और धर्म वहा जायेंगे शान तुम और संजय यहां रुको और हमारे भुवनेश्वर की रक्षा करो.!
धर्म :- हा बाकि मे चपला को यहां रोक लेता हु. जिससे तुम उसकी मदद ले पाओगे.!!
वरदान और धर्म निकल जाते है। यहां अयंशिका को एक खंडहर मे लाया जाता है.जहाँ उसे बांध के रखते है.एक अघोरी मंत्र पढ़ता है और कुछ विधियां करने लगता है।.. कुछ ही देर मे अयंशिका को होश आ जाता है... वो अपने हाथ को बंधा हुआ देखती है.वो छूटने की कोशिश करती है तो अघोरा ' शश...!!शांत रहिये राजकुमारी.आप की बलि से एक महानत्मा वापस जिन्दा होंगी.!!'
अयंशिका :- कौन हो तुम लोग.? छोड़िए हमें.!!
अघोरा वापस अपने मंत्रोचार करने लगता है फिर एक मुर्दे को लाया जाता है.. जिसपे वो अघोरी अयंशिका का खून छिड़कता है तो वो जी उठता है.!!
तभी वहा वरदान और धर्म पहुंच जाते है। वरदान 😠:- अभी रोको ये सब.!!
अगोरा :- पकड़ो उन्हें मार डालो.!!
वरदान और धर्म आदमी यों से लड़ने लगते है की अयंशिका चिल्लाती है, "वो किताब भईया वो विधि रोकिये.!!"
धर्म का ध्यान अयंशिका के कहने पर अघोरा की किताब पर चला जाता है वो उस किताब को छीन लेता है वही वरदान अपनी तलवार के वार से अयंशिका के हाथो की बेड़िया तोड़ देता है। लेकिन तब तक वो मुर्दा जिन्दा हो चूका था जो देखने मे बहुत ज्यादा गन्दा था.!!और उसके मुँह से भयानक आवाजे निकल रही थी।
वरदान अयंशिका का हाथ पकड़ भगाता है :- चलिए..!!
वही धर्म अपने जादू से अघोरा को मार देता है.. अघोरा मरते हुए गन्दी हसीं हस्ते हुए :- मे तो मर जाऊंगा पर जिसे मेने जिन्दा किया है वो तबाही मचा देगा.!!किसी को नहीं छोड़ेगा वो.. मे उसे काबू करना चाहता था. पर अब वो बेकाबू बन के सब पर काला बादल बन के छायेगा.!!"😄😄वो मर जाता है.
वहा धर्म वो किताब लेकर भाग जाता है। अयंशिका और वरदान भागते हुए बहुत दूर निकल आये थे.वो वापस यात्रा मे आ गए थे यहां चपला की मदद से शान ने भुवनेश्वर मंदिर का लिंग बदलने से रोक लिया था साथ ही सबको बता भी दिया था की ये सब क्रूर सिंह ने करवाया था और इस साजिस मे उसका साथ पंडित ने दिया था ।
वहा महाराज अराविदु और महाराज राय खुद इस बार उनका स्वागत करने वाले थे। वहा माहौल ही खुशनुमा था.. चारो और जयजयकार गूंज रही थी.. सब वरदान को देखते ही अपने कंधो पर उठा लेते है, "राजकुमार वरदान की जय..!!राजकुमार वरदान की जय.!!"।वरदान का हाथ अयंशिका से छूट जाता है।उसकी नजरें अयंशिका पर ही थी की कोई अयंशिका के कंधे पर हाथ रखता है अयंशिका पलट के देखती है तो तुरंत उसके गले लगा जाती है।
अयंशिका :- पिताजी.!!!
महाराज राय :- हमारी बच्ची केसी है.??
अयंशिका :- हम ठीक है पिताश्री.!!
महाराज राय :- चले अयंशिका तैयारी कर लीजिए कल हम वापस जा रहे है।
यहां महाराज अराविदु वरदान को गले लगाते हुए :- वरदान हमारे बेटे आपने हमारा सीना आज चौड़ा कर दिया.. आज उस शाल्व को पता चल गया की हमारा वरदान हमारी सबसे बड़ी शक्ति है।
वरदान :- नहीं पिताजी सिर्फ हम नहीं बल्कि हमारे मित्रो ने हमारा बखूबी साथ दिया है।कल हम वापस जा रहे है.!!
अयंशिका और वरदान को ये सुनकर ना जाने क्यों अच्छा नहीं लगता..!!सारी रात दोनों करवटे बदलते रहते है सुबह सब लौटने की तैयारी कर रहे थे वही वरदान को याद आता है की उसने अयंशिका को पायल दी ही नहीं थी.. वो तुरंत उसके खेमे मे चला जाता है.. वही अयंशिका भी आखरी बार वरदान से मिलने उसके खेमे मे आ जाती है...
वरदान माधवी से पूछता है की अयंशिका कहा है. माधवी ने बताया की वो उसी के पास गयी थी.
वही अयंशिका भी धर्म से पूछती है जहाँ उसे वही जवाब मिलता है.. दोनों पुरे पंडाल मे एक दूसरे को ढूंढ रहे थे।तभी महाराज अराविदु वरदान को चलने के लिए कहते है।
शान :- वरदान हो सकता है की अयंशिका हमें उमिया माँ के मंदिर मे मिल जाये.!!
वरदान :-हुम्म्म... शायद..!!
वो चले जाते है वही यहां अयंशिका का काफिला भी चल पड़ा था.. अयंशिका गुस्सा 😠मन मे, "एक बार मिल तो सकते थे ना हमसे.!!"
वरदान भी घोड़े पर मन मे 😔:- आया तो था आप थी ही नहीं.!!
अयंशिका मन मे 😤:- थोड़ा ढूंढ़ते हमें.. मिल जाते.. पर नहीं आपको हमसे मिलना ही नहीं था.
वरदान मन मे😒 :- अरे ऐसा नहीं है, हमें मिलना था आपसे.!!
अयंशिका मन मे😏 :- झूठ.!!
वरदान मन मे😔 :- अयंशिका..!!हम आपसे मिलना चाहते थे. बस एकबार मिल जाती आप.!!
अयंशिका मन मे 😔:- मिलना तो हमें भी था आपसे..!!
.................. बाकि अगले भाग मे.!!!!!