इस जन्म के उस पार - 9 Jaimini Brahmbhatt द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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इस जन्म के उस पार - 9

( कहानी को समझने के लिए आगे के भाग अवश्य पढ़े 🙏)

सब डर जाते है.. एक आदमी जिसने मास्क पहना था.. वो यस्वी को पकड़ उसके गले पर चाकू लगा देता है..इससे वीर की तो मानो सांसे ही अटक गई थी..

वीर :- हें. स्टॉप इट.!!क्या चाहिए तुम्हे.? छोड़ो उसे.??

नंदिनी आगे बढ़ ने को होती है तो सूर्यांश उसे पीछे खिंच लेता है।सूर्यांश 😠, "देखो उसे छोड़ो क्या चाहिए तुम्हे.??"

आदमी बिना कुछ बोले यस्वी को अपने साथ ले जाने लगता है.. वीर 😠:- रुको चाहिए क्या तुम्हे... यस्वी को छोड़ो.!!

यस्वी मन मे 🙄:- यार ये चिलगोजे का मे क्या करूँ.?? ये मेरा काम जरुर बिगाड़ेगा.!!वो अपने हाथ से जादू करती है जिससे सारी लाइट्स चली जाती है.. और यस्वी गायब हो जाती है.

कुछ देर बाद लाइट्स आने के बाद नंदिनी🥺 :- यसवू.. यशु..!!

सूर्यांश :- नंदिनी वो यहां नहीं है जा चुके है।

नंदिनी 😭:- नहीं.. मेरी जिम्मेदारी थी. यस्वी.. मे.. मे. उसका ख्याल नहीं रख पायी.. पता नहीं कौन थे और कहा ले गए उसे.??

सूर्यांश :- शांत हो जाओ.. नंदिनी कुछ नहीं होगा यस्वी को.!!

वीर :- हा कुछ भी नहीं.!!वीर के मन मे बहुत सारे डर एकसाथ चल रहे थे..

यहां यस्वी कॉल करती है नंदिनी फोन उठती है.!!

नंदिनी कॉल देख, "यस्वी का है.!!"

सूर्यांश :- शायद उनसे बचके कर रही हो.. पिक उप करो और स्पीकर पे रखना.!!!

नंदिनी फोन स्पीकर पे कर :- हेलो.!!

यस्वी की गभराई आवाज आती है , "हेलो.. दी.!!"

वीर नंदिनी के हाथ से फोन ले लेटा है., "हेलो यशु.!तुम ठीक हो ना.. देखो डरना मत मे हु. ना..कुछ नहीं होगा तुम्हे.!!अपने आसपास देखो.. कुछ तो बताओ.!!"

वीर के नॉनस्टॉप बोलने से यस्वी 🤦‍♀️:- अरे यार.!!फिर खुद को संभाल के.. वो ये.. लोग मुझे वो राजगढ़ के पुराने वाले महल मे लाये है.!!वो..!!!

ये बोलते हुए यस्वी कॉल कट कर देती है। वीर, "हेलो... हेलो... यशु.!!"

सूर्यांश :- चलो हम वहा चलते है वीर इससे पहले की देर हो जाये.!!

नंदिनी :- मे भी वहा चलुगी.!!

सूर्यांश :- नहीं.!!

नंदिनी :- हा.. मुझे वहा जाना ही है.. प्लीज.!!

सूर्यांश के लाख मना करने के बाद भी नंदिनी नहीं मानी आखिर कर सूर्यांश को मानना ही पड़ा और वीर, वो और नंदिनी के साथ निकल गए।वही यस्वी ख़ुश थी की उसका प्लान काम कर रहा था.. वो तीनो वही पहुंच गए.. आखिर अंदर जाते ही सूर्यांश :- वीर तू उस तरफ जा मे और नंदिनी इस तरफ जायेंगे.!!

वीर उसकी बात मान चला गया. वही सूर्यांश और नंदिनी आगे बढ़ने लगे.... कुछ आगे बढ़ने के बाद वो एक कमरे मे दाखिल हुए जहाँ एक बड़ा दरवाजा था. जिसपे बहुत अजीब तरीके का लोक लगा हुआ था... यस्वी पीछे से ये देख कर ख़ुश हो रही थी..यस्वी मन मे, "अब आपको कुछ तो याद आएगा.!!"

सूर्यांश ने कितनी बार ट्राय किया पर पर वो खुला ही नहीं तभी नंदिनी को कुछ दुंधली याद आई उसने जट से कहा, "नहीं वरदान, दो बार दाये एक बार बाये फिर धक्का देना है.!!"सूर्यांश उसे हैरानी से देख रहा था की नंदिनी आके उस दरवाजे का लोक खोल दिया.

सूर्यांश :-नंदिनी तुम मुझे डरा रही हो.!ये क्या था और तुम्हे कैसे पता.!

नंदिनी :- पता नहीं लेकिन मे..मे..खुद भी डर गई हु.!!

सूर्यांश उसका हाथ पकड़ :- चलो.!!

वही दूसरी और वीर एक गलत कमरे मे गिर जाता है जससे वो फिसलता हुआ.. एक घने कमरे मे गिर पड़ता है..!!जैसे ही वीर गिरता है उसी वक़्त नंदिनी और सूर्यांश भी वहा आ जाते है।

सूर्यांश उसे उठाहते हुए,"तू यहां कैसे पहुंच गया.?"

वीर :- पता नहीं एक कमरे मे गिरने की वजह से.!!

यहां एक बड़ा स्सा आइना था जिसमे नंदिनी बड़े गौर से देख रही थी.. तभी सूर्यांश भी वहा आ गया दोनों के एकसाथ आते ही.आइना चमक उठा.!!यश्वी मन मे :- या ये हुई ना बात.. अब मेरी बारी ये बोल वो भागते जा कर वीर से टकराई!!

वीरने उसे देखते ही अपनी बाहो मे भर लिया.जिससे यस्वी को अजीब एहसास हुआ.!!वीर की आँखों मे डर और फ़िक्र एकसाथ थी.. वीर उसे दूर कर हर तरफ देखते हुए, "तुम ठीक तो हो यशु.!!कुछ हुआ नहीं ना.. कही लगी है.. उनलोगो ने कही चोट तो नहीं पहुंचाई.!!"

यस्वी को वीर का ऐसे देखना बेचैन कर गया.वो वीर से अपना हाथ छुड़ाते हुए :-मे ठीक हु.. वो मेने उनको किसी और गुंडों से भागते हुए देखा की मे भी वहा से बचके भाग निकली और यहां पहुंच गई। नंदिनी ने ज़ब यस्वी को देख लिया वो भी यस्वी के गले लग, "यशु ठीक है तू.!!"

यशी :- हा,दी मे ठीक ही हु.!!

सूर्यांश भी उसे देख ख़ुश होता है की यस्वीसबका ध्यान आईने की तरफ करते हुए , "ये आइना चमका कैसे.??

सूर्यांश :- पता नहीं.!शायद हम दोनों के साथ आने से.!


नंदिनी सूर्यांश के साथ ख़डी हो आईने को छूति है, तो उसमे बहुत सारी चीज़े फ़िल्म की तरह चल रही थी जिसे देख वीर,"ये कोई फ़िल्म है.??"

सूर्यांश, "पता नहीं पर शायद इनमे मेरे और नंदिनी के सवालों के जवाब हो."

नंदिनी :- हम्म.. शायद हमारे बारे मे ही कुछ है.!!

यस्वी, "अगर ऐसे हो तो हमें सब देखना चाहिए.!!"बात हो ही रही थी की आईने से प्यारी आवाज आई ,"आपका स्वागत है राजकुमार वरदान राजकुमारी आयंशिका.!!!"इतना बोल आइना आराम से चुप हो गया।

तीनो हैरान थे वही यस्वी के चेहरे पर स्माइल थी..

वीर 😮😮:- ये तुम्हारे नाम है क्या.??

सूर्यांश 😔:- हां शायद इसी नाम के सपने हम दोनों को अक्सर आते है..!!

नंदिनी :- हा पर ये चुप क्यों हो गया.. जैसे ही नंदिनी ने वापस आईने को छुआ वो फिरसे चमक उठा..आइना आपने आप सब दिखाने लगा.!

सूर्यांश,"अरे ऐसे देखने से क्या पता चलेगा की वहा क्या हो रहा है.?

वो बोल ही रहा था की अचानक नंदिनी के हाथ से रौशनी निकली और आईने पर पड़ी उसके पड़ते ही आइना बोलने भी लगा वही प्यारी आवाज मे..!!!



सो अगले पार्ट से कहानी बेक स्टोरी होंगी वरदान और अयंशिका की.!!😉.वैसे स्टोरी पिछली सदी मे सुरु होंगी but आपको समझ आये इसलिए सादी भाषा का ही प्रयोग होगा.!!ok.!!तो कौन कौन एक्साइटेड है उनसे मिलने के लिए.और पिछली सदी मे जाने के लिए.....बताना जरू😉😉🙏🙏र.!!!